Thursday, September 3, 2009

पॉंच अंकों में पहुँची चिट्ठों की तादाद

ये छोटी सी पोस्‍ट इस बात की बधाई बजाने के लिए हुई है कि चिट्ठाजगत पर दर्ज हिन्‍दी चिट्ठों की तादाद ने अब पॉंच अंको को छू लिया है। ये स्‍क्रीनशॉट देखें-

ScreenHunter_01 Sep. 03 23.08

जी दस हजार पंजीकृत चिट्ठे, वाह। बधाई हम सभी को।

Monday, January 5, 2009

साझे ब्‍लॉगों का दौर- जनसत्‍ता का लेख

 

प्रस्‍तुत है जनसत्‍ता के स्‍तंभ चिट्ठाचर्चा में इस सप्‍ताह का लेख। छवि के नीचे लेख का अविकल पाठ है-

jansatta_coverage_janI

साझे ब्‍लॉगों का दौर

-विजेंद्र सिंह चौहान

ब्‍लॉगिंग का एक पारिभाषिक शब्‍द है 'ट्राल', ट्रॉल वह व्यक्ति है जो किसी ऑनलाइन समुदाय में संवेदनशील विषयों पर जान-बूझकर अपमानजनक या भड़काऊ संदेश लिखता/ती है, इस उद्देश्य से कि कोई उस पर प्रतिक्रिया करेगा/गी. ऐसी भड़काऊ प्रविष्टियों को भी ट्रॉल कहा जाता है । ये भी कहा जाता है कि यदि आप ट्राल को भाव देंगे तो उसका भला ही होगा। ट्राल का इलाज है कि उसे भाव न दें, उसकी उपेक्षा करें। लेकिन हर ट्राल की उपेक्षा इतनी सरल नहीं। खासकर अगर ये ट्राल खुद राजेंद्र यादव जैसे वरिष्‍ठ आलोचक हों। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की लंबे समय तक उपेक्षा करने के बाद इस सप्‍ताह राजेंद्र यादवजी ने हिन्‍दयुग्‍म (हिन्‍दयुग्‍म डॉट कॉम) के वार्षिकोत्‍सव में मुख्‍य अतिथि होना स्‍वीकार किया और तीन ट्रालमयी टिप्‍पणियॉं कीं। पहली तो उन्‍होंने कहा कि वे हिन्‍दी ब्‍लॉगों का स्‍वागत करते हैं क्‍योंकि इससे प्रकाशन के अयोग्‍य रचनाओं के लेखक हंस जैसी पत्रिकाओं के संपादक के कान खाना बंद करेंगे अब इस कूड़े को वे खुद अपने ब्‍लॉग पर छाप लेंगे। दूसरा जुमला राजेंद्रजी ने जोश मलीहाबादी के मुहावरे में कहा कि वे खुद भी जीवन के इन आखिरी सोपानों में इंटरनेट- ब्लॉगिंग आदि तामझाम को सीख लेना चाहते हैं क्‍योंकि आखिर दोज़ख की ज़ुबान भी तो यही होगी न। तीसरा ट्राल उन्‍होंने इंटरनेटी ब्‍लॉगवीरों को नसीहत देते हुए कहा कि तकनीक नई सदी की और विचार सोलहवीं सदी के, नहीं चलेगा...नहीं चलेगा। हिन्‍दी को आधुनिक बनाओ तथा मध्‍यकाल तक की हिन्‍दी के साहित्‍य को अजायबघर भेज दो।

ज़ाहिर है ये टिप्‍पणी एक उत्‍तेजक ट्राल थी, कम मंझे हुए ब्‍लॉगर इस जाल में फंस गए और क्रिया प्रतिक्रिया का दौर शुरू हुआ। पहले हिन्‍दयुग्‍म पर, फिर शोभा महेन्‍द्रु के ब्‍लॉग पर (रितबंसल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) और आखिरकार मोहल्‍ला पर (मोहल्‍ला डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) पर इन कथनों के पक्ष विपक्ष में बातें कही सुनी गईं...पुराण अभी चालू आहे।

