Monday, October 27, 2008

किताब पढ़ने वाली औरतें

जनसत्‍ता के कॉलम चिट्ठाचर्चा में इस सप्‍ताह का लेख प्रस्‍तुत है। पूरा पाठ नीचे दिया गया है।

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किताब पढ़ने वाली औरतें

                                         -विजेंद्र सिंह चौहान

'भारतीय संस्‍कृति‘ और ‘करवा चौथ परंपरा‘ के कई पेरौकार चिट्ठाकार (और इनकी कोई कमी नहीं ब्‍लॉगजगत में) गाहे बगाहे संतोष जाहिर करते रहे हैं कि शुक्र है हमारी पत्नियॉ ब्‍लॉग नहीं पढ़तीं (ये सुसंस्‍कृत, घरबारी औरतों की जगह नहीं)। इसलिए जब सुनील दीपक ने अपने ब्‍लॉग ‘जो कह न सके‘ (कल्‍पना डॉट आईटी/हिन्‍दीब्‍लॉग) पर ‘किताब पढ़ने वाली औरतों‘ को मिले ऐतिहासिक अस्वीकार का चित्रण प्रस्‍तुत किया तो ये कथा कुछ जानी पहचानी लगी। माइकेल एंजेलो की भगवान की ओर बढ़ती मानव अँगुली वाले चित्र के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध रोम के सिस्‍टीन चेपल में सिबिल्‍ला की पेंटिंग भी है। इटली में रहने वाले ब्‍लॉगर सुनील स्‍पष्‍ट करते हैं-

‘‘सिस्टीन चेपल के बारे में सोचिये तो भगवान की ओर बढ़ती मानव उँगली के दृश्य को अधिकतर लोग जानते हैं पर इसी कृति का एक अन्य भाग है जिसमें बनी है सिबिल्ला की कहानी. भविष्य देखने वाली सिबिल्ला को भगवान से एक हजार वर्ष तक जीने का वरदान मिला था पर यह वरदान माँगते समय वह चिरयौवन की बात कहना भूल गयी इसलिए उसकी कहानी वृद्धावस्था के दुखों की कहानी है.‘‘

इसी पोस्‍ट में सुनील अलग अलग चार प्रसिद्ध पेंटिंग्‍स का विश्‍लेषण करते हैं जिनमें किताब पढ़ती औरतों के चित्र हैं, अलग अलग देशकाल से...साथ ही उन्‍हें आशापूर्णा देवी की सुबर्णलता भी इसी कोटि की नायिका के रूप में याद आती है जिसे किताब पढ़ने का ‘ऐब‘ है।

women_read_01 ऐंजेलो की पेंटिंग सिबिल्ला 1510 की बनी है जिसमें सिबिल्ला के हाथ में भविष्य की किताब है जो कोरी है। दूसरी पेंटिंग जिसकी चर्चा सुनील करते हैं वह हॉलैंड के चित्रकार जेकब ओख्टरवेल्ट की है जो उन्होंने 1670 में बनायी थी. उस समय हालैंड दुनिया के सबसे साक्षर देशों में से था, स्त्री और पुरुष दोनो ने ही पढ़ना लिखना सीखा था. किताबे पढ़ने के अतिरिक्त चिट्ठी लिखने का चलन हो रहा है. इस चित्र में उस समय के संचार के तीन माध्यमों को दिखाया गया - बात चीत, पुस्तक और पत्र. नवयुवक युवती को अपने प्रेम का निवेदन कर रहा है और नवयुवती किताब पढ़ने का नाटक कर रही है. यही प्रेम संदेश मेज पर रखे पत्र में भी है। ब्लॉगर सुनील दीपक जो हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी व इतालवी में भी ब्लॉगिंग करते हैं अपने सचित्र विश्लेषण में हॉलैंड के पीटर जानसेन एलिंगा के चित्र तथा विन्सेंट वान गॉग के एक चित्र का परिचय भी देते हैं जो 1888 का है। इन चित्रों के माध्यम से सुनील राय व्यक्त करते हैं कि -

