tag:blogger.com,1999:blog-23154891445170897422024-03-08T09:50:33.948+05:30लिंकित मनब्लॉगों से संबंधित शोधपरक विचारों के लिए एक खुली चौपालNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger55125tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-11817429163687888112009-09-03T23:16:00.001+05:302009-09-03T23:16:05.527+05:30पॉंच अंकों में पहुँची चिट्ठों की तादाद<p> ये छोटी सी पोस्ट इस बात की बधाई बजाने के लिए हुई है कि <a href="http://www.chitthajagat.in/" target="_blank">चिट्ठाजगत</a> पर दर्ज हिन्दी चिट्ठों की तादाद ने अब पॉंच अंको को छू लिया है। ये स्क्रीनशॉट देखें- </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbVxrQ4QZeDtAe1wygcmsAvfLPqTOSGBVuDjO2VcIHyC2RYuAxjwpeirlYWT_UtYXRFSzv2DOtbHudYw_63RiwwA2MMzxY_fSg8sMVO3X0JaBnb9SxPWx0OXEEyBCf9FA-W1AoJ5Y1y1Nw/s1600-h/ScreenHunter_01%20Sep.%2003%2023.08%5B3%5D.jpg"><img title="ScreenHunter_01 Sep. 03 23.08" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="350" alt="ScreenHunter_01 Sep. 03 23.08" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYbgGhs-rYNFcOve3T6PTwJV4ocoXMPtjmyHWVhhvHuRows4MSEOz-9_XGsWpNGkbTiqboHpO0bs6pTPwwF9J84-xiF29ziJ3pwQrAt3bi2eOKQDNCht1iFUFU5VZsb-y2I1J0vAwNea1I/?imgmax=800" width="664" border="0" /></a> </p> <p>जी दस हजार पंजीकृत चिट्ठे, वाह। बधाई हम सभी को। </p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-16505020452916403662009-01-05T07:00:00.000+05:302009-01-05T07:00:00.936+05:30साझे ब्लॉगों का दौर- जनसत्ता का लेख<p> </p> <p>प्रस्तुत है जनसत्ता के स्तंभ चिट्ठाचर्चा में इस सप्ताह का लेख। छवि के नीचे लेख का अविकल पाठ है- </p> <p><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibCXsgnZv-_UOH0Krit1ur5AcqMEQdG031iZiyDn9y015LmiDeFqtaTevOR2gTK3v5kXoZfwBVrocEAhXn0JQxjd-GCCaQ7l2fJxZa_tcwfzjsPe6DsInvHKMhvvul_1ta5PbUSFWxP9dm/s1600-h/jansatta_coverage_janI%5B6%5D.jpg"><img title="jansatta_coverage_janI" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="1045" alt="jansatta_coverage_janI" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDV-8d2FL-YaeA6HKthbTbIcloSXrFRnfmnYVgSWyNlTbnGrs9MtYqz7TRxlOFUZKYAufIK-9CbNYIqaIurWKN61EQnCIyl4bY6iC9orV9cH-DZLRz1C7uWB8eNRUOJAJhn3hqSWFkKcTF/?imgmax=800" width="608" border="0" /></a> </b></p> <p><b>साझे ब्लॉगों का दौर</b></p> <p><b>-विजेंद्र सिंह चौहान</b></p> <p>ब्लॉगिंग का एक पारिभाषिक <a href="http://hindi.blogspot.com/2007/04/blog-post_20.html" target="_blank">शब्द है 'ट्राल'</a>, <i>ट्रॉल वह व्यक्ति है जो किसी ऑनलाइन समुदाय में संवेदनशील विषयों पर जान-बूझकर अपमानजनक या भड़काऊ संदेश लिखता/ती है</i><i>, </i><i>इस उद्देश्य से कि कोई उस पर प्रतिक्रिया करेगा/गी.</i><i> </i><i>ऐसी भड़काऊ प्रविष्टियों को भी</i><i> </i><strong><i>ट्रॉल</i></strong><b><i> </i></b><i>कहा जाता है </i>। ये भी कहा जाता है कि यदि आप ट्राल को भाव देंगे तो उसका भला ही होगा। ट्राल का इलाज है कि उसे भाव न दें, उसकी उपेक्षा करें। लेकिन हर ट्राल की उपेक्षा इतनी सरल नहीं। खासकर अगर ये ट्राल खुद राजेंद्र यादव जैसे वरिष्ठ आलोचक हों। हिन्दी ब्लॉगिंग की लंबे समय तक उपेक्षा करने के बाद इस सप्ताह राजेंद्र यादवजी ने हिन्दयुग्म (<a href="http://hindyugm.com" target="_blank">हिन्दयुग्म डॉट कॉम</a>) के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि होना स्वीकार किया और <a href="http://masijeevi.blogspot.com/2008/12/blog-post_30.html" target="_blank">तीन ट्रालमयी टिप्पणियॉं</a> कीं। पहली तो उन्होंने कहा कि वे हिन्दी ब्लॉगों का स्वागत करते हैं क्योंकि इससे प्रकाशन के अयोग्य रचनाओं के लेखक हंस जैसी पत्रिकाओं के संपादक के कान खाना बंद करेंगे अब इस कूड़े को वे खुद अपने ब्लॉग पर छाप लेंगे। दूसरा जुमला राजेंद्रजी ने जोश मलीहाबादी के मुहावरे में कहा कि वे खुद भी जीवन के इन आखिरी सोपानों में इंटरनेट- ब्लॉगिंग आदि तामझाम को सीख लेना चाहते हैं क्योंकि आखिर दोज़ख की ज़ुबान भी तो यही होगी न। तीसरा ट्राल उन्होंने इंटरनेटी ब्लॉगवीरों को नसीहत देते हुए कहा कि तकनीक नई सदी की और विचार सोलहवीं सदी के, नहीं चलेगा...नहीं चलेगा। हिन्दी को आधुनिक बनाओ तथा मध्यकाल तक की हिन्दी के साहित्य को अजायबघर भेज दो। </p> <p>ज़ाहिर है ये टिप्पणी एक उत्तेजक ट्राल थी, कम मंझे हुए ब्लॉगर इस जाल में फंस गए और क्रिया प्रतिक्रिया का दौर शुरू हुआ। पहले हिन्दयुग्म पर, फिर शोभा महेन्द्रु के ब्लॉग पर (<a href="http://ritbansal.blogspot.com/2008/12/blog-post.html" target="_blank">रितबंसल डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) और आखिरकार मोहल्ला पर (मोहल्ला डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) पर इन कथनों के पक्ष विपक्ष में बातें कही सुनी गईं...पुराण अभी चालू आहे।</p> <p>पीछे मुड़कर देखें कि बीते साल में ब्लॉग की दुनिया में क्या खास हुआ तो हमें कई प्रवृत्तियॉं दिखाई पड़ती हैं मसलन चिट्ठों की संख्या में विस्फोटक वृद्धि, हिन्दी सर्च में आया उफान, गूगल का लिप्यंतरण औजार जारी करना, ब्लॉगवाणी की लोकप्रियता, नारद का लुप्तप्राय: हो जाना आदि किंतु जिस बात पर सबसे पहले नजर जाती है वह है -सामुदायिक ब्लॉगों का बोलबाला। सामुदायिक या कम्युनिटी ब्लॉग के मायने हैं वे ब्लॉग जो एक ब्लॉगर द्वारा नहीं लिखे जाते वरन वैचारिक या उद्देश्य की समानता के चलते कई ब्लॉगर मिलकर एक ब्लॉग पर लिखते हैं इससे संख्याबल तथा प्रभाव में इजाफ़ा होता है। ऐसा नहीं है कि हिन्दी में सामुदायिक ब्लॉग पहले नहीं थे अक्षरग्राम (<a href="http://akshargram.com" target="_blank">अक्षरग्राम डॉट कॉम</a>) तथा चिट्ठाचर्चा (<a href="http://chitthacharcha.blogspot.com" target="_blank">चिट्ठाचर्चा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) हिन्दी के दो शुरूआती ब्लॉग हैं तथा दोनों शुरू से ही सामुदायिक ब्लॉग रहे हैं। इस साल में खास ये हुआ कि सामुदायिक ब्लॉगों ने ब्लॉगजगत की अधिकाधिक जमीन अपने नाम करने का बीड़ा उठाया। पैंतालीस ब्लॉगरों के साथ अविनाश की अगुवाई में मोहल्ला इसमें आगे रहा है। मोहल्ला संपादन में विश्वास रखता है इसलिए सामग्री में ब्लॉगपन कम पत्रिकापन अधिक दीखता है। यही वजह है कि अपने ब्लॉगर रूप के लिए अधिकांश मोहल्ला सदस्य कबाड़खाना (<a href="http://kabaadkhaana.blogspot.com" target="_blank">कबाड़खाना डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) नाम के सामुदायिक ब्लॉग के सदस्य हैं इसमें पैंतीस ब्लॉगर 'श्रेष्ठ कबाड़ी' के रूप में दर्ज हैं। इस ब्लॉग का संचालन हलद्वानी से अशोक पांडे करते हैं। </p> <p>स्त्री-विमर्श के सवाल पर एकजुट हुए ब्लॉगर सामुदायिक ब्लॉग चोखेरबाली (<a href="http://sandoftheeye.blogspot.com" target="_blank">सैंड ऑफ दि आई डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) में लिखते हैं। सुजाता इस ब्लॉग की मॉडरेटर हैं तथा राजकिशोर, प्रत्यक्षा, अनुराधा, अजीत वडनेरकर आदि जानेमाने नामों सहित कुल तैंतीस ब्लॉगर इसके सदस्य हैं। इसी मुद्दे पर नारी नामक ब्लॉग (<a href="http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/" target="_blank">इंडियन वूमेन हैज अराइव्ड डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) का संचालन रचना करती हैं इसमें केवल महिला ब्लॉगर सदस्य हैं जिनकी संख्या तेईस है। </p> <p>इन सामुदायिक ब्लॉगों के अतिरिक्त सस्ताशेर (<a href="http://ramrotiaaloo.blogspot.com/" target="_blank">राम रोटी आलू डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>), रिजेक्टमाल (<a href="http://rejectmaal.blogspot.com/" target="_blank">रिजेक्टमाल डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>), हिन्दयुग्म, दाल रोटी चावल (<a href="http://daalrotichaawal.blogspot.com/" target="_blank">दाल रोटी चावल डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) आदि कुछ अन्य ब्लॉग भी गौरतलब कहे जा सकते हैं। वैसे यदि सबसे बड़े सामुदायिक ब्लॉग की बात करें तो पॉंच सो चालीस सदस्यों के साथ अराजकतावादी ब्लॉग भड़ास (भड़ास डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) ही आगे हैं लेकिन यहॉं सदस्य उद्देश्य की एकता की वजह से नहीं वरन अराजकवृत्ति के कारण साथ हैं। कुल मिलाकर सामुदायिक ब्लॉगों की प्रवृत्ति ने हिन्दी ब्लॉगजगत को निजी अभिव्यक्ति के माध्यम की जगह पर एक सोशल नेटवर्क में बदल दिया है तथा यही अब हिन्दी ब्लॉगजगत की वह ताकत है तो आफलाइन दुनिया तक से ट्रालों को आकर्षित कर रही है। यह भी अहम है कि बहुत से ब्लॉगर अब निजी ब्लॉग लिखने के साथ साथ अधिकाधिक सामुदायिक ब्लॉगों का सदस्य बनने पर भी जोर देते हैं ताकि न केवल ज्यादा से ज्यादा पाठक मिल सकें वरन लिंक-प्रतिलिंक भी ज्यादा हों ताकि ब्लॉग का पेजरैंक सुधरे। </p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-28026158254230572342008-12-25T09:00:00.000+05:302008-12-25T09:00:00.813+05:30ब्लॉगों की शब्द-संपदा<p> </p> <p><strong><font size="2">जनसत्ता के स्तंभ चिट्ठाचर्चा में हाल का लेख हिन्दी ब्लॉगों की शब्द संपदा पर केंद्रित था।  अविकल पाठ अखबारी लेख के नीचे दिया गया है- </font></strong></p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUQadHc1MMZV9ms0yf61b2kO0kDe-JZolXeUbR44R3aWs4VM6GXtjaiG10mSJVunvjqDCFulmuXYPwxZ7yl5tIT8l6whKKFSoJoOtJAK7k79VJAECqJijNcJSAgTJpPJsWowgIWlTtQYKD/s1600-h/jansatta%20decII%5B4%5D.jpg"><img title="jansatta decII" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="526" alt="jansatta decII" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMcPtmxcufjbjBOiB05hGsm26B58Z1mA3Gf3Jl2HXBy8f0Y8S4qudbb7_TzUEwnR_yLSbQ827zm5rQ1JknifaK-3ZzgBFs-3_B3h5RQN5khr5j7GLO1RUJYIRPlBzWzBreykTK1MjsSlg8/?imgmax=800" width="271" border="0" /></a> </p> <p><strong>ब्लॉगों की शब्द-संपदा</strong></p> <p><b>-विजेंद्र सिंह चौहान</b></p> <p>हर साल बदलता है मौसम ! फिर इस साल ही क्योंकर अनबदला रहता ! सर्दी आ धमकी है, वैचारिक गर्माहट के लिए चंद गोष्ठियॉं होना बनता है। एक गोष्ठी हुई.....इस बार रवीन्द्र भवन में, किसी 'ईभाषा' को लेकर। खबर पहुँची हमने अनसुनी- सी कर दी...बहुत सिनीसिज्म न अब खुद में बचा है न दूसरों का ही सहा जाता है सो हमने कल्पना कर ली कि क्या हुआ होगा। लूज शंटिंग की दीप्ति (<a href="http://looseshunting.blogspot.com/2008/12/blog-post_12.html" target="_blank">लूजशंटिंग डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) ने लौटकर पूरे ब्लॉगजगत को बताया कि कैसे जाने माने वक्ता-श्रोता ईभाषा के बहाने ब्लॉग भाषा पर हँसे हँसाए, सुनकर हमने राहत की सॉंस ली कि चलो जो हुआ हमारी कल्पना के अनुरूप ही हुआ। दुनिया भर की ब्लॉगिंग में वे ब्लॉगर जो गैर ब्लॉगिंग माध्यमों से आते हैं तथा उनके बारे में ब्लॉगिंग करते हैं तथा वे जो ब्लॉगर हैं तथा गैर ब्लॉग माध्यमों में ब्लॉगिंग के विषय में लिखते हैं, दोनों ही सेतु चिट्ठाकार या ब्रिज ब्लॉगर कहलाते हैं। हम ब्रिज ब्लॉगर अक्सर ही ब्लॉगिंग पर भाषा में असावधानी, सतही समझ, अघाई मुटमरदी आदि आरोपों से दोचार होते हैं। बहुधा ये आरोप चंद 'टेक्नोफोबिक' लोगों का स्यापा भर होता है जिन्हें ब्लॉगिंग अच्छी -खासी चलती साहित्य की शिष्ट दुनिया में असभ्य हस्तक्षेप लगती है। इन्हें कितना भी नजरअंदाज करें किंतु ब्लॉगिंग का भाषिक योगदान एक ऐसा सवाल है जो आज नहीं तो कल पूछा ही जाएगा।</p> <p>गनीमत ये है कि जबाव बहुत दूर नहीं है.. अजीत वडनेरकर का शब्दों का सफर (<a href="http://shabdavali.blogspot.com/" target="_blank">शब्दावली डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) की तुलना केवल 'शब्दों का जीवन' (भोलानाथ तिवारी) से ही की जा सकती है , किंतु शब्दों का जीवन एक अति लघु पुस्तक है जबकि शब्दों का सफर एक लंबा सफर है जो अभी जारी है। अजीत अपने इस ब्लॉग में शब्दों की व्युत्पत्ति, यात्रा, शब्दों का चलना, मुड़ना, टूटना, खिसकना सब दर्ज करते हैं। हिन्दी का यह एक सबसे सम्मानित ब्लॉग है। उदाहरण के लिए जेब, पॉकेट, थैली, थाली, बटुआ, बंटवारा, बटनिया, आवंटन, खरीता, पाटिल, खीसा, स्थालिका आदि शब्द यानि मालमत्ता रखने के ठिकानों पर <a href="http://shabdavali.blogspot.com/search/label/जेब" target="_blank">"जेब" शृंखला</a> की सात पोस्टों में अजीत इन शब्दों के स्रोत व संबंधों के विषय में शोधपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करते हैं। अगर टिप्पणियों को शामिल कर लिया जाए तो ये चिट्ठा कई गोष्ठियों को पानी पिला सकता है।</p> <p>ब्लॉगों की शब्द संपदा पर कोई भी बात तब तक अधूरी है जब तक <a href="http://lapoojhanna.blogspot.com/" target="_blank">लपूझन्ना (लपूझन्ना डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम)</a>, अनामदास <a href="http://anamdasblog.blogspot.com/" target="_blank">(अनामदासब्लॉग डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>), प्रत्यक्षा (<a href="http://pratyaksha.blogspot.com/" target="_blank">प्रत्यक्षा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) तथा प्रमोद (<a href="http://azdak.blogspot.com" target="_blank">अज़दक डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम</a>) की चर्चा न की जाए। लपूझन्ना तथा अनामदास मौलिक रचनात्मक शब्द प्रयुक्तियों के लिए जाने जाते हैं। वहीं प्रत्यक्षा व प्रमोद के ब्लॉगों में गद्य अक्सर कविता की खिड़कियॉं मजे में झांक - झांक आता है। प्रमोद के एक मुक्त गल्प- <a href="http://azdak.blogspot.com/2007/09/blog-post_10.html" target="_blank">'एक बेवकूफ लड़की का अंत'</a> से बानगी देखें -</p> <blockquote> <p><font color="#0000ff"><strong><i>दरवाज़े के ओट</i></strong><i> </i><i>खड़े होकर रीझाना</i><i>, </i><i>मुंह बिराना</i><i>, </i><i>और उचित मात्रा में जब ज़रूरत पड़े लजाने का गुर जानती थी वह. जानती थी देवरजी की खाने में पसन्द</i><i>, </i><i>भसुरजी का गुस्सा और जेठानीजी को दोपहर सब निपटाने के बाद गोड़ दबवाना कितना पसन्द है. ओसारे में पराये-ठिलियाये मेहमानों की बतकुट्टन में जब भौजी का दिमाग नहीं चलता</i><i>, </i><i>सिर पर साड़ी डाले</i><i>, </i><i>सिल पर मसाला पिस चुप्पे बैंगन-लौकी का बजका और चाय चलाकर सबको खुश करने का सलीका जानती थी वह. मलपुआ में कितना केला जाएगा</i><i>, </i><i>परवल का अचार कब सूखेगा</i><i>, </i><i>रात में बच्ची उठ जाती है दीदी से नहीं सपरता तो बिना किसी के खबर हुए दीदी की बच्ची संभालती थी वह....</i></font><i></i></p> </blockquote> <p>यानि वाकी सब अवदान छोड़ भी दें इन सवा लाख पोस्टों में जो शब्द संपदा जुड़ गई सिर्फ उसे गिन लें तो तय है कि हिन्दी ब्लॉगिंग हिन्दी से विपन्नता को बरकाने जीजान से लगी है।</p> <p><b>शब्द</b> जब इस्तेमाल होंगें तो गलत भी होंगे ! इसलिए यदि आप ऐसे किसी तकनीकी जुगाड़ की ताक में हैं जो आपकी हिन्दी से वर्तनी की गलतियॉं दूर कर सके तो आपका इंतजार बस खत्म हुआ समझिए। <a href="http://raviratlami.blogspot.com/2008/12/blog-post_13.html" target="_blank">रवि रतलामी (रवि रतलामी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) ने अपनी हालिया पोस्ट में</a> हिन्दी के उपलब्ध वर्तनी जॉंचकों (स्पेलचेकर) की तुलनात्मक समीक्षा पेश की। आप हिन्दी में वर्तनी जॉंचक बहु-प्लेटफ़ॉर्मों और बहु-उत्पादों में प्राप्त कर सकते हैं. <a href="http://tdil.mit.gov.in/download/hwiter.htm">हिन्दी राइटर</a>, एमएस वर्ड हिन्दी तथा गूगल क्रोम में अंतर्निर्मित हिन्दी स्पेल-चेकर है. <a href="http://raviratlami.blogspot.com/2007/12/2x.html">ओपन-ऑफ़िस</a> तथा <a href="http://raviratlami.blogspot.com/2008/05/blog-post_29.html">मॉजिल्ला फायरफ़ॉक्स </a>में आप इसे एडऑन के रूप में डाल सकते हैं। ये औजार अपने डाटाबेस से तुलना कर उन शब्दों को रेखांकित कर देते हैं जो इन्हें अशुद्ध प्रतीत होते हैं तथा इनकी सही वर्तनी सुझाते भी हैं। इस तरह एक क्लिक भर से आप वर्तनी की गलतियों से छुटकारा पा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि एमएसवर्ड हिन्दी का वर्तनी जॉंचक विकसित शब्दभंडार तथा थिसारस से युक्त पेशेवर औजार है इसलिए निश्चित तौर पर ज्यादा प्रभावशाली है। </p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-91248029143326806692008-11-24T07:15:00.000+05:302008-11-24T07:15:01.297+05:30म्यार मुलुक के मनख्यूँ<p>जनसत्ता में इस सप्ताह के स्तम्भ में हिन्दी के ऑंचलिक ब्लॉगों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसकी पृष्ठभूमि में ब्लॉग के मिडलाइफ क्राइसिस को रखा गया था। लेख का पूरा पाठ छवि के नीचे दिया गया है।</p> <p><a href="http://lh3.