पीछे मुड़कर देखें कि बीते साल में ब्‍लॉग की दुनिया में क्‍या खास हुआ तो हमें कई प्रवृत्तियॉं दिखाई पड़ती हैं मसलन चिट्ठों की संख्‍या में विस्‍फोटक वृद्धि, हिन्‍दी सर्च में आया उफान, गूगल का लिप्‍यंतरण औजार जारी करना, ब्‍लॉगवाणी की लोकप्रियता, नारद का लुप्‍तप्राय: हो जाना आदि किंतु जिस बात पर सबसे पहले नजर जाती है वह है -सामुदायिक ब्‍लॉगों का बोलबाला। सामुदायिक या कम्‍युनिटी ब्‍लॉग के मायने हैं वे ब्लॉग जो एक ब्‍लॉगर द्वारा नहीं लिखे जाते वरन वैचारिक या उद्देश्‍य की समानता के चलते कई ब्‍लॉगर मिलकर एक ब्‍लॉग पर लिखते हैं इससे संख्‍याबल तथा प्रभाव में इजाफ़ा होता है। ऐसा नहीं है कि हिन्‍दी में सामुदायिक ब्‍लॉग पहले नहीं थे अक्षरग्राम (अक्षरग्राम डॉट कॉम) तथा चिट्ठाचर्चा (चिट्ठाचर्चा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) हिन्‍दी के दो शुरूआती ब्‍लॉग हैं तथा दोनों शुरू से ही सामुदायिक ब्‍लॉग रहे हैं। इस साल में खास ये हुआ कि सामुदायिक ब्‍लॉगों ने ब्‍लॉगजगत की अधिकाधिक जमीन अपने नाम करने का बीड़ा उठाया। पैंतालीस ब्‍लॉगरों के साथ अविनाश की अगुवाई में मो‍हल्‍ला इसमें आगे रहा है। मो‍हल्‍ला संपादन में विश्‍वास रखता है इसलिए सामग्री में ब्‍लॉगपन कम पत्रिकापन अधिक दीखता है। यही वजह है कि अपने ब्‍लॉगर रूप के लिए अधिकांश मोहल्‍ला सदस्‍य कबाड़खाना (कबाड़खाना डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) नाम के सामुदायिक ब्‍लॉग के सदस्‍य हैं इसमें पैंतीस ब्‍लॉगर 'श्रेष्‍ठ कबाड़ी' के रूप में दर्ज हैं। इस ब्‍लॉग का संचालन हलद्वानी से अशोक पांडे करते हैं।

स्‍त्री-विमर्श के सवाल पर एकजुट हुए ब्‍लॉगर सामुदायिक ब्‍लॉग चोखेरबाली (सैंड ऑफ दि आई डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) में लिखते हैं। सुजाता इस ब्‍लॉग की मॉडरेटर हैं तथा राजकिशोर, प्रत्‍यक्षा, अनुराधा, अजीत वडनेरकर आदि जानेमाने नामों सहित कुल तैंतीस ब्‍लॉगर इसके सदस्‍य हैं। इसी मुद्दे पर नारी नामक ब्‍लॉग (इंडियन वूमेन हैज अराइव्‍ड डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) का संचालन रचना करती हैं इसमें केवल महिला ब्‍लॉगर सदस्‍य हैं जिनकी संख्‍या तेईस है।

इन सामुदायिक ब्‍लॉगों के अतिरिक्‍त सस्‍ताशेर (राम रोटी आलू डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), रिजेक्‍टमाल (रिजेक्‍टमाल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), हिन्‍दयुग्‍म, दाल रोटी चावल (दाल रोटी चावल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) आदि कुछ अन्‍य ब्‍लॉग भी गौरतलब कहे जा सकते हैं। वैसे यदि सबसे बड़े सामुदायिक ब्‍लॉग की बात करें तो पॉंच सो चालीस सदस्‍यों के साथ अराजकतावादी ब्‍लॉग भड़ास (भड़ास डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) ही आगे हैं लेकिन यहॉं सदस्‍य उद्देश्‍य की एकता की वजह से नहीं वरन अराजकवृत्ति के कारण साथ हैं। कुल मिलाकर सामुदायिक ब्‍लॉगों की प्रवृत्ति ने हिन्‍दी ब्लॉगजगत को निजी अभिव्‍यक्ति के माध्‍यम की जगह पर एक सोशल नेटवर्क में बदल दिया है तथा यही अब हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत की वह ताकत है तो आफलाइन दुनिया तक से ट्रालों को आकर्षित कर रही है। यह भी अहम है कि बहुत से ब्‍लॉगर अब निजी ब्‍लॉग लिखने के साथ साथ अधिकाधिक सामुदायिक ब्‍लॉगों का सदस्‍य बनने पर भी जोर देते हैं ताकि न केवल ज्‍यादा से ज्‍यादा पाठक मिल सकें वरन लिंक-प्रतिलिंक भी ज्‍यादा हों ताकि ब्‍लॉग का पेजरैंक सुधरे।

