Monday, November 24, 2008

म्‍यार मुलुक के मनख्‍यूँ

जनसत्‍ता में इस सप्‍ताह के स्‍तम्‍भ में हिन्‍दी के ऑंचलिक ब्‍लॉगों पर ध्‍यान केंद्रित किया गया था। इसकी पृष्‍ठभूमि में ब्‍लॉग के मिडलाइफ क्राइसिस को रखा गया था। लेख का पूरा पाठ छवि के नीचे दिया गया है।

chitthacharcha novII

म्‍यार मुलुक के मनख्‍यूँ                      

                             - विजेंद्र सिंह चौहान

ईश्‍वर के अंत, कविता के अंत, इतिहास के अंत और न जाने किस किस के अंत की घोषणाएं हो चुकी हैं ऐसे में ब्‍लॉगजगत कोई अमरफल खाकर थोड़े ही आया है, इस सप्‍ताह ब्‍लॉगजगत के अंत की भी घोषणा हुई या कहें कि आशंका व्‍यक्‍त की गई। इस आशय की पोस्‍ट ज्ञानदत्‍त पांडेय जो मानसिक हलचल नाम का ब्‍लॉग चलाते हैं ने लिखी। इस पोस्‍ट का आधार ब्रिटेनिका में प्रकाशित निकोलस कार का लेख 'ब्‍लॉगोस्‍फेयर- रेस्‍ट इन पीस' था। इस लेख में कार ने तर्क दिया है कि ब्‍लॉगजगत का हाल का सच यह है कि वे अब वैकल्पिक मीडिया के रूप में विकसित होने के स्‍थान पर पेशेवर मीडिया समूहों की तरह ही बढ़ रहे हैं। सफल ब्‍लॉग अब निजी ब्‍लॉग न होकर व्‍यवस्थित कारोबारी उद्यम हैं अत: ब्‍लॉग अपनी खासियत से ही मुँह मोड़ रहे हैं इस तरह अब वे मुख्‍यधारा मीडिया जैसा ही व्‍यवहार कर रहे हैं तथा यही ब्‍लॉगजगत के अंत की शुरूआत है।

हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत ने इस तर्क पर हैरान सी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की, क्‍या वाकई ? हिन्‍दी में अभी एक भी पेशेवर ब्‍लॉग नहीं है, यहॉं अभी भी पूरी तरह निजता का बोलबाला है...निष्‍कर्ष निकला कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का स्‍थानीय होना..वर्नाक्‍यूलर uttarakhandहोना इस बात को सुनिश्चित करता है कि यहॉं ब्‍लॉगिंग का तेवर पूरी तरह ब्‍लॉगराना बना रहे। निजता, क्षेत्रीयता, अनगढ़ता इसकी खसियत हैं तथा ये बिंदास बनी हुई ही नहीं है वरन अगले सोपान तक भी जा रही हैं यानि हिंदी की बोलियों के ब्‍लॉग। कोई बाढ़ नहीं आ गई है लेकिन भोजपुरी, मैथिली, मालवी, हरियाणवी, पंजाबी, पहाड़ी आदि भाषाओं में ब्‍लागों की शुरूआत हो गई है। इन भाषाई बयारों की ताजगी को महसूस करना लू के थपेड़ों में छतनार का सा आनंद देता है। अपनी भाषा का ये डिजीटल आग्रह ठाकरेदाँ आतंकवाद से एकदम अलहदा है, बल्कि उसका एंटीडोट है इलाज है। महानगर जिन प्रवासियों की इतनी नाकभौं सिकोड़कर अगवानी करता है उनकी कितनी जरूरत उनके अपने गॉंव-द्वार को है यह इन भाषाई ब्‍लागों से पता चलता है। मसलन पहाड़ी ब्‍लॉग 'बुरांस' (बुरांश डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) पर गिरीश सुदरियाल की एक कविता है-

