आलेख के प्रथम खंड के रूप में प्रस्तुत है प्रस्तावना तथा 'चिट्ठाकारी है क्या' का अंश-
अंतर्जाल पर हिंदी की नई चाल : चन्द सिरफिरों के खतूत
अंतर्जाल हिंदी में इंटरनेट के लिए इस्तेमाल (या कहें प्रस्तावित) शब्द है। इसी अंतर्जाल पर हिंदी की बढ़ती मौजूदगी हिंदी- जगत का सर्वाधिक सनसनीखेज समाचार है। पारंपरिक मुख्यधारा मीडिया ने इसका नोटिस लेना शुरू कर दिया है। आज हिंदी चिट्ठाकारिता एक बहुश्रुत शब्द युग्म है अत: अंतर्जालीय हिंदी के इस स्वरूप, उद्देश्य एवं भविष्य पर प्रामाणिक विमर्श की पहल अब होने लगी है। लेखन, प्रकाशन व पठन से अंतराल का लोप करते इस माध्यम ने केवल हिंदी ही वरन दुनिया की हर विकसित भाषा को प्रभावित किया है , जिसमें अंग्रेजी और जापानी जैसी भाषाओं के समाज ही नहीं वरन फारसी और चीनी जैसे अपेक्षाकृत नियंत्रित समाज भी शामिल हैं। भारत का भी अपना एक आजाद व मुखर अंग्रेजी ब्लॉगर समुदाय है, हिदी में जरूर यह आहट कुछ नई है।
चिट्ठाकारी है क्या
सबसे पहले समझें कि चिट्ठाकारी है क्या ? और क्यों ये हिंदी लेखन के किसी विद्यमान खाँचें में नहीं अँट रही है ? यहॉं तक कि पत्रकारिता भी चिट्ठाकारिता को खुद में समा पाने में काबिल सिद्ध नहीं हो रही है ? दरअसल चिट्ठे या ब्लॉग, इंटरनेट पर चिट्ठाकार का वह स्पेस है जिसमें वह अपनी सुविधा व रुचि के अनुसार सामग्री को प्रकाशित कर सार्वजनिक करता है। इस चिट्ठे का तथा इसकी हर प्रविष्टि का जिसे पोस्ट कहते हैं एक स्वतंत्र वेब - पता होता है। सामान्यत: पाठकों को इन पोस्टों पर टिप्पणी करने की सुविधा होती है ! यदि चिट्ठाकार स्वयं इस चिट्ठे को मिटा न दे तो यह सामग्री इस वेबपते पर सदा - सर्वदा के लिए अंकित हो जाती है। अंतर्जाल के सूचना प्रधान हैवी ट्रैफिक - जोन से परे व्यक्तिगत स्पेस में व्यक्तिगत विचारों और भावों की निर्द्वंद्व सार्वजनिक अभिव्यक्ति को ब्लॉगिंग कहा जा सकता है।
किसी भी चिट्ठे के दो स्पष्ट आयाम होते हैं एक है पोस्ट जिसपर लेखक चिट्ठाकार ही लिखता है जबकि दूसरा है टिप्पणी- खंड जो चिट्ठापाठकों का होता है !वे उस पर टिप्पणी करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। यह टिप्पणी का ढाँचा ही दरअसल चिट्ठाकारी को चिट्ठाकारी बनाता है! अब तक की हर लेखन-प्रकाशन विधा से अलहदा। टिप्पणी लेखन को विमर्शात्मक बनाती है और वह भी रीयल टाईम में। संपादक के नाम पत्र की परिपाटी प्रिंट में भी है किंतु वहॉं पठ्य और प्रतिक्रिया के बीच कालिक अंतराल है और संपादक की संपादकीय कैंची भी मौजूद होती है। किंतु चिट्ठाकारी में पठ्य का पूरा लोकतंत्रीकरण होता है। पठ्य रीयल टाईम में इंटरेक्टिव बनता है। लेखक अपने लेखन के प्रति पूरी तरह