‘‘समझ में आने लगता है कि क्यों पितृसत्तायी समाज को स्त्रियों का किताबें पढ़ना ठीक नहीं लगा था. किताबों की दुनिया स्त्रियों को बाहर निकलने का रास्ता दिखाती थीं, उन्हें अपना कल्पना का संसार बनाने का मौका मिल जाता था जो समाज के बँधनों से मुक्त था, उनमें अपना सोचने समझने की बात आने लगती थी.‘‘

पाठक के लिए यह विश्लेषण और भी ऑंखें खोलने वाला इसलिए है कि शताब्दियों से जारी ये वर्जनाएं ब्लॉगजगत पर भी अपनी छाया छोड़ती हैं अत: संचार के नए साधनों में स्त्री भागीदारी के गंभीर निहितार्थ हैं।

गर आप ऐसे शख्स हैं जो ब्लॉगिंग की दुनिया में कूदना चाहते हैं लेकिन तकनीकी अड़चनों के चलते ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो आपके लिए मदद केवल एक क्लिक भर की दूरी पर है। कुछ हिन्दी ब्लॉगरों ने अब तकनीकी सहायता के लिए ही ब्लॉग बना लिए हैं। इनमें से एक है युवा तकनीकज्ञ अंकित का ब्लॉग प्रथम (एचआई डॉट प्रथम डॉट नेट) अंकित नित नई जुगाड़ी तकनीकों से हिन्दी ब्लॉगिंग को आसान बनाने में जुटे हैं! अपनी हाल की एक पोस्ट में अंकित ने बताया कि किस प्रकार हिन्दी चिट्ठों पर वे लोग भी अब आसानी से हिन्दी में टिप्पणी कर सकते हैं जो हिन्दी की टाईपिंग नहीं जानते। ये औजार बेहद सरल व कामयाब है।

इसी प्रकार एक अन्य तकनीकी ब्लाWगर हैं ई-गुरू राजीव जिनका ब्लॉग है (ब्लॉग्सपंडित /ब्लॉग्सपंडित डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) इस ब्लॉग की दो पोस्टें नौसिखियों के लिए खासतौर पर मददगार हैं एक जो वर्डप्रेस पर ब्लॉग बनाना सिखाती है तथा दूसरी वह जो ब्लॉगर पर नए ब्लॉग बनाने का तरीका बताती है! गौरतलब है कि हिन्दी के लगभग सभी ब्लाWग इन दो प्लेटफार्मों पर ही बने हैं। तो फिर देर किस बात की पधारिए हिन्दी ब्लॉगजगत में खुद के नवेले ब्लॉग के साथ।

Sunday, October 26, 2008

चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे

 

हम सभी को विश्‍वास रहा है कि चिट्ठों की संख्‍या ज्‍यामितिक दर से बढ़ती है।  तभी तो इस पोस्‍ट में जो सितम्‍बर 2007 की है चिट्ठाजगत में 1000 चिट्ठे हाने पर खुशी जाहिर की गई थी। यानि तीन साल(2004-07)में चिट्ठे हुए थे 1000 और देखिए सितम्‍बर 2007 की तुलना में आज के चिट्ठाजगत का स्‍क्रीनशॉट

ScreenHunter_01 Oct. 26 15.21

जी तब से अब तक चिट्ठाजगत में दर्ज हिन्‍दी चिट्ठों की संख्‍या आज बढ़कर पॉंच गुना हो गई है। आज हो गए 5000 ब्‍लॉग्‍स। बल्‍ले बल्‍ले।

दीपावली पर इस शानदार उपलब्धि के लिए आप सभी को बधाई।

Wednesday, October 15, 2008

स्‍माइली ही संदेश है।

 