रीति इगास (खाली इगास)
फीकि बग्वाल (फीकी दीवाली)
हर्चे रंग (खोए रंग)
छुटे अंग्वाल (छूटे हाथ)
कैकि खुद (किसी की याद)
कैकि जग्वाल (किसी का इंतजार)
म्यार मुलुक (मेरे मुल्क)
मनख्यूं का अकाल (मनुष्यों का अकाल)

भोजपुरी और मैथिली क्षेत्र के हिन्‍दी ब्‍लॉगरों में अपने हिन्‍दी ब्‍लॉगों के साथ साथ अपने ऑंचलिक भाषाई ब्‍लॉगों के प्रति विशेष रुझान देखने को मिलता है। शशि सिंह हिन्‍दी के सबसे पुराने ब्‍लॉगरों में से हैं उनके 'भोजपुरिया ब्‍लॉग' (भोजपुरी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) से हिन्‍दी में ऑंचलिक ब्‍लॉगों की परंपरा शुरू होती है। भोजपुरिया, भोजपुरी फिल्‍म (भोजपुरी फिल्‍म डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम) जैसे ऑंचलिक ब्‍लॉग मंद- मंद चल रहे हैं। मैथिली के ब्‍लॉग अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सांस्‍कृतिक तेवर लिए हुए हैं। कतेक रास बात (विद्यापति डॉट आर्ग), मिथिला मिहिर (मिथिला मिहिर डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) तथा मैथिल और मिथिला (मैथिल और मिथिला डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) कुछ महत्‍वपूर्ण मैथिल ब्‍लॉग है। आमतौर पर मैथिली ब्‍लॉगों में सामुदायिकता व साहित्यिकता का पुट अधिक है।

फिल्मकार व पत्रकार पंकज शुक्‍ल का अपने गॉंव के नाम से शुरू किया गया ब्‍लॉग "मंझेरिया कलां" अवधी 'क्‍यार पहिला ब्‍लॉग' है लेकिन इसे ब्‍लॉगर की दक्षता का पूरा लाभ मिला है। उदाहरण के लिए हालिया पोस्‍ट में पंकज ने शायर हसरत मोहानी पर सामग्री दी है। लोकप्रिय ग़ज़ल 'चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ' के लेखक मोहानी उन्‍नाव के ही थे। मंझेरिया कलां एक नया लेकिन संभावनाओं से पूर्ण ब्‍लॉग है। हैरानी की बात है कि सदियों तक साहित्यिक हिन्‍दी के सिंहासन पर आरूढ़ रही ब्रजभाषा अभी तक अपने पहले महत्‍वपूर्ण ब्‍लॉग की प्रतीक्षा ही कर रही है, वैसे अशोक चक्रधर कभी कभी अपने ब्‍लॉग पर ब्रज तेवर की पोस्‍टें डालते रहते हैं।

ब्‍लॉग की ऑंचलिकता जरुरी नहीं कि घोषणा करके ही आए। ताऊ रामपुरिया का ब्‍लॉग (रामपुरिया पीसी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) हिन्‍दी ब्‍लॉग होकर भी ठेठ हरियाणवी है और जे न मानो त बावलीबूच ताऊ अपणे लट्ठ से मणवा लेगा। वैसे हरियाणवी का प्रथम ब्‍लॉग श्रीश का हरियाणवी चौपाल (हरियाणवी चौपाल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) रहा है। अगर छत्‍तीसगढ़ी की बात करें तो इस भाषा को सबसे बड़ा लाभ यह मिला है कि खुद रवि रतलामी की भाषा यही है और आजकल वे बाकायदा छत्‍तीसगढ़ी भाषा के आपरेटिंग सिस्‍टम के विकास में लगे हुए हैं। अन्‍य ऑंचलिक ब्‍लॉग अभिव्‍यक्तियों की बात करें तो मालवी जाजम (मालवी जाजम डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) विशेष रूप से उल्‍लेख्‍य है। बुजुर्ग चिट्ठाकार नरहरि पटेल के इस ब्‍लॉग में मालव की महक सहज ही महसूस की जा सकती है।