जबावदेह बनता है। पाठक बाकायदा लेखक की खाट खड़ी करने की कूवत पाता है, इसी माध्यम में । एक अन्य पक्ष जो चिट्ठाकारी को विशिष्ट बनाता है वह है इसकी हाईपरटेक्स्ट प्रकृति। चिट्ठाकारी का पठ्य चूंकि हाईपर पठ्य होता है इसलिए इसमें लगातार लिंकन-प्रतिलिंकन होता है। आप कथन के प्रमाण अंतर्जाल पर उपस्थित अन्य सामग्री से निरंतर देते चलते हैं। यह लिंकन एक किस्म की टाईम मशीन है जो चिट्ठापाठक को टाईम व स्पेस में आगे व पीछे विचारण करने की सुविधा प्रदान करती है।
मूल बात यह है कि पूरा चिट्ठा, पोस्ट व टिप्पणी दोनों खंडो से मिलकर बनता है। यहाँ चिट्ठाकार स्वयं अपने चिट्ठे का पात्र व लेखक एक साथ होता है। चिट्ठाकारी को डायरी लेखन के निकट माना जाता है किंतु यह डायरी रीयल टाईम में रची जाती है जिसके डायरीपन के प्रति चिट्ठाकार समर्पित नहीं है। हर चिट्ठाकार दरअसल एक पात्र होता है जो उसके चिट्ठालेखन से खड़ा होता है। वह चिट्ठाकारी के माध्यम से रोज लिखा जाता , रोज पढ़ा जाता उपन्यास होता है। यहीं चिट्ठाकार-चिट्ठा संबंध भी साफ तौर पर निखर कर आता है जिसे लेकर अक्सर असमंजस की हालत देखने में आती है। ‘लिंकित मन’ मेरा चिट्ठा है मुझे जानने वाले यह जानते हैं लेकिन इसका मतलब क्या है ! क्या मैं इसकी मालकिन हूँ – नहीं जनाब, वह तो गूगल की एक साईट पर है जिसे गूगल के बिक जाने पर नए मालिक की मिल्कियत में जाना होगा। दरअसल मेरा चिट्ठा का अर्थ राम के कथन ‘ये मेरा धनुष है’ जैसा नहीं है वरन वह राम के कथन ‘’रामायण मेरी कथा है’ जैसा है। यानि चिट्ठाकार अपने चिट्ठे का मालिक नहीं होता वरन वह स्वयं चिट्ठे से निर्मित होता है। ब्लॉग थ्योरी पर इस दिशा में अभी और काम हो रहा है तथा हिंदी चिट्ठाकारी से ये आशा है कि वह इस विमर्श को आगे बढ़ाएं।
3 comments:
आज आपके पूरे आलेख को पीडीएफ में पढ़ने का मौका मिला. रात के 1.45 बज चुके हैं लेकिन टिप्पणी दिए बिना जाने का मन नहीं हुआ. चिट्ठाकारिता और उनसे जुड़ी नींव की ईंटों का विस्तार से परिचय देने के लिए आपको शत शत नमन...उत्सुकता से पढ़ना शुरु किया तो खत्म करके ही छोड़ा.आज बहुत कुछ जानने को मिला, पहले न के बराबर हमारी जानकारी थी... नव वर्ष की शुभकामनाएँ
बहुत अच्छे से आप ने अपनी बात कही है-- मैं तो यही सोच रहा था कि अगर ऐसे लेख हमारे समाचार पत्रों में नियमित छपें और रेडियो आदि से भी प्रसारित हों तो जनमानस में ब्लागिंग के बारे में अवेयरनैसे बढ़ेगी। लिखते रहिएगा।
शुभकामनाएं।
नीलिमा,
तुम्हारी अभिव्यक्ति अच्छी है - सो वह देखने यहाँ सहज ही पहुँच जाता हूँ, साथ साथ कुछ जानकारी भी मिल जाती है।
संजय गुलाटी मुसाफिर
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