Monday, January 5, 2009

साझे ब्‍लॉगों का दौर- जनसत्‍ता का लेख

 

प्रस्‍तुत है जनसत्‍ता के स्‍तंभ चिट्ठाचर्चा में इस सप्‍ताह का लेख। छवि के नीचे लेख का अविकल पाठ है-

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साझे ब्‍लॉगों का दौर

-विजेंद्र सिंह चौहान

ब्‍लॉगिंग का एक पारिभाषिक शब्‍द है 'ट्राल', ट्रॉल वह व्यक्ति है जो किसी ऑनलाइन समुदाय में संवेदनशील विषयों पर जान-बूझकर अपमानजनक या भड़काऊ संदेश लिखता/ती है, इस उद्देश्य से कि कोई उस पर प्रतिक्रिया करेगा/गी. ऐसी भड़काऊ प्रविष्टियों को भी ट्रॉल कहा जाता है । ये भी कहा जाता है कि यदि आप ट्राल को भाव देंगे तो उसका भला ही होगा। ट्राल का इलाज है कि उसे भाव न दें, उसकी उपेक्षा करें। लेकिन हर ट्राल की उपेक्षा इतनी सरल नहीं। खासकर अगर ये ट्राल खुद राजेंद्र यादव जैसे वरिष्‍ठ आलोचक हों। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की लंबे समय तक उपेक्षा करने के बाद इस सप्‍ताह राजेंद्र यादवजी ने हिन्‍दयुग्‍म (हिन्‍दयुग्‍म डॉट कॉम) के वार्षिकोत्‍सव में मुख्‍य अतिथि होना स्‍वीकार किया और तीन ट्रालमयी टिप्‍पणियॉं कीं। पहली तो उन्‍होंने कहा कि वे हिन्‍दी ब्‍लॉगों का स्‍वागत करते हैं क्‍योंकि इससे प्रकाशन के अयोग्‍य रचनाओं के लेखक हंस जैसी पत्रिकाओं के संपादक के कान खाना बंद करेंगे अब इस कूड़े को वे खुद अपने ब्‍लॉग पर छाप लेंगे। दूसरा जुमला राजेंद्रजी ने जोश मलीहाबादी के मुहावरे में कहा कि वे खुद भी जीवन के इन आखिरी सोपानों में इंटरनेट- ब्लॉगिंग आदि तामझाम को सीख लेना चाहते हैं क्‍योंकि आखिर दोज़ख की ज़ुबान भी तो यही होगी न। तीसरा ट्राल उन्‍होंने इंटरनेटी ब्‍लॉगवीरों को नसीहत देते हुए कहा कि तकनीक नई सदी की और विचार सोलहवीं सदी के, नहीं चलेगा...नहीं चलेगा। हिन्‍दी को आधुनिक बनाओ तथा मध्‍यकाल तक की हिन्‍दी के साहित्‍य को अजायबघर भेज दो।

ज़ाहिर है ये टिप्‍पणी एक उत्‍तेजक ट्राल थी, कम मंझे हुए ब्‍लॉगर इस जाल में फंस गए और क्रिया प्रतिक्रिया का दौर शुरू हुआ। पहले हिन्‍दयुग्‍म पर, फिर शोभा महेन्‍द्रु के ब्‍लॉग पर (रितबंसल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) और आखिरकार मोहल्‍ला पर (मोहल्‍ला डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) पर इन कथनों के पक्ष विपक्ष में बातें कही सुनी गईं...पुराण अभी चालू आहे।