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SSlkNa7crqI/AAAAAAAAC-w/U2kXpl28tMs/s1600-h/chitthacharcha%20novII%5B10%5D.jpg"><img title="chitthacharcha novII" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="1290" alt="chitthacharcha novII" src="http://lh5.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SSlkU0zcEtI/AAAAAAAAC-0/pfh5u73mt4E/chitthacharcha%20novII_thumb%5B6%5D.jpg?imgmax=800" width="486" border="0" /></a> </p> <p><b>म्यार मुलुक के मनख्यूँ</b>                       <strong></strong></p> <blockquote> <p><strong>                             <font size="2">- विजेंद्र सिंह चौहान</font></strong></p> </blockquote> <p><b></b></p> <p>ईश्वर के अंत, कविता के अंत, इतिहास के अंत और न जाने किस किस के अंत की घोषणाएं हो चुकी हैं ऐसे में ब्लॉगजगत कोई अमरफल खाकर थोड़े ही आया है, इस सप्ताह ब्लॉगजगत के अंत की भी घोषणा हुई या कहें कि आशंका व्यक्त की गई। <a href="http://halchal.gyandutt.com/2008/11/blog-post_17.html" target="_blank">इस आशय की पोस्ट</a> ज्ञानदत्त पांडेय जो मानसिक हलचल नाम का ब्लॉग चलाते हैं ने लिखी। इस पोस्ट का आधार ब्रिटेनिका में प्रकाशित निकोलस कार का लेख <a href="http://www.britannica.com/blogs/2008/11/blogging-rip/" target="_blank">'ब्लॉगोस्फेयर- रेस्ट इन पीस'</a> था। इस लेख में कार ने तर्क दिया है कि ब्लॉगजगत का हाल का सच यह है कि वे अब वैकल्पिक मीडिया के रूप में विकसित होने के स्थान पर पेशेवर मीडिया समूहों की तरह ही बढ़ रहे हैं। सफल ब्लॉग अब निजी ब्लॉग न होकर व्यवस्थित कारोबारी उद्यम हैं अत: ब्लॉग अपनी खासियत से ही मुँह मोड़ रहे हैं इस तरह अब वे मुख्यधारा मीडिया जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं तथा यही ब्लॉगजगत के अंत की शुरूआत है। </p> <p>हिन्दी ब्लॉगजगत ने इस तर्क पर हैरान सी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्या वाकई ? हिन्दी में अभी एक भी पेशेवर ब्लॉग नहीं है, यहॉं अभी भी पूरी तरह निजता का बोलबाला है...निष्कर्ष निकला कि हिन्दी ब्लॉगिंग का स्थानीय होना..वर्नाक्यूलर <a href="http://lh4.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SSlkYNPaALI/AAAAAAAAC-4/_7BZLhf5CDo/s1600-h/uttarakhand%5B12%5D.jpg"><img title="uttarakhand" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin: 10px; border-right-width: 0px" height="358" alt="uttarakhand" src="http://lh3.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SSlkZ_HmC-I/AAAAAAAAC-8/5b174Ipp89M/uttarakhand_thumb%5B10%5D.jpg?imgmax=800" width="246" align="left" border="0" /></a>होना इस बात को सुनिश्चित करता है कि यहॉं ब्लॉगिंग का तेवर पूरी तरह ब्लॉगराना बना रहे। निजता, क्षेत्रीयता, अनगढ़ता इसकी खसियत हैं तथा ये बिंदास बनी हुई ही नहीं है वरन अगले सोपान तक भी जा रही हैं यानि हिंदी की बोलियों के ब्लॉग। कोई बाढ़ नहीं आ गई है लेकिन भोजपुरी, मैथिली, मालवी, हरियाणवी, पंजाबी, पहाड़ी आदि भाषाओं में ब्लागों की शुरूआत हो गई है। इन भाषाई बयारों की ताजगी को महसूस करना लू के थपेड़ों में छतनार का सा आनंद देता है। अपनी भाषा का ये डिजीटल आग्रह ठाकरेदाँ आतंकवाद से एकदम अलहदा है, बल्कि उसका एंटीडोट है इलाज है। महानगर जिन प्रवासियों की इतनी नाकभौं सिकोड़कर अगवानी करता है उनकी कितनी जरूरत उनके अपने गॉंव-द्वार को है यह इन भाषाई ब्लागों से पता चलता है। मसलन पहाड़ी ब्लॉग 'बुरांस' (बुरांश डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) पर <a href="http://buraansh.blogspot.com/2007/09/blog-post.html" target="_blank">गिरीश सुदरियाल की एक कविता</a> है-</p> <blockquote> <p><b>रीति इगास</b><b> </b><b>(</b><b>खाली इगास)</b><b> </b><b> <br /></b><b>फीकि बग्वाल</b><b> </b><b>(</b><b>फीकी दीवाली)</b><b> <br /></b><b>हर्चे</b><b> </b><b>रंग</b><b> </b><b>(</b><b>खोए रंग)</b><b> <br /></b><b>छुटे अंग्वाल</b><b> </b><b>(</b><b>छूटे हाथ)</b><b> <br /></b><b>कैकि</b><b> </b><b>खुद</b><b> </b><b>(</b><b>किसी की याद)</b><b> <br /></b><b>कैकि जग्वाल</b><b> </b><b>(</b><b>किसी का इंतजार)</b><b> <br /></b><b>म्यार मुलुक</b><b> </b><b>(</b><b>मेरे मुल्क)</b><b> <br /></b><b>मनख्यूं का अकाल</b><b> </b><b>(</b><b>मनुष्यों का अकाल)</b><b></b></p> </blockquote> <p><b></b></p> <p><b></b></p> <p>भोजपुरी और मैथिली क्षेत्र के हिन्दी ब्लॉगरों में अपने हिन्दी ब्लॉगों के साथ साथ अपने ऑंचलिक भाषाई ब्लॉगों के प्रति विशेष रुझान देखने को मिलता है। शशि सिंह हिन्दी के सबसे पुराने ब्लॉगरों में से हैं उनके <a href="http://bhojpuri.blogspot.com/" target="_blank">'भोजपुरिया ब्लॉग</a>' (भोजपुरी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) से हिन्दी में ऑंचलिक ब्लॉगों की परंपरा शुरू होती है। भोजपुरिया, <a href="http://bhojpurifilm.wordpress.com/" target="_blank">भोजपुरी फिल्म</a> (भोजपुरी फिल्म डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम) जैसे ऑंचलिक ब्लॉग मंद- मंद चल रहे हैं। मैथिली के ब्लॉग अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सांस्कृतिक तेवर लिए हुए हैं। <a href="http://www.vidyapati.org" target="_blank">कतेक रास बात</a> (विद्यापति डॉट आर्ग), <a href="http://mithila-mihir.blogspot.com/" target="_blank">मिथिला मिहिर</a> (मिथिला मिहिर डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) तथा <a href="http://maithilaurmithila.blogspot.com/" target="_blank">मैथिल और मिथिला</a> (मैथिल और मिथिला डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) कुछ महत्वपूर्ण मैथिल ब्लॉग है। आमतौर पर मैथिली ब्लॉगों में सामुदायिकता व साहित्यिकता का पुट अधिक है।</p> <p>फिल्मकार व पत्रकार पंकज शुक्ल का अपने गॉंव के नाम से शुरू किया गया ब्लॉग <a href="http://manjheriakalan.blogspot.com/" target="_blank">"मंझेरिया कलां"</a> अवधी 'क्यार पहिला ब्लॉग' है लेकिन इसे ब्लॉगर की दक्षता का पूरा लाभ मिला है। उदाहरण के लिए <a href="http://manjheriakalan.blogspot.com/2008/11/blog-post.html" target="_blank">हालिया पोस्ट</a> में पंकज ने शायर हसरत मोहानी पर सामग्री दी है। लोकप्रिय ग़ज़ल 'चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ' के लेखक मोहानी उन्नाव के ही थे। मंझेरिया कलां एक नया लेकिन संभावनाओं से पूर्ण ब्लॉग है। हैरानी की बात है कि सदियों तक साहित्यिक हिन्दी के सिंहासन पर आरूढ़ रही ब्रजभाषा अभी तक अपने पहले महत्वपूर्ण ब्लॉग की प्रतीक्षा ही कर रही है, वैसे अशोक चक्रधर कभी कभी अपने ब्लॉग पर ब्रज तेवर की पोस्टें डालते रहते हैं।</p> <p>ब्लॉग की ऑंचलिकता जरुरी नहीं कि घोषणा करके ही आए। <a href="http://rampuriapc.blogspot.com/" target="_blank">ताऊ रामपुरिया का ब्लॉग</a> (रामपुरिया पीसी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) हिन्दी ब्लॉग होकर भी ठेठ हरियाणवी है और <em>जे न मानो त बावलीबूच ताऊ अपणे लट्ठ से मणवा लेगा</em>। वैसे हरियाणवी का प्रथम ब्लॉग श्रीश का <a href="http://haryanavichaupal.blogspot.com/" target="_blank">हरियाणवी चौपाल</a> (हरियाणवी चौपाल डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) रहा है। अगर छत्तीसगढ़ी की बात करें तो इस भाषा को सबसे बड़ा लाभ यह मिला है कि खुद रवि रतलामी की भाषा यही है और आजकल वे बाकायदा <a href="http://raviratlami.blogspot.com/2008/10/blog-post_30.html" target="_blank">छत्तीसगढ़ी भाषा के आपरेटिंग सिस्टम</a> के विकास में लगे हुए हैं। अन्य ऑंचलिक ब्लॉग अभिव्यक्तियों की बात करें तो <a href="http://malvijajam.blogspot.com/" target="_blank">मालवी जाजम</a> (मालवी जाजम डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) विशेष रूप से उल्लेख्य है। बुजुर्ग चिट्ठाकार नरहरि पटेल के इस ब्लॉग में मालव की महक सहज ही महसूस की जा सकती है।</p> <p>हिन्दी पट्टी की इन ऑंचलिक ब्लॉग अभिव्यक्तियों की खासियत भी है कि हिन्दी ब्लॉगिंग से इनका नाता मुख्यधारा-हाशिया वाला नहीं है, वरन बराबरी व सौहार्द का है। तो आपकी मिट्टी की महक आपको आपकी ही बोली में बुला रही है...पधारो सा।</p> मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-72185335323603410042008-11-10T05:45:00.000+05:302008-11-10T05:45:00.183+05:30छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी<p></p> <p> </p> <p>जनसत्‍ता में इस सप्‍ताह के स्तंभ में उस बहस को प्रस्‍तुत किया गया था जिसे विनीत ने हाल में अपने चिट्ठे पर आयोजित किया था, यानि क्‍या ब्‍लॉगर पत्रकार कहे जा सकते हैं। पेश है इस सप्‍ताह का स्‍तंभ। नीचे पूरे लेख का पाठ भी दिया गया है। </p> <p><a href="http://lh3.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SRcrYZyiU3I/AAAAAAAAC9E/ltj1YaPvq1s/s1600-h/nov%20I%20jansatta%5B6%5D.jpg"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="1111" alt="nov I jansatta" src="http://lh4.ggpht.com/_jH1kuiAAnmo/SRcreIkcteI/AAAAAAAAC9I/ncYH1vYNuEw/nov%20I%20jansatta_thumb%5B4%5D.jpg?imgmax=800" width="465" border="0" /></a> </p> <p><strong><font size="3">छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी</font></strong></p> <p>चिट्ठाजगत <a href="http://chitthajagat.in/" target="_blank">(चिट्ठाजगत डॉट इन)</a> पर दर्ज ब्‍लॉगों की कुल संख्‍या अब बढ़कर <a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/10/5000.html" target="_blank">5000 से अधिक</a> हो गई है। इनमें बहुत से सक्रिय कहे जा सकने वाले चिट्ठे हैं इसलिए हैरान नही होना चाहिए कि कुछ ब्‍लॉगरों में पत्रकार के रूप में पहचाने जाने की महत्‍वाकांक्षा पलने लगी है। दरअसल पिछले सालभर में हुआ ये है कि पत्रकारों की एक पूरी रेवड़ खुद को हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ओर हांक लाई है यानि अब ढेर से पत्रकार ब्‍लॉगर हैं इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि क्‍या इसका विपरीत न्‍याय भी लागू माना जाए। क्‍या ब्‍लॉगर खुद को पत्रकार मान सकते हैं, और ये भी कि क्‍या ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता है? गाहे बगाहे के विनीत  ने <a href="http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_29.html" target="_blank">ये बहस शुरू की</a> और इसमें कई ब्‍लॉगरों ने शिरकत की लेकिन मजे की बात है कि 'पत्रकार' इस बहस से दूर ही रहे। बंटी हुई निष्‍ठा का मन पलायन में ही मुदित रहा। टिप्‍पणी करते हुए ब्‍लॉगवाणी के संचालक मैथिलीगुप्‍त ने इस सवाल को बर‍काते हुए इशारा किया कि ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता नहीं इससे आगे की चीज है- </p> <blockquote> <p><font color="#0000ff"><b>'</b><b><i>ब्लागिंग तो कैसी भी पत्रकारिता है ही नहीं.</i></b><b><i> </i></b><b><i>हिन्दी ब्लागिंग में पत्रकार अवश्य हैं लेकिन उनके लेखन का चरित्र ब्लागर के तौर पर न होकर के पत्रकार के तौर पर ही है.....</i></b></font><b><i> <br /></i></b><font color="#0000ff"><b><i>..ब्लागर ब्लागर होते हैं और पत्रकार पत्रकार. दोनों अलग अलग हैं. आजकल सारी दुनियां में ब्लागर अधिक विश्वसनीय माने जा</i></b><b><i> </i></b><b><i>रहे हैं. ब्लाग के विश्वसनीय होने के कारण ही गूगल को किसी सर्च को केवल ब्लाग तक लिमिटेड करने का आप्शन देना पड़ा है।"</i></b><b><i></i></b></font></p> </blockquote> <p><i></i></p> <p>ऐसे में चिट्ठाकारी की जवाबदेही का सवाल भी उठना ही था। सवाल उठाया गया कि <font color="#0000ff"><b><i>''</i></b><b><i>जो लोग नेट पर लिख रहे हैं</i></b><b><i>, </i></b><b><i>चाहे वो ब्लॉग के जरिए हो या फिर वेब पर </i></b><b><i>, </i></b><b><i>उनकी ऑथेंटिसिटी कितनी है। वेब से जुड़े लोग</i></b><b><i>, </i></b><b><i>जिनका कि अपना डोमेन है</i></b><b><i>, </i></b><b><i>उन्हें तो फिर भी आसानी से पकड़ा जा सकता है। लेकिन जो ब्लॉगिंग कर रहे हैं उनको लेकर दिक्कत है।''</i></b></font><b><i> </i></b>ये अलग बात है कि ब्‍लॉगिंग की सुविचारित राय इस आथेंटिसिटी के प्रतिमान पर ही सवाल उठाती है तथा लाँजिविटी तथा खोज को ज्‍यादा अहम मानती है ! मसलन शीर्ष <a href="http://taanabaana.blogspot.com/2008/11/blog-post.html?showComment=1225560240000#c4263613938180204021" target="_blank">चिट्ठाकार देबाशीष का मानना</a> है <b><i>''.....इंटरनेट पर लेखन</i></b><b><i>, </i></b><b><i>मसौदे</i></b><b><i>, </i></b><b><i>चित्रों</i></b><b><i>, </i></b><b><i>यानि कुछ भी रखा जाय असल मुद्दा है उन्हें खोज पाने का। किसी शोध करते छात्र या किसी डॉक्टर से पूछें कि इंटरनेट ने उसे क्या दिया। मेरा मानना है कि लेखन नहीं</i></b><b><i>, </i></b><b><i>खोज (गूगल) इंटरनेट युग की सबसे बड़ी क्रांति है। यह न हो तो</i></b><b><i>, </i></b><b><i>जैसा वायर्ड पत्रिका ने हाल में लिखा</i></b><b><i>, </i></b><b><i>आपका लिखा वैसे ही कहीं खो जायेगा जैसा किसी स्थानीय अखबार में छपने के दूसरे दिन खो जाता रहा है। और कुछ न लिखने जैसा ही है।''</i></b><b><i></i></b></p> <p>वैसे ब्‍लॉगिंग को पत्रकारिता माना जाए या नहीं इसकी परवाह उन्‍हें कम ही है जो केवल ब्‍लॉगर हैं, ये उन पत्रकारों की चिंता ज्‍यादा है जो आजकल ब्‍लॉगिंग भी कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे ब्‍लॉग भी हैं जहॉ खुद मेनस्‍ट्रीम मीडिया पर जवाबदेही का सवाल उठाया जाता है। बालेन्‍दु शर्मा दधीच का ब्‍लॉग वाह मीडिया (<a href="http://wahmedia.blogspot.com/" target="_blank">वाह मीडिया डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम</a>) का तो मुख कथन ही है- <b><i>''</i></b><b><i>दूसरों पर उंगली उठाने में सबसे आगे है मीडिया। सबकी नुक्ताचीनी में लगा मीडिया क्या स्वयं त्रुटिहीन है</i></b><b><i>? </i></b><b><i>आइए</i></b><b><i>, </i></b><b><i>इस हिंदी ब्लॉग के जरिए थोड़ी सी चुटकी लें</i></b><b><i>, </i></b><b><i>थोड़ी सी आत्मालोचना करें।''</i></b><b> </b>इस ब्‍लॉग में वेब तथा अन्‍य मीडिया रूपों में हुई भूलों की ओर इशारा किया जाता है। वर्तिका नन्‍दा अपने ब्‍लॉग मीडिया स्‍कूल (<a href="http://vartikananda.blogspot.com/" target="_blank">वर्तिकानन्‍दा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम</a>) में मीडिया पर एक विश्‍लेषात्‍मक नजर डालती हैं। इसी प्रकार विनीत तो गाहे-बगाहे ऐसा करते हैं लेकिन खबरी अड्डा (<a href="http://khabriadda.blogspot.com" target="_blank">खबरीअड्डा डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट डॉट कॉम</a>) मुसलसल यही और सिर्फ यही करता है। मसलन हाल की एक रपट में मंदी से मीडिया उद्योग पर खासकर पत्रकारों की तनख्‍वाह पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्‍लेषण किया गया। मंदी में पत्रकारों के लिए लखटकिया नौकरी मिलना आसान नहीं होगा ऐसी राय थी, ये अलग बात है कि जब <a href="http://khabriadda.blogspot.com/2008/10/blog-post_26.html" target="_blank">टिप्‍पणीकारों ने खटिया खड़ी</a> की भैए जो ये भूत-चुड़ैलन को खबर कह कह परोसते हैं वे कल के जाते आज चले जाएं...तो अंतत: खबरी अड्डा ने तमाम ब्‍लॉगिंग विवेक को ताक पर रखकर इस पोस्‍ट से टिप्‍पणी की सुविधा ही हटा ली।</p> <p>हिन्‍दी के तकनीकी ब्‍लॉगों का मतलब यदि आप यही मानते हैं कि यहॉं हिन्‍दी साफ्टवेयर की समस्‍याओं पर ही लिखा जाता हैं तो अमित के हिन्‍दी डिजिटब्‍लॉग (<a href="http://hindi.digitblog.com/" target="_blank">हिन्‍दी डॉट डिजिटब्‍लॉग डॉट कॉम</a>) पर नजर डालें। हाल की <a href="http://hindi.digitblog.com/article/why-assembled-pc-is-better-than-a-branded-one/8/" target="_blank">एक पोस्‍ट में</a> अमित ने हार्डवेयर से जुड़े उस सवाल का जवाब दिया है जिससे नए हर कंप्‍यूटर का खरीददार गुजरता है, यानि कौन सा कंप्‍यूटर लिया जाए...ब्रांडिड या फिर असेम्‍बल्‍ड। अमित साफ राय देते हें कि चुनाव की आजादी, बाजिव दाम तथा लोच के चलते असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर सदैव ब्रांडिड कंप्‍यूटर से बेहतर रहते हैं। भारत में तो बिक्री के बाद की सपोर्ट भी असेम्‍बल्‍ड कंप्‍यूटर की ही बेहतर होती है। तो फिर मन मारकर वही क्‍यों खरीदें जो कंपनी थोप रही है, अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से मनमाफिक कंप्‍यूटर व साफ्टवेयर खुद चुन कर अपना कंप्‍यूटर असेम्‍बल करवाएं।</p> मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-10056361587968497702008-10-27T07:09:00.000+05:302008-10-27T07:09:00.427+05:30किताब पढ़ने वाली औरतें<p>जनसत्‍ता के कॉलम चिट्ठाचर्चा में इस सप्‍ताह का लेख प्रस्‍तुत है। पूरा पाठ नीचे दिया गया है।