प्रस्‍तुत है इस सप्‍ताह के जनसत्‍ता से चिट्ठाचर्चा

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पूरा पाठ इस प्रकार है-

स्‍माइली ही संदेश है

- विजेंद्र सिंह चौहान

हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत में बाटला हाऊस है और अपनी जगह है। सो ही धराशाई शेयर बाजार भी है ! सौम्‍या विश्‍वनाथन हैं, स्‍त्री विमर्श और सांप्रदायिकता भी बरकरार हैं , उन्हें कौन डिगा सकता है। निशा-मधुलिका और दाल रोटी चावल जैसे ब्‍लॉगों का बरास्‍ता स्‍वाद छा जाने वाला अपना प्रति-फेमिनिज्‍म भी है , पर इतना सब कुछ केवल हाशिया है। ये हिन्‍दी ब्‍लॉगों के आटे में केवल नमक है ! हिन्‍दी चिट्ठाकारी के केवल संचारी भाव हैं। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का मूल भाव, उसका यूएसपी है उसकी अनौपचारिकता बोले तो हा हा ही ही यानि हास्‍य और व्‍यंग्‍य। ब्‍लॉगिंग की भाषा में लिखें तो एक कोलन लिखें और कोष्‍ठक को बंद कर दें {:)} । :) ब्‍लॉगिंग की भाषा में स्‍माइली कहलाता है। जिस कथन के बाद स्‍माइली लगा हो उस पर नाराज होना वर्जित है। स्‍माइली वही है जिसे फुरसतिया मौज लेना कहते हैं, अरूण पंगा लेना, आलोक पुराणिक अगड़म -बगड़म कह जाते हैं। सारे शब्‍द चुक गए हैं इसलिए समीर मजबूरी में हास्‍य व्‍यंग्‍य को हास्‍य व्‍यंग्‍य ही कहते हैं। हिन्‍दी चिट्ठाकारी में जो परंपरा दो महीने टिक जाए वो सुदीर्घ पद को प्राप्‍त होती है इस लिहाज से यहॉं व्‍यंग्‍य लेखन की परंपरा को तो सुदीर्घतम माना जा सकता है। आलोक पुराणिक (आलोकपुराणिक डॉट कॉम), समीरलाल (उडनतश्‍तरी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट कॉम) शिवकुमार (शिव-ज्ञान डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट कॉम), अशोक चक्रधर, जैसे प्रतिबद्ध व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारों के आने से पहले भी अनूप शुक्‍ला, जितेंद्र चौधरी, देबाशीष आदि एक दूसरे से जिस तरह मौज लेते थे उसे व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारी की आदि पोस्‍टें कहा जा सकता है।

इन व्‍यंग्‍य पोस्‍टों को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि इन पोस्‍टों में कानपुर के ठग्‍गू के लड्डुओं की करामात है ! यानि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं। धॉंसू च फॉंसू , झाड़े रहो कलट्टरगंज, टंकी आरोहण , मौज लेना जैसी अनेकानेक प्रयुक्तियॉं हिन्‍दी चिट्ठाकारी के मौलिक मुहावरे हैं। हिन्‍दी के व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारों का एक और मौलिक शिष्‍टाचार है कि वे जिस भी घर में जाते हैं चाहे वह अध्‍यापक का हो या नेता का, उसके घर से डायरी के पेज जरूर चुरा कर लाते हैं। मसलन आलोक पुराणिक छात्रों की उत्‍तर पुस्तिकाओं से निबन्‍ध चुरा कर लाते हैं जिनके ज़रिए छात्र शिक्षकों के ज्ञान- चक्षु खोलते हैं-

"जी बिलकुल सही कह रहे हैं। हलवाईगिरी को आतंकवाद के खिलाफ मुकाबले के लेवल पर नहीं उतारा जा सकता। दहीबड़े कड़े हों या मुलायम, उन्हे बनाना मुश्किल काम है। दाल भिगोनी पड़ती है, मिक्सी में पीसनी पड़ती है। फिर तलने पड़ते हैं। फिर दही जमाना पड़ता है, फिर………………। आतंकवाद के मुकाबले के लिए तो सिर्फ बयान देना पड़ता है कि हम कड़ाई से मुकाबला करेंगे, दैट्स आल। टेक हलवाईगिरी सीरियसली-एक बच्चा एक दम तार्किक टाइप बात कह रहा है।"