हिन्‍दी पट्टी की इन ऑंचलिक ब्‍लॉग अभिव्‍यक्तियों की खा‍सियत भी है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग से इनका नाता मुख्‍यधारा-हाशिया वाला नहीं है, वरन बराबरी व सौहार्द का है। तो आपकी मिट्टी की महक आपको आपकी ही बोली में बुला रही है...पधारो सा।

Monday, November 10, 2008

छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी

 

जनसत्‍ता में इस सप्‍ताह के स्तंभ में उस बहस को प्रस्‍तुत किया गया था जिसे विनीत ने हाल में अपने चिट्ठे पर आयोजित किया था, यानि क्‍या ब्‍लॉगर पत्रकार कहे जा सकते हैं। पेश है इस सप्‍ताह का स्‍तंभ। नीचे पूरे लेख का पाठ भी दिया गया है।

nov I jansatta

छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी

चिट्ठाजगत (चिट्ठाजगत डॉट इन) पर दर्ज ब्‍लॉगों की कुल संख्‍या अब बढ़कर 5000 से अधिक हो गई है। इनमें बहुत से सक्रिय कहे जा सकने वाले चिट्ठे हैं इसलिए हैरान नही होना चाहिए कि कुछ ब्‍लॉगरों में पत्रकार के रूप में पहचाने जाने की महत्‍वाकांक्षा पलने लगी है। दरअसल पिछले सालभर में हुआ ये है कि पत्रकारों की एक पूरी रेवड़ खुद को हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ओर हांक लाई है यानि अब ढेर से पत्रकार ब्‍लॉगर हैं इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि क्‍या इसका विपरीत न्‍याय भी लागू माना जाए। क्‍या ब्‍लॉगर खुद को पत्रकार मान सकते हैं, और ये भी कि क्‍या ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता है? गाहे बगाहे के विनीत  ने ये बहस शुरू की और इसमें कई ब्‍लॉगरों ने शिरकत की लेकिन मजे की बात है कि 'पत्रकार' इस बहस से दूर ही रहे। बंटी हुई निष्‍ठा का मन पलायन में ही मुदित रहा। टिप्‍पणी करते हुए ब्‍लॉगवाणी के संचालक मैथिलीगुप्‍त ने इस सवाल को बर‍काते हुए इशारा किया कि ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता नहीं इससे आगे की चीज है-

'ब्लागिंग तो कैसी भी पत्रकारिता है ही नहीं. हिन्दी ब्लागिंग में पत्रकार अवश्य हैं लेकिन उनके लेखन का चरित्र ब्लागर के तौर पर न होकर के पत्रकार के तौर पर ही है.....
..ब्लागर ब्लागर होते हैं और पत्रकार पत्रकार. दोनों अलग अलग हैं. आजकल सारी दुनियां में ब्लागर अधिक विश्वसनीय माने जा रहे हैं. ब्लाग के विश्वसनीय होने के कारण ही गूगल को किसी सर्च को केवल ब्लाग तक लिमिटेड करने का आप्शन देना पड़ा है।"

ऐसे में चिट्ठाकारी की जवाबदेही का सवाल भी उठना ही था। सवाल उठाया गया कि ''जो लोग नेट पर लिख रहे हैं, चाहे वो ब्लॉग के जरिए हो या फिर वेब पर , उनकी ऑथेंटिसिटी कितनी है। वेब से जुड़े लोग, जिनका कि अपना डोमेन है, उन्हें तो फिर भी आसानी से पकड़ा जा सकता है। लेकिन जो ब्लॉगिंग कर रहे हैं उनको लेकर दिक्कत है।'' ये अलग बात है कि ब्‍लॉगिंग की सुविचारित राय इस आथेंटिसिटी के प्रतिमान पर ही सवाल उठाती है तथा लाँजिविटी तथा खोज को ज्‍यादा अहम मानती है ! मसलन शीर्ष चिट्ठाकार देबाशीष का मानना है ''.....इंटरनेट पर लेखन, मसौदे, चित्रों, यानि कुछ भी रखा जाय असल मुद्दा है उन्हें खोज पाने का। किसी शोध करते छात्र या किसी डॉक्टर से पूछें कि इंटरनेट ने उसे क्या दिया। मेरा मानना है कि लेखन नहीं, खोज (गूगल) इंटरनेट युग की सबसे बड़ी क्रांति है। यह न हो तो, जैसा वायर्ड पत्रिका ने हाल में लिखा, आपका लिखा वैसे ही कहीं खो जायेगा जैसा किसी स्थानीय अखबार में छपने के दूसरे दिन खो जाता रहा है। और कुछ न लिखने जैसा ही है।''

