हिंदी ब्लागिंग के भड़ास काल के बाद के बारे में आपने सोचा है?
यशवंत
यशवंत का यह लेख उनके चिट्ठे पर आया था पर जैसा कि भड़ास के लेखों के साथ अकसर हो जाता हे कि लगातार नए लेखों के आते रहने के कारण यह जलद ही आर्काइव में दब गया। लेख अहम लगा इसलिए पुन: प्रस्तुत है, देखें-
ब्लागिंग का भड़ास काल
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जिस तेजी से मीडिया के भाई बंधु ब्लाग बना रहे हैं और अपनी अपनी भड़ास को अपने अपने ब्लाग पर उजागर कर रहे हैं, इसी तरह जो गैर मीडिया ब्लागर हैं वे जिस तरह अपने लेखन में अपने अनुभवों, अपनी पृष्ठभूमिक, अपनी सोच के आधार पर खुली व तीखी बातें साहस के साथ कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि हिंदी ब्लागिंग के इस शैशव दौर को भड़ास काल (यहां भड़ास शब्द का इस्तेमाल भड़ास ब्लाग के चलते नहीं बल्कि, ब्लागिंग के ट्रेंड को समझने के लिए स्वतंत्र शब्द के बतौर इस्तेमाल किया जा रहा है) के नाम से याद किया जाएगा। ब्लागर वो कह रहे हैं जो उनके दिल में है, जो उनके दिमाग में है, जो उनके अनुभवों से उपजी है। जो उनकी दिनचर्या में घटी है। जो उनके सामने, साइड या पड़ोस में है। जो चर्चा में है। बस, आन किया कंप्यूटर और लिख दी अपनी बात।
आइए कुछ उदाहरणों पर बात करें...
--प्रसिद्ध पत्रकार और संपादक बालेंदु दधीचि का अपना एक ब्लाग है जिसमें वो मीडिया की पोल खोलते हैं। अभी जो उनकी लैटेस्ट पोस्ट है उसमें एक अखबार में तस्वीर किसी व्यक्ति की और कैप्शन व स्टोरी किसी की प्रकाशित किए जाने की गलती का खुलासा किया।
--ब्लागिंग में हाल फिलहाल एकाएक चर्चित हुए पद्मनाभ मिश्र का ब्लाग है मेरा बकवास और उन्होंने इस ब्लाग में अपनी भड़ास कुछ यूं निकाली की उन्होंने प्रभु चावला की बेटी की छेड़खानी किए जाने संबंधी बात कहकर मीडिया के सनसनीखेज व हवा-हवाई वाले वर्तमान ट्रेंड को उजागर किया। बाद में उनकी इस रचना को लेकर कई ब्लागरों ने अपने अपने तरीके से भड़ास निकाली।
--कई मीडियाकर्मी ऐसे हैं जो लिखना तो खूब चाहते हैं पर उन्हें परंपरागत मीडिया में उतना स्पेस नहीं मिल पाता सो वो अपनी भड़ास कई ब्लागों पर निकालते रहते हैं। इनके जरिए वे समकालीन समाज की विसंगतियों, ट्रेंड, हलचलों को उजागर कर भविष्य के लिहाज से दशा-दिशा की कल्पना करते हैं।
--कुछ मीडियाकर्मी ऐसे हैं जो अपने हेक्टिक रुटीन में जो कुछ आफिसियल करते हैं, उसके बाद अनआफिसियल इतना कुछ मन में भरा रहता है कि उसे अपने ब्लाग पर बढ़िया तरीके से पब्लिश करते हैं।
--ढेर सारे गैर-मीडियाकर्मी ब्लागर अपनी पृष्ठभूमि और जेंडर के हिसाब से अपने अनुभवों को शब्दों में डालकर अपने ब्लाग पर पोस्ट डालते रहते हैं। इनमें महिला ब्लागरों को लीजिए तो वो महिलाओं से जुड़ी जीवन स्थितियों को लगातार अपने ब्लाग पर फोकस में रखती हैं और इस मर्दवादी समाज में महिलाओं के आगे बढ़ने में आने वाली दिक्कतों को उजागर करती रहती हैं। कुल मिलाकर अपनी भड़ास को वो एक मंच प्रदान करने में सफल होती हैं।
आप ब्लागिंग के वर्तमान ट्रेंड को देखेंगे तो इसे लंबे समय से दबी छिपी भावनाओँ, सोच व अभिव्यक्ति को ग्लोबल प्लेटफार्म मिलते ही इसके एकदम से निकल पड़ने का दौर कह सकते हैं। मतलब, भड़ास काल।
ब्लागर पोजीशन लें, लाइन-लेंथ तय करें