Thursday, December 25, 2008

ब्‍लॉगों की शब्‍द-संपदा

 

जनसत्‍ता के स्‍तंभ चिट्ठाचर्चा में हाल का लेख हिन्‍दी ब्‍लॉगों की शब्‍द संपदा पर केंद्रित था।  अविकल पाठ अखबारी लेख के नीचे दिया गया है-

jansatta decII

ब्‍लॉगों की शब्‍द-संपदा

-विजेंद्र सिंह चौहान

हर साल बदलता है मौसम ! फिर इस साल ही क्‍योंकर अनबदला रहता ! सर्दी आ धमकी है, वैचारिक गर्माहट के लिए चंद गोष्ठियॉं होना बनता है। एक गोष्ठी हुई.....इस बार रवीन्‍द्र भवन में, किसी 'ईभाषा' को लेकर। खबर पहुँची हमने अनसुनी- सी कर दी...बहुत सिनीसिज्म न अब खुद में बचा है न दूसरों का ही सहा जाता है सो हमने कल्‍पना कर ली कि क्‍या हुआ होगा। लूज शंटिंग की दीप्ति (लूजशंटिंग डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) ने लौटकर पूरे ब्‍लॉगजगत को बताया कि कैसे जाने माने वक्ता-श्रोता ईभाषा के बहाने ब्‍लॉग भाषा पर हँसे हँसाए, सुनकर हमने राहत की सॉंस ली कि चलो जो हुआ हमारी कल्‍पना के अनुरूप ही हुआ। दुनिया भर की ब्‍लॉगिंग में वे ब्‍लॉगर जो गैर ब्‍लॉगिंग माध्‍यमों से आते हैं तथा उनके बारे में ब्‍लॉगिंग करते हैं तथा वे जो ब्‍लॉगर हैं तथा गैर ब्‍लॉग माध्‍यमों में ब्‍लॉगिंग के विषय में लिखते हैं, दोनों ही सेतु चिट्ठाकार या ब्रिज ब्‍लॉगर कहलाते हैं। हम ब्रिज ब्‍लॉगर अक्‍सर ही ब्‍लॉगिंग पर भाषा में असावधानी, सतही समझ, अघाई मुटमरदी आदि आरोपों से दोचार होते हैं। बहुधा ये आरोप चंद 'टेक्‍नोफोबिक' लोगों का स्‍यापा भर होता है जिन्‍हें ब्‍लॉगिंग अच्‍छी -खासी चलती साहित्‍य की शिष्‍ट दुनिया में असभ्‍य हस्‍तक्षेप लगती है। इन्‍हें कितना भी नजरअंदाज करें किंतु ब्‍लॉगिंग का भाषिक योगदान एक ऐसा सवाल है जो आज नहीं तो कल पूछा ही जाएगा।