</p> <p><a href="http://lh6.ggpht.com/chauhan.vijender/SQQ9F1km7II/AAAAAAAAC8c/XSOfSAvmcjY/s1600-h/jansattaoct26%5B4%5D.jpg"><img style="border-right: 0px; border-top: 0px; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="668" alt="jansattaoct26" src="http://lh5.ggpht.com/chauhan.vijender/SQQ9NBG4u7I/AAAAAAAAC8g/6SNAn2B4CF8/jansattaoct26_thumb%5B2%5D.jpg?imgmax=800" width="263" border="0" /></a> </p> <p><strong>किताब पढ़ने वाली औरतें</strong> </p> <p>                                         -विजेंद्र सिंह चौहान </p> <p>'भारतीय संस्‍कृति‘ और ‘करवा चौथ परंपरा‘ के कई पेरौकार चिट्ठाकार (और इनकी कोई कमी नहीं ब्‍लॉगजगत में) गाहे बगाहे संतोष जाहिर करते रहे हैं कि शुक्र है हमारी पत्नियॉ ब्‍लॉग नहीं पढ़तीं (ये सुसंस्‍कृत, घरबारी औरतों की जगह नहीं)। इसलिए जब सुनील दीपक ने अपने ब्‍लॉग ‘जो कह न सके‘ (<a href="http://www.kalpana.it/hindi/blog/">कल्‍पना डॉट आईटी/हिन्‍दीब्‍लॉग</a>) पर <a href="http://www.kalpana.it/hindi/blog/2008/10/blog-post_19.html">‘किताब पढ़ने वाली औरतों‘</a> को मिले ऐतिहासिक अस्वीकार का चित्रण प्रस्‍तुत किया तो ये कथा कुछ जानी पहचानी लगी। माइकेल एंजेलो की भगवान की ओर बढ़ती मानव अँगुली वाले चित्र के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध रोम के सिस्‍टीन चेपल में सिबिल्‍ला की पेंटिंग भी है। इटली में रहने वाले ब्‍लॉगर सुनील स्‍पष्‍ट करते हैं- </p> <blockquote> <p><em><font color="#0000ff">‘‘सिस्टीन चेपल के बारे में सोचिये तो भगवान की ओर बढ़ती मानव उँगली के दृश्य को अधिकतर लोग जानते हैं पर इसी कृति का एक अन्य भाग है जिसमें बनी है सिबिल्ला की कहानी. भविष्य देखने वाली सिबिल्ला को भगवान से एक हजार वर्ष तक जीने का वरदान मिला था पर यह वरदान माँगते समय वह चिरयौवन की बात कहना भूल गयी इसलिए उसकी कहानी वृद्धावस्था के दुखों की कहानी है.‘‘ </font></em></p> </blockquote> <p>इसी पोस्‍ट में सुनील अलग अलग चार प्रसिद्ध पेंटिंग्‍स का विश्‍लेषण करते हैं जिनमें किताब पढ़ती औरतों के चित्र हैं, अलग अलग देशकाल से...साथ ही उन्‍हें आशापूर्णा देवी की सुबर्णलता भी इसी कोटि की नायिका के रूप में याद आती है जिसे किताब पढ़ने का ‘ऐब‘ है। </p> <p><a href="http://lh5.ggpht.com/chauhan.vijender/SQQ7d02Nq7I/AAAAAAAAC8U/42BA0oT6yEE/s1600-h/women_read_01%5B5%5D.jpg"><img style="border-right: 0px; border-top: 0px; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="324" alt="women_read_01" src="http://lh4.ggpht.com/chauhan.vijender/SQQ7gPIrOzI/AAAAAAAAC8Y/lODnT_mkBrw/women_read_01_thumb%5B3%5D.jpg?imgmax=800" width="229" align="left" border="0" /></a> ऐंजेलो की पेंटिंग सिबिल्ला 1510 की बनी है जिसमें सिबिल्ला के हाथ में भविष्य की किताब है जो कोरी है। दूसरी पेंटिंग जिसकी चर्चा सुनील करते हैं वह हॉलैंड के चित्रकार जेकब ओख्टरवेल्ट की है जो उन्होंने 1670 में बनायी थी. उस समय हालैंड दुनिया के सबसे साक्षर देशों में से था, स्त्री और पुरुष दोनो ने ही पढ़ना लिखना सीखा था. किताबे पढ़ने के अतिरिक्त चिट्ठी लिखने का चलन हो रहा है. इस चित्र में उस समय के संचार के तीन माध्यमों को दिखाया गया - बात चीत, पुस्तक और पत्र. नवयुवक युवती को अपने प्रेम का निवेदन कर रहा है और नवयुवती किताब पढ़ने का नाटक कर रही है. यही प्रेम संदेश मेज पर रखे पत्र में भी है। ब्लॉगर सुनील दीपक जो हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी व इतालवी में भी ब्लॉगिंग करते हैं अपने सचित्र विश्लेषण में हॉलैंड के पीटर जानसेन एलिंगा के चित्र तथा विन्सेंट वान गॉग के एक चित्र का परिचय भी देते हैं जो 1888 का है। इन चित्रों के माध्यम से सुनील राय व्यक्त करते हैं कि - </p> <blockquote> <p><em><font color="#0000a0">‘‘समझ में आने लगता है कि क्यों पितृसत्तायी समाज को स्त्रियों का किताबें पढ़ना ठीक नहीं लगा था. किताबों की दुनिया स्त्रियों को बाहर निकलने का रास्ता दिखाती थीं, उन्हें अपना कल्पना का संसार बनाने का मौका मिल जाता था जो समाज के बँधनों से मुक्त था, उनमें अपना सोचने समझने की बात आने लगती थी.‘‘</font></em> </p> </blockquote> <p>पाठक के लिए यह विश्लेषण और भी ऑंखें खोलने वाला इसलिए है कि शताब्दियों से जारी ये वर्जनाएं ब्लॉगजगत पर भी अपनी छाया छोड़ती हैं अत: संचार के नए साधनों में स्त्री भागीदारी के गंभीर निहितार्थ हैं। </p> <p><strong><font size="5">अ</font></strong>गर आप ऐसे शख्स हैं जो ब्लॉगिंग की दुनिया में कूदना चाहते हैं लेकिन तकनीकी अड़चनों के चलते ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो आपके लिए मदद केवल एक क्लिक भर की दूरी पर है। कुछ हिन्दी ब्लॉगरों ने अब तकनीकी सहायता के लिए ही ब्लॉग बना लिए हैं। इनमें से एक है युवा तकनीकज्ञ अंकित का ब्लॉग प्रथम <a href="http://hi.pratham.net/">(एचआई डॉट प्रथम डॉट नेट)</a> अंकित नित नई जुगाड़ी तकनीकों से हिन्दी ब्लॉगिंग को आसान बनाने में जुटे हैं! अपनी <a href="http://hi.pratham.net/2008/10/commenting.html">हाल की एक पोस्ट</a> में अंकित ने बताया कि किस प्रकार हिन्दी चिट्ठों पर वे लोग भी अब आसानी से हिन्दी में टिप्पणी कर सकते हैं जो हिन्दी की टाईपिंग नहीं जानते। ये औजार बेहद सरल व कामयाब है। </p> <p>इसी प्रकार एक अन्य तकनीकी ब्लाWगर हैं ई-गुरू राजीव जिनका ब्लॉग है <a href="http://blogspundit.blogspot.com/">(ब्लॉग्सपंडित /ब्लॉग्सपंडित डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम)</a> इस ब्लॉग की दो पोस्टें नौसिखियों के लिए खासतौर पर मददगार हैं एक जो वर्डप्रेस पर ब्लॉग बनाना सिखाती है तथा दूसरी वह जो ब्लॉगर पर नए ब्लॉग बनाने का तरीका बताती है! गौरतलब है कि हिन्दी के लगभग सभी ब्लाWग इन दो प्लेटफार्मों पर ही बने हैं। तो फिर देर किस बात की पधारिए हिन्दी ब्लॉगजगत में खुद के नवेले ब्लॉग के साथ।</p> मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-70082907155542735952008-10-26T15:35:00.000+05:302008-10-26T18:19:29.209+05:30चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे<p> </p> <p>हम सभी को विश्‍वास रहा है कि चिट्ठों की संख्‍या ज्‍यामितिक दर से बढ़ती है।  तभी तो <a href="http://linkitmann.blogspot.com/2007/09/1000.html">इस पोस्‍ट में</a> जो सितम्‍बर 2007 की है <a href="http://chitthajagat.in/">चिट्ठाजगत</a> में 1000 चिट्ठे हाने पर खुशी जाहिर की गई थी। यानि तीन साल(2004-07)में चिट्ठे हुए थे 1000 और देखिए सितम्‍बर 2007 की तुलना में आज के चिट्ठाजगत का स्‍क्रीनशॉट</p> <p><a href="http://lh4.ggpht.com/neelimasayshi/SQRATOTnPuI/AAAAAAAAAiQ/XiZ6GV_hrn0/s1600-h/ScreenHunter_01%20Oct.%2026%2015.21%5B10%5D.gif"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="293" alt="ScreenHunter_01 Oct. 26 15.21" src="http://lh4.ggpht.com/neelimasayshi/SQRAVnwFCJI/AAAAAAAAAiU/Pn6-nhtDN58/ScreenHunter_01%20Oct.%2026%2015.21_thumb%5B6%5D.gif?imgmax=800" width="572" border="0" /></a> </p> <p>जी तब से अब तक चिट्ठाजगत में दर्ज हिन्‍दी चिट्ठों की संख्‍या आज बढ़कर पॉंच गुना हो गई है। आज हो गए 5000 ब्‍लॉग्‍स। बल्‍ले बल्‍ले।</p> <p>दीपावली पर इस शानदार उपलब्धि के लिए आप सभी को बधाई।</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-73790396566563641612008-10-15T14:00:00.001+05:302008-10-15T14:47:32.567+05:30स्माइली ही संदेश है।<p> </p> <p>प्रस्‍तुत है इस सप्‍ताह के जनसत्‍ता से चिट्ठाचर्चा</p> <p><a href="http://lh5.ggpht.com/chauhan.vijender/SPWp-qSNr1I/AAAAAAAAC6M/KBlzLQlUL4k/s1600-h/jansatta%5B6%5D.jpg"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="756" alt="jansatta" src="http://lh3.ggpht.com/chauhan.vijender/SPWqDTb8PvI/AAAAAAAAC6Q/f0IGiqX2n_I/jansatta_thumb%5B4%5D.jpg?imgmax=800" width="500" border="0" /></a> </p> <p>पूरा पाठ इस प्रकार है-</p> <p><b>स्‍माइली ही संदेश है</b><b></b></p> <p>- विजेंद्र सिंह चौहान</p> <p>हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत में बाटला हाऊस है और अपनी जगह है। सो ही धराशाई शेयर बाजार भी है ! सौम्‍या विश्‍वनाथन हैं, स्‍त्री विमर्श और सांप्रदायिकता भी बरकरार हैं , उन्हें कौन डिगा सकता है। निशा-मधुलिका और दाल रोटी चावल जैसे ब्‍लॉगों का बरास्‍ता स्‍वाद छा जाने वाला अपना प्रति-फेमिनिज्‍म भी है , पर इतना सब कुछ केवल हाशिया है। ये हिन्‍दी ब्‍लॉगों के आटे में केवल नमक है ! हिन्‍दी चिट्ठाकारी के केवल संचारी भाव हैं। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का मूल भाव, उसका यूएसपी है उसकी अनौपचारिकता बोले तो हा हा ही ही यानि हास्‍य और व्‍यंग्‍य। ब्‍लॉगिंग की भाषा में लिखें तो एक कोलन लिखें और कोष्‍ठक को बंद कर दें {:)} । :) ब्‍लॉगिंग की भाषा में स्‍माइली कहलाता है। जिस कथन के बाद स्‍माइली लगा हो उस पर नाराज होना वर्जित है। स्‍माइली वही है जिसे <a href="http://hindini.com/fursatiya/">फुरसतिया</a> मौज लेना कहते हैं, अरूण पंगा लेना, आलोक पुराणिक अगड़म -बगड़म कह जाते हैं। सारे शब्‍द चुक गए हैं इसलिए समीर मजबूरी में हास्‍य व्‍यंग्‍य को हास्‍य व्‍यंग्‍य ही कहते हैं। हिन्‍दी चिट्ठाकारी में जो परंपरा दो महीने टिक जाए वो सुदीर्घ पद को प्राप्‍त होती है इस लिहाज से यहॉं व्‍यंग्‍य लेखन की परंपरा को तो सुदीर्घतम माना जा सकता है। आलोक पुराणिक (<a href="http://alokpuranik.com/">आलोकपुराणिक डॉट कॉम),</a> समीरलाल (<a href="http://udantashtari.blogspot.com" target="_blank">उडनतश्‍तरी डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट कॉम)</a> शिवकुमार (<a href="http://shiv-gyan.blogspot.com">शिव-ज्ञान डॉट ब्‍लॉगस्‍पॉट कॉम</a>), अशोक चक्रधर, जैसे प्रतिबद्ध व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारों के आने से पहले भी अनूप शुक्‍ला, जितेंद्र चौधरी, देबाशीष आदि एक दूसरे से जिस तरह मौज लेते थे उसे व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारी की आदि पोस्‍टें कहा जा सकता है।</p> <p>इन व्‍यंग्‍य पोस्‍टों को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि इन पोस्‍टों में कानपुर के ठग्‍गू के लड्डुओं की करामात है ! यानि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं। धॉंसू च फॉंसू , झाड़े रहो कलट्टरगंज, टंकी आरोहण , मौज लेना जैसी अनेकानेक प्रयुक्तियॉं हिन्‍दी चिट्ठाकारी के मौलिक मुहावरे हैं। हिन्‍दी के व्‍यंग्‍य चिट्ठाकारों का एक और मौलिक शिष्‍टाचार है कि वे जिस भी घर में जाते हैं चाहे वह अध्‍यापक का हो या नेता का, उसके घर से डायरी के पेज जरूर चुरा कर लाते हैं। मसलन आलोक पुराणिक छात्रों की उत्‍तर पुस्तिकाओं से निबन्‍ध चुरा कर लाते हैं जिनके ज़रिए छात्र शिक्षकों के ज्ञान- चक्षु खोलते हैं- </p> <blockquote> <p><font color="#0000ff"><b><i>"</i></b><b><i>जी बिलकुल सही कह रहे हैं। हलवाईगिरी को आतंकवाद के खिलाफ मुकाबले के लेवल पर नहीं उतारा जा सकता। दहीबड़े कड़े हों या मुलायम</i></b><b><i>, </i></b><b><i>उन्हे बनाना मुश्किल काम है। दाल भिगोनी पड़ती है</i></b><b><i>, </i></b><b><i>मिक्सी में पीसनी पड़ती है। फिर तलने पड़ते हैं। फिर दही जमाना पड़ता है</i></b><b><i>, </i></b><b><i>फिर</i></b><b><i>………………</i></b><b><i>। आतंकवाद के मुकाबले के लिए तो सिर्फ बयान देना पड़ता है कि हम कड़ाई से मुकाबला करेंगे</i></b><b><i>, </i></b><b><i>दैट्स आल। टेक हलवाईगिरी सीरियसली-एक बच्चा एक दम तार्किक टाइप बात कह रहा है।</i></b><b><i>"</i></b></font> </p> </blockquote> <p>इसी किस्म की खुराफात अरुण अरोरा अपने ब्‍लॉग पंगेबाज में करते हैं ! वे अपने चिट्ठे में उन काल्‍पनिक प्रेमपत्रों को उजागर करते हैं जिन्हें उन्होंने इस या उस कबाड़ी के यहॉं से जुगाडा है ! बिला शक जो डायरी इस समय हिन्‍दी चिट्ठाकरी में सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय है वह किसी पेशेवर व्‍यंग्‍यकार की नहीं वरन एक वित्‍त सलाहकार शिवकुमार मिश्र द्वारा प्रस्‍तुत दुर्योधन की डायरी है। इस डायरी पर आजकल हस्तिनापुर में गांधार चैरिएट्स का रथ कारखाना लगाने के लिए किसानों की जमीन लिए जाने संबंधी बखेड़ा दुर्योधन के मन को मथ रहा है! व्‍यंग्य चिट्ठाकारी के लिहाज से राजकिशोर, अनूप शुक्‍ला व समीर लाल के ब्‍लॉग भी महत्‍वपूर्ण ब्‍लॉग हैं। अनीता कुमार, बालकिशन आदि पार्टटाईम व्‍यंग्‍यकार हैं।</p> <p>किंतु यह न समझें कि इन चंद चिट्ठाकारों की पोस्‍टों के आधार पर व्‍यंग्‍य को हिन्‍दी चिट्ठाकारी का अंगी रस घोषित किया जा रहा है, साफ कर दें कि इस मान्‍यता का आधार पोस्‍टों से अधिक टिप्‍पणियॉं हैं। अपरिचित पाठकों को बताया जाए कि ब्‍लॉग यानि बेवलॉग इंटरनेट पर दर्ज ब्‍यौरे हैं जिन्‍हें पोस्‍ट कहा जाता है ये तिथिक्रम में लगे होते हैं। अहम बात यह है कि इन पोस्‍टों पर पाठक द्वारा टिप्‍पणियॉं देने की सुविधा होती है। इससे ही ब्‍लॉगिंग का विशिष्‍ट चरित्र उभरता है। अगर हिन्‍दी के टिप्‍पणीकारों के तेवर पर विचार करें तो पाते हैं कि यह तेवर मूलत: व्‍यंग्‍य का ही है। ऐसी टिप्‍पणियों की संख्‍या बहुतायत में है जो स्‍माइली पर समाप्‍त होती हैं। </p> <p>हिन्‍दी के तकनीकी जुगाड़ों के लिए अगर किसी एक ही ठीए का पता चाहिए हो तो वह है मस्‍टडाउनलोड का हिन्‍दी संस्‍करण (<a href="http://hi.mustdownloads.com/">एचआई डॉट मस्‍टडाउनलोड्स डॉट कॉम</a>)। इस हिन्‍दी बेवसाइट पर रोजमर्रा के काम के नवीन साफ्टवेयरों को मुफ्त डाउनलोड करने की सुविधा उपलब्‍ध है। कुल जमा 181 ऐसे अलग- अलग साफ्टवेयर यहॉं डाउनलोड के लिए उपलब्‍ध हैं। इनमें ब्राउजर, आडियो, वीडियो, फायरवाल, एंटीवायरस, गेम्‍स, फाइल शेयरिंग, बैकअप आदि के भॉंति भॉंति के औजार शामिल हैं। उदाहरण के लिए यदि आप अपने कंप्‍यूटर पर हिन्‍दी न दिखने या न लिख पाने की परेशानी से गुजर रहे हैं तो हिन्‍दी मस्‍टडाउनलोड की हिन्‍दीहेल्‍प आपकी परेशानी को दूर कर सकती है। उल्‍लेखनीय है कि अंगेजी में ऐसी दर्जनों डाउनलोड साईट हैं किंतु हिन्‍दी में भी इस साईट के आ जाने से अब हिन्‍दी प्रयोक्ताओं के लिए भी सुविधा हो गई है।</p> <div class="wlWriterSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:109ff04c-c908-4c74-a182-270dff4ad446" style="padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%b8%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%a4%e0%a4%be" rel="tag">जनसत्ता</a></div> मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-44767858736967177702008-07-15T15:37:00.001+05:302008-07-15T19:07:04.316+05:30कौन सी थी हिन्दी की 100000वीं पोस्ट?<p> </p> <p><a href="http://www.chitthajagat.in/">चिट्ठाजगत</a> अपने मुखपृष्‍ठ पर हिन्‍दी चिट्ठासंसार की कुल पोस्‍टों की संख्‍या भी बताता है। आज ध्‍यान दिया कि एक बड़ा मील का पत्थर चुपचाप पीछे छूट गया है-</p> <p><a href="http://lh5.ggpht.com/neelimasayshi/SHx237iBFJI/AAAAAAAAAfs/EpFQoZlXIsw/s1600-h/100000posts%5B3%5D.jpg"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="178" alt="100000posts" src="http://lh4.ggpht.com/neelimasayshi/SHx25ka1ScI/AAAAAAAAAfw/c2EMQTAJG3c/100000posts_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="668" border="0" /></a>   </p> <p>जी हॉं हिन्‍दी की पोस्‍टों की संख्‍या ने 100000 की संख्‍या को छू लिया है। एक लाख किसी में मायने में एक बड़ी संख्‍या है। उल्‍लेखनीय है कि चूंकि हर ब्‍लॉग पोस्‍ट एक स्‍वतंत्र यूआरए‍ल होती हे तो तकनीकी तौर पर हर पोस्‍ट एक बेवपेज है। इस तरह एकलाख वेबपेज तो ब्‍लॉगजगत के ही हो गए। यदि हमारी <a href="http://linkitmann.blogspot.com/2007/09/1000.html">एक पुरानी पोस्‍ट</a> जो 11 सितम्‍बर 2007 को लिखी गई थी पर ध्‍यान दें तो पता चलता हे कि पिछले 10 महीने में चिट्ठों की संख्‍या साढ़े तीन गुना और पोस्‍टों संख्‍या पॉंच गुना बढ़ गई है। तब का स्‍क्रीनशॉट ये है-</p> <p><a href="http://lh3.ggpht.com/neelimasayshi/SHx27qWMC3I/AAAAAAAAAf0/gQ_AELmDHd8/s1600-h/1000%5B9%5D.jpg"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="115" alt="1000" src="http://lh3.ggpht.com/neelimasayshi/SHx29Ro1cKI/AAAAAAAAAf4/NjbyYx_fLuE/1000_thumb%5B5%5D.jpg?imgmax=800" width="668" border="0" /></a> </p> <p>यहॉं यह स्‍पष्‍ट करना आवश्‍यक है कि ये ऑंकड़े केवल उन 3564 चिट्ठों के हैं जो चिट्ठाजगत में एग्रीगेट हो रहे हैं इनमें वे पोस्‍टें शामिल नहीं है जो किसी कारण चिट्ठाजगत में नहीं है। अत: वास्‍तविक हिन्‍दी पोस्‍ट संख्‍या निश्‍चय ही कहीं अधिक है।</p> <p>एक मजेदार सवाल मेरे मन में ये था कि कौन सी थी 100000वीं पोस्‍ट?</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-45043716520895305092008-05-09T09:30:00.000+05:302008-05-09T09:30:44.865+05:30दैनिक भास्कर में चोखेरबाली<p><a href="http://raviratlami.blogspot.com">रविजी</a> ने दैनिक भास्‍कर की ये कटिंग भेजी है। रविकांत का यह लेख महिला ब्‍लॉगरों के संयुक्‍त प्रयासों पर आधारित है। स्‍थान, शब्‍दसीमा आदि के बंधन को ध्‍यान में रखें तो लेख हमें ठीक लगा। इस मायने में भी कि यह इससे पहले शायद किसी एक ही ब्‍लॉग पर आधारित लेख नहीं छपे थे। रविजी व रविकांत  ओझा का पुन: शुक्रिया।