Thursday, June 21, 2007

नैपकिन विवाद में नारद आवाजाही

समीर जी हर विवाद के समय झट कही जाकर छुप जाते हैं और उसके शांत होने के बाद शांति-शांति टाईप लहजे में दोनों ओर के भले बनते फिरते हैं- उनका काम कुछ कम हो जाता है इस दौरान कुछ लिखना नहीं है यानि काम 10% कम हो गया और टिप्‍पणी नहीं करनी है काम 75% कम हो गया। बचा सिर्फ इंतजार करना यानि 15 % काम। लेकिन हम शोधार्थी प्रजाति के काम में बढोतरी हो जाती है। अब इस 'नैपकिन विवाद' (क्‍या नाम रखना है समीरजी) को ही लें इसने विवाद काल में हिंदी ब्‍लॉगरो की भाषा का जो चेहरा हमें दिखाया उसे हमने अपने शोध प्रस्‍ताव में पहले जगह नहीं दी थी पर अब पता लगा कि विवाद काल में हिंदी ब्‍लॉगर अपनी सामान्‍य प्रकृति के अनुरूप व्‍यवहार नहीं करता वरन वह कुछ भिन्‍न व्‍यवहार करता है उसकी भाषा वह नहीं रह जाती जो सामान्‍यत: होती है। कहा जाता है कि दंगों के समय भी यही होता है, मनुष्‍य का आचरण अलग हो जाता है। खैर इस विवाद कालीन ब्‍लॉगर भाषा पर हमारा शोधकार्य चल ही रहा है जिसे पूरा हो जाने पर जल्‍द ही साझी करुंगी।
फिलहाल तो ये देखिए कि इस विवादकालीन शोध-अवलोकन में क्‍या हाथ लगा।




ये जो पर्वतमाला के शिखरों की ऊंचाई अचानक बढ़ गई है वह दरअसल नारद आवाजाही में विवाद के दिन हैं। यानि गुणात्‍मक रूप में विवादों से हिंदी चिट्ठाकारी का भला होता है कि बुरा ये तो खुद एक विवाद का विषय है किंतु मात्रात्‍मक रूप से आवाजाही कम से कम 20प्रतिशत तो बढ़ ही जाती है।

क्‍या आशय है इसका- कम से कम इतना तो है ही कि समीरजी जब कहते हैं शांति-शांति तो वे नारद से लोगों को दूर भगा रहे होते हैं। :)

13 comments:

Arun Arora said...

वाह वाह स्वामी समिरान्द की क्लास लेने के लिये बधाई
अच्छा शोध है

रवि रतलामी said...

..अब पता लगा कि विवाद काल में हिंदी ब्‍लॉगर अपनी सामान्‍य प्रकृति के अनुरूप व्‍यवहार नहीं करता..."

:)

परंतु, दूसरे कोण से ऐसा नहीं लगता कि फिर धुँआधार, नए नए विवाद चलते रहना चाहिए, ताकि चिटठों के पाठक संख्या में धुंआधार वृद्धि होती रहे.

काकेश said...

वैसे हमारा भी विवादों से थोड़ा दूर का ही नाता है.ये अलग बात है कि लोग जबरन विवाद में घेर लेते हैं.चलिये अब आपने कह दिया विवाद से हिन्दी का भला है तो फिर हम इसमें अपना भरपूर योगदान करेंगे.

Neelima said...

आपने सही कहा रवि जी हमें तो वही काम्य है जिससे हिंदी चिट्ठाकारिता के पाठकत्व मॆं बढोतरी होती हो!
काकेश जी विवादों को हवा देते रहिए मगर सकारात्मक ही;)
अरुण जी क्या करें क्लास लेने की आदत से मजबूर हैं सो समीर जी से थोडा 'पंगा" ले लिए हैं ;)

संजय बेंगाणी said...

हम मौन रहेंगे. :।

ePandit said...

इस तरह की बढ़ी आवाजाही लघुजीवी होती है। ठीक उसी तरह जैसे कोई हीरोइन हंगामा मचाकर चर्चा तो पा लेती है लेकिन अच्छी अभिनेत्री नहीं बन सकती। असली विकास तो अच्छे लेखन से ही होगा।

ePandit said...
This comment has been removed by the author.
अभय तिवारी said...

सचमुच अच्छा अवलोकन.. खास तौर पर भाषा बदल जाने वाला..

Sajeev said...

मैं शिरीष से सहमत हूँ विवाद भी रचनात्मक होने चाहिऐ

अफ़लातून said...

विवाद के दौरान भाषा-परिवर्तन पर शोध-परिणामों की प्रतीक्षा रहेगी।

Udan Tashtari said...

अरुण की खुशी का ठिकाना तो देखो!! हा हा...इतनी बड़ी मुस्कान फैल गई उसके चेहरे पर. :)

समीर जी से थोडा 'पंगा" ले लिए हैं ;)

--अरे निलिमा जी, यह कहाँ पंगा कहलाया. मैं तो साधुवाद देने वाला था कि आपने इतने कम समय में मुझे इतनी भली भाँति जान लिया और सबसे परिचय भी करा दिया. वैसे, वाकई युद्धकाल में काम तो बहुत कम हो जाता है. चिंता लग जाती है कि कल को बिल्कुल ही बेरोजगार टाईप न हो जायें.

विश्लेष्ण अच्छा लगा..बस यही है कि इस तरह की आवाजाही बड़ी ही क्षणभंगुर होती है. किसी को इससे फायदा नहीं पहुंचता. :)

Divine India said...

यह TRP rating है मैडम…।

vishesh said...

नारद की आवाजाही तो बढ़ी, मगर हिन्‍दी का कितना भला हुआ. अब तक नारद विवाद को लेकर लिखे गए तमाम चिट्ठों ने ध्रुवीकरण के अलावा किया ही क्‍या है. इस पर कल अलग से पोस्‍अ लिखी जाएगी.