इसी किस्म की खुराफात अरुण अरोरा अपने ब्‍लॉग पंगेबाज में करते हैं ! वे अपने चिट्ठे में उन काल्‍पनिक प्रेमपत्रों को उजागर करते हैं जिन्हें उन्होंने इस या उस कबाड़ी के यहॉं से जुगाडा है ! बिला शक जो डायरी इस समय हिन्‍दी चिट्ठाकरी में सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय है वह किसी पेशेवर व्‍यंग्‍यकार की नहीं वरन एक वित्‍त सलाहकार शिवकुमार मिश्र द्वारा प्रस्‍तुत दुर्योधन की डायरी है। इस डायरी पर आजकल हस्तिनापुर में गांधार चैरिएट्स का रथ कारखाना लगाने के लिए किसानों की जमीन लिए जाने संबंधी बखेड़ा दुर्योधन के मन को मथ रहा है! व्‍यंग्य चिट्ठाकारी के लिहाज से राजकिशोर, अनूप शुक्‍ला व समीर लाल के ब्‍लॉग भी महत्‍वपूर्ण ब्‍लॉग हैं। अनीता कुमार, बालकिशन आदि पार्टटाईम व्‍यंग्‍यकार हैं।

किंतु यह न समझें कि इन चंद चिट्ठाकारों की पोस्‍टों के आधार पर व्‍यंग्‍य को हिन्‍दी चिट्ठाकारी का अंगी रस घोषित किया जा रहा है, साफ कर दें कि इस मान्‍यता का आधार पोस्‍टों से अधिक टिप्‍पणियॉं हैं। अपरिचित पाठकों को बताया जाए कि ब्‍लॉग यानि बेवलॉग इंटरनेट पर दर्ज ब्‍यौरे हैं जिन्‍हें पोस्‍ट कहा जाता है ये तिथिक्रम में लगे होते हैं। अहम बात यह है कि इन पोस्‍टों पर पाठक द्वारा टिप्‍पणियॉं देने की सुविधा होती है। इससे ही ब्‍लॉगिंग का विशिष्‍ट चरित्र उभरता है। अगर हिन्‍दी के टिप्‍पणीकारों के तेवर पर विचार करें तो पाते हैं कि यह तेवर मूलत: व्‍यंग्‍य का ही है। ऐसी टिप्‍पणियों की संख्‍या बहुतायत में है जो स्‍माइली पर समाप्‍त होती हैं।

हिन्‍दी के तकनीकी जुगाड़ों के लिए अगर किसी एक ही ठीए का पता चाहिए हो तो वह है मस्‍टडाउनलोड का हिन्‍दी संस्‍करण (एचआई डॉट मस्‍टडाउनलोड्स डॉट कॉम)। इस हिन्‍दी बेवसाइट पर रोजमर्रा के काम के नवीन साफ्टवेयरों को मुफ्त डाउनलोड करने की सुविधा उपलब्‍ध है। कुल जमा 181 ऐसे अलग- अलग साफ्टवेयर यहॉं डाउनलोड के लिए उपलब्‍ध हैं। इनमें ब्राउजर, आडियो, वीडियो, फायरवाल, एंटीवायरस, गेम्‍स, फाइल शेयरिंग, बैकअप आदि के भॉंति भॉंति के औजार शामिल हैं। उदाहरण के लिए यदि आप अपने कंप्‍यूटर पर हिन्‍दी न दिखने या न लिख पाने की परेशानी से गुजर रहे हैं तो हिन्‍दी मस्‍टडाउनलोड की हिन्‍दीहेल्‍प आपकी परेशानी को दूर कर सकती है। उल्‍लेखनीय है कि अंगेजी में ऐसी दर्जनों डाउनलोड साईट हैं किंतु हिन्‍दी में भी इस साईट के आ जाने से अब हिन्‍दी प्रयोक्ताओं के लिए भी सुविधा हो गई है।

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