</p> <p> </p> <p><a href="http://lh3.ggpht.com/neelimasayshi/SCM2lwlEASI/AAAAAAAAAW8/6yH6CkHQ7Wk/s1600-h/chokher_bali%5B7%5D.jpg"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="889" alt="chokher_bali" src="http://lh5.ggpht.com/neelimasayshi/SCM2pQlEATI/AAAAAAAAAXE/NhbV4J_IWMU/chokher_bali_thumb%5B5%5D.jpg?imgmax=800" width="635" border="0" /></a></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-70543035978590950722008-04-08T09:19:00.001+05:302008-04-08T09:25:08.392+05:30हिंदी जनपद का ब्लॉगफेमेनिज़्म<p>  { यह पोस्ट  "वूमेन स्ट्डीज़" -पर हाल ही में संपन्न हुई एक संगोष्ठी में मेरे द्वारा पढे गए पर्चे का अंश रूप है !}</p> <p>अंतर्जाल पर हिंदी की आहटें अब सशक्त स्वर का रूप ले रही हैं ! आज हिंदी में लिखे जा रहे ब्लॉगों की मौजूदगी को लेकर न केवल हिंदी के वरन अंग्रेजी के मुख्यधारा मीडिया ने हलचल दिखानी शुरु कर दी है! जनसत्ता , राषट्रीय सहारा , दैनिक भास्कर , दैनिक जागरण ,एन डी टीवी, सी एन एन आई बी एन आदि जगहों पर हिंदी ब्लॉगिंग के उभरते तेवरों की खूब चर्चा हो रही है ! उभरते हुए नेट या साइबर फेमेनिज़्म के नए विमर्श वृत्त में हिंदी ब्लॉगिंग अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हो रही है! यहां स्त्री आंदोलन ,स्त्री विमर्श और स्त्री लेखन की त्रयी बन रही है जिससे हर दिन नए सदस्यों का जुडना हो रहा है ! ब्लॉग का यह जरिया स्त्री संघर्षों को रियल टाइम में घटित कराता है ! संवाद प्रतिसंवाद ,सूचना विचार और अभिव्यक्ति का यह ग्लोबल मंच अब तक का सबसे सनसनीखेज माध्यम है ! यहाँ पर्चा हिंदी ब्लॉगिंग में घटित होने वाले नए फिनामिना ब्लॉगफेमेनिज़्म की पडताल करता है</p> <p>हिंदी की पहली स्त्री ब्लॉगर पद्मजा का ब्लॉग "कही अनकही" 2003 में प्रारंभ हुआ ! तब से अब तक की यह ब्लॉग यात्रा हिंदी पट्टी का अपने तरीके का नेटफेमेनिज्म है ! यह यात्रा कोमलता से तीखे तेवर अख्तियार करने की , भावनाओं के शिखरों से उतरकर कंटीले रपटीले रास्तों पर चलने की यानि पद्मजा से चोखेर बाली बन जाने की कहानी है!ये ब्लॉगराइने हिंदी की परंपरागत पट्टी की न होकर अलग अलग स्थानों पृष्ठभूमियों से हैं ! दिल्ली लखनऊ हरियाणा अमेरिका बम्बई अहमदाबाद लंदन से लिखने वाली ये स्त्री ब्लॉगर डॉ.,इंजीनियर ,वैग्यानिक , सरकारी अफसर ,प्राध्यापक ,शिक्षक ,मीडियाकर्मी हैं कुछ धरेलू भी है!</p> <p> <em>हिंदी ब्लॉगिंग में स्त्री विमर्श के बनते उखडते पैराडाइम में चोखेरबाली का एक कम्युनिटी ब्लॉग के रूप में सामने आना ब</em><em>हुत सकारात्<b>म</b>क धटना है ! इसके सथ जुडॆ 20 सदस्यों में कुछ पुरुष भी हैं ! इस ब्लॉग के जरिये पहली बार साइबर स्पेस में बिखरे फेमेनिज़्म को आयाम मिला है ! पुरुषों द्वारा एप्रोप्रिऎट किए जा रहे स्त्री विमर्श को अब स्त्री ने अपने हाथ में ले लिया है ! न केवल ब्लॉग जगत पर वरन प्रिंट मिइडिया में भी चोखेरबाली की चर्चा निरंतर हो रही है ! </em>तकनीक पर नियंत्रण से शुरुआत के साथ साथ अब स्त्री ब्लॉगर कंटेंट /सामग्री के नियंत्रण की ओर आ रही हैं ।और इसकी प्रखर अभिव्यक्ति “चोखेर बाली “के उदय से सामने आने लगी है । महिलाएँ ब्लॉग के माध्यम से क्या बात करें और किसी विमर्श को कैसे आगे बढाएँ यह वे खुद तय करने लगी है ।</p> <p>1--स्व और अस्मिता की अपनी निजी परिभाषा की तलाश करना !</p> <p>2--अपने अतीत के निजी अनुभवों की स्त्रीवादी आलोचना करना ! </p> <p>3--सामाजिक राजनीतिक जीवन में स्त्री असमानता और हिंसा पर कडी आलोचनात्मक </p> <p>निंदा का सामाजिक मंच तैयार करना !</p> <p>4--मर्दवादी तेवरों को डिकोड करना !</p> <p>5--नेटफेमेनिज्म की सार्थक भूमिका तैयार करना !</p> <p>6--सूचना प्रौद्योगिकी के सबसे सशक्त माध्यमों में पुरुष एकाधिकार को चुनौती देना !</p> <p>7--अपने क्रोध ,असहमति ,मत को रचनात्मक ,सामाजिक मंच प्रदान करना !</p> <p><em></em></p> <p><em>पद्मजा से आंख की किरकिरी बन जाने वाली संघर्षशील स्त्री की आजादी की मुहिम हिंदी ब्लॉग जगत में छिड चुकी है ! हिंदी के इस नए अंदाज ब्लॉगफेमेनिज़्म की संभावनाओं को तलाशा जाना अब जरूरी है !</em></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-58160755902870791462008-02-19T10:31:00.001+05:302008-02-19T10:40:28.997+05:30चोखेर बाली आगंतुक कथा वाया स्टेट काउंटर<div class="wlWriterSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:ec0fb5a4-8bf8-4c76-920e-2c3a39cfa3b2" style="padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a5%8b%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%80%20%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%89%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%b0" rel="tag">चोखेरबाली स्टेटकाउंटर</a></div> <p>सराय से मिले पैसे से हम <a href="http://mohalla.blogspot.com/2008/02/blog-post_17.html" target="_blank">बौद्धि‍क रूप से गुलाम</a> तो खैर हो ही रहे थे :) पर साथ ही साथ एक काम और कर रहे थे (आप चाहें तो मान लें कि ये काम गौण था) यह था शोध करना। इस दौरान आंकड़ों में मतलब आवाजाही वगैरह के, झांकने के काम में कुछ कुछ समझ बनी थी। शायद इसलिए ही <a href="http://bakalamkhud.blogspot.com/" target="_blank">सुजाता</a> ने जो <strong><a href="http://sandoftheeye.blogspot.com/" target="_blank">चोखेरबाली</a></strong> देखती हैं मुझे आदेश  (छोटों के आग्रह भी आदेश होते हैं और बड़ों के आदेश भी सलाह भर:))  दिया कि चोखेरबाली के स्‍टेटकाउंटर आंकड़े देखूं, ये क्‍या कहते हैं...मैंने उस एक्‍सेल फाइल को देखा और कुछ कुछ हैरानी हुई। इससे पहले <a href="http://linkitmann.blogspot.com/2007/07/blog-post_29.html" target="_blank">एग्रीगेटरों के आंकड़ों</a> को देखा था और उन पर पोस्‍ट लिखीं थीं। अपने खुद के ब्‍लॉगों के आंकड़ें देखते हैं और उनपर कोई पोस्‍ट नहीं लिखते :)। पर चोखेरबाली के आंकड़ों में कुछ अलग बात है-</p> <p><a href="http://lh6.google.com/neelimasayshi/R7pisad-1aI/AAAAAAAAAUc/8_0Sjf2URM4/chokherbalistat4"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="295" alt="chokherbalistat" src="http://lh4.google.com/neelimasayshi/R7pit6d-1bI/AAAAAAAAAUk/a4156YnZUMA/chokherbalistat_thumb4" width="633" border="0" /></a> </p> <p>आप कह सकते हैं कि इसमें अलग क्‍या है, आखिर चोखेरबाली एक नया ब्‍लॉग है सिर्फ दस दिन पुराना उस लिहाज से 220 की औसत से पेजलोड कम नहीं है। पर हमारा इशारा उस ओर नहीं है हम कहना चाहते हैं कि पेजलोड और यूनीक विजीटर के बीच का अंतराल देखें।औसत पेजलोड हैं 219 और यूनीक विजीटर औसत 76. इतना अधिक अंतराल सामान्‍यत: एग्रीगेटरों में तो देखा जाता है- मसलन <a href="http://linkitmann.blogspot.com/2007/06/blog-post_21.html" target="_blank">नारद की विवादकालीन आवाजाही</a> में यूनीक विजीटर व पेजलोड के बीच इतना अधिक अंतर था किंतु किसी ब्‍लॉग के लिए ये कुछ सामान्‍य नहीं है।</p> <p>आसान भाषा में इसका क्या मतलब है ? हमारी अनंतिम सी व्‍याख्‍या इस प्रकार है- </p> <ol> <li>सबसे पहली बात तो यह कि सामुदायिक ब्लॉगों और निजी ब्‍लॉगों के ट्रेफिक पैटर्न में अंतर है- अगर <a href="http://mohalla.blogspot.com" target="_blank">मोहल्‍ला</a> और <a href="http://bhadas.blogspot.com/" target="_blank">भड़ास</a> या <a href="http://hindyugm.com/" target="_blank">हिन्‍दयुग्‍म</a> के आंकड़ों से तुलना करें तो और बेहतर तस्‍वीर मिले पर प्रथम दृष्‍टया तो लगता है कि सामुदायिक ब्‍लॉग लोग अलग अपेक्षाओं से पढ़ते हैं। पोस्‍ट संख्‍या का अधिक होना भी एक भूमिका अदा करता है। </li> <li>लेकिन मूल बात जो चोखेरबाली में दिखाई दे रही है वह यह है कि ये वाकई चोखेरबाली है, खटकने वाला ब्‍लॉग...कुछ लोग बार बार वापस आकर देख रहे हैं...हम्‍म क्‍या हुआ...क्‍या हुआ। बाकी जबरदस्‍त इग्नोर मार रहे हैं। </li> <li>क्‍यों झांक रहे हैं बार बार...? मुझे लगता है टिप्‍पणियॉं।। जी संभवत पहली बार ब्‍लॉग में पोस्‍ट से ज्‍यादा आकर्षण टिप्‍पणियों का है, इतना कि टिप्‍पणियॉं ट्रेफिक ला रही हैं।इस ब्‍लॉग पर 'अच्‍छा है' लिखने वाले आमतौर पर नदारद है ( चिट्ठे 'अच्‍छा है' के खिलाफ तो बाकायदा झंडा लिए है, कुछ अच्‍छा नहीं है, हम पतनशीला हैं, बोलो क्‍या कल्‍लोगे) और टिप्‍पणियॉं लंबी हैं विमर्शात्‍मक हैं तल्ख भी हैं। </li> <li>एक अन्‍य अपुष्‍ट बात ये है कि एग्रीगेटरों के स्थान पर चिट्ठासंसार में अब ध्रुवीकरण सामुदायिक ब्‍लॉगों के इर्द गिर्द होने वाला है- इस विषय पर अगली किसी पोस्‍ट में लिखूंगी। </li> </ol> <p>जो बात आंकड़ों से नहीं दिख रही वह यह कि इस चिट्ठे को लेकर ही ऐसी विचित्र प्रतिक्रिया क्‍यों है? पर इस बात को समझने के लिए आंकड़ों को नहीं समाज को देखने की जरूरत है। चिट्ठों में स्त्रियों से 'भाभीजी', 'माताजी' खानपान, हे हे हे टाईप लेखन की उम्‍मीद रही है। चोखेरबाली चुभने के लिए आया है और चुभ रहा है। <br /></p> <p><strong>डिस्‍क्‍लेमर :</strong> <em><font color="#0000ff">कमलजी व आलोकजी शेयरटिप्‍स देते हुए लिख देते हैं कि इस कंपनी में लेखक का निवेश हो सकता है...हम भी कहे देते हैं कि यूँ हमने आंकड़ों का ही विश्‍लेषण किया है पर चोखेरबाली के हम भी सदस्‍य हैं।</font></em></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-70261744533484849002008-02-07T12:14:00.001+05:302008-02-11T15:57:11.121+05:30चंद औरतों (जो हसीन नहीं थीं ) के खुतूत<p>मोहल्ला और भडास सफल हुए ! इन सामुदायिक ब्लॉगों ने ब्लॉग जगत में जिस सामाहिक अवचेतन को लिंकित करने की परंपरा शुरू की थी शायद उसी का नतीजा है स्त्री विमर्शों पर स्त्रियों शुरू किया गया ब्लॉग " <u><font color="#9e5205"><a href="http://sandoftheeye.blogspot.com/" target="_blank">चोखेर बाली</a></font></u> " !मैंने अपने शोध निष्कर्ष में अस्तित्व की छटपटाहट को हिंदी ब्लॉगित जाति का बेसिक फिनामिना घोषित किया था ! शायद इसी विचार को पुष्ट करता है यह नया ब्लॉग !  स्त्री का अपनी अस्मिता की प्राप्ति का संघर्ष और स्त्रीत्व के विचार को आंदोलनगामिता की शरण से लौटा लाने का प्रयास है यह ब्लॉग ! <font color="#004000">इस ब्लॉग की टैग लाइन कहती है</font><font color="#0000ff"> -"इससे पहले कि वे आ के कहें हमसे हमारी ही बात हमारे ही शब्दों में और बन जाएँ मसीहा हमारे , हम आवाज़ अपनी बुलन्द कर लें ,खुद कह दें खुद की बात ये जुर्रत कर लें ...."!</font> इस ब्लॉग में शामिल हैं हिंदी ब्लॉग जगत की स्त्री लेखिकाएं-</p> <ul> <li><a href="http://pratyaksha.blogspot.com/">प्रत्यक्षा</a> </li> <li><a href="http://ghughutibasuti.blogspot.com/">घुघुती बासूती</a> </li> <li><a href="http//beji-viewpoint.blogspot.com/">बेजी का दृष्टिकोण</a> </li> <li><a href="http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/">रचना की कविता और् भाव</a> </li> <li><a href="http://vadsamvad.blogspot.com/">आँख की किरकिरी</a> </li> </ul> <p>'चोखेर बाली' को बने सिर्फ कुछ ही घंटे हुए हैं पर हिंदी चिट्ठाजगत में इसकी चर्चा पर सुगबुगाहटें होने लगीं हैं ! इस ब्लॉग को लेकर आशा उम्मीदों कामनाओं का माहौल नहीं बना वरन खते हैं आप लोंगों में कितना दम है -सरीखी तमाशबीनी पिकनिकी दृष्टि से इसका स्वागत किया जा रहा है ! आज हमें बहुत दिन पहले उठाए गए सवाल -"<a href="http://linkitmann.blogspot.com/search?q=%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A1%E0%A5%87" target="_blank">ब्लॉग जगत में महिलाऎ इतनी कम क्यों हैं</a> "-का जवाब मिलने लगा है ! दरअसल ब्लॉग जहत का ढांचा भी हमारी संरचना का एक हिस्सा भर ही है ! इसलिए यहां स्त्री विमर्श और संघर्ष के मुद्दों का उठना-गिरना -गिरा दिया जाना -हाइजैक कर दिया जाना -कुतर्की, वेल्‍ली और छुट्टी महिलाओं का जमावडा करार दे दिया जाना ---जैसी अनेक बातों का होना बहुत सहज सी प्रतिक्रिया माना जाना चाहिए ! जब प्रत्यक्षा कहती हैं कि अब ब्लॉग लिख रही औरतों से <a href="http://pratyaksha.blogspot.com/search?q=%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%A8+%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE+%E0%A4%B9%E0%A5%88/" target="_blank">यह सवाल मत पूछिएगा</a> कि आप ब्लॉग लिखती हैं तो खाना कौन बनाता है ? -तो हमारे सामने ब्लॉग जगत का  स्त्री के प्रति असंवेदनशील नजरिया डीकोड हुए बिना नहीं नहीं रहता ! जब नोटपैड  " चोखेर बाली " का <a href="http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/02/blog-post_7988.html" target="_blank">मायना</a> बताती हैं तो हमारे सामने अपनी जगह के लिए बराबरी से संघर्ष करती और मर्दवादी दृष्टिकोणों के सामने दो टूक जवाबतलब करती औरत का वजूद आ खडा होता है !नोटपैड लिखती हैं-</p> <p>" <font color="#0000ff">आज भी समाज जहाँ ,जिस रूप में उपस्थित है - स्त्री किसी न किसी रूप में उसकी आँखों को निरंतर खटकती है जब वह अपनी ख्वाहिशों को अभिव्यक्त करती है ; जब जब वह अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाह्ती है , जब जब वह लीक से हटती है । जब तक धूल पाँवों के नीचे है स्तुत्य है , जब उडने लगे , आँधी बन जाए ,आँख में गिर जाए तो बेचैन करती है । उसे आँख से निकाल बाहर् करना चाहता है आदमी । <br />दूसरी बात शास्त्री जी के बहाने बाकि पुरुष ब्लॉगरों से । वे कल रचना की पोस्ट देखते हुए यहाँ आये । अच्छा लगा । आते रहें ।उनकी टिप्पणी है - <br /><strong><em>Shastri said</em>... </strong> <br />यह चिट्ठा आज ही मेरी नजर में आया. यहां हमारे चिट्ठालोक के स्त्रीरत्न कई बातें कहने की कोशिश कर रही हैं. नियमित रूप से पढूंगा. देखते हैं कि कुल मिला कर <em><strong>आप लोग </strong></em>क्या कहना चाहते हैं."</font></p> <p><font color="#0000ff">चोखेर</font> बाली आंख की किरकिरी बन गई आफतों का ब्लॉग है ? या फिर यह हमारे समाज के सबसे अ संवेदनशील तबके की स्त्री के लिए असंवेदनशीलता को इंगित करने की मजाल रखने वाला जरिया है ! यह ब्लॉग औरत की बेमतलब की कुंठाओं और दर्द से फटी बेसुरी आवाज है ? या कि कुछ नादान ,सिरफिरी मर्दाना बेशर्म औरतों की फालतू टाइम को काटने की मंशा से आ जुटी हैं और फालतू का शोरशराबा करती फिर रही हैं ? ..........सवाल कई उठ रहे हैं , उठेंगें भी ! आप साफ साफ नहीं कह रहे होंगे सराहना भी कर रहे होंगें ,तब भी सदियों का सीखा हुआ मर्दवाद सिर उठाएगा ही ! आप कुछ ऎसा कह जाऎंगे कि उसकी सूक्ष्म अंडरटोन आपके मन को नग्न कर जाएगी ! आप बिफर उठेंगे ! आप कहेंगे आपका मन साफ था , वहां औरत के लिए इज्जत थी ! और फिर आप निष्कर्ष देंगे सूत्र वाक्य कहेंगे -औरतों के बारे में अंतिम फतवा आप ही देंगे ......!  </p> <p>तो क्या चोखेर बाली का अंजाम यही होगा ! पागलपन और असंतोष की शिकार आधी आबादी, बेदखली की <a href="http://bedakhalidiary.blogspot.com/" target="_blank">डायरी</a> लिखने वाली, <a href="http://vadsamvad.blogspot.com//" target="_blank">आंख की किरकिरी</a> ,<a href="http://pratyaksha.blogspot.com/" target="_blank">प्रत्यक्ष को प्रमाण न मानने की जिद ठाने</a> , अंतहीन आकाश में अस्तित्वहीन <a href="http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/02/blog-post_05.html" target="_blank">चिडिया की चहचहाहट</a> को दर्ज करती औरत --क्या चोखेर बाली की आजादी मुमकिन हो पाएगी ?</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-55177035183337306562008-01-09T12:33:00.001+05:302008-01-09T12:33:18.124+05:30हिंदी ब्लागिंग के भड़ास काल के बाद के बारे में आपने सोचा है?<p> </p> <p><a href="http://bhadas.blogspot.com/2008/01/blog-post_05.html">हिंदी ब्लागिंग के भड़ास काल के बाद के बारे में आपने सोचा है?