गनीमत ये है कि जबाव बहुत दूर नहीं है.. अजीत वडनेरकर का शब्‍दों का सफर (शब्‍दावली डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) की तुलना केवल 'शब्‍दों का जीवन' (भोलानाथ तिवारी) से ही की जा सकती है , किंतु शब्‍दों का जीवन एक अति लघु पुस्‍तक है जबकि शब्‍दों का सफर एक लंबा सफर है जो अभी जारी है। अजीत अपने इस ब्‍लॉग में शब्‍दों की व्‍युत्‍पत्ति, यात्रा, शब्दों का चलना, मुड़ना, टूटना, खिसकना सब दर्ज करते हैं। हिन्‍दी का यह एक सबसे सम्‍मानित ब्‍लॉग है। उदाहरण के लिए जेब, पॉकेट, थैली, थाली, बटुआ, बंटवारा, बटनिया, आवंटन, खरीता, पाटिल, खीसा, स्‍थालिका आदि शब्‍द यानि मालमत्‍ता रखने के ठिकानों पर "जेब" शृंखला की सात पोस्‍टों में अजीत इन शब्‍दों के स्रोत व संबंधों के विषय में शोधपूर्ण जानकारी प्रस्‍तुत करते हैं। अगर टिप्‍पणियों को शामिल कर लिया जाए तो ये चिट्ठा कई गोष्ठियों को पानी पिला सकता है।

ब्‍लॉगों की शब्‍द संपदा पर कोई भी बात तब तक अधूरी है जब तक लपूझन्‍ना (लपूझन्‍ना डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), अनामदास (अनामदासब्‍लॉग डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम), प्रत्‍यक्षा (प्रत्‍यक्षा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) तथा प्रमोद (अज़दक डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) की चर्चा न की जाए। लपूझन्‍ना तथा अनामदास मौलिक रचनात्‍मक शब्‍द प्रयुक्तियों के लिए जाने जाते हैं। वहीं प्रत्‍यक्षा व प्रमोद के ब्‍लॉगों में गद्य अक्‍सर कविता की खिड़कियॉं मजे में झांक - झांक आता है। प्रमोद के एक मुक्‍त गल्‍प- 'एक बेवकूफ लड़की का अंत' से बानगी देखें -

दरवाज़े के ओट खड़े होकर रीझाना, मुंह बिराना, और उचित मात्रा में जब ज़रूरत पड़े लजाने का गुर जानती थी वह. जानती थी देवरजी की खाने में पसन्‍द, भसुरजी का गुस्‍सा और जेठानीजी को दोपहर सब निपटाने के बाद गोड़ दबवाना कितना पसन्‍द है. ओसारे में पराये-ठिलियाये मेहमानों की बतकुट्टन में जब भौजी का दिमाग नहीं चलता, सिर पर साड़ी डाले, सिल पर मसाला पिस चुप्‍पे बैंगन-लौकी का बजका और चाय चलाकर सबको खुश करने का सलीका जानती थी वह. मलपुआ में कितना केला जाएगा, परवल का अचार कब सूखेगा, रात में बच्‍ची उठ जाती है दीदी से नहीं सपरता तो बिना किसी के खबर हुए दीदी की बच्‍ची संभालती थी वह....

यानि वाकी सब अवदान छोड़ भी दें इन सवा लाख पोस्‍टों में जो शब्‍द संपदा जुड़ गई सिर्फ उसे गिन लें तो तय है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग हिन्‍दी से विपन्‍नता को बरकाने जीजान से लगी है।

शब्‍द जब इस्तेमाल होंगें तो गलत भी होंगे ! इसलिए यदि आप ऐसे किसी तकनीकी जुगाड़ की ताक में हैं जो आपकी हिन्‍दी से वर्तनी की गलतियॉं दूर कर सके तो आपका इंतजार बस खत्‍म हुआ समझिए। रवि रतलामी (रवि रतलामी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) ने अपनी हालिया पोस्‍ट में हिन्‍दी के उपलब्‍ध वर्तनी जॉंचकों (स्‍पेलचेकर) की तुलनात्‍मक समीक्षा पेश की। आप हिन्‍दी में वर्तनी जॉंचक बहु-प्लेटफ़ॉर्मों और बहु-उत्पादों में प्राप्त कर सकते हैं. हिन्दी राइटर, एमएस वर्ड हिन्दी तथा गूगल क्रोम में अंतर्निर्मित हिन्दी स्पेल-चेकर है. ओपन-ऑफ़िस तथा मॉजिल्ला फायरफ़ॉक्स में आप इसे एडऑन के रूप में डाल सकते हैं। ये औजार अपने डाटाबेस से तुलना कर उन शब्‍दों को रेखांकित कर देते हैं जो इन्‍हें अशुद्ध प्रतीत होते हैं तथा इनकी सही वर्तनी सुझाते भी हैं। इस तरह एक क्लिक भर से आप वर्तनी की ग‍लतियों से छुटकारा पा सकते हैं। उल्‍लेखनीय है कि एमएसवर्ड हिन्‍दी का वर्तनी जॉंचक विकसित शब्‍दभंडार तथा थिसारस से युक्‍त पेशेवर औजार है इसलिए निश्चित तौर पर ज्‍यादा प्रभावशाली है।