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लेकिन यह भड़ास काल लंबा नहीं चल सकता। आखिर जल्द ही वो दौर आएगा जब सभी ब्लागरों को अपनी अपनी लाइन ले लेनी होगी वरना उनके विलुप्त हो जाने या अलगाव में पड़ जाने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। और कुछ ब्लागरों ने बेहद व्यवस्थित तरीके से इस काम को करना भी शुरू कर दिया है। उदाहरण के तौर पर...कमल शर्मा का वाह मनी नामक ब्लाग सिर्फ और सिर्फ आर्थिक मुद्दों व निजी लाभ से जुड़े विषयों को उठाता है। इस ब्लाग का अपना एक पाठक वर्ग है। इस ब्लाग पर न तो भड़ास होती है और न सनसनी। यहां जानकारियां दी जाती हैं जिससे आपका भला हो। इसी तरह मोहल्ला ब्लाग खुद को एक ऐसे लोकतांत्रिक वामपंथी रुझान वाले व साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक व राजनीतिक सवालों के जवाब तलाशने वाले ब्लाग के रूप में विकसित कर रहा है जिसका अपना एक पाठक वर्ग है। इसी तरह आलोक पुराणिक अपने ब्लाग को व्यंग्य के ब्लाग के रूप में डेवलप करने में सफल रहे हैं और उनका अपना एक पाठक वर्ग है। जिसे व्यंग्य पढ़ना होगा वह आलोक जी के यहां जाएगा। ब्लागों से संबंधित रपट पढ़नी है तो आपको नीलिमा के ब्लाग पर जाना होगा। ऐसे ढेरों नाम लिये जा सकते हैं लेकिन मैं यहां केवल उदाहरण देने के लिए बात कर रहा हूं। इसमें आप भड़ास ब्लाग का भी जिक्र कर सकते हैं जो हिंदी मीडियाकर्मियों का कम्युनिटी ब्लाग है और हिंदी मीडियाकर्मियों का अनआफिसियल एक्सप्रेशन है। इसका अपना एक पाठक वर्ग है।
ब्लागिंग के भड़ास काल के रोमांच में बंधे हिंदी ब्लागरों को जितनी जल्दी हो अपनी पोजीशन ले लेनी चाहिए। उन्हें खुद को स्पेशलाइज करना चाहिए। अगर कोई बकवास निकाल रहा है तो वह बकवास कब तक निकाल पायेगा, उसे सोचना चाहिए। अगर बकवास निकालने के फील्ड में स्पेशलाइज करने का इरादा है तो फिर भविष्य उज्जवल है।
सवाल है कि इससे क्या होगा?
आज जिस तरह किसी अच्छे से अच्छा या सनसनीखेज से सनसनीखेज ब्लाग पोस्ट के पाठक अधिकतम 300 से 500 हो पाते हैं, उससे हिंदी ब्लागिंग का भला नहीं होने वाला। यह आंकड़ा निराश करता है। किसी भी ब्लाग पर रोज आने वालों यूजर्स व पाठकों की संख्या दस हजार से लेकर पचास हजार तक और फिर एक लाख तक होनी चाहिए। तभी आप ब्लागिंग को सफल कर सकते हैं। तभी हिंदी ब्लागिंग को बचाया जा सकता है वरना इसे नानसीरियस तरीके से छोटी मोटी तकनीकी चीज के रूप में ही लिया जाता रहेगा।
ब्लाग आधुनिकतम मीडिया माध्यम
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ब्लागिंग के भविष्य को लेकर कई बिंब उभरते हैं। पहला तो यह कि यह सबसे आधुनिकतम मीडिया माध्यम बनेगा। वो जो खबरें दबा दी जाती थीं, वो जो खबरें न दिखाई जाती थीं, वो जो बातें न सुनाई जाती थीं, उन सभी को ब्लाग छापेगा, दिखाएगा और सुनाएगा। तो यह मीडिया को वो नया माध्यम है जो प्रिंट और टीवी को चिकोटी काटेगा। प्रिंट और टीवी के मठाधीश जो खबर बनाने व दिखाने में खेल करते हैं, पत्रकारों की नियुक्ति व हटाने में राजनीति करते हैं, ऐसे सभी मठाधीशों पर भी खबरें बनेंगी और छपेंगी, ब्लाग माध्यमों पर। पद्मनाभ मिश्र का मेरा बकवास इसी ट्रेंड को दिखाता है। भड़ास ब्लाग पर डाली जाने वाली कई रचनाएं इसी प्रवृत्ति को बयान करती हैं। जो चीज आफलाइन मीडिया माध्यमों मसलन टीवी और अखबार और मैग्जीन में है, उसे आप ब्लाग पर लायेंगे तो वो उतना हिट न होगा क्योंकि उन माध्यमों ने उसी को आनलाइन भी बनाया हुआ है। अगर एक अखबार है तो उसकी एक आनलाइन साइट भी है। खबरें अखबार में भी हैं और खबरें उसकी आनलाइन साइट पर भी हैं। तो आप इसी तरह का ब्लाग बना लेंगे, न्यूज या खबरों से जुड़ा, तो वो नहीं चलने वाला।