पीछे मुड़कर देखें कि बीते साल में ब्‍लॉग की दुनिया में क्‍या खास हुआ तो हमें कई प्रवृत्तियॉं दिखाई पड़ती हैं मसलन चिट्ठों की संख्‍या में विस्‍फोटक वृद्धि, हिन्‍दी सर्च में आया उफान, गूगल का लिप्‍यंतरण औजार जारी करना, ब्‍लॉगवाणी की लोकप्रियता, नारद का लुप्‍तप्राय: हो जाना आदि किंतु जिस बात पर सबसे पहले नजर जाती है वह है -सामुदायिक ब्‍लॉगों का बोलबाला। सामुदायिक या कम्‍युनिटी ब्‍लॉग के मायने हैं वे ब्लॉग जो एक ब्‍लॉगर द्वारा नहीं लिखे जाते वरन वैचारिक या उद्देश्‍य की समानता के चलते कई ब्‍लॉगर मिलकर एक ब्‍लॉग पर लिखते हैं इससे संख्‍याबल तथा प्रभाव में इजाफ़ा होता है। ऐसा नहीं है कि हिन्‍दी में सामुदायिक ब्‍लॉग पहले नहीं थे अक्षरग्राम (अक्षरग्राम डॉट कॉम) तथा चिट्ठाचर्चा (चिट्ठाचर्चा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) हिन्‍दी के दो शुरूआती ब्‍लॉग हैं तथा दोनों शुरू से ही सामुदायिक ब्‍लॉग रहे हैं। इस साल में खास ये हुआ कि सामुदायिक ब्‍लॉगों ने ब्‍लॉगजगत की अधिकाधिक जमीन अपने नाम करने का बीड़ा उठाया। पैंतालीस ब्‍लॉगरों के साथ अविनाश की अगुवाई में मो‍हल्‍ला इसमें आगे रहा है। मो‍हल्‍ला संपादन में विश्‍वास रखता है इसलिए सामग्री में ब्‍लॉगपन कम पत्रिकापन अधिक दीखता है। यही वजह है कि अपने ब्‍लॉगर रूप के लिए अधिकांश मोहल्‍ला सदस्‍य कबाड़खाना (कबाड़खाना डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) नाम के सामुदायिक ब्‍लॉग के सदस्‍य हैं इसमें पैंतीस ब्‍लॉगर 'श्रेष्‍ठ कबाड़ी' के रूप में दर्ज हैं। इस ब्‍लॉग का संचालन हलद्वानी से अशोक पांडे करते हैं।

स्‍त्री-विमर्श के सवाल पर एकजुट हुए ब्‍लॉगर सामुदायिक ब्‍लॉग चोखेरबाली (सैंड ऑफ दि आई डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) में लिखते हैं। सुजाता इस ब्‍लॉग की मॉडरेटर हैं तथा राजकिशोर, प्रत्‍यक्षा, अनुराधा, अजीत वडनेरकर आदि जानेमाने नामों सहित कुल तैंतीस ब्‍लॉगर इसके सदस्‍य हैं। इसी मुद्दे पर नारी नामक ब्‍लॉग (इंडियन वूमेन हैज अराइव्‍ड डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) का संचालन रचना करती हैं इसमें केवल महिला ब्‍लॉगर सदस्‍य हैं जिनकी संख्‍या तेईस है।

इन सामुदायिक ब्‍लॉगों के अतिरिक्‍त सस्‍ताशेर (राम रोटी आलू डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), रिजेक्‍टमाल (रिजेक्‍टमाल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), हिन्‍दयुग्‍म, दाल रोटी चावल (दाल रोटी चावल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) आदि कुछ अन्‍य ब्‍लॉग भी गौरतलब कहे जा सकते हैं। वैसे यदि सबसे बड़े सामुदायिक ब्‍लॉग की बात करें तो पॉंच सो चालीस सदस्‍यों के साथ अराजकतावादी ब्‍लॉग भड़ास (भड़ास डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) ही आगे हैं लेकिन यहॉं सदस्‍य उद्देश्‍य की एकता की वजह से नहीं वरन अराजकवृत्ति के कारण साथ हैं। कुल मिलाकर सामुदायिक ब्‍लॉगों की प्रवृत्ति ने हिन्‍दी ब्लॉगजगत को निजी अभिव्‍यक्ति के माध्‍यम की जगह पर एक सोशल नेटवर्क में बदल दिया है तथा यही अब हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत की वह ताकत है तो आफलाइन दुनिया तक से ट्रालों को आकर्षित कर रही है। यह भी अहम है कि बहुत से ब्‍लॉगर अब निजी ब्‍लॉग लिखने के साथ साथ अधिकाधिक सामुदायिक ब्‍लॉगों का सदस्‍य बनने पर भी जोर देते हैं ताकि न केवल ज्‍यादा से ज्‍यादा पाठक मिल सकें वरन लिंक-प्रतिलिंक भी ज्‍यादा हों ताकि ब्‍लॉग का पेजरैंक सुधरे।