Monday, November 24, 2008

म्‍यार मुलुक के मनख्‍यूँ

जनसत्‍ता में इस सप्‍ताह के स्‍तम्‍भ में हिन्‍दी के ऑंचलिक ब्‍लॉगों पर ध्‍यान केंद्रित किया गया था। इसकी पृष्‍ठभूमि में ब्‍लॉग के मिडलाइफ क्राइसिस को रखा गया था। लेख का पूरा पाठ छवि के नीचे दिया गया है।

chitthacharcha novII

म्‍यार मुलुक के मनख्‍यूँ                      

                             - विजेंद्र सिंह चौहान

ईश्‍वर के अंत, कविता के अंत, इतिहास के अंत और न जाने किस किस के अंत की घोषणाएं हो चुकी हैं ऐसे में ब्‍लॉगजगत कोई अमरफल खाकर थोड़े ही आया है, इस सप्‍ताह ब्‍लॉगजगत के अंत की भी घोषणा हुई या कहें कि आशंका व्‍यक्‍त की गई। इस आशय की पोस्‍ट ज्ञानदत्‍त पांडेय जो मानसिक हलचल नाम का ब्‍लॉग चलाते हैं ने लिखी। इस पोस्‍ट का आधार ब्रिटेनिका में प्रकाशित निकोलस कार का लेख 'ब्‍लॉगोस्‍फेयर- रेस्‍ट इन पीस' था। इस लेख में कार ने तर्क दिया है कि ब्‍लॉगजगत का हाल का सच यह है कि वे अब वैकल्पिक मीडिया के रूप में विकसित होने के स्‍थान पर पेशेवर मीडिया समूहों की तरह ही बढ़ रहे हैं। सफल ब्‍लॉग अब निजी ब्‍लॉग न होकर व्‍यवस्थित कारोबारी उद्यम हैं अत: ब्‍लॉग अपनी खासियत से ही मुँह मोड़ रहे हैं इस तरह अब वे मुख्‍यधारा मीडिया जैसा ही व्‍यवहार कर रहे हैं तथा यही ब्‍लॉगजगत के अंत की शुरूआत है।

हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत ने इस तर्क पर हैरान सी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की, क्‍या वाकई ? हिन्‍दी में अभी एक भी पेशेवर ब्‍लॉग नहीं है, यहॉं अभी भी पूरी तरह निजता का बोलबाला है...निष्‍कर्ष निकला कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का स्‍थानीय होना..वर्नाक्‍यूलर uttarakhandहोना इस बात को सुनिश्चित करता है कि यहॉं ब्‍लॉगिंग का तेवर पूरी तरह ब्‍लॉगराना बना रहे। निजता, क्षेत्रीयता, अनगढ़ता इसकी खसियत हैं तथा ये बिंदास बनी हुई ही नहीं है वरन अगले सोपान तक भी जा रही हैं यानि हिंदी की बोलियों के ब्‍लॉग। कोई बाढ़ नहीं आ गई है लेकिन भोजपुरी, मैथिली, मालवी, हरियाणवी, पंजाबी, पहाड़ी आदि भाषाओं में ब्‍लागों की शुरूआत हो गई है। इन भाषाई बयारों की ताजगी को महसूस करना लू के थपेड़ों में छतनार का सा आनंद देता है। अपनी भाषा का ये डिजीटल आग्रह ठाकरेदाँ आतंकवाद से एकदम अलहदा है, बल्कि उसका एंटीडोट है इलाज है। महानगर जिन प्रवासियों की इतनी नाकभौं सिकोड़कर अगवानी करता है उनकी कितनी जरूरत उनके अपने गॉंव-द्वार को है यह इन भाषाई ब्‍लागों से पता चलता है। मसलन पहाड़ी ब्‍लॉग 'बुरांस' (बुरांश डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) पर गिरीश सुदरियाल की एक कविता है-