वैसे ब्‍लॉगिंग को पत्रकारिता माना जाए या नहीं इसकी परवाह उन्‍हें कम ही है जो केवल ब्‍लॉगर हैं, ये उन पत्रकारों की चिंता ज्‍यादा है जो आजकल ब्‍लॉगिंग भी कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे ब्‍लॉग भी हैं जहॉ खुद मेनस्‍ट्रीम मीडिया पर जवाबदेही का सवाल उठाया जाता है। बालेन्‍दु शर्मा दधीच का ब्‍लॉग वाह मीडिया (वाह मीडिया डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) का तो मुख कथन ही है- ''दूसरों पर उंगली उठाने में सबसे आगे है मीडिया। सबकी नुक्ताचीनी में लगा मीडिया क्या स्वयं त्रुटिहीन है? आइए, इस हिंदी ब्लॉग के जरिए थोड़ी सी चुटकी लें, थोड़ी सी आत्मालोचना करें।'' इस ब्‍लॉग में वेब तथा अन्‍य मीडिया रूपों में हुई भूलों की ओर इशारा किया जाता है। वर्तिका नन्‍दा अपने ब्‍लॉग मीडिया स्‍कूल (वर्तिकानन्‍दा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) में मीडिया पर एक विश्‍लेषात्‍मक नजर डालती हैं। इसी प्रकार विनीत तो गाहे-बगाहे ऐसा करते हैं लेकिन खबरी अड्डा (खबरीअड्डा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) मुसलसल यही और सिर्फ यही करता है। मसलन हाल की एक रपट में मंदी से मीडिया उद्योग पर खासकर पत्रकारों की तनख्‍वाह पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्‍लेषण किया गया। मंदी में पत्रकारों के लिए लखटकिया नौकरी मिलना आसान नहीं होगा ऐसी राय थी, ये अलग बात है कि जब टिप्‍पणीकारों ने खटिया खड़ी की भैए जो ये भूत-चुड़ैलन को खबर कह कह परोसते हैं वे कल के जाते आज चले जाएं...तो अंतत: खबरी अड्डा ने तमाम ब्‍लॉगिंग विवेक को ताक पर रखकर इस पोस्‍ट से टिप्‍पणी की सुविधा ही हटा ली।

हिन्‍दी के तकनीकी ब्‍लॉगों का मतलब यदि आप यही मानते हैं कि यहॉं हिन्‍दी साफ्टवेयर की समस्‍याओं पर ही लिखा जाता हैं तो अमित के हिन्‍दी डिजिटब्‍लॉग (हिन्‍दी डॉट डिजिटब्‍लॉग डॉट कॉम) पर नजर डालें। हाल की एक पोस्‍ट में अमित ने हार्डवेयर से जुड़े उस सवाल का जवाब दिया है जिससे नए हर कंप्‍यूटर का खरीददार गुजरता है, यानि कौन सा कंप्‍यूटर लिया जाए...ब्रांडिड या फिर असेम्‍बल्‍ड। अमित साफ राय देते हें कि चुनाव की आजादी, बाजिव दाम तथा लोच के चलते असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर सदैव ब्रांडिड कंप्‍यूटर से बेहतर रहते हैं। भारत में तो बिक्री के बाद की सपोर्ट भी असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर की ही बेहतर होती है। तो फिर मन मारकर वही क्‍यों खरीदें जो कंपनी थोप रही है, अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से मनमाफिक कंप्‍यूटर व साफ्टवेयर खुद चुन कर अपना कंप्‍यूटर असेम्‍बल करवाएं।