हिंदी ब्लागिंग से बनेंगी नई सक्सेस स्टोरीज
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हिंदी ब्लागिंग में वो चीज सफल होगी जो न तो अब तक आनलाइन में रही है और न ही आफलाइन में। मजेदार ये है कि चूंकि हिंदी ब्लागिंग के शुरु होने का दौर ही आनलाइन में हिंदी वेबसाइट्स के शुरू होने का दौर है तो हर ब्लागर को खुद के ब्गाग के साथ साथ हिंदी में आनलाइन मार्केट में खुद को स्थापित करने व इससे रेवेन्यू जनरेट करने के बारे में सोचना व प्लान करना चाहिए। जैसे, मेरा खुद का एक सपना है कि जिस दिन भड़ास ब्लाग के दस हजार सदस्य हो जायेंगे उस दिन हम लोग वाकई एक रेवेन्यू जनरेशन माडल को शुरू करेंगे और उसका लाभ सभी सदस्यों को मिलेग। यह कैसे और किस तरह होगा, इस पर लगातार सोचा जा रहा है। ऐसे ही ढेरों काम हैं, जो अभी किए नहीं गए हैं और जो करेगा वो जीतेगा। जीतेगा इसलिए क्योंकि दरअसल अभी सामने कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं है इसलिए अखाड़े में आप उतरेंगे तो आपको ही विजेता घोषित किया जाएगा।
बात हो रही थी हिंदी ब्लागिंग की। तो साथियों, ब्लागिंग के इस भड़ास काल के, मेरे हिसाब से इस साल भी चलते रहने की उम्मीद है और अगले साल भी चलेगा। और इन दो सालों में ब्लागरों की संख्या आज की संख्या से पांच गुना ज्यादा हो जाएगी। और तब हर अच्छी पोस्ट को पढ़ने वालों की संख्या हजार से पांच हजार तक पहुंच सकती है। इसमें थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है। इन दो वर्षों में कई ब्लाग खुद को बेहद प्रोफेशनली मैनेज करेंगे और बड़ा नाम बनेंगे। साथ में दाम भी पाएंगे।
तो आइए, हिंदी ब्लागिंग के अगुवा साथियों, भड़ास काल से निकलने के लिए खुद को स्पेशलाइज और आर्गेनाइज करें। इसके जरिए हम खुद का और खुद के ब्लाग का काम, आनलाइन माध्यम में हिंदी भाषा और हिंदी वालों का ज्यादा भला करेंगे। अगर हम ऐसा करने में असफल रहे तो बड़ी कंपनियां थोड़े देर से ही आएंगी और हर उन आइडियाज पर जिस पर काम करना बाकी है, काम शुरू कर देंगी। फिर हम हिंदी वाले सदा की तरह उनके एक यूजर या रीडर बनकर रह जाएंगे, मैदान से बाहर, हाशिए पर खड़ा होकर ताली बजाते हुए तमाशे देखने वाले। और खेल खत्म होने पर कुछ लुटा पिटा सा एहसास करते हुए घर जाने वाले। मेरे खयाल से आनलाइन में हिंदी कें मार्केट पर हिंदी ब्लागरों की प्रोफेशनल निगाह होनी चाहिए और आगे जो ब्लागर मीट हों उनमें एक दूसरी की प्रशंसा या निंदा की बजाय एक दूसरे के साथ मिलकर आनलाइन हिंदी मार्केट को ट्रैप करने की रणनीति पर बातचीत होनी चाहिए। एक तरह के गुणधर्म वाले ब्लागरों को मिलकर अपने ब्लाग संचालित करने के बारे में सोचना चाहिए।
और आज नहीं तो कल ब्लागरों को करना होगा। आज ये काम आप अपनी दूरदर्शी निगाह के कारण कर सकते हैं, कल ये काम आपको मजबूरी में करना होगा क्योंकि आपको खाने के लिए बड़े शिकारी सामने मुंह बाये दिखेंगे तो आपको डर के मारे आपसी यूनिटी कायम करनी होगी।
मुझे लगता है इस मुद्दे पर हम सभी ब्लागरों को विचार विमर्श करते रहना चाहिए।
इस सीरियस भड़ास को सीरियस तरीके से लेने की जरूरत है...:)