रीति इगास (खाली इगास)
फीकि बग्वाल (फीकी दीवाली)
हर्चे रंग (खोए रंग)
छुटे अंग्वाल (छूटे हाथ)
कैकि खुद (किसी की याद)
कैकि जग्वाल (किसी का इंतजार)
म्यार मुलुक (मेरे मुल्क)
मनख्यूं का अकाल (मनुष्यों का अकाल)

भोजपुरी और मैथिली क्षेत्र के हिन्‍दी ब्‍लॉगरों में अपने हिन्‍दी ब्‍लॉगों के साथ साथ अपने ऑंचलिक भाषाई ब्‍लॉगों के प्रति विशेष रुझान देखने को मिलता है। शशि सिंह हिन्‍दी के सबसे पुराने ब्‍लॉगरों में से हैं उनके 'भोजपुरिया ब्‍लॉग' (भोजपुरी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) से हिन्‍दी में ऑंचलिक ब्‍लॉगों की परंपरा शुरू होती है। भोजपुरिया, भोजपुरी फिल्‍म (भोजपुरी फिल्‍म डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम) जैसे ऑंचलिक ब्‍लॉग मंद- मंद चल रहे हैं। मैथिली के ब्‍लॉग अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सांस्‍कृतिक तेवर लिए हुए हैं। कतेक रास बात (विद्यापति डॉट आर्ग), मिथिला मिहिर (मिथिला मिहिर डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) तथा मैथिल और मिथिला (मैथिल और मिथिला डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) कुछ महत्‍वपूर्ण मैथिल ब्‍लॉग है। आमतौर पर मैथिली ब्‍लॉगों में सामुदायिकता व साहित्यिकता का पुट अधिक है।

फिल्मकार व पत्रकार पंकज शुक्‍ल का अपने गॉंव के नाम से शुरू किया गया ब्‍लॉग "मंझेरिया कलां" अवधी 'क्‍यार पहिला ब्‍लॉग' है लेकिन इसे ब्‍लॉगर की दक्षता का पूरा लाभ मिला है। उदाहरण के लिए हालिया पोस्‍ट में पंकज ने शायर हसरत मोहानी पर सामग्री दी है। लोकप्रिय ग़ज़ल 'चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ' के लेखक मोहानी उन्‍नाव के ही थे। मंझेरिया कलां एक नया लेकिन संभावनाओं से पूर्ण ब्‍लॉग है। हैरानी की बात है कि सदियों तक साहित्यिक हिन्‍दी के सिंहासन पर आरूढ़ रही ब्रजभाषा अभी तक अपने पहले महत्‍वपूर्ण ब्‍लॉग की प्रतीक्षा ही कर रही है, वैसे अशोक चक्रधर कभी कभी अपने ब्‍लॉग पर ब्रज तेवर की पोस्‍टें डालते रहते हैं।

ब्‍लॉग की ऑंचलिकता जरुरी नहीं कि घोषणा करके ही आए। ताऊ रामपुरिया का ब्‍लॉग (रामपुरिया पीसी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) हिन्‍दी ब्‍लॉग होकर भी ठेठ हरियाणवी है और जे न मानो त बावलीबूच ताऊ अपणे लट्ठ से मणवा लेगा। वैसे हरियाणवी का प्रथम ब्‍लॉग श्रीश का हरियाणवी चौपाल (हरियाणवी चौपाल डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) रहा है। अगर छत्‍तीसगढ़ी की बात करें तो इस भाषा को सबसे बड़ा लाभ यह मिला है कि खुद रवि रतलामी की भाषा यही है और आजकल वे बाकायदा छत्‍तीसगढ़ी भाषा के आपरेटिंग सिस्‍टम के विकास में लगे हुए हैं। अन्‍य ऑंचलिक ब्‍लॉग अभिव्‍यक्तियों की बात करें तो मालवी जाजम (मालवी जाजम डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) विशेष रूप से उल्‍लेख्‍य है। बुजुर्ग चिट्ठाकार नरहरि पटेल के इस ब्‍लॉग में मालव की महक सहज ही महसूस की जा सकती है।

हिन्‍दी पट्टी की इन ऑंचलिक ब्‍लॉग अभिव्‍यक्तियों की खा‍सियत भी है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग से इनका नाता मुख्‍यधारा-हाशिया वाला नहीं है, वरन बराबरी व सौहार्द का है। तो आपकी मिट्टी की महक आपको आपकी ही बोली में बुला रही है...पधारो सा।

Monday, November 10, 2008

छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी

 

जनसत्‍ता में इस सप्‍ताह के स्तंभ में उस बहस को प्रस्‍तुत किया गया था जिसे विनीत ने हाल में अपने चिट्ठे पर आयोजित किया था, यानि क्‍या ब्‍लॉगर पत्रकार कहे जा सकते हैं। पेश है इस सप्‍ताह का स्‍तंभ। नीचे पूरे लेख का पाठ भी दिया गया है।

nov I jansatta

छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी

चिट्ठाजगत (चिट्ठाजगत डॉट इन) पर दर्ज ब्‍लॉगों की कुल संख्‍या अब बढ़कर 5000 से अधिक हो गई है। इनमें बहुत से सक्रिय कहे जा सकने वाले चिट्ठे हैं इसलिए हैरान नही होना चाहिए कि कुछ ब्‍लॉगरों में पत्रकार के रूप में पहचाने जाने की महत्‍वाकांक्षा पलने लगी है। दरअसल पिछले सालभर में हुआ ये है कि पत्रकारों की एक पूरी रेवड़ खुद को हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ओर हांक लाई है यानि अब ढेर से पत्रकार ब्‍लॉगर हैं इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि क्‍या इसका विपरीत न्‍याय भी लागू माना जाए। क्‍या ब्‍लॉगर खुद को पत्रकार मान सकते हैं, और ये भी कि क्‍या ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता है? गाहे बगाहे के विनीत  ने ये बहस शुरू की और इसमें कई ब्‍लॉगरों ने शिरकत की लेकिन मजे की बात है कि 'पत्रकार' इस बहस से दूर ही रहे। बंटी हुई निष्‍ठा का मन पलायन में ही मुदित रहा। टिप्‍पणी करते हुए ब्‍लॉगवाणी के संचालक मैथिलीगुप्‍त ने इस सवाल को बर‍काते हुए इशारा किया कि ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता नहीं इससे आगे की चीज है-

'ब्लागिंग तो कैसी भी पत्रकारिता है ही नहीं. हिन्दी ब्लागिंग में पत्रकार अवश्य हैं लेकिन उनके लेखन का चरित्र ब्लागर के तौर पर न होकर के पत्रकार के तौर पर ही है.....
..ब्लागर ब्लागर होते हैं और पत्रकार पत्रकार. दोनों अलग अलग हैं. आजकल सारी दुनियां में ब्लागर अधिक विश्वसनीय माने जा रहे हैं. ब्लाग के विश्वसनीय होने के कारण ही गूगल को किसी सर्च को केवल ब्लाग तक लिमिटेड करने का आप्शन देना पड़ा है।"

ऐसे में चिट्ठाकारी की जवाबदेही का सवाल भी उठना ही था। सवाल उठाया गया कि ''जो लोग नेट पर लिख रहे हैं, चाहे वो ब्लॉग के जरिए हो या फिर वेब पर , उनकी ऑथेंटिसिटी कितनी है। वेब से जुड़े लोग, जिनका कि अपना डोमेन है, उन्हें तो फिर भी आसानी से पकड़ा जा सकता है। लेकिन जो ब्लॉगिंग कर रहे हैं उनको लेकर दिक्कत है।'' ये अलग बात है कि ब्‍लॉगिंग की सुविचारित राय इस आथेंटिसिटी के प्रतिमान पर ही सवाल उठाती है तथा लाँजिविटी तथा खोज को ज्‍यादा अहम मानती है ! मसलन शीर्ष चिट्ठाकार देबाशीष का मानना है ''.....इंटरनेट पर लेखन, मसौदे, चित्रों, यानि कुछ भी रखा जाय असल मुद्दा है उन्हें खोज पाने का। किसी शोध करते छात्र या किसी डॉक्टर से पूछें कि इंटरनेट ने उसे क्या दिया। मेरा मानना है कि लेखन नहीं, खोज (गूगल) इंटरनेट युग की सबसे बड़ी क्रांति है। यह न हो तो, जैसा वायर्ड पत्रिका ने हाल में लिखा, आपका लिखा वैसे ही कहीं खो जायेगा जैसा किसी स्थानीय अखबार में छपने के दूसरे दिन खो जाता रहा है। और कुछ न लिखने जैसा ही है।''

वैसे ब्‍लॉगिंग को पत्रकारिता माना जाए या नहीं इसकी परवाह उन्‍हें कम ही है जो केवल ब्‍लॉगर हैं, ये उन पत्रकारों की चिंता ज्‍यादा है जो आजकल ब्‍लॉगिंग भी कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे ब्‍लॉग भी हैं जहॉ खुद मेनस्‍ट्रीम मीडिया पर जवाबदेही का सवाल उठाया जाता है। बालेन्‍दु शर्मा दधीच का ब्‍लॉग वाह मीडिया (वाह मीडिया डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) का तो मुख कथन ही है- ''दूसरों पर उंगली उठाने में सबसे आगे है मीडिया। सबकी नुक्ताचीनी में लगा मीडिया क्या स्वयं त्रुटिहीन है? आइए, इस हिंदी ब्लॉग के जरिए थोड़ी सी चुटकी लें, थोड़ी सी आत्मालोचना करें।'' इस ब्‍लॉग में वेब तथा अन्‍य मीडिया रूपों में हुई भूलों की ओर इशारा किया जाता है। वर्तिका नन्‍दा अपने ब्‍लॉग मीडिया स्‍कूल (वर्तिकानन्‍दा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) में मीडिया पर एक विश्‍लेषात्‍मक नजर डालती हैं। इसी प्रकार विनीत तो गाहे-बगाहे ऐसा करते हैं लेकिन खबरी अड्डा (खबरीअड्डा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम) मुसलसल यही और सिर्फ यही करता है। मसलन हाल की एक रपट में मंदी से मीडिया उद्योग पर खासकर पत्रकारों की तनख्‍वाह पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्‍लेषण किया गया। मंदी में पत्रकारों के लिए लखटकिया नौकरी मिलना आसान नहीं होगा ऐसी राय थी, ये अलग बात है कि जब टिप्‍पणीकारों ने खटिया खड़ी की भैए जो ये भूत-चुड़ैलन को खबर कह कह परोसते हैं वे कल के जाते आज चले जाएं...तो अंतत: खबरी अड्डा ने तमाम ब्‍लॉगिंग विवेक को ताक पर रखकर इस पोस्‍ट से टिप्‍पणी की सुविधा ही हटा ली।

हिन्‍दी के तकनीकी ब्‍लॉगों का मतलब यदि आप यही मानते हैं कि यहॉं हिन्‍दी साफ्टवेयर की समस्‍याओं पर ही लिखा जाता हैं तो अमित के हिन्‍दी डिजिटब्‍लॉग (हिन्‍दी डॉट डिजिटब्‍लॉग डॉट कॉम) पर नजर डालें। हाल की एक पोस्‍ट में अमित ने हार्डवेयर से जुड़े उस सवाल का जवाब दिया है जिससे नए हर कंप्‍यूटर का खरीददार गुजरता है, यानि कौन सा कंप्‍यूटर लिया जाए...ब्रांडिड या फिर असेम्‍बल्‍ड। अमित साफ राय देते हें कि चुनाव की आजादी, बाजिव दाम तथा लोच के चलते असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर सदैव ब्रांडिड कंप्‍यूटर से बेहतर रहते हैं। भारत में तो बिक्री के बाद की सपोर्ट भी असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर की ही बेहतर होती है। तो फिर मन मारकर वही क्‍यों खरीदें जो कंपनी थोप रही है, अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से मनमाफिक कंप्‍यूटर व साफ्टवेयर खुद चुन कर अपना कंप्‍यूटर असेम्‍बल करवाएं।