जनसत्ता में इस सप्ताह के स्तम्भ में हिन्दी के ऑंचलिक ब्लॉगों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसकी पृष्ठभूमि में ब्लॉग के मिडलाइफ क्राइसिस को रखा गया था। लेख का पूरा पाठ छवि के नीचे दिया गया है।
म्यार मुलुक के मनख्यूँ
- विजेंद्र सिंह चौहान
ईश्वर के अंत, कविता के अंत, इतिहास के अंत और न जाने किस किस के अंत की घोषणाएं हो चुकी हैं ऐसे में ब्लॉगजगत कोई अमरफल खाकर थोड़े ही आया है, इस सप्ताह ब्लॉगजगत के अंत की भी घोषणा हुई या कहें कि आशंका व्यक्त की गई। इस आशय की पोस्ट ज्ञानदत्त पांडेय जो मानसिक हलचल नाम का ब्लॉग चलाते हैं ने लिखी। इस पोस्ट का आधार ब्रिटेनिका में प्रकाशित निकोलस कार का लेख 'ब्लॉगोस्फेयर- रेस्ट इन पीस' था। इस लेख में कार ने तर्क दिया है कि ब्लॉगजगत का हाल का सच यह है कि वे अब वैकल्पिक मीडिया के रूप में विकसित होने के स्थान पर पेशेवर मीडिया समूहों की तरह ही बढ़ रहे हैं। सफल ब्लॉग अब निजी ब्लॉग न होकर व्यवस्थित कारोबारी उद्यम हैं अत: ब्लॉग अपनी खासियत से ही मुँह मोड़ रहे हैं इस तरह अब वे मुख्यधारा मीडिया जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं तथा यही ब्लॉगजगत के अंत की शुरूआत है।
हिन्दी ब्लॉगजगत ने इस तर्क पर हैरान सी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्या वाकई ? हिन्दी में अभी एक भी पेशेवर ब्लॉग नहीं है, यहॉं अभी भी पूरी तरह निजता का बोलबाला है...निष्कर्ष निकला कि हिन्दी ब्लॉगिंग का स्थानीय होना..वर्नाक्यूलर होना इस बात को सुनिश्चित करता है कि यहॉं ब्लॉगिंग का तेवर पूरी तरह ब्लॉगराना बना रहे। निजता, क्षेत्रीयता, अनगढ़ता इसकी खसियत हैं तथा ये बिंदास बनी हुई ही नहीं है वरन अगले सोपान तक भी जा रही हैं यानि हिंदी की बोलियों के ब्लॉग। कोई बाढ़ नहीं आ गई है लेकिन भोजपुरी, मैथिली, मालवी, हरियाणवी, पंजाबी, पहाड़ी आदि भाषाओं में ब्लागों की शुरूआत हो गई है। इन भाषाई बयारों की ताजगी को महसूस करना लू के थपेड़ों में छतनार का सा आनंद देता है। अपनी भाषा का ये डिजीटल आग्रह ठाकरेदाँ आतंकवाद से एकदम अलहदा है, बल्कि उसका एंटीडोट है इलाज है। महानगर जिन प्रवासियों की इतनी नाकभौं सिकोड़कर अगवानी करता है उनकी कितनी जरूरत उनके अपने गॉंव-द्वार को है यह इन भाषाई ब्लागों से पता चलता है। मसलन पहाड़ी ब्लॉग 'बुरांस' (बुरांश डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) पर गिरीश सुदरियाल की एक कविता है-
रीति इगास (खाली इगास)
फीकि बग्वाल (फीकी दीवाली)
हर्चे रंग (खोए रंग)
छुटे अंग्वाल (छूटे हाथ)
कैकि खुद (किसी की याद)
कैकि जग्वाल (किसी का इंतजार)
म्यार मुलुक (मेरे मुल्क)
मनख्यूं का अकाल (मनुष्यों का अकाल)
भोजपुरी और मैथिली क्षेत्र के हिन्दी ब्लॉगरों में अपने हिन्दी ब्लॉगों के साथ साथ अपने ऑंचलिक भाषाई ब्लॉगों के प्रति विशेष रुझान देखने को मिलता है। शशि सिंह हिन्दी के सबसे पुराने ब्लॉगरों में से हैं उनके 'भोजपुरिया ब्लॉग' (भोजपुरी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) से हिन्दी में ऑंचलिक ब्लॉगों की परंपरा शुरू होती है। भोजपुरिया, भोजपुरी फिल्म (भोजपुरी फिल्म डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम) जैसे ऑंचलिक ब्लॉग मंद- मंद चल रहे हैं। मैथिली के ब्लॉग अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सांस्कृतिक तेवर लिए हुए हैं। कतेक रास बात (विद्यापति डॉट आर्ग), मिथिला मिहिर (मिथिला मिहिर डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) तथा मैथिल और मिथिला (मैथिल और मिथिला डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) कुछ महत्वपूर्ण मैथिल ब्लॉग है। आमतौर पर मैथिली ब्लॉगों में सामुदायिकता व साहित्यिकता का पुट अधिक है।
फिल्मकार व पत्रकार पंकज शुक्ल का अपने गॉंव के नाम से शुरू किया गया ब्लॉग "मंझेरिया कलां" अवधी 'क्यार पहिला ब्लॉग' है लेकिन इसे ब्लॉगर की दक्षता का पूरा लाभ मिला है। उदाहरण के लिए हालिया पोस्ट में पंकज ने शायर हसरत मोहानी पर सामग्री दी है। लोकप्रिय ग़ज़ल 'चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ' के लेखक मोहानी उन्नाव के ही थे। मंझेरिया कलां एक नया लेकिन संभावनाओं से पूर्ण ब्लॉग है। हैरानी की बात है कि सदियों तक साहित्यिक हिन्दी के सिंहासन पर आरूढ़ रही ब्रजभाषा अभी तक अपने पहले महत्वपूर्ण ब्लॉग की प्रतीक्षा ही कर रही है, वैसे अशोक चक्रधर कभी कभी अपने ब्लॉग पर ब्रज तेवर की पोस्टें डालते रहते हैं।
ब्लॉग की ऑंचलिकता जरुरी नहीं कि घोषणा करके ही आए। ताऊ रामपुरिया का ब्लॉग (रामपुरिया पीसी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) हिन्दी ब्लॉग होकर भी ठेठ हरियाणवी है और जे न मानो त बावलीबूच ताऊ अपणे लट्ठ से मणवा लेगा। वैसे हरियाणवी का प्रथम ब्लॉग श्रीश का हरियाणवी चौपाल (हरियाणवी चौपाल डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) रहा है। अगर छत्तीसगढ़ी की बात करें तो इस भाषा को सबसे बड़ा लाभ यह मिला है कि खुद रवि रतलामी की भाषा यही है और आजकल वे बाकायदा छत्तीसगढ़ी भाषा के आपरेटिंग सिस्टम के विकास में लगे हुए हैं। अन्य ऑंचलिक ब्लॉग अभिव्यक्तियों की बात करें तो मालवी जाजम (मालवी जाजम डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) विशेष रूप से उल्लेख्य है। बुजुर्ग चिट्ठाकार नरहरि पटेल के इस ब्लॉग में मालव की महक सहज ही महसूस की जा सकती है।
हिन्दी पट्टी की इन ऑंचलिक ब्लॉग अभिव्यक्तियों की खासियत भी है कि हिन्दी ब्लॉगिंग से इनका नाता मुख्यधारा-हाशिया वाला नहीं है, वरन बराबरी व सौहार्द का है। तो आपकी मिट्टी की महक आपको आपकी ही बोली में बुला रही है...पधारो सा।