</a></p> <blockquote> <p>                                                               यशवंत</p> </blockquote> <p>यशवंत का यह लेख उनके चिट्ठे पर आया था पर जैसा कि भड़ास के लेखों के साथ अकसर हो जाता हे कि लगातार नए लेखों के आते रहने के कारण यह जलद ही आर्काइव में दब गया। लेख अहम लगा इसलिए पुन: प्रस्‍तुत है, देखें-</p> <p><strong>ब्लागिंग का भड़ास काल</strong> <br />------------------- <br />जिस तेजी से मीडिया के भाई बंधु ब्लाग बना रहे हैं और अपनी अपनी भड़ास को अपने अपने ब्लाग पर उजागर कर रहे हैं, इसी तरह जो गैर मीडिया ब्लागर हैं वे जिस तरह अपने लेखन में अपने अनुभवों, अपनी पृष्ठभूमिक, अपनी सोच के आधार पर खुली व तीखी बातें साहस के साथ कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि हिंदी ब्लागिंग के इस शैशव दौर को भड़ास काल <em>(यहां भड़ास शब्द का इस्तेमाल भड़ास ब्लाग के चलते नहीं बल्कि, ब्लागिंग के ट्रेंड को समझने के लिए स्वतंत्र शब्द के बतौर इस्तेमाल किया जा रहा है)</em> के नाम से याद किया जाएगा। ब्लागर वो कह रहे हैं जो उनके दिल में है, जो उनके दिमाग में है, जो उनके अनुभवों से उपजी है। जो उनकी दिनचर्या में घटी है। जो उनके सामने, साइड या पड़ोस में है। जो चर्चा में है। बस, आन किया कंप्यूटर और लिख दी अपनी बात। <br />आइए कुछ उदाहरणों पर बात करें... <br /><em></em> <blockquote>--प्रसिद्ध पत्रकार और संपादक बालेंदु दधीचि का अपना एक ब्लाग है जिसमें वो मीडिया की पोल खोलते हैं। अभी जो उनकी लैटेस्ट पोस्ट है उसमें एक अखबार में तस्वीर किसी व्यक्ति की और कैप्शन व स्टोरी किसी की प्रकाशित किए जाने की गलती का खुलासा किया। <br />--ब्लागिंग में हाल फिलहाल एकाएक चर्चित हुए पद्मनाभ मिश्र का ब्लाग है मेरा बकवास और उन्होंने इस ब्लाग में अपनी भड़ास कुछ यूं निकाली की उन्होंने प्रभु चावला की बेटी की छेड़खानी किए जाने संबंधी बात कहकर मीडिया के सनसनीखेज व हवा-हवाई वाले वर्तमान ट्रेंड को उजागर किया। बाद में उनकी इस रचना को लेकर कई ब्लागरों ने अपने अपने तरीके से भड़ास निकाली। <br />--कई मीडियाकर्मी ऐसे हैं जो लिखना तो खूब चाहते हैं पर उन्हें परंपरागत मीडिया में उतना स्पेस नहीं मिल पाता सो वो अपनी भड़ास कई ब्लागों पर निकालते रहते हैं। इनके जरिए वे समकालीन समाज की विसंगतियों, ट्रेंड, हलचलों को उजागर कर भविष्य के लिहाज से दशा-दिशा की कल्पना करते हैं। <br />--कुछ मीडियाकर्मी ऐसे हैं जो अपने हेक्टिक रुटीन में जो कुछ आफिसियल करते हैं, उसके बाद अनआफिसियल इतना कुछ मन में भरा रहता है कि उसे अपने ब्लाग पर बढ़िया तरीके से पब्लिश करते हैं। <br />--ढेर सारे गैर-मीडियाकर्मी ब्लागर अपनी पृष्ठभूमि और जेंडर के हिसाब से अपने अनुभवों को शब्दों में डालकर अपने ब्लाग पर पोस्ट डालते रहते हैं। इनमें महिला ब्लागरों को लीजिए तो वो महिलाओं से जुड़ी जीवन स्थितियों को लगातार अपने ब्लाग पर फोकस में रखती हैं और इस मर्दवादी समाज में महिलाओं के आगे बढ़ने में आने वाली दिक्कतों को उजागर करती रहती हैं। कुल मिलाकर अपनी भड़ास को वो एक मंच प्रदान करने में सफल होती हैं। </blockquote> </p> <br />आप ब्लागिंग के वर्तमान ट्रेंड को देखेंगे तो इसे लंबे समय से दबी छिपी भावनाओँ, सोच व अभिव्यक्ति को ग्लोबल प्लेटफार्म मिलते ही इसके एकदम से निकल पड़ने का दौर कह सकते हैं। मतलब, भड़ास काल। <br /><strong>ब्लागर पोजीशन लें, लाइन-लेंथ तय करें</strong> <br />------------------ <br />लेकिन यह भड़ास काल लंबा नहीं चल सकता। आखिर जल्द ही वो दौर आएगा जब सभी ब्लागरों को अपनी अपनी लाइन ले लेनी होगी वरना उनके विलुप्त हो जाने या अलगाव में पड़ जाने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। और कुछ ब्लागरों ने बेहद व्यवस्थित तरीके से इस काम को करना भी शुरू कर दिया है। उदाहरण के तौर पर...कमल शर्मा का वाह मनी नामक ब्लाग सिर्फ और सिर्फ आर्थिक मुद्दों व निजी लाभ से जुड़े विषयों को उठाता है। इस ब्लाग का अपना एक पाठक वर्ग है। इस ब्लाग पर न तो भड़ास होती है और न सनसनी। यहां जानकारियां दी जाती हैं जिससे आपका भला हो। इसी तरह मोहल्ला ब्लाग खुद को एक ऐसे लोकतांत्रिक वामपंथी रुझान वाले व साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक व राजनीतिक सवालों के जवाब तलाशने वाले ब्लाग के रूप में विकसित कर रहा है जिसका अपना एक पाठक वर्ग है। इसी तरह आलोक पुराणिक अपने ब्लाग को व्यंग्य के ब्लाग के रूप में डेवलप करने में सफल रहे हैं और उनका अपना एक पाठक वर्ग है। जिसे व्यंग्य पढ़ना होगा वह आलोक जी के यहां जाएगा। ब्लागों से संबंधित रपट पढ़नी है तो आपको नीलिमा के ब्लाग पर जाना होगा। ऐसे ढेरों नाम लिये जा सकते हैं लेकिन मैं यहां केवल उदाहरण देने के लिए बात कर रहा हूं। इसमें आप भड़ास ब्लाग का भी जिक्र कर सकते हैं जो हिंदी मीडियाकर्मियों का कम्युनिटी ब्लाग है और हिंदी मीडियाकर्मियों का अनआफिसियल एक्सप्रेशन है। इसका अपना एक पाठक वर्ग है। <br />ब्लागिंग के भड़ास काल के रोमांच में बंधे हिंदी ब्लागरों को जितनी जल्दी हो अपनी पोजीशन ले लेनी चाहिए। उन्हें खुद को स्पेशलाइज करना चाहिए। अगर कोई बकवास निकाल रहा है तो वह बकवास कब तक निकाल पायेगा, उसे सोचना चाहिए। अगर बकवास निकालने के फील्ड में स्पेशलाइज करने का इरादा है तो फिर भविष्य उज्जवल है। <br />सवाल है कि इससे क्या होगा? <br />आज जिस तरह किसी अच्छे से अच्छा या सनसनीखेज से सनसनीखेज ब्लाग पोस्ट के पाठक अधिकतम 300 से 500 हो पाते हैं, उससे हिंदी ब्लागिंग का भला नहीं होने वाला। यह आंकड़ा निराश करता है। किसी भी ब्लाग पर रोज आने वालों यूजर्स व पाठकों की संख्या दस हजार से लेकर पचास हजार तक और फिर एक लाख तक होनी चाहिए। तभी आप ब्लागिंग को सफल कर सकते हैं। तभी हिंदी ब्लागिंग को बचाया जा सकता है वरना इसे नानसीरियस तरीके से छोटी मोटी तकनीकी चीज के रूप में ही लिया जाता रहेगा। <br /><strong>ब्लाग आधुनिकतम मीडिया माध्यम</strong> <br />------------------ <br />ब्लागिंग के भविष्य को लेकर कई बिंब उभरते हैं। पहला तो यह कि यह सबसे आधुनिकतम मीडिया माध्यम बनेगा। वो जो खबरें दबा दी जाती थीं, वो जो खबरें न दिखाई जाती थीं, वो जो बातें न सुनाई जाती थीं, उन सभी को ब्लाग छापेगा, दिखाएगा और सुनाएगा। तो यह मीडिया को वो नया माध्यम है जो प्रिंट और टीवी को चिकोटी काटेगा। प्रिंट और टीवी के मठाधीश जो खबर बनाने व दिखाने में खेल करते हैं, पत्रकारों की नियुक्ति व हटाने में राजनीति करते हैं, ऐसे सभी मठाधीशों पर भी खबरें बनेंगी और छपेंगी, ब्लाग माध्यमों पर। पद्मनाभ मिश्र का मेरा बकवास इसी ट्रेंड को दिखाता है। भड़ास ब्लाग पर डाली जाने वाली कई रचनाएं इसी प्रवृत्ति को बयान करती हैं। जो चीज आफलाइन मीडिया माध्यमों मसलन टीवी और अखबार और मैग्जीन में है, उसे आप ब्लाग पर लायेंगे तो वो उतना हिट न होगा क्योंकि उन माध्यमों ने उसी को आनलाइन भी बनाया हुआ है। अगर एक अखबार है तो उसकी एक आनलाइन साइट भी है। खबरें अखबार में भी हैं और खबरें उसकी आनलाइन साइट पर भी हैं। तो आप इसी तरह का ब्लाग बना लेंगे, न्यूज या खबरों से जुड़ा, तो वो नहीं चलने वाला। <br /><strong>हिंदी ब्लागिंग से बनेंगी नई सक्सेस स्टोरीज</strong> <br />----------------------- <br />हिंदी ब्लागिंग में वो चीज सफल होगी जो न तो अब तक आनलाइन में रही है और न ही आफलाइन में। मजेदार ये है कि चूंकि हिंदी ब्लागिंग के शुरु होने का दौर ही आनलाइन में हिंदी वेबसाइट्स के शुरू होने का दौर है तो हर ब्लागर को खुद के ब्गाग के साथ साथ हिंदी में आनलाइन मार्केट में खुद को स्थापित करने व इससे रेवेन्यू जनरेट करने के बारे में सोचना व प्लान करना चाहिए। जैसे, मेरा खुद का एक सपना है कि जिस दिन भड़ास ब्लाग के दस हजार सदस्य हो जायेंगे उस दिन हम लोग वाकई एक रेवेन्यू जनरेशन माडल को शुरू करेंगे और उसका लाभ सभी सदस्यों को मिलेग। यह कैसे और किस तरह होगा, इस पर लगातार सोचा जा रहा है। ऐसे ही ढेरों काम हैं, जो अभी किए नहीं गए हैं और जो करेगा वो जीतेगा। जीतेगा इसलिए क्योंकि दरअसल अभी सामने कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं है इसलिए अखाड़े में आप उतरेंगे तो आपको ही विजेता घोषित किया जाएगा। <br />बात हो रही थी हिंदी ब्लागिंग की। तो साथियों, ब्लागिंग के इस भड़ास काल के, मेरे हिसाब से इस साल भी चलते रहने की उम्मीद है और अगले साल भी चलेगा। और इन दो सालों में ब्लागरों की संख्या आज की संख्या से पांच गुना ज्यादा हो जाएगी। और तब हर अच्छी पोस्ट को पढ़ने वालों की संख्या हजार से पांच हजार तक पहुंच सकती है। इसमें थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है। इन दो वर्षों में कई ब्लाग खुद को बेहद प्रोफेशनली मैनेज करेंगे और बड़ा नाम बनेंगे। साथ में दाम भी पाएंगे। <br />तो आइए, हिंदी ब्लागिंग के अगुवा साथियों, भड़ास काल से निकलने के लिए खुद को स्पेशलाइज और आर्गेनाइज करें। इसके जरिए हम खुद का और खुद के ब्लाग का काम, आनलाइन माध्यम में हिंदी भाषा और हिंदी वालों का ज्यादा भला करेंगे। अगर हम ऐसा करने में असफल रहे तो बड़ी कंपनियां थोड़े देर से ही आएंगी और हर उन आइडियाज पर जिस पर काम करना बाकी है, काम शुरू कर देंगी। फिर हम हिंदी वाले सदा की तरह उनके एक यूजर या रीडर बनकर रह जाएंगे, मैदान से बाहर, हाशिए पर खड़ा होकर ताली बजाते हुए तमाशे देखने वाले। और खेल खत्म होने पर कुछ लुटा पिटा सा एहसास करते हुए घर जाने वाले। मेरे खयाल से आनलाइन में हिंदी कें मार्केट पर हिंदी ब्लागरों की प्रोफेशनल निगाह होनी चाहिए और आगे जो ब्लागर मीट हों उनमें एक दूसरी की प्रशंसा या निंदा की बजाय एक दूसरे के साथ मिलकर आनलाइन हिंदी मार्केट को ट्रैप करने की रणनीति पर बातचीत होनी चाहिए। एक तरह के गुणधर्म वाले ब्लागरों को मिलकर अपने ब्लाग संचालित करने के बारे में सोचना चाहिए। <br />और आज नहीं तो कल ब्लागरों को करना होगा। आज ये काम आप अपनी दूरदर्शी निगाह के कारण कर सकते हैं, कल ये काम आपको मजबूरी में करना होगा क्योंकि आपको खाने के लिए बड़े शिकारी सामने मुंह बाये दिखेंगे तो आपको डर के मारे आपसी यूनिटी कायम करनी होगी। <br />मुझे लगता है इस मुद्दे पर हम सभी ब्लागरों को विचार विमर्श करते रहना चाहिए। <br />इस सीरियस भड़ास को सीरियस तरीके से लेने की जरूरत है...:) <p> ‍ </p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-12472030215099098152008-01-08T16:16:00.001+05:302008-01-08T16:16:11.693+05:30चिट्ठाई हिंदी- उच्छवास से मालमत्ता<p>हिंदी- चिट्ठाकारिता का जो छोटा -सा इतिहास आख्‍यान है वह हिंदी पट्टी की राजनीति, राजभाषा की सरकार नीति तथा हिंदीखोरों, हिंदीबाजों की गिद्धनीति से मुक्‍त है- इससे वह पतित - पावन तो नहीं हो जाता लेकिन हिंदी -लेखन की बाकी विधाओं से विशिष्‍ट अवश्‍य हो जाता है। यहॉं की हिंदी - अंग्रेजी विरोध पर नहीं खड़ी है- अधिकांश चिट्ठाकार अंगेजी में लिखने में समर्थ हैं कुछ अंगेजी में चिट्ठाकारी करते भी हैं, सुनील दीपक तो अंगेजी, हिंदी के साथ साथ इतालवी में ब्‍लॉग लिखते हैं। इसी तरह शुएब उर्दू में चिट्ठाकारी करते हुए हिंदी चिट्ठाकार हैं, छत्‍तीसगढ़ी, हरियाणवी, मैथिली की चिट्ठाकारी के साथ - साथ हिंदी चिट्ठाकारी करने वाले चिट्ठाकार भी हैं। दूसरी खास बात संस्‍कृत के पाश से मुक्ति है, एक स्‍वयंसेवक चिट्ठे ‘लोकमंच’ को छोड़ दिया जाए तो कोई ‘देववाणी’ की आराधना के पचड़े में नहीं पड़ता। यह विविधता और आजादी हिंदी चिट्ठाकारी का अपना मौलिक मुहावरा गढ़ती है। इसमें गाली है, सुहाली है, नया है, पुराना है, फिल्‍मी है, जिगरी है, गली है, मोहल्‍ला है, इन सबकी पंचमेल खिचड़ी ही नहीं है वरन एकदम नए व्‍यंजन हैं। चिट्ठाकार भाषाई मानकों के फेर में नहीं पड़ता वरन उसे निरंतर प्रयोग से मांजता और निथारता है।</p> <p>भाषा के स्‍तर पर जिस विधा को चिट्ठाकारी के सबसे निकट मान सकते हैं वह शायद नुक्‍कड़ नाटक है। व्‍यंग्‍य, नुक्‍कड़ता, बेबाकी, अनौपचारिकता, भदेसपन, ठेठ स्‍थानीयता ये सब कुछ नुककड़ नाटकों की ही तरह चिट्ठों में भी मिलता है। अंतर बस इतना है कि ये नुक्‍कड़ और गलियॉं चूंकि देश ही नहीं विदेश तक में, अलग-अलग टाईम जोन में, अलग – अलग स्‍पेस में मौजूद हैं इसलिए इनमें स्‍थानीयता का रंग ग्‍लोबल है। प्रमोद का एक वाक्‍य-</p> <blockquote> <p><i>भावों के ऐसे उच्‍छावास के बाद साहित्‍य और सिनेमा दोनों में प्रेमी-प्रेमिका</i><i> </i><i>एक-दूसरे से लिपट-चिपट जाते हैं</i><i>, </i><i>गले में बांह डालकर फुसफुसाते हुए दूसरे बड़े</i><i> </i><i>कारनामों की पूर्व पीठिका बनाने लगते हैं. मैं भी उसी परंपरा में स्‍नान करने को</i><i> </i><i>उद्धत हो रहा था</i><i>, </i><i>लेकिन परिस्थिति</i><i>, </i><i>साली</i><i>, </i><i>अनुकूल नहीं हो रही थी! नायिका तीन से छै</i><i> </i><i>कदम की दूरी पर चली गई और नौ साल का एक बेलग्रादी तस्‍कर लौंडा हमारे बीच अपने</i><i> </i><i>मर्चेंडाइस का मिनी स्‍टॉल लगाकर प्रेमबाधा बनने लगा. इसके पहले कि मैं हरकत में</i><i> </i><i>आऊं</i><i>, </i><i>रेहाना को वही रिझा रहा था. चीनी सिगरेट</i><i>, </i><i>सैंडल और ब्‍लॉग रिट्रीव करने के</i><i> </i><i>सॉफ्टवेयर दिखा रहा था. रेहाना ने गहरी उदासी से एक नज़र उसके माल-मत्‍ते पर डाली</i><i>, </i><i>फिर लौंडे के भूरे बालों में हाथ फेरकर नज़रें फेर लीं. मगर लौंडा उसमें संभावित</i><i> </i><i>ग्राहक देखकर चिपका रहा</i><i>, </i><i>तेजी से माल का रेट डाऊन करके मोलभाव करने लगा</i> <a href="#_edn1" name="_ednref1">[i]</a></p> </blockquote> <p>उच्‍छवास से रिट्रीव, माल मत्‍ता सब एक ही पेराग्राफ में। कोई संक्रमण पद नहीं। या स्‍पैक्‍ट्रम के दूसरे छोर पर आशीष की भाषा-</p> <blockquote> <p><i>अइयो अम चेन्नई से आशीष आज चिठठा चर्चा कर रहा है जे। अमारा हिन्दी वोतना अच्छा नई </i><i>है जे। वो तो अम अमना मेल देख रहा था जे , </i><i>फुरसतिया जे अमको बोला कि तुम काल का </i><i>चिठ्ठा चर्चा करना। अम अब बचके किदर जाता। एक बार पहले बी उनने अमको पकड़ा था जे,</i><i>अम </i><i>उस दिन बाम्बे बाग गया था। इस बार अमारे पास कोई चान्स नई था जे और अम ये चिठ्ठा </i><i>चार्चा कर रहा है जे।<a href="#_edn2" name="_ednref2"><b>[ii]</b></a> <br /></i></p> </blockquote> <p>पर इसका आशय यह कतई नहीं कि यह अनगढ़पन हिंदी चिट्ठाकारी की विवशता है, यह तो इस विधा का अपना तेवर है जो दुनिया की हर भाषा की चिट्ठाकारी में दिखाई देता है। हिंदी ने शब्‍द व रचना के स्‍तर पर एक स्‍वतंत्र चिट्ठाई भाषा रची है। जो फुरसतिया, समीर, सुनील दीपक, तरूण, मसिजीवी, नोटपैड, प्रमोद , धुरविरोधी में साफ दिखाई देती है। फुरसतिया के चिटृठे से एक बानगी- </p> <blockquote> <p><i>हमें लिखना है फटे जूते की व्यथा-कथा। व्यथा-कथा मतलब रोना-गाना। आंसू पीते हुये</i><i> </i><i>हिचकियां लेते हुये अपनी रामकहानी कहना। हाय हम इत्ते खबसूरत थे लोग हम पर फिदा</i><i> </i><i>रहते थे और अब देखो चलते-चलते हमारा मुंह भारतीय बल्लेबाजी की दरार का कैसा खुल गया</i><i> </i><i>है। लुटने पिटने का अहसास</i><i>, </i><i>ठोकरों के दर्द की दास्तान बताना। मतलब अपने दर्द को</i><i> </i><i>गौरवान्वित करना। मुक्तिबोध के शब्दों में</i><i> </i><b><i>दुखों के दागों को तमगों</i></b><b><i> </i></b><b><i>सा</i></b><i> </i><i>पहनने का प्रयास करना। यह रुदाली तो हमसे न सधेगी भाई।</i><i></i></p> <p><i>फटा हुआ जूता मतलब चला हुआ जूता। जो जूता चलेगा वही फटेगा। शो केस में रखे जूते</i><i> </i><i>बेकार हो जाते हैं </i><i>, </i><i>सड़ सकते हैं लेकिन फटते नहीं। फटने के लिये चलना जरूरी होता</i><i> </i><i>है। फटेगा वही जिसने राहों के संघर्ष झेले होंगे।</i><i> </i><a href="#_edn3" name="_ednref3"><i><b>[iii]</b></i></a><i></i></p> </blockquote> <p>वैसे इसका अर्थ यह कतई नहीं कि चिट्ठाकारी की भाषा की विकास - यात्रा में सजगता नदारद है। सजगतावादी भी हैं और अक्‍सर आगाह करते रहते , प्रियंकर की मसिजीवी पर टिप्‍पणी पर गौर करें- </p> <blockquote> <p><i>आपके लिये एक और सूचना है कि </i><i>'</i><i>गद्य</i><i>' </i><i>पुल्लिंग है अतः आपकी टिप्पणी में गद्य के पहले</i><i> </i><i>इकारांत विशेषण </i><i>'</i><i>कवितामयी</i><i>' </i><i>और </i><i>'</i><i>विषादमयी</i><i>' </i><i>थोड़े अटपटे लग रहे हैं . आशा है सुधार</i><i> </i><i>करेंगे. आप हिंदी के पीएच.डी. हैं इसलिए लिख रहा हूं वरना ऐसे सौ दोष</i><i> </i><i>माफ़.</i><i> <br /></i><i>हर तरह की भाषा का अपना व्यवहार क्षेत्र (डोमेन)होता है . चाहे वह</i><i> </i><i>अखाड़े की भाषा हो</i><i>,</i><i>कारखाने की भाषा हो</i><i>,</i><i>कार्यालय की भाषा हो या फिर साहित्य की भाषा .</i><i> </i><i>आतंकवादियों के प्रति क्रोध को </i><i>'</i><i>ठुमरी</i><i>' </i><i>और </i><i>'</i><i>निर्गुण</i><i>' </i><i>के माध्यम से अभिव्यक्त करना</i><i> </i><i>अभी हिंदी जगत में नया है इसलिये थोड़ा अटपटा लगा . वरना भैये जिसके जो जी में आये</i><i> </i><i>करे अपन को क्या . हां!</i><i>, </i><i>लगता है अब इस नई विधा के जन्म पर सोहर गाने के दिन आ गये</i><i> </i><i>हैं.<a href="#_edn4" name="_ednref4"><b>[iv]</b></a></i><i> </i><i></i></p> </blockquote> <p>यह सजगता भले ही चिट्ठाकारी में सर्वत्र विद्यमान तत्‍व नहीं है किंतु जैसे - जैसे तकनीक- विशेषज्ञ चिट्ठाकारों के साथ नए चिट्ठाकार जुडने लगे हैं, भाषा को लेकर सजगता बढ़ी है ! ब्‍लॉगिंग एक जनसंचार माध्‍यम है और टी.आर.पी. की तर्ज पर हिट यहॉं की मुद्रा है इसलिए बोझिल भाषा यहॉं नहीं सधेगी।</p> <p><b>चिट्ठाकारी का भविष्‍य</b></p> <p>किसी भी नए संचार माध्‍यम का स्‍वागत पहले कौतुहल फिर नकार से होता है और जल्‍द ही उसकी जगह भविष्‍य को लेकर खड़े किए गए प्रश्‍नचिह्न ले लेते हैं। यही चिट्ठाकारी के साथ भी हो रहा है। इसके भविष्‍य को लेकर अटकलबाजी व गंभीर मनन दोनों जारी हैं। एक बात जिसे लेकर आम सहमति है वह है मात्रात्‍मक विस्‍तार- यह् आसन्‍न भविष्‍य है। आज हम 700 चिट्ठों की बात कर रहे हैं कल 7000 की करेंगे और परसों...। आज एक नारद है कल बीस होंगे। लेकिन प्रथमत: और अंतत: यह व्‍यक्तिगत ई-प्रकाशन ही रहेगा, इसके साथ ध्‍वनि (पॉडक‍सस्टिंग) और दृश्‍य ( यू ट्यूब) और अधिक जुड़ेंगे पर पठ्य का महत्‍व बना रहेगा। लेकिन जिस बात को समझना असवश्‍यक है वह यह कि मात्रात्‍मक विस्‍तार और प्रौद्योगिकीय प्रगति इसमें गुणात्‍मक बदलाव नहीं लाएगी। सौभाग्‍य से यह आम हिंदीजन का ही माध्‍यम रहेगा और इसकी विशेषता-- अनगढ़पन, साधारणता, जुड़ाव और पहचान से ही चिट्ठाकारी परिभाषित होती रहेगी। फ़ुरसतिया ने चिट्ठाकारी के भविष्‍य पर अपनी राय व्‍यक्‍त करते हुए कहा- </p> <blockquote> <p><i>विश्‍वविद्यालयी एप्रोच से चिटठाकारी का भला संभव नहीं</i><i>, </i><i>ये अपने अनुभव से कह रहा</i><i> </i><i>हूँ मान लीजिए। बाकी रही आचार संहिता की बात तो कितनी भी बना लो ये तो नूह्हें</i><i> </i><i>चाल्‍लेगी।