सराय से मिले पैसे से हम बौद्धिक रूप से गुलाम तो खैर हो ही रहे थे :) पर साथ ही साथ एक काम और कर रहे थे (आप चाहें तो मान लें कि ये काम गौण था) यह था शोध करना। इस दौरान आंकड़ों में मतलब आवाजाही वगैरह के, झांकने के काम में कुछ कुछ समझ बनी थी। शायद इसलिए ही सुजाता ने जो चोखेरबाली देखती हैं मुझे आदेश (छोटों के आग्रह भी आदेश होते हैं और बड़ों के आदेश भी सलाह भर:)) दिया कि चोखेरबाली के स्टेटकाउंटर आंकड़े देखूं, ये क्या कहते हैं...मैंने उस एक्सेल फाइल को देखा और कुछ कुछ हैरानी हुई। इससे पहले एग्रीगेटरों के आंकड़ों को देखा था और उन पर पोस्ट लिखीं थीं। अपने खुद के ब्लॉगों के आंकड़ें देखते हैं और उनपर कोई पोस्ट नहीं लिखते :)। पर चोखेरबाली के आंकड़ों में कुछ अलग बात है-
आप कह सकते हैं कि इसमें अलग क्या है, आखिर चोखेरबाली एक नया ब्लॉग है सिर्फ दस दिन पुराना उस लिहाज से 220 की औसत से पेजलोड कम नहीं है। पर हमारा इशारा उस ओर नहीं है हम कहना चाहते हैं कि पेजलोड और यूनीक विजीटर के बीच का अंतराल देखें।औसत पेजलोड हैं 219 और यूनीक विजीटर औसत 76. इतना अधिक अंतराल सामान्यत: एग्रीगेटरों में तो देखा जाता है- मसलन नारद की विवादकालीन आवाजाही में यूनीक विजीटर व पेजलोड के बीच इतना अधिक अंतर था किंतु किसी ब्लॉग के लिए ये कुछ सामान्य नहीं है।
आसान भाषा में इसका क्या मतलब है ? हमारी अनंतिम सी व्याख्या इस प्रकार है-
- सबसे पहली बात तो यह कि सामुदायिक ब्लॉगों और निजी ब्लॉगों के ट्रेफिक पैटर्न में अंतर है- अगर मोहल्ला और भड़ास या हिन्दयुग्म के आंकड़ों से तुलना करें तो और बेहतर तस्वीर मिले पर प्रथम दृष्टया तो लगता है कि सामुदायिक ब्लॉग लोग अलग अपेक्षाओं से पढ़ते हैं। पोस्ट संख्या का अधिक होना भी एक भूमिका अदा करता है।
- लेकिन मूल बात जो चोखेरबाली में दिखाई दे रही है वह यह है कि ये वाकई चोखेरबाली है, खटकने वाला ब्लॉग...कुछ लोग बार बार वापस आकर देख रहे हैं...हम्म क्या हुआ...क्या हुआ। बाकी जबरदस्त इग्नोर मार रहे हैं।
- क्यों झांक रहे हैं बार बार...? मुझे लगता है टिप्पणियॉं।। जी संभवत पहली बार ब्लॉग में पोस्ट से ज्यादा आकर्षण टिप्पणियों का है, इतना कि टिप्पणियॉं ट्रेफिक ला रही हैं।इस ब्लॉग पर 'अच्छा है' लिखने वाले आमतौर पर नदारद है ( चिट्ठे 'अच्छा है' के खिलाफ तो बाकायदा झंडा लिए है, कुछ अच्छा नहीं है, हम पतनशीला हैं, बोलो क्या कल्लोगे) और टिप्पणियॉं लंबी हैं विमर्शात्मक हैं तल्ख भी हैं।
- एक अन्य अपुष्ट बात ये है कि एग्रीगेटरों के स्थान पर चिट्ठासंसार में अब ध्रुवीकरण सामुदायिक ब्लॉगों के इर्द गिर्द होने वाला है- इस विषय पर अगली किसी पोस्ट में लिखूंगी।
जो बात आंकड़ों से नहीं दिख रही वह यह कि इस चिट्ठे को लेकर ही ऐसी विचित्र प्रतिक्रिया क्यों है? पर इस बात को समझने के लिए आंकड़ों को नहीं समाज को देखने की जरूरत है। चिट्ठों में स्त्रियों से 'भाभीजी', 'माताजी' खानपान, हे हे हे टाईप लेखन की उम्मीद रही है। चोखेरबाली चुभने के लिए आया है और चुभ रहा है।
डिस्क्लेमर : कमलजी व आलोकजी शेयरटिप्स देते हुए लिख देते हैं कि इस कंपनी में लेखक का निवेश हो सकता है...हम भी कहे देते हैं कि यूँ हमने आंकड़ों का ही विश्लेषण किया है पर चोखेरबाली के हम भी सदस्य हैं।