Tuesday, September 18, 2007

ऎसा है हिंदी ब्लॉगित जाति का लिंकित मन

हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी में रचे जा रहे किसी भी प्रकाशित विमर्श से अलग पहचान बना रही है ! यह अब तक का सबसे जीवंत त्वरित और बहसशील (और बेबाक भी ) मंच है ! यहां कोई भी भी विमर्श का बिंदु अनअटेंडिड नहीं जाता ! बाहरी दुनिया के विमर्शों में बहुत कम हिस्सेदारी दिखाने वाले भी इस दुनिया में विमर्श के मुद्दों पर भिड जाते हैं ! भाषा ,साम्प्रदायिकता ,हाशिया ,राजनीति ,ब्लॉगिंग का तकनीकी और संरचनात्मक पहलू --ऎसे कई मुद्दे उठे और विमर्श के बिंदु बने !एग्रीगेटेरों के बन जाने से ब्लॉगित हिंदी जाति सचमुच के जातीय (जातिवादी नहीं वरन जाति ऐथेनेसिटी के मायने में) चेहरे को अख्तियार कर रही है ! यहां टाइम और स्पेस के बंधनों से आजाद हिंदी चिट्ठाकार एक जमावडे एक जाति के रूप में साफ दिखने लगे हैं ! बहस का कोई एक बिंदु सब चिट्ठाकारों में हलचल पैदा कर सकता है और अपनी समान जातीय भावना के कारण असहमति भी जाति को भीतर से एकीकृत करने का काम करती है ! यहं उठी कोई भी चर्चा या तो विवाद का रूप ले सकती है या फिर विमर्श का ! इसके माने यही निकलते हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग लगातार जुडता और नजदीक आता हुआ जातीय-सांस्कृतिक समूह है ! इस पहचान के जातीय स्वरूप का अंदाज भले ही हर चिट्ठाकार न लगा पाए किंतु चिट्ठों के अवचेतन में यह भावना सहज ही देखी जा सकती है !

हर जाति में अंत:जातीय तनाव भी होते है ! यहां भी हैं ! कविता अकविता के बीच भाषिक शुचिता भाषिक सहजता के बीच ,ग़ीक अगीक के बीच वैयक्तिक और सामूहिक चिट्ठाकारिता के बीच ,स्थापित अस्थापित चिट्ठाकारों के बीच --ये तनाव हर बार नकारात्मक ही नहीं होते ! बल्कि कई बार जातीय भावना को मजबूती और आकार दे रहे होते हैं !

ताजा टिप्पणी विमर्श में हिंदी ब्लॉगिंग के चेहरे को आकार देने वाले गंभीर विमर्श पैदा हुए हैं ! इस विमर्श में हिंदी ब्लॉगिंग को ज्यादा से ज्यादा तार्किक पहचान देने की कामना झलकती है ! शास्त्री जी की कामना साफ एवं स्पष्ट प्रकट होती है पर बाकी के चिट्ठाकारों की चिट्ठाकारी में यह बात अवचेतन में समायी दिखाई दे जाती है ! जो कामनाऎं इन चिट्ठाकारों की चिट्ठाकारी में साफ दिखाई देती हैं वे हैं --

हिंदी चिट्ठारों की संख्या तेजी से बढे एवं इसके स्वरूप में विविधता आए

-इसकी अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा की चिट्ठाकारी से अलग पहचान बने

-हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया नजदीक आए (ऎग्रीगेटरों की अभिवृद्धि के रूप में)

-हिंदी चिट्ठारिता की तकनीकी संरचना मजबूत हो

-टिप्पणी की संरचना के माध्यम से चिट्ठाकारी का संवाद-समूह सक्रियस् हो

-प्रिंट मीडिया से अपने मुकाबले में हिंदी ब्लॉगिंग एक सकारात्मक संघर्ष करे और स्थापित हो !

-व्यक्तिगत पहचान और चिट्ठाकारों के उपसमूह बनें ( अलग अलग विषयों में व्यक्तिगत रुचि के आधार पर ) भडास और मोहल्ला इसके सबसे सटीक उदाहरण हैं!

-हिंदी ब्‍लॉगिंग का अलग भाषिक मुहावरा गढने का प्रयास

-हिंदी चिट्ठाकारी के इतिहास को दर्ज करने की चाह

-हिंदी चिट्ठाकारों के कृतित्व व योगदान को दर्ज करने की चाह

- लेखकीय अस्तित्व स्थापित करने की अभिवृत्ति

-चिट्ठाकारी के व्यावसायिक भविष्य को लेकर कामनाऎं

हिंदी ब्लॉगित जाति के दिनोंदिन लिंकित होते स्वरूप के संबंध में आपके अमूल्य सुझाव आमंत्रित हैं !

Tuesday, September 11, 2007

1000 ब्‍लॉग का आंकड़ा छुआ हिंदी चिट्ठाजगत ने

हिंदी में कुल कितने चिट्ठे हैं इसके सही सही आकलन का कोई एकदम सटीक तरीका नहीं है। पर आज चिट्ठाजगत पर दिखा कि कि कम से कम इस संकलक ने 1000 चिट्ठों का आंकड़ा छू लिया है। आपको, मुझे हम सब को बधाई-


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Monday, September 3, 2007

भाषा में भदेस का जयघोष

 

कथादेश में इंटरनेट के मोहल्‍ले की अगली किस्‍त हाजिर है।

इंटरनेट का मोहल्ला

भाषा में भदेस का जयघोष

अविनाश

हिंदुस्तान या किसी भी मुल्क के समाज में अछूत कौन होते हैं? जिन्हें सलीके से उठने-बैठने की ट्रेनिंग नहीं होती और जिन्हें परंपरा से मिले हुए पिछड़ेपन की वजह से मुख्यधारा में कोई बैठने नहीं देना चाहता। जिनके बोलने से अभिजातों की तहज़ीब का रेशा नज़र नहीं आता। जिन्हें जैसे रहना होता है, वैसे रहते हैं और जिन्हें ज़मीन पर थोड़ी देर सो लेने के लिए साफ या एक पूरी चादर की कभी कोई ज़रूरत नहीं होती। हिंदुस्तान की आज़ादी से पहले अछूतोद्धार की पहली घटना के बाद आज भी राजस्थान या उड़ीसा के किसी मंदिर में अछूत-प्रवेश जैसे आंदोलनों का समाचार कभी-कभी मिलता रहता है- लेकिन ऐसे समाचारों से अलग दूसरे मोर्चों पर भी अछूत अलग से नज़र आते हैं।

अंग्रेज़ी बोलने वाला अंग्रेज़ी नहीं बोलने वालों को अछूत समझता है। दिल्ली की हिंदी बोलने वाला यूपी-बिहार की हिंदी बोलने वालों को अछूत समझता है। लोकबोलियों में ऊंची जाति की जो संवाद परंपरा है, उसमें नीची जाति के बोलने के तरीक़ों की हंसी उड़ायी जाती है। और ये सब सिर्फ लोकाचारों तक सीमित नहीं है- अभिव्यक्ति की दुनिया में भी ये छुआछूत साफ़ साफ़ नज़र आता है। किसी को धूमिल की भाषा पर एतराज़ रहा है, तो कहीं राही मासूम रज़ा की किताब को टेक्स्ट बुक में शामिल होने पर बवाल होता रहा है। कहीं विद्यापति को वयस्कों का कवि घोषित किया जाता रहा है, तो कोई जमात राजेंद्र यादव के हंस की होली जलाता रहा है। लेकिन तमाम एतराज़ और छूआछूत के बाद भी नागरिकता और अभिव्यक्ति की जंग जारी है।

हिंदी ब्लॉगिंग में पिछले दिनों एक ऐसे ब्लॉग का आना हुआ, जिसकी भाषा कुछ कुछ बनारस में होली के मौक़ों पर निकलने वाली एडल्ट बुलेटिन का स्वाद देती है। अगर ये एक आदमी का ब्लॉग होता, तो फिर भी गऩीमत थी। लेकिन ये एक सामूहिक ब्लॉग के रूप में सामने आया। यानी इसके ऑथर पहले ही दिन से एक नहीं, एक दर्जन थे। अब इनकी तादाद पचास से ज्य़ादा है। ये सब के सब पत्रकार हैं। इनमें से ज्य़ादातर मेरठ, कानपुर और नोएडा के अखब़ारी पत्रकार हैं। एकाध टेलीविज़न के लोग भी शामिल हैं। ब्लॉग का नाम है, भड़ास (http://bhadas.blogspot.com)। और जैसा कि नाम से ज़ाहिर होता है, ये मन की भड़ास निकालने वालों का मंच है। अगर आपकी पृष्ठभूमि भदेस है, तो भड़ास गालियों के ज़रिये भी निकलेगी- सो यहां गालियां भी पूरे वर्णों और शब्दों में निकलती हैं। हिंदी कहानियों में प्रयोग होने वाले 'भैण डॉट डॉट डॉट` की तरह नहीं। और यही बात ब्लॉगिंग के दूसरे दिग्गजों के एतराज़ को मुखर करता रहा है।

नारद एग्रीगेटर इसके अपडेट्स नहीं दिखाता। चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी पर इसके अपडेट्स आते हैं। लेकिन कुछ पवित्रतावादी ब्लॉगर्स ने, जहां तक मुझे सूचना है, ब्लॉगवाणी को यह खत़ लिख कर भेजा कि आपके एग्रीगेटर पर कुछ अश्लील और भद्दे अपडेट्स आते हैं, कृपा कर हमारे ब्लॉग की फीड अपने एग्रीगेटर से हटा दें। ब्लॉगवाणी वालों ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया। यानी यह क़दम हिंदी ब्लॉगिंग में भाषाई वैविध्य के स्वीकार का क़दम है- और जिन्हें यह स्वीकार नहीं, उनके लिए ब्लॉगिंग का कोई मतलब भी नहीं। वे ब्लॉगिंग के भीतर जातीय महासभाएं बना रहे हैं और छूआछूत के नये मानक गढ़ रहे हैं।

हिंदी ब्लॉगिंग पर शोध करने वाली नीलिमा ने पिछले दिनों इन्हें अच्छी लताड़ लगायी। अपने ब्लॉग वाद संवाद (http://vadsamvad.blogspot.com) पर नीलिमा ने लिखा, आपकी गंधाती पुलक से कहीं बेहतर है, उनकी भड़ास। यह उन्वान था, जिसके मजमून की शुरुआत कुछ यूं थी, भड़ास हिंदी ब्लॉग जगत के लिए चुनौती रहा है, जिसे नारद युग में तो केवल नज़रअंदाज़ कर ही काम चला लेने के प्रवृत्ति रही, पर जैसे ही नारद युग का अवसान हुआ, भड़ास की उपेक्षा करना असंभव हो गया। करने वाले अब भी अभिनय करते हैं, पर हिंदी ब्लॉगिंग पर नज़र रखने वाले जानते हैं कि भड़ास का उदय तो नारद के पतन से भी ज्य़ादा नाटकीय है। इतने कम समय में भड़ास के सदस्यों की ही संख्या ५३ है। भड़ास अपनी प्रकृति से ही आंतरिक का सामने आ जाना है- जो दबा है उसका बाहर आना। भड़ास हर किसी की होती है, पर बाहर हर कोई नहीं उगल पाता, इसके लिए साहस चाहिए होता है। भड़ास का बाहर आना केवल व्यक्ति के लिए ही साहस का काम नहीं है, वरन पब्लिक स्फेयर के लिए भी साहस की बात है कि वह लोगों की भड़ास का सामना कर सके, क्योंकि भड़ास साधुवाद का एंटीथीसिस है- हम भी वाह तुम भी वाह वाह नहीं है यह। हम भी कूड़ा तुम भी कूड़ा है यह।

यानी हिंदी ब्लॉगिंग पर अछूतोद्धार की इस पहली घटना का जितना स्वागत हुआ, उससे कहीं अधिक पुराने ब्लॉगियों ने इस घटना के रचाव के स्रोत पर ही संदेह कर डाला। ये जंग एक स्त्री के ज़रिये छेड़ा जाना उन्हें नागवार गुज़रा और उन्होंने आरोप लगाया कि यह किसी पुरुष भाषाशास्त्री की जंग है, जो शिखंडी की आड़ में वार करना चाहता है। नीलिमा ने इसका जवाब भी दिया, साफ है कि जिन संरचनाओं की हम देन हैं, उनका असर लाख प्रबुद्धता के बाद भी दिखाई दे जाता है!

पहली बार भड़ास की भाषा पर हुआ ये विमर्श भड़ास के मेंबरानों के लिए उत्साह का सबब था। उन्होंने अपने ब्लॉग पर सार्वजनिक रूप से ये बातचीत की कि नीलिमा को भड़ास का हेडमिस्ट्रेस बना दिया जाए। क्योंकि कभी कभी कोई पत्रकार भड़ास में अभिजातों की भाषा लेकर आ जाता है और गंभीर बातचीत छेड़ने की कोशिश करता है। ऐसे में भड़ास अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है। नीलिमा इस पर नज़र रखें और टोक दिया करें कि भई ऐसा क्यों हो रहा है! भड़ास की भाषा बिगड़ती क्यों जा रही है! शायद ये प्रस्ताव 'हंसी-हंसी की भड़ास` था और हवा में उड़ गया।

लेकिन, भड़ास की इस बानगी का संदेश सिर्फ इतना है कि ब्लॉगिंग के ज़रिये भाषा अब उन तमाम रूपों प्रकाशित हो रही है, जिनके दरवाज़े पर कभी दरबान बैठे होते थे। ब्लॉगिंग ने दरबानों की गर्दन पकड़ ली है, संपादकों को अंगूठा दिखा दिया है... और पवित्र मंत्र-ध्वनियों के बीच शोर मचाता हुआ आगे बढ़ रहा है।