</i><i> </i><i>आगे भविष्य क्या तय होगा उसका मुझे नहीं पता लेकिन फिलहाल अभी यह</i><i> </i><i>लगता है कि अनगड़ता </i><i>,</i><i>अनौपचारिकता और अल्हड़ता ब्लागिंग के खास पहलू हैं। एनडीटीवी</i><i> </i><i>वाले साथी अभी ब्लाग की नब्ज नहीं समझ पाये हैं। वे ज्ञानपीड़ित हैं और कुछ-कुछ</i><i> '</i><i>मोहल्ला मंडूक</i><i>' </i><i>भी।</i><i> <br /></i><i>यह आप समझ लें कि कोई भी नयी दुनिया बनेगी लेकिन ब्लागिंग</i><i> </i><i>की ताकत</i><i>, </i><i>आकर्षण और सौंदर्य इसका अनगड़पन और अनौपचारिक गर्मजोशी रहेगी। ऐसा मैं अपने</i><i> </i><i>दो साल के अनुभव से कहता हूं। मेरे पास तमाम कालजयी साहित्य अनपढ़ा है लेकिन उसको</i><i> </i><i>पढ़ना स्थगित करके मैं यहां तमाम ब्लागर की उन रचनाऒं को पढ़ने के लिये लपकता हूं</i><i> </i><i>जिनमें तमाम वर्तनी की भी अशुद्धियां हैं</i><i>, </i><i>भाव भी ऐं-वैं टाइप हों शायद लेकिन जुड़ाव</i><i> </i><i>का एहसास सब कुछ पढ़वाता है। यह अहसास ब्लागिंग की सबसे बड़ी ताकत है। यह मेरा मानना</i><i> </i><i>है। अगर बहुमत इसे नकारता भी है तब भी मैं अपने इस विश्वास के साथ ही चिट्ठाजगत से</i><i> </i><i>जुड़ा रहना चाहूंगा! :)</i><i> <a href="#_edn5" name="_ednref5"><b>[v]</b></a></i></p> </blockquote> <p><i></i></p> <p><b>आमीन।।।</b></p> <hr align="left" width="33%" size="1" /> <p><a href="#_ednref1" name="_edn1">[i]</a> प्रमोद सिंह, <a href="http://azdak.blogspot.com/2007/04/blog-post_23.html">ज़माने की बेवफ़ाइयां और कुली नंबर वन की एंट्री</a> <a href="http://azdak.blogspot.com/2007/04/blog-post_23.html">http://azdak.blogspot.com/2007/04/blog-post_23.html</a></p> <p><a href="#_ednref2" name="_edn2">[ii]</a> आशीष, <a href="http://chitthacharcha.blogspot.com/2007/03/blog-post_18.html">ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर</a>, <a href="http://chitthacharcha.blogspot.com/2007/03/blog-post_18.html">http://chitthacharcha.blogspot.com/2007/03/blog-post_18.html</a></p> <p><a href="#_ednref3" name="_edn3">[iii]</a> फुरसतिया, <a href="http://hindini.com/fursatiya/?p=265">जूते का चरित्र साम्यवादी होता है</a>, http://hindini.com/fursatiya/?p=265</p> <p><a href="#_ednref4" name="_edn4">[iv]</a> प्रियंकर, <a href="http://vadsamvad.blogspot.com/2007/02/blog-post_19.html">का करूं सजनी..... आए ना बालम.........</a> ]http://vadsamvad.blogspot.com/2007/02/blog-post_19.html</p> <p><a href="#_ednref5" name="_edn5">[v]</a> फुरसतिया, <a name="8334120419735525958"></a><a href="http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_13.html">आइए रचें हिंदी का मौलिक चिट्ठाशास्‍त्र</a>, http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_13.html</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-29224194152453290952008-01-08T14:27:00.001+05:302008-01-08T14:35:59.224+05:30ये अनाम, बेनामों की दुनिया है...नामवरों की नहीं<p>चिट्ठाकारी की प्रकृति, लेखन में एक बहुत ही रोचक स्थिति उत्‍पन्‍न करती है। अनौपचारिकता इस लेखन की खास बात है- यू.एस.पी. है इस दुनिया का। इसलिए इस लेखन में लेखक की शख्सियत उसके एक- एक शब्‍द से झांकती है लेकिन उलटबांसी यह है कि इस माध्‍यम में लेखक के व्‍यक्तित्‍व को उसके लेखन से बिल्‍कुल अलगाकर देखे जाने की परिपाटी है। यहॉं अधिकांश लेखन ‘बंगमहिला’ की तर्ज पर होता है पता नही कौन हैं? कैसी हैं ? दरअसल बेनाम चिट्ठाकारी न केवल स्‍वीकृत है वरन अधिकांश इंटरनेट सुरक्षा के विशेषज्ञ यह राय देते हैं कि चिट्ठाकार को अपनी असल पहचान के तत्‍वों मसलन सही नाम, सही पता, ईमेल पता, फोन नंबर आदि को सुरक्षा के हित में सार्वजनिक करने से परहेज करना चाहिए। </p> <p>दरअसल जब एक चिट्ठाकार चिट्ठा आरंभ करता है तो वह एक नाम चुनता है और यह वाकई चुनाव होता है- आप अपना नाम भी चुन सकते हैं जैसे कि इन पंक्ति‍यों की लेखक ने चुना है और आप कोई उपलब्‍ध काल्‍पनिक नाम भी चुन सकते हैं ! इसी तरह आप उम्र, लिंग, शहर तथा स्‍व - परिचय भी लिखते हैं इसे प्रोफाइल कहा जाता है। चिट्ठाकार अपने लिए क्‍या प्रोफाइल चुनते हैं, क्‍यों चुनते हैं इस सब पर बाकायदा मनोविश्‍लेषण में रुचि रखने वाले एक शोध - प्रबंध लिख सकते हैं! पर यहॉं सिर्फ इतना दर्ज है कि छापे की दुनिया के बरअक्‍स इस चिट्ठाकारी में चिट्ठाकार की शख्सियत आभासी होती है और तो और वह न केवल कभी- भी अपनी प्रोफाइल को बदल सकता है वरन चाहे तो बिल्‍कुल मिटाकर एक नई प्रोफाइल बना सकता है जो पिछली से बिल्‍कुल अलग हो। चिट्ठाकार एक साथ दो या अधिक प्रोफाइल भी रख सकता हैं और जितना उसमें बूता हो उतने चिट्ठे लिख सकता है। चिट्ठाकार का व्‍यक्तित्‍व इस बात से कतई तय नहीं होता कि वह असल जिंदगी में क्‍या है वरन इस बात से होता है कि वह क्‍या लिखता है और अपने बारे में क्‍या राय तैयार करता है। मसलन देखिए धुरविरोधी कैसे अपना रूप खड़ा करते हैं-</p> <blockquote> <p><i>मेरा नाम जे</i><i>.</i><i>एल</i><i>.</i><i>सोनारे है</i><i>,</i><i> </i><i>मैं मुम्बई</i><i>,</i><i> </i><i>गोकुलधाम के साईंबाबा काम्प्लेक्स में रहता हूं</i><i>,</i><i> </i><i>उम्र उनतीस साल</i><i>,</i><i> </i><i>एक फिल्म प्रोडक्शन कंम्पनी में थर्ड अस्सिस्टेंट हूं</i><i>,</i><i> </i><i>मतलब</i><i>,</i><i> </i><i>चपरासी जैसा काम</i><i>. </i><i>मेरे काम्प्लेक्स में ही जबलपुर वाले रघुवीर यादव रहते हैं</i><i>. </i><i>आपने इनकी फिल्में जरूर देखी होंगी</i><i>. </i><i>दद्दा रघुबीर यादव हमें ढेर सारी कहानियां सुनाते रहते है मसलन</i><i>,</i><i> </i><i>भेड़ाघाट के बारे में या अपनी पहली हीरोइन </i><i>(</i><i>आज</i><i> </i><i>की</i><i> </i><i>मशहूर</i><i> </i><i>लेखक</i><i>) </i><i>अरुन्धती राय</i><i> </i><i></i><i>के बारे में</i><i>,</i><i> </i><i>आदि आदि</i><i>. </i><i>मेरे वन रूम सेट के सामने सुनीता फाल्के नाम की लड़की रहती है जो किसी ट्रेवल एजेन्सी में काम करती है और अक्सर मुझे देखकर मुस्कुराते हुये </i><i>“</i><i>ओ मेरे सोनारे</i><i>,</i><i> </i><i>सोनारे</i><i>,</i><i> सोनारे</i><i>”</i><i> </i><i>गुनगुनाने लगती है</i><i>. </i><i>मेरी हिम्मत कभी </i><i>भी </i><i>उससे बात करने की नहीं हुई</i><i>. </i><i>वो मेरे से ढाई गुना कमाती है</i><i>,</i><i> </i><i>मेरा उसका क्या मुकाबला</i><i>?<a href="#_edn1" name="_ednref1"><b>[i]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <h4>किंतु इसके ठीक अगली ही पंक्ति में कहते हैं-</h4> <blockquote> <h4><i>बताईये कैसा लगा मेरा परिचय</i><i>?</i><i> </i><i>यदि मैं इस प्रकार आता तो आपको कोई शिकायत नहीं होती</i><i>. </i><i>क्या आप मेरा पुलिस वेरीफिकेशन कराते</i><i>?</i><i> </i><i>ये सब झूठ है</i><i>. </i><i>मैं जे एल सोनारे नहीं हू</i><i>,</i><i> </i><i>न मुम्बई में रहता हूं</i><i>. </i><i>मैं ब्लाग की दुनिया में धुरविरोधी के नाम से हूं</i><i>,</i><i> </i><i>यही मेरा परिचय है</i><i>. </i><em>मैं मसिजीवी भी नहीं हूं और वो भी नहीं हूं जिसके होने का कुछ लोगों को पक्का</em><em> </em><em>भरोसा है</em><em>.</em><em> </em><a href="#_edn2" name="_ednref2">[ii]</a><em></em></h4> </blockquote> <h4>यानि चिट्ठाकारी की दुनिया में चिट्ठाकार के व्‍यक्तित्‍व पर एक झीना आवरण रहता है तथा वह वही होता है जो वह कहता है कि वह है।</h4> <p>किंतु हिंदी- लेखन व हिंदी - पठन के जो संस्‍कार हमारी हिंदी - आलोचना ने अब तक विकसित किए हैं उनके कारण इसे पचा पाना हिंदी चिट्ठाकारी के लिए काफी कठिन हो रहा है। हाल में ‘मुखौटा विवाद’ ने हिंदी - चिट्ठाकारी में काफी ज्‍वार भाटे पैदा किए। हुआ यह कि एक पुराने चिट्ठाकार जो मसिजीवी नाम से चिट्ठाकारिता करते हैं ने ‘<b><a href="http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_15.html"><b>....</b><b>मुझे </b><b>मुखौटा आजाद करता है</b></a>’</b><b> </b>शीर्षक एक पोस्‍ट लिखी और यह तर्क दिया कि चिट्ठाकारिता की दुनिया में लेखक यदि मुखौटा लगाकर बात कहे तो वह संरचनात्मक दबाब से मुक्‍त होकर लिख पाता है क्‍योंकि उसे पॉलीटिकल करेक्‍टनेस, छवि आदि की परवाह किए बिना लिखना होता है। मसिजीवी का कहना था - <b></b></p> <blockquote> <p><i>मुखौटों के चेहरे पर लगते ही आप बस एक मुखौटा हो जाते हैं। लोग इस दुनिया में (चिट्ठाकारी में) इसलिए</i><i> </i><i>जाते हैं कि ये मुखौटे इस दुनिया के वासियों को आजाद करते हैं। आप इन मुखौटों को</i><i> </i><i>पहनकर वह सब कर सकते हैं जो करना चाहते थे पर कर नहीं पाते थे और अक्‍सर दिखाते थे</i><i> </i><i>कि आप ऐसी कोई चाहत नहीं रखते</i><i>, </i><i>मसलन चलते चलते आपका अक्‍सर मन करता था कि चीख कर</i><i> </i><i>कहें कि आप खुश नहीं हैं</i><i>, </i><i>आपका पति आपको पीटता है...या आप अपनी पत्‍नी को पीटते</i><i> </i><i>है...लेकिन जाहिर है ऐसा नहीं कर पाते थे। <a href="#_edn3" name="_ednref3"><b>[iii]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <p>आगे चिट्ठाकारों से यह आग्रह भी किया था कि लोगों के मुखौटों के पीछे झांकना छोंड़ें क्‍योंकि ऐसा करने से चिट्ठाकारी का उद्देश्‍य ही खत्‍म हो जाएगा।</p> <blockquote> <p><i>खतरा यह है कि यदि आप इसे (चिट्ठाकारी को) वाकई मुखौटों से मुक्‍त दुनिया बना देंगें तो ये दुनिया</i><i> </i><i>बाहर की </i><i>‘</i><i>रीयल</i><i>’ </i><i>दुनिया जैसी ही बन जाएगी </i><i>– </i><i>नकली और पाखंड से भरी। आलोचक</i><i>, </i><i>धुरविरोधी</i><i>, </i><i>मसिजीवी ही नहीं वे भी जो अपने नामों से चिट्ठाकारी करते हैं एक झीना मुखौटा पहनते</i><i> </i><i>हैं जो चिट्ठाकारी की जान है। उसे मत नोचो---ये हमें मुक्‍त करता है।<a href="#_edn4" name="_ednref4"><b>[iv]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <p>इस पोस्‍ट ने कई कड़ी प्रतिक्रियाओं को जन्‍म दिया। कहा गया कि तर्क व हिम्‍मत की कमी वालों को ही मुखौटों की जरूरत पड़ती है। कुछ समर्थन के स्‍वर भी आए जैसे धुरविरोधी ने कहा –</p> <blockquote> <p><i>जिसे आप रीयल जिन्दगी कहते हैं</i><i>, </i><i>उसमे मुझे न चाहते हुये भी लोगों को अच्छा अच्छा</i><i> </i><i>बोलना पड़ता है. सोचना होता है कि लोग क्या कहेंगे. एक मुस्कुराहट का मुखौटा ओढ़ना</i><i> </i><i>पड़ता है. वो मेरा असली रूप नहीं है.</i><i> <br /></i><i>लेकिन धुरविरोधी बिना मेरे नाम का मुखौटा</i><i> </i><i>ओड़े हुये मेरा असली रूप है. यह मेरा वह रूप है</i><i>, </i><i>जैसा मैं हूं. मेरे असली नाम के</i><i> </i><i>मुखौटे को उतार कर मैं एकदम आज़ाद हो जाता हूं</i><i>, </i><i>बिल्कुल मसिजीवी की तरह.</i><i> <br /></i><i>इस दौरान</i><i> </i><i>हमारी आपस में असहमतियां या सहमतियां हो सकती हैं. संजयजी</i><i>, </i><i>मेरे प्रलाप में तर्क भी</i><i> </i><i>हैं और हिम्मत भी. क्या हम असहमति एवं सहमति दोनों के बीच में नहीं जी</i><i> </i><i>सकते</i><i>? <br /></i><i>मुझे तो अब नकली और पाखंड दूर यह दुनियां ही पसंद है.<a href="#_edn5" name="_ednref5"><b>[v]</b></a></i></p> </blockquote> <p>उसके बाद ‘धुरविरोधी ने ‘कौन है धुरविरोधी’ शीर्षक से पोस्‍ट लिखी जबकि ‘ये मसिजीवी क्‍या है’ पोस्‍ट पहले ही आ चुकी थी, घुघुती बासुती ने भी ‘घुघुती बासुती क्‍या है’ पोस्‍ट पहले ही लिख दी थी। इन पोस्‍टों मे इन चिट्ठाकारों ने अपनी पहचान बताने के स्‍थान पर यह बताया था कि चिट्ठाकारी पहचान के वमन की जगह नहीं वरन पहचान के निर्माण की जगह है।</p> <p>-(धुरविरोधी के लिंक्‍स डेड हैं क्‍योंकि उन्‍होंने अपना चिट्ठा मिटा दिया है)</p> <p> <hr align="left" width="33%" size="1" /></p> <h4><a href="#_ednref1" name="_edn1">[i]</a> धुरविरोधी, धुरविरोधी कौन है,<a href="http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/">http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/</a></h4> <h4><a href="#_ednref2" name="_edn2">[ii]</a>धुरविरोधी, धुरविरोधी कौन है, <a href="http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/">http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/</a><i></i></h4> <p><a href="#_ednref3" name="_edn3">[iii]</a>मसिजीवी,मुझे मुखौटा आजाद करता है, <a href="http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_15.html">http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_15.html</a></p> <p><a href="#_ednref4" name="_edn4">[iv]</a>मसिजीवी,मुझे मुखौटा आजाद करता है, <a href="http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_15.html">http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_15.html</a></p> <p><a href="#_ednref5" name="_edn5">[v]</a> धुरविरोधी, धुरविरोधी कौन है,<a href="http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/">http://dhurvirodhi.wordpress.com/2007/03/16/o-mere-sonare/</a></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-32744057255152282692008-01-08T07:38:00.001+05:302008-01-08T07:40:03.982+05:30चिट्ठाकारी छपास की नहीं पहचान की छटपटाहट है<p>जिस लेखन को छपास पीडा के रोगियों का कर्म मानते हुए नाक भौं सिकोडा जा रहा है हिंदी चिट्ठाकारों के लिए वह उनकी पहचान और अस्मिता से जुडा हुआ है! चिट्ठाकार के लिए चिट्ठाकारिता वह सृजन- भूमि है जहां वह निज भाषा में फक्कड और बेबाक अभिव्यक्ति कर सकता है ! इस के माध्यम से चिट्ठाकार अपनी भाषिक सांस्कृतिक अस्मिता को न केवल अनुभव कर पाता है वरन लगातार उसका निर्माण भी करता है! परंपरागत लेखन में बना रहने वाला संरचानागत दबाव यहां नदारद होता है न ही प्रकाशन प्रक्रिया के झमेलों से जूझना होता है अत: यह चिट्ठाकार का स्वयं का रचा लोक है जहां वह स्वछंद अभिव्यक्ति करता है !</p> <p>चिट्ठाकार चिट्ठा क्यों करता है—यह प्रश्न न केवल स्थापित हिंदी जगत के लिए कौतुहल का विषय है वरन चिट्ठाकार स्वयं से भी यह प्रश्न करता है और उत्तर में पाता है कि यह ख्ब्त ही है जो उससे चिट्ठा लिखवाती है –</p> <blockquote> <p><i>मैं चिट्ठा अव्वल तो इसलिए लिखता हूँ कि मुझे चिट्ठा लिखने की शराब की तरह लत पड़ी हुई है. मैं चिट्ठा न लिखूं तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने</i><i> </i><i>हैं या मैंने गुसल नहीं किया या मैंने शराब नहीं पी. मैं चिट्ठा नहीं लिखता</i><i>, </i><i>हकीकत यह है कि चिट्ठा मुझे लिखता है<a href="#_edn1" name="_ednref1"><b>[i]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <p><i>ब्लॉग लेखन को अपनी भाषा के प्रति प्रेम और जुडाव की कामना से उपजा स्वाभाविक कर्म मानते हुए जीतेन्द्र कहते हैं </i><i>–</i></p> <blockquote> <p><i>अमां यार क्यों ना लिखे</i><i>, </i><i>पढे हिन्दी मे है</i><i>, </i><i>सारी ज़िन्दगी</i><i> </i><i>हिन्दी सुनकर गुजारी है। हँसे</i><i>, </i><i>गाए</i><i>,</i><i>रोये हिन्दी मे है</i><i>, </i><i>गुस्से मे लोगो को गालियां</i><i> </i><i>हिन्दी मे दी है</i><i>, </i><i>बास पर बड़्बड़ाये हिन्दी मे है। हिन्दी गीत</i><i>, </i><i>हिन्दी फ़िल्मे देख</i><i> </i><i>देखकर समय काटा है</i><i>, </i><i>क्यों ना लिखे हिन्दी ?<a href="#_edn2" name="_ednref2"><b>[ii]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <p><b></b></p> <p>हिंदी जगत में<b> </b>ब्लॉगिंग की यह परिघटना एक मायने में बिल्कुल नयी है ! हिंदी पठन रचना वृत्त से इतर माने जाने वाले हिंदी प्रेमियों की अदायगी है ! नेट भूमि पर विचरते अधिकतर चिट्ठों के जन्मदाता अलग-अलग व्यवसायों से जुडे हैं जिनमें एक बडा भाग प्रवासी भारतीयों का है! अत्यधिक पसंद किए जाने वाले सुनील दीपक बोलौना , इटली में एक डाक्टर हैं ! इंडीब्लॉगीज पुरस्कार 2006 के विजेता समीर लाल कनाडा में एक वित्तीय फर्म में कार्यरत हैं ! सामाजिक मुद्दों पर संवेदनात्मक रचनाअओं की रचयिता बेजी, सान्बेजी संयुक्त राज्य अमीरात में शिशु -चिकत्सक हैं! नारद के उत्साही और कर्मठ संचालक जीतेन्द्र , कुवैत में एक कंप्यूटर फर्म में हैं ! सामयिक विषयों पर अत्यंत संवेदनशीलता से लिखने वाले लाल्टू हैदराबाद में वैज्ञानिक हैं तो सर्वाधिक टिप्पणियां पाने वाले अनूप शुक्ला कानपुर के आयुध निर्माण कारखाने में राजपत्रित अधिकारी हैं ! विभिन्न पेशों से जुडे इन प्रवासी अप्रवासी भारतीयों के लिए हिंदी का प्रश्न उनकी पहचान का प्रश्न है ! देश से दूर प्रवास कर रहे इन भारतीयों के लिए निज भाषा में अभिव्यक्ति ही वह माध्यम है जिसके जरिए वे अपने आस पास एक जीवंत व आत्मीय वातावरण रच और महसूस पाते हैं ! सुनील दीपक लिखते हैं --<b></b></p> <blockquote> <p><i>मेरे विचार से चिट्ठे लिखने वाले और पढ़ने वालों में मुझ जैसे</i><i> </i><i>मिले जुले</i><i> <br /></i><i>लोगों की</i><i>, </i><i>जिन्हें अपनी पहचान बदलने से उसे खो देने का डर लगता है</i><i>, </i><i>बहुतायत है. हिंदी में चिट्ठा लिख कर जैसे अपने देश की</i><i>, </i><i>अपनी भाषा की खूँट से रस्सी</i><i> </i><i>बँध जाती है अपने पाँव में. कभी खो जाने का डर लगे कि अपनी पहचान से बहुत दूर आ गये</i><i> </i><i>हम</i><i>, </i><i>तो उस रस्सी को छू कर दिल को दिलासा दे देते हैं कि हाँ खोये नहीं</i><i>, </i><i>मालूम है</i><i> </i><i>हमें कि हम कौन हैं</i><i> </i><a href="#_edn3" name="_ednref3"><i><b>[iii]</b></i></a><i>.</i><i> </i></p> </blockquote> <p><i></i></p> <p>“एक भारतीय आत्मा” की तर्ज पर हिंदी ब्लॉग- लेखन से जुडे इन ब्लॉगरों को जोडने वाला तत्व भाषिक सांस्कृतिक अस्मिता को पाने व बनाए रखने की छटपटाहट है। यहां साइबर स्पेस वह मिलन - भूमि का कार्य करता है जहां भिन्न फिजिकल स्पेस के रहवासी अपने जातीय अस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं! मसलन हिंदी के चिट्ठों का सबसे महत्वपूर्ण मंच नारद विश्व के विपरीत कोनों पर बैठे उन संचालकों द्वारा मॉडरेट किया जा रहा है जिनका परस्पर परिचय साइबर स्पेस में ही हुआ है। जाहिराना तौर हिंदी चिट्ठा-जगत के केन्द्र में भाषिक पहचान की चेतना है किंतु जब व्‍यक्तिगत स्‍तर पर पहचान को चिट्ठों में खंगालने का प्रयास करते हैं तो पाते हैं कि यहाँ व्‍याकरण ही बदल जाता है।</p> <hr align="left" width="33%" size="1" /> <p><a href="#_ednref1" name="_edn1">[i]</a> मसिजीवी, मैं चिट्ठा क्‍योंकर लिखता हूँ- ओपन सोर्स में, <a href="http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_02.html">http://masijeevi.blogspot.com/2007/03/blog-post_02.html</a></p> <p><a href="#_ednref2" name="_edn2">[ii]</a> जितेंद्र, मैं हिंदी में क्‍यों लिखता हूँ, <a href="http://www.jitu.info/merapanna/?p=419">http://www.jitu.info/merapanna/?p=419</a></p> <p><a href="#_ednref3" name="_edn3">[iii]</a>सुनील दीपक, कुछ यहॉं से कुछ वहॉं से, <a href="http://www.kalpana.it/hindi/blog/2005/10/blog-post_05.html">http://www.kalpana.it/hindi/blog/2005/10/blog-post_05.html</a></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-76783871164423694472008-01-06T08:58:00.001+05:302008-01-06T08:58:16.993+05:30चिट्ठाकारी का हालिया इतिहास<p> </p> <p>थोड़ा मुड़कर पीछे देखें तो हिंदी में चिट्ठाकारिता शब्‍द अंग्रेजी के ब्‍लॉगिंग शब्‍द के समानांतर उपजा शब्‍द है। ‘वेबलॉग’ का संक्षिप्‍त रूप ब्‍लॉग दिसम्‍बर 1997 में पहली बार प्रयुक्‍त हुआ। अंतर्जाल पर पहले ब्‍लॉग (1997, डेव वाइनर का ब्‍लॉग ‘स्क्रिप्टिंग न्‍यूज’) के उद्भव के छ: साल बाद पहले हिंदी चिट्ठाकार आलोक के पहले चिट्ठे 9-2-11 का पदार्पण हुआ। पहली पोस्‍ट में उन्‍होंने लिखा<a href="#_edn1" name="_ednref1">[i]</a></p> <p> </p> <p> </p> <table cellspacing="0" cellpadding="2" width="400" border="4"><tbody> <tr> <td valign="top" width="392"> <p><b>नमस्ते। <br />क्या आप हिन्दी देख पा रहे हैं? <br />यदि नहीं, तो <u>यहाँ</u> देखें।</b></p> </td> </tr> </tbody></table> <p>यहॉं वह पहला लिंक था जिस पर क्लिक करते ही कोई हिंदी पाठक विश्‍व के किसी भी द्वीप पर बैठा अपनी भाषिक पहचान के जुड़ सकता था। यह पहली यूनीकोड चिट्ठा अभिव्‍यक्ति थी। यूनीकोड के अवतरण से विश्‍व का प्रत्‍येक कंप्‍यूटर ‘हिंदी फांटों’ के झंझटों से मुक्‍त हो हिंदीमय हो गया तथा हिंदी लेखक-पाठक अपनी अनुभूति को टाईम व स्‍पेस के बंधनों से परे अंतर्जाल पर दर्ज कर सका। यहाँ टाईम, स्‍पेस और प्रौद्योगिकी के अद्भुत संयोग से उपजी स्‍वच्‍छंद भाषिक अभिव्‍यक्तियों को आलोक ने चिट्ठा कहा। आलोक के चिट्ठे ‘9-2-11’ के बाद विनय, देबाशीष, पंकज नरूला, अतुल अरोरा, रवि रतलामी, अनूप शुक्‍ला, जितेंद्र जैसे चिट्ठाकारों के द्वारा अंतर्जाल पर हिंदी को अंकित किया गया। यदि इनमें से अधिकांश के नाम आपने नहीं सुने हैं तो आश्‍चर्य की बात नहीं ये नींव की ईंटें हैं, कंगूरों के बड़बोलेपन से मुक्‍त। इनमें से कोई हिंदीबाज या हिंदीखोर नहीं है, विश्‍वविद्यालयों में प्रोफेसर नहीं हैं, रोजी रोटी के लिए अपने अपने उन व्‍यवसायों पर आश्रित हैं जिनका हिंदी से सामान्‍यत: कोई लेना देना नहीं। अनूप यानि फुरसतिया को छोड़ दें तो और कोई अपनी भाषा या शैली के लिए नहीं जाना जाता, केवल अपने श्रम और सहायता करने के लिए आतुर लोगों का जमावड़ा है यह। लेकिन इसके गहरे निहितार्थ हिंदी सत्‍ताई विमर्श के लिए भी हैं- पंकज नरूला, देबाशीष चक्रवर्ती व जिंतेंद्र चौधरी के माध्‍यम से हिंदी चिट्ठाजगत की स्‍थापना के निहितार्थ पढ़ते हुए प्रियंकर दर्ज करते हैं कि-</p> <blockquote> <p><i>कभी-कभी तो मुझे यह सोच कर ही रोमांच होता है कि नेट पर हिंदी के शुरुआती</i><i> </i><i>कर्णधारों में पंकज नरुला</i><i>, </i><i>जितेन्द्र चौधरी और देबाशीष चक्रवर्ती के होने का भी एक</i><i> </i><i>गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है हिंदी की सार्वदेशिकता और स्वीकार्यता के संदर्भ में .</i><i> </i><i>मूलतः पंजाबी</i><i>, </i><i>सिन्धी और बांग्ला मातृभाषा वाले परिवारों के इन बच्चों का हिंदी से</i><i> </i><i>कैसा प्यारा नेह का नाता है कि वे इसे मुकुटमणि बनाए हुए हैं . उसके भविष्य को लेकर</i><i> </i><i>चिंतनशील रहते हैं . उसे मां का मान दे रहे हैं .</i><i></i></p> <p><i>इसका एक प्रतीकात्मक अभिप्राय यह भी है कि अब हिंदी पर हिंदी पट्टी के</i><i> </i><i>चुटियाधारियों का एकाधिकार खत्म होने को हैं . आंकड़े कहते हैं कि अगले दस-बीस</i><i> </i><i>वर्षों में दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखने वाले विभाषियों की संख्या मूल</i><i> </i><i>हिंदीभाषियों से ज्यादा होगी . और तब एक नये किस्म की हिंदी अपने नये रूपाकार और</i><i> </i><i>तेवर के साथ आपके सामने होगी .<a href="#_edn2" name="_ednref2"><b>[ii]</b></a></i><i></i></p> </blockquote> <p>जाहिर है शुरूआत में गिनती के चिट्ठे थे और उतने ही चिट्ठापाठक। खुद लिखते खुद पढ़ते और साथी चिट्ठाकारों को पढ़वाते। इस दौर की पूरी कथा हाल में जितेंद्र ने चार भागों में अपने चिट्ठे ‘मेरा पन्‍ना’ पर दर्ज की है। अनूप भी कह चुके थे कि हिंदी चिट्ठाकारी का जनून आला दर्जे का सिरफिरा होने की माँग करता है। जब इन कुल जमा सिरफिरों से ज्‍यादा सिरफिरे लोग यहाँ आ इकट्ठे हो जाएंगे तो ये खुशी से पार्श्‍व में चले जाएंगे- </p> <blockquote> <p><i>रही बात अप्रासंगिक होने की तो हम लोग अप्रसांगिक तब हो जायेंगे जब हमसे बड़े तमाम</i><i> </i><i>सिरफिरे यहां जुट जायेंगे और हमसे बेहतर लिखेंगे</i><i>, </i><i>जीतेंन्द्र से बेहतर नारद और तमाम</i><i> </i><i>सुविधाऒं की चिंता-संचालन करेंगे</i><i>, </i><i>रवि रतलामी से ज्याद अपना लिखने के साथ-दूसरे का</i><i> </i><i>भी सबको पढ़वाते रहेंगे</i><i>,</i><i>दोस्तों-दुश्मनों की गालियां खाते हुये भी देबाशीष जैसे</i><i> </i><i>अकेले दम पर लगातार चार साल बिना किसी लाभ के इंडीब्लागीस जैसे आयोजन करने वाले आगे</i><i> </i><i>आ जायेंगे। हम तब अप्रासंगिक हो जायेंगे जब हमारे किसी भी काम की वकत खतम हो जायेगी</i><i> </i><i>और चिट्ठाजगत का हर सदस्य हमसे हर मायने में बेहतर होगा। जिस दिन ऐसा होगा वह दिन</i><i> </i><i>निश्चित तौर पर हमारे अप्रासंगिक हो जाने का दिन होगा और हमें उस दिन से खतरा नहीं</i><i> </i><i>है बल्कि ऐसे दिन का बेताबी से इंतजार है </i>।<a href="#_edn3" name="_ednref3">[iii]</a></p> </blockquote> <p>एक बानगी और देखिए, हिंदी चिट्ठाकारी पैसे कमाने की मशीन नहीं है। अब तक किसी हिंदी चिट्ठाकार ने चिट्ठाकारी से इंटरनेट का बिल जमा करने लायक पैसा भी नहीं कमाया है। ‍लेकिन हिंदी चिट्ठाकारी के प्राण यानि नारद को खड़ा करने के लिए हजारेक डालर की जरूरत थी, ईस्‍वामी के शब्‍दों में- </p> <blockquote> <p><i>हमें रातों रात अनुदान इकट्ठा करना था</i><i>, </i><i>पंकज नरूला को मैने फ़ोन किया</i><i>, </i><i>ई-चर्चा</i><i> </i><i>वाले मित्र सुनीत को किया</i><i>, </i><i>दोनो की बात करवाई</i><i>, </i><i>पंकज को पूरी जानकारी मिली -</i><i> </i><i>उन्होंने अमेजान पर अकाऊंट खोला और जो लोग क्रेडिट कार्ड धारी नहीं भी थे उन्होंने</i><i> </i><i>रातो रात क्रेडिट कार्ड धारियों के माध्यम से दुनिया भर से सहायता भेजी.</i><i> </i></p> <p><i>मेरी पत्नी हिंदी ब्लागिंग को मेरा खब्त मानती हैं</i><i>, </i><i>समय नष्ट करने का बेहतरीन</i><i> </i><i>साधन! जब देखते ही देखते आंकडा १००० डालर के पार पहूंच गया मैने उनकी आंखें खुशी के</i><i> </i><i>मारे नम देखीं! </i><i>“</i><i>देयर इज़ अ मेथड टू यू गाईज़ मेडनेस!</i><i>” </i><i>हां कुछ अलग कर दिया हमनें -</i><i> </i><i>सर्टिफ़ाईड पागलों वाला काम!</i><i> </i><i><a href="http://lh3.google.com/neelimasayshi/R4BKwrk06-I/AAAAAAAAAUE/iBYmXKltpdU/clip_image002%5B3%5D"><img style="border-right: 0px; border-top: 0px; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="19" alt="clip_image002" src="http://lh4.google.com/neelimasayshi/R4BKy7k06_I/AAAAAAAAAUM/kYFit1lRV38/clip_image002_thumb" width="19" border="0" /></a><a href="#_edn4" name="_ednref4"><b>[iv]</b></a></i></p> </blockquote> <p>यह ठीक तब ही हो रहा था जब हिंदी पट्टी के हिंदीखोर भूतपूर्व पति पत्‍नी अपने गत शादी के मन मुटावों के बाजार से पत्रिकाएं रंग रहे थे। खैर उस पर हसन जमाल (शेष के संपादक, इंटरनेट पर हिंदी के विरोध में उनकी प्रतिक्रिया मार्च 2007 के नया ज्ञानोदय में प्रकाशित हुई) विचार करें और निपटें। ...तो उस दिन-रात की अकारण मेहनत की खब्‍त का परिणाम है कि आज हिंदी में तकरीबन <strike>700 चिट्ठे </strike> 1500 चिट्ठे हैं ओर ये तेजी से बढ़ रहे हैं। नारद जिसकी फिलहाल हिंदी चिट्ठाजगत में केंद्रीय भूमिका <strike>है</strike> थी उसे अप्रैल 2007 के पहले बीस दिनों में 18743 हिट मिले <strike>हैं</strike> थे 937 की औसत प्रतिदिन के हिसाब से। नारद अकेला एग्रीगेटर नहीं है हिंदी ब्‍लॉग्स, हिंदी पॉडकास्‍ट भी हैं। हसन जमाल तो नहीं समझ पाएंगे और न समझ पाने के उनके तर्क व गर्व दोनों होंगे लेकिन ये बड़ी उपलब्धि है।</p> <hr align="left" width="33%" size="1" /> <p><a href="#_ednref1" name="_edn1">[i]</a> आलोक, <a href="http://9211.blogspot.com/">http://9211.blogspot.com/</a></p> <p><a href="#_ednref2" name="_edn2">[ii]</a> प्रियंकर, अतीत के झरोखे से-4, <a href="http://www.jitu.info/merapanna/?p=703">http://www.jitu.info/merapanna/?p=703</a></p> <p><a href="#_ednref3" name="_edn3">[iii]</a> अनूप शुक्‍ला, मुजरिम हाजिर है प्रत्‍यक्षा, <a href="http://vadsamvad.blogspot.com/2007/02/blog-post_24.html">http://vadsamvad.blogspot.com/2007/02/blog-post_24.html</a></p> <p><a href="#_ednref4" name="_edn4">[iv]</a> ई-स्‍वामी, अतीत के झरोखे से-4, <a href="http://www.jitu.info/merapanna/?p=703">http://www.jitu.info/merapanna/?p=703</a></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-89108453937287897802008-01-06T01:01:00.001+05:302008-01-06T01:01:37.235+05:30चिट्ठाकारी है क्या<p> </p> <p><em>आलेख के प्रथम खंड के रूप में प्रस्‍तुत है प्रस्‍तावना तथा 'चिट्ठाकारी है क्‍या' का अंश-</em></p> <p><b>अंतर्जाल पर हिंदी की नई चाल : चन्‍द सिरफिरों के खतूत</b></p> <p><b></b></p> <em></em> <p>अंतर्जाल हिंदी में इंटरनेट के लिए इस्‍तेमाल (या कहें प्रस्‍तावित) शब्‍द है। इसी अंतर्जाल पर हिंदी की बढ़ती मौजूदगी हिंदी- जगत का सर्वाधिक सनसनीखेज समाचार है। पारंपरिक मुख्‍यधारा मीडिया ने इसका नोटिस लेना शुरू कर दिया है। आज हिंदी चिट्ठाकारिता एक बहुश्रुत शब्‍द युग्‍म है अत: अंतर्जालीय हिंदी के इस स्‍वरूप, उद्देश्‍य एवं भविष्‍य पर प्रामाणिक विमर्श की पहल अब होने लगी है। लेखन, प्रकाशन व पठन से अंतराल का लोप करते इस माध्‍यम ने केवल हिंदी ही वरन दुनिया की हर विकसित भाषा को प्रभावित किया है , जिसमें अंग्रेजी और जापानी जैसी भाषाओं के समाज ही नहीं वरन फारसी और चीनी जैसे अपेक्षाकृत नियंत्रित समाज भी शामिल हैं। भारत का भी अपना एक आजाद व मुखर अंग्रेजी ब्‍लॉगर समुदाय है, हिदी में जरूर यह आहट कुछ नई है।</p> <p><b>चिट्ठाकारी है क्‍या</b></p> <p>सबसे पहले समझें कि चिट्ठाकारी है क्‍या ? और क्‍यों ये हिंदी लेखन के किसी विद्यमान खाँचें में नहीं अँट रही है ? यहॉं तक कि पत्रकारिता भी चिट्ठाकारिता को खुद में समा पाने में काबिल सिद्ध नहीं हो रही है ? दरअसल चिट्ठे या ब्‍लॉग, इंटरनेट पर चिट्ठाकार का वह स्‍पेस है जिसमें वह अपनी सुविधा व रुचि के अनुसार सामग्री को प्रकाशित कर सार्वजनिक करता है। इस चिट्ठे का तथा इसकी हर प्रविष्टि का जिसे पोस्‍ट कहते हैं एक स्‍वतंत्र वेब - पता होता है। सामान्‍यत: पाठकों को इन पोस्‍टों पर टिप्‍पणी करने की सुविधा होती है ! यदि चिट्ठाकार स्‍वयं इस चिट्ठे को मिटा न दे तो यह सामग्री इस वेबपते पर सदा - सर्वदा के लिए अंकित हो जाती है। अंतर्जाल के सूचना प्रधान हैवी ट्रैफिक - जोन से परे व्‍यक्तिगत स्‍पेस में व्‍यक्तिगत विचारों और भावों की निर्द्वंद्व सार्वजनिक अभिव्‍यक्ति को ब्‍लॉगिंग कहा जा सकता है। </p> <p>किसी भी चिट्ठे के दो स्‍पष्‍ट आयाम होते हैं एक है पोस्‍ट जिसपर लेखक चिट्ठाकार ही लिखता है जबकि दूसरा है टिप्‍पणी- खंड जो चिट्ठापाठकों का होता है !वे उस पर टिप्‍पणी करने के लिए स्‍वतंत्र होते हैं। यह टिप्‍पणी का ढाँचा ही दरअसल चिट्ठाकारी को चिट्ठाकारी बनाता है! अब तक की हर लेखन-प्रकाशन विधा से अलहदा। टिप्‍पणी लेखन को विमर्शात्‍मक बनाती है और वह भी रीयल टाईम में। संपादक के नाम पत्र की परिपाटी प्रिंट में भी है किंतु वहॉं पठ्य और प्रतिक्रिया के बीच कालिक अंतराल है और संपादक की संपादकीय कैंची भी मौजूद होती है। किंतु चिट्ठाकारी में पठ्य का पूरा लोकतंत्रीकरण होता है। पठ्य रीयल टाईम में इंटरेक्टिव बनता है। लेखक अपने लेखन के प्रति पूरी तरह जबावदेह बनता है। पाठक बाकायदा लेखक की खाट खड़ी करने की कूवत पाता है, इसी माध्‍यम में । एक अन्‍य पक्ष जो चिट्ठाकारी को विशिष्‍ट बनाता है वह है इसकी हाईपरटेक्‍स्‍ट प्रकृति। चिट्ठाकारी का पठ्य चूंकि हाईपर पठ्य होता है इसलिए इसमें लगातार लिंकन-प्रतिलिंकन होता है। आप कथन के प्रमाण अंतर्जाल पर उपस्थित अन्‍य सामग्री से निरंतर देते चलते हैं। य‍ह लिंकन एक किस्‍म की टाईम मशीन है जो चिट्ठापाठक को टाईम व स्‍पेस में आगे व पीछे विचारण करने की सुविधा प्रदान करती है।</p> <p>मूल बात यह है कि पूरा चिट्ठा, पोस्‍ट व टिप्‍पणी दोनों खंडो से मिलकर बनता है। यहाँ चिट्ठाकार स्‍वयं अपने चिट्ठे का पात्र व लेखक एक साथ होता है। चिट्ठाकारी को डायरी लेखन के निकट माना जाता है किंतु यह डायरी रीयल टाईम में रची जाती है जिसके डायरीपन के प्रति चिट्ठाकार समर्पित नहीं है। हर चिट्ठाकार दरअसल एक पात्र होता है जो उसके चिट्ठालेखन से खड़ा होता है। वह चिट्ठाकारी के माध्‍यम से रोज लिखा जाता , रोज पढ़ा जाता उपन्‍यास होता है। यहीं चिट्ठाकार-चिट्ठा संबंध भी साफ तौर पर निखर कर आता है जिसे लेकर अक्‍सर असमंजस की हालत देखने में आती है। ‘लिंकित मन’ मेरा चिट्ठा है मुझे जानने वाले यह जानते हैं लेकिन इसका मतलब क्‍या है ! क्‍या मैं इसकी मालकिन हूँ – नहीं जनाब, वह तो गूगल की एक साईट पर है जिसे गूगल के बिक जाने पर नए मालिक की मिल्कियत में जाना होगा। दरअसल मेरा चिट्ठा का अर्थ राम के कथन ‘ये मेरा धनुष है’ जैसा नहीं है वरन वह राम के कथन ‘’रामायण मेरी कथा है’ जैसा है। यानि चिट्ठाकार अपने चिट्ठे का मालिक नहीं होता वरन वह स्‍वयं चिट्ठे से निर्मित होता है। ब्‍लॉग थ्‍योरी पर इस दिशा में अभी और काम हो रहा है तथा हिंदी चिट्ठाकारी से ये आशा है कि वह इस विमर्श को आगे बढ़ाएं।</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-16080546331246634742008-01-05T11:46:00.001+05:302008-01-08T16:19:55.915+05:30वाक् में चिट्ठाकारी पर आलेख- अंतर्जाल पर हिंदी की नई चाल : चन्द सिरफिरों के खतूत<p>  <a href="http://lh3.google.com/neelimasayshi/R38gu7k068I/AAAAAAAAAT0/_bl7mWA91Og/vaak33"><img style="border-top-width: 0px; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="437" alt="vaak3" src="http://lh4.google.com/neelimasayshi/R38gxLk069I/AAAAAAAAAT8/P-S3Wlr3zTU/vaak3_thumb1" width="325" border="0" /></a> </p> <p>वाक अब स्‍टैंड्स पर है। पत्रिका में हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग पर लिखा मेरा आलेख '<b>अंतर्जाल पर हिंदी की नई चाल : चन्‍द सिरफिरों के खतूत</b>' शीर्षक से प्रकाशित है। अगर मीडिया का रूख ब्‍लॉग मीडिया को लेकर उदासीनता का रहा था तो साहित्यिक पत्रकारिता का तो बाकायदा अवहेलना या अपमान का। इसलिए साहित्यिक पत्रिका द्वारा इसे स्‍थान देना अच्‍छा लगा। पूरा आलेख जरा बड़ा है इसलिए एक पोस्‍ट में डालना ठीक नहीं किंतु पूरा आलेख पीडीएफ में पाने के लिए नीचे के लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं।</p> <p><strong></strong><a href="http://hindiblogs.googlegroups.com/web/vaak+artice.pdf">पूरे आलेख को डाउनलोड करें</a>  (पीडीएफ -207 केबी)</p> <p>आलेख में छ: खंड हैं-</p> <ol> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_06.html">चिट्ठाकारी है क्‍या</a></strong> </li> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_4590.html">चिट्ठाकारी का हालिया इतिहास</a></strong> </li> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_08.html">चिट्ठाकारी छपास की नहीं पहचान की छटपटाहट है</a></strong> </li> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_2445.html">ये अनाम बेनामों की दुनिया है....नामवरों की नहीं</a></strong> </li> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_4683.html">चिट्ठाई हिन्‍दी- उच्‍छवास से मालमत्‍ता</a></strong> </li> <li><strong><a href="http://linkitmann.blogspot.com/2008/01/blog-post_4683.html">चिट्ठाकारी का भविष्‍य</a></strong> </li> </ol> <p> </p> <p>आगामी पोस्‍टों में इन खंडो को स्‍वतंत्र लेखों के रूप में पोस्‍ट किया जाएगा। कृपया ध्‍यान दें कि मूल लेख अप्रैल 2007 में लिखा गया था।</p> <div class="wlWriterSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:dc9ed5e7-85f7-4556-84f9-ccc61a062873" style="padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%95" rel="tag">वाक</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%97%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%20%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%96" rel="tag">ब्‍लॉगिंग लेख</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%be" rel="tag">नीलिमा</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b6%e0%a5%8b%e0%a4%a7" rel="tag">शोध</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%a7%e0%a5%80%e0%a4%b6%20%e0%a4%aa%e0%a4%9a%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a5%80" rel="tag">सुधीश पचौरी</a></div> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-73580229844873435922007-12-27T15:50:00.001+05:302007-12-27T15:50:21.375+05:302008 में कैसी होगी ब्लॉगकारिता - दिलीप मंडल<p></p> <p> </p> <p>यह लेख मूलत: <a href="http://rejectmaal.blogspot.com/2007/12/2008.html">दिलीपजी के चिट्ठे पर है</a>, महत्‍वपूर्ण जान पुन: सामने रखा जा रहा है।  </p> <p>एक रोमांचक-एक्शनपैक्ड साल का इंतजार है। हिंदी ब्लॉग नाम का शिशु अगले साल तक घुटनों के बल चलने लगेगा। अगले साल जब हम बीते साल में ब्लॉगकारिता का लेखा जोखा लेने बैठें, तो तस्वीर कुछ ऐसी हो। आप इसमें अपनी ओर से जोड़ने-घटाने के लिए स्वतंत्र हैं। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">हिन्दी</span><span style="font-weight: bold"> ब्लॉग्स की संख्या कम से कम 10,000 हो <br /> <br /></span>अभी ये लक्ष्य मुश्किल दिख सकता है। लेकिन टेक्नॉलॉजी जब आसान होती है तो उसे अपनाने वाले दिन दोगुना रात चौगुना बढ़ते हैं। मोबाइल फोन को देखिए। एफएम को देखिए। हिंदी ब्लॉगिंग फोंट की तकनीकी दिक्कतों से आजाद हो चुकी है। लेकिन इसकी खबर अभी दुनिया को नहीं हुई है। उसके बाद ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एक बाढ़ आने वाली है। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">हिंदी ब्ल़ॉग के पाठकों की संख्या लाखों में हो <br /> <br /></span>जब तक ब्लॉग के लेखक ही ब्लॉग के पाठक बने रहेंगे, तब तक ये माध्यम विकसित नहीं हो पाएगा। इसलिए जरूरत इस बात की है कि ब्लॉग उपयोगी हों, सनसनीखेज हों, रोचक हों, थॉट प्रोवोकिंग हों। इसका सिलसिला शुरू हो गया है। लेकिन इंग्लिश और दूसरी कई भाषाओं के स्तर तक पहुंचने के लए हमें काफी लंबा सफर तय करना है। समय कम है, इसलिए तेज चलना होगा। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">विषय और मुद्दा आधारित ब्लॉगकारिता पैर जमाए <br /> <br /></span>ब्लॉग तक पहुंचने के लिए एग्रीगेटर का रास्ता शुरुआती कदम के तौर पर जरूरी है। लेकिन विकास के दूसरे चरण में हर ब्लॉग को अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता बनानी होगी। यानी ऐसे पाठक बनाने होंगे, जो खास तरह के माल के लिए खास ब्लॉग तक पहुंचे। शास्त्री जे सी फिलिप इस बारे में लगातार काम की बातें बता रहे हैं। उन्हें गौर से पढ़ने की जरूरत है। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">ब्लॉगर्स के बीच खूब असहमति हो और खूब झगड़ा हो <br /> <br /></span>सहमति आम तौर पर एक अश्लील शब्द है। इसका ब्लॉग में जितना निषेध हो सके उतना बेहतर। चापलूसी हिंदी साहित्य के खून में समाई हुई है। ब्लॉग को इससे बचना ही होगा। वरना 500 प्रिंट ऑर्डर जैसे दुश्चक्र में हम फंस जाएंगे। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">टिप्पणी के नाम पर चारण राग बंद हो</span> <br /> <br />तुम मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करते हो, बदले में मैं तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी करता हूं - इस टाइप का भांडपना और चारणपंथी बंद होनी चाहिए। महीने में कुछ सौ टिप्पणियों से किसी ब्लॉग का कोई भला नहीं होना है, ये बात कुछ मूढ़मगज लोगों को समझ में नहीं आती। आप मतलब का लिखिए या मतलब का माल परोसिए। बाकी ईश्वर, यानी पाठकों पर छोड़ दीजिए। ब्लॉग टिप्पणियों में <span style="font-style: italic">साधुवाद</span> युग का अंत हो। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">ब्ल़ॉग के लोकतंत्र में माफिया राज की आशंका का अंत </span><span style="font-weight: bold">हो</span> <br /> <br />लोकतांत्रिक होना ब्लॉग का स्वभाव है और उसकी ताकत भी। कुछ ब्लॉगर्स के गिरोह इसे अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश करेंगे तो ये अपनी ऊर्जा खो देगा। वैसे तो ये मुमकिन भी नहीं है। कल को एक स्कूल का बच्चा भी अपने ब्लॉग पर सबसे अच्छा माल बेचकर पुराने बरगदों को उखाड़ सकता है। ब्लॉग में गैंग न बनें और गैंगवार न हो, ये स्वस्थ ब्लॉगकारिता के लिए जरूरी है। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">ब्लॉगर्स मीट का सिलसिला बंद हो <br /> <br /></span>ये निहायत लिजलिजी बात है। शहरी जीवन में अकेलेपन और अपने निरर्थक होने के एहसास को तोड़ने के दूसरे तरीके निकाले जाएं। ब्लॉग एक वर्चुअल मीडियम है। इसमें रियल के घालमेल से कैसे घपले हो रहे हैं, वो हम देख रहे हैं। समान रुचि वाले ब्लॉगर्स नेट से बाहर रियल दुनिया में एक दूसरे के संपर्क में रहें तो किसी को एतराज क्यों होना चाहिए। लेकिन ब्लॉगर्स होना अपने आप में सहमति या समानता का कोई बिंदु नहीं है। ब्लॉगर हैं, इसलिए मिलन करेंगे, ये चलने वाला भी नहीं है। आम तौर पर माइक्रोमाइनॉरिटी असुरक्षा बोध से ऐसे मिलन करती है। ब्लॉगर्स को इसकी जरूरत क्यों होनी चाहिए? <br /> <br /><span style="font-weight: bold">नेट सर्फिंग सस्ती हो और 10,000 रु में मिले लैपटॉप और एलसीडी मॉनिटर की कीमत हो 3000 रु <br /> <br /></span>ये आने वाले साल में हो सकता है। साथ ही मोबाइल के जरिए सर्फिंग का रेट भी गिर सकता है। ऐसा होना देश में इंटरनेट के विकास के लिए जरूरी है। डेस्कटॉप और लैपटॉप के रेट कम होने चाहिए। रुपए की मजबूती का नुकसान हम रोजगार में कमी के रूप में उठा रहे हैं लेकिन रुपए की मजबूती से इंपोर्टेड माल जितना सस्ता होना चाहिए, उतना हुआ नहीं है। अगले साल तक हालात बदलने चाहिए। <br /> <br /><span style="font-weight: bold">नया साल मंगलमय हो!</span> <br /><span style="font-weight: bold">देश को जल्लादों का उल्लासमंच बनाने में जुटे सभी लोगों का नाश हो!</span> <br /><span style="font-weight: bold">हैपी ब्लॉगिंग! </span> <br />-दिलीप मंडल</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-68075255559440992372007-12-17T08:33:00.000+05:302008-12-10T18:46:52.979+05:30क्या हिन्दी चिट्ठाकारी थ्योरिटिकल इनएडिकुएसी से ग्रस्त है<p>हिन्दी की चिट्ठाकारी पर हिन्दी की दुनिया (यानि खांटी हिन्दी वाले....लेखक, प्राध्यापक, आलोचक, चकचक आदि) की प्रतिक्रियाएं सुनने का जितना अवसर हमें मिलता उतना अन्य चिट्ठाकारों को शायद नहीं वजह बस इतनी हे कि इस कोटि के लोगों को हम सहज उपलब्ध हैं, बस हाथभर की दूरी पर। इसलिए विश्वास से कह सकते हैं कि हाल में गैर चिट्ठाकार हिंदीबाजों में चिट्ठाकारी को लेकर बेचैनी बढ़ी है। कवर स्टोरियों और हर मंच से हो रही बातों ने उन्हें विश्वास दिला दिया है कि अब नजरअंदाज भर करने से काम नहीं चलेगा। चिट्ठाकारी को जानना पड़ेगा और उखाड़ना पड़ेगा। नीलिमा के हालिया काम के बाद एक के बाद कई अखबारी लोगों ने हिन्दी चिट्ठाकारी का लेकर सवाल जबाव किए हैं जो या तो छप रहे हैं या छप चुके हैं। इस सब के मायने क्या हैं ? पहले तो खुश होने आदि की रस्म निबाही जा सकती है कि लो देखो हम तो कह ही रहे थे कि ऐसा होगा वगैरह वगैरह। पर कुछ सवाल भी खड़े होते हैं, ये हैं तैयारी के। हम कितने तैयार हैं। 1370 चिट्ठे, 40000 पोस्टों के बाद हिन्दी चिट्ठाकारी कितनी तैयार हो पाई है। </p><br /><br /><br /><p>हम पाते हैं कि अपने बिंदासपन के लिहाज से और विविधता के लिहाज से चिट्ठाकारी अपनी गति से चल रही है और बिंदास चल रही है तथा यही वह शक्ति है जो गैर चिट्ठाकारों को आकर्षित कर रही है। एक अन्य पक्ष तकनीक का है तथा सहज ही कहा जा सकता है कि पठ्य,पॉडकास्ट, वॉडकास्ट आदि के कारण यहॉं भी चिट्ठाकारी ने संतोषजनक काम किया है। गैर तकनीकी लोग भी जब कुछ तकनीकी काम कर रहे हैं तो सहजता से इसे अन्य लोगों से बॉंट रहे हैं। इसलिए हम पाते हैं कि अब हिन्दी चिट्ठाकारी पर ये<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV2Wjhkf0Rrecc6zWi2P21zlp3twQHSkwU0Iqp-0aVayh6LE-oy7woEihrPQqfiwG9wXKErVnZjW5VoyQMfbSnduaDqcga8p-0G4xw686WE0xnRLLUQJizvV-3yJvaRnO-ZtQzgO9IV6s/s1600-h/pen.jpg"></a> सवाल नहीं लगाए जा रहे हैं कि चिट्ठों को गिनती के लोग पढ़ते हैं (क्योंकि हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं की दयनीय हालत के चलते सच तो यह है कि कई चिट्ठाकार शायद अभी से बहुत से प्रिंट लेखकों से ज्यादा पढे जा रहे हैं) न ही विषयगत विविधता ही कम है। हॉं आलोचकीय तेवर के लोग कभी कभी गुणात्मकता का सवाल जरूर उठा पाते हैं। पर ये उनके सबसे दमदार सवाल नहीं हैं।</p><br /><br /><br /><p>उनके सबसे दमदार सवाल जो उठने शुरू हुए हैं और जिनपर चिट्ठों में उतना विचार नहीं हुआ है।वे आलोचकीय विवेक से उपजे सैद्धांतिकी के सवाल हैं। खुद लिंकित मन में भी एंप्रिकल दृष्टि से चिट्ठों पर विचार अधिक किया गया है जबकि हिन्दी चिट्ठाकारी पर थ्योरिटिकल मनन कम हुआ है, जो हुआ है वह इधर उधर बिखरा है, आर्काइवों में दब गया है। यह वह मंच है जहॉं हम कुछ बेहद सामर्थ्यवान चिट्ठाकारों के होते हुए भी कम ध्यान दे पा रहे हैं। मसलन हिन्दी चिट्ठाकारी की <em>'थ्योरिटिकल इनएडिकुएसी'</em> से निजात दिलाने में शास्त्रीजी, ज्ञानदत्तजी, अभय, देबाशीष, अनिल, अनामदास, राजीव, उन्मुक्त जैसे चिट्ठाकार भूमिका अदा कर सकते हैं (नीलिमा का नाम नहीं गिनाया पर उनके पास तो इस 'जिम्मेदारी' से बचने का कोई उपाय है ही नहीं, कई अन्य सामर्थ्यवानों के नाम भी छूट गए हैं) मुझे लगता है कि हाल के ब्लॉगिंग चिंतन पर बाजार का दबाब यानि हिट, लिंक, ब्रांड कंसोलिडेशन, एग्रीगेटर, टिप्पणी आदि का दबाब कुछ बढ़ गया है तथा इसने सैद्धांतिकी की गुजांइश कुछ कम की है। थ्योरिटिकल इनएडिकुएसी की थ्योरिटिकल वजह ये जान पड़ती है कि हिंदी चिट्ठाकार आमतौर पर ये मानते हैं कि ये व्यक्तिगत उछाह को कहने का जरिया भर है...मतलब इस माध्यम को सैद्धांतिकी की जरूरत नहीं है- (किंतु सच यह है कि अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में ब्लॉगिंग को लेकर सिद्धांत गठन को महत्व दिया जाता रहा है)</p><br /><br /><br /><p>अंत में वे कुछ सवाल जो यहॉं या वहॉं उठाए गए तथा हमें ब्लॉग सैद्धांतिकी के सवाल जान पड़ते हैं, ये सभी अनुत्तरित सवाल नहीं है किंतु इनके अभिलेखित उत्तर अपेक्षित हैं-</p><br /><p>ब्लॉग स्वयं में माध्यम न होकर उपमाध्यम भर है- यह अंतरजालीय सैद्धांतिकी के मातहत संरचना है इसलिए इसकी 'स्वतंत्रता' एक दिखावा भर है।</p><br /><p>पुस्तक व छापेखाने की ही तरह यह इतिहास का दोहराव भर है जो हाईपर टेक्स्ट की हेज़ेमनी को वैसे ही खड़ी कर रही है जैसी कभी मुद्रित शब्द ने खड़ी की थी।</p><br /><p>असिमता के सवाल को ब्लॉगिंग बार बार दोहराती हे बिना इस अंतर्विरोध को सुलझाए कि अगर यह पहचान की कमी के मारों का जमावड़ा ही हे तो कैसे पहचान से जुड़े सत्ता संरचना (राजनीति) से मुक्त होने का दावा करने की सोच भी सकता है।</p><br /><p>डिजीटल डिवाइड को अगले स्तर तक ले जाती ह हिन्दी ब्लॉगिगं </p><br /><p>प्रतिरोध के स्थान पर समर्पण का विमर्श है हिन्दी चिट्ठाकारी। </p><br /><p>ऐसे ही कुछ और भी सवाल हैं, मुठभेड़ के लिए तैयार।</p><br /><br /><div class="wlWriterEditableSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:a3f9319e-21cb-4b3d-be34-9557babceabe" style="PADDING-RIGHT: 0px; DISPLAY: inline; PADDING-LEFT: 0px; PADDING-BOTTOM: 0px; MARGIN: 0px; PADDING-TOP: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/बà¥âलà¥à¤%20थà¥âयà¥à¤°à¥" rel="tag">ब्लॉग थ्योरी</a>,<a href="http://technorati.com/tags/blog%20theory" rel="tag">blog theory</a>,<a href="http://technorati.com/tags/Hindi%20blogging" rel="tag">Hindi blogging</a>,<a href="http://technorati.com/tags/masijeevi" rel="tag">masijeevi</a></div><br /><br /><br /><p></p>मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-1436566406154698292007-12-12T11:49:00.001+05:302007-12-12T16:58:25.910+05:30अब मेरे लिंकित मन का क्या होगा ?<p>अपनी पिछ्ली पोस्ट में मैंने जब अपने शोध की अवधि के समाप्त होने की घोषणा करते हुए शोध के नतीजों का नमूना पेश किया तो बहुत सी बधाइयां और सराहना मिली  ! पर <a href="http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/">आलोक जी</a> ने बधाई देते देते एक बहुत ही वाजिब शंका हवा मॆं उछाल दी कि अब लिंकित मन का क्या होगा ? जब मैंने यह काम शुरू किया था मुझे जरा भी आभास नहीं था कि यह काम इतना रोचक होगा और न ही यह पता था इस काम को करने के दौरान मेरा खुद का मन कितना लिंकित होगा ! आज मेरे शोध की अवधि खत्म हो गई है पर शोध की यह प्रकिया जारी रहने वाली है !आलोक जी, ब्लॉगों पर शोधपरक विचारों की इस खुली चौपाल ' लिंकित मन'  पर हिंदी ब्लॉग के विकास का इतिहास दर्ज होता रहेगा ! हिंदी ब्लागिंग पर शोध का यह काम <a href="hhttp://www.sarai.net/about-us/events/workshops/independent-fellowship-workshop-2007/independent-fellowship-workshop-2007ttp://">सराय</a> के सौजन्य से बहुत सही समय पर शुरू हुआ है ! इस काम की स्तरीयता का अनुमान तो भविष्य में ही हो पाएगा पर हिंदी चिट्ठाकारिता के इतिहास का दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया जारी रहनी भी बहुत अहम है ! अब तक लिंकित मन पर मैंने यथासंभव शोधपरक ईमानदारी को निभाया है ! आगे भी इस पहल को जारी रखा जाएगा ! लेकिन अब लिंकित मन मेरा निजी चिट्ठा न होकर एक सामूहिक प्रयास से हिंदी ब्लॉगित जाति के मन को लिंकित करने की एक कोशिश के रूप में सामने आएगा ! मैंने प्रारंभ से ही इस ब्लॉग को "हिंदी ब्लॉगों से संबंधित शोधपरक विचारों की एक खुली चौपाल " कहा है ! लिंकित मन पर लिखित चिट्ठों पर आईं टिप्पणियों के जरिए मुझे शोध की दिशा व उसके स्वरूप के बारे मॆं आप सबकी राय मिलती रही है और इस तरह यह शोध एकालाप और निष्क्रिय वैचारिक प्रलाप न होकर जीवंत और समसामयिक बना रहा !अब लिंकित मन का क्या होगा ?जैसा सवाल मेरे मन में अब तक नहीं उठा था क्योंकि इस काम से जुडाव- लगाव की स्थिति रही है और शुरू से ही यह काम  एक जारी रहने वले चिट्ठे के बतौर शुरू किया गया था ! वरना मैं शोध के लिए कोई और दबा छिपा परंपरागत तरीका भी अपना सकती थी ! शोध की औपचारिकताएं मात्र निभाई गईं हैं शोध तो लगातार जारी है आज भी !  </p> <p>मेरे द्वारा हिंदी चिटठाकारी के स्वरूप और विकास को समझने का प्रयास अब तक की हिंदी चिट्ठाकारिता के इतिहास को दर्ज करता है ! भविष्य की हिंदी चिट्ठाकारिता की समझ तभी बनेगी जब हम लगातार ब्लॉगित समाज के लिंकन के पैर्टनों और खासियतों को समझते चलें ! तो लिंकित मन पर आप सबका स्वागत है ! आप सभी अपने हिंदी ब्लॉगिंग के अनुभवों और ब्लॉगरी के बारे में अपनी समझ व  राय को लिंकितमन पर लिखिए ! लिंकित मन अब मेरा निजी चिट्ठा न होकर हिंदी ब्लॉगिया जाति के अंदाज को बयां करने का एक मिलाजुला कदम होगा ! तो फिर  आइए रचॆं हिंदी चिट्ठाकारिता का एक मौलिक मुहावरा और  रचॆं एक सामूहिक इतिहास !! आमीन !!</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-82164555374136648722007-12-06T09:50:00.001+05:302007-12-06T12:37:27.809+05:30यूँ हुआ उस महफिल में चर्चा तेरी हिम्मत का<p> </p> <p>हिन्‍दी चिट्ठाकारी पर आज हमने अपना परचा प्रस्‍तुत किया। हमारे लिए मुश्किल काम था एक तो इसलिए कि ब्‍लॉगरों के बीच अपनी बात रखने में सुविधा रहती है कि आपकी बात जिसे ठीक नहीं लगेगी वह कह देगा कि ये आपकी राय है पर हम इससे कुछ अलग सोचते हैं। पर एक ऐसे विद्वत समुदाय के समक्ष जो अपने अपने क्षेत्र में तो पारंगत हैं पर चिट्ठाकार अनिवार्यत नहीं है, वे तो हमें हिंदी चिट्ठाकारों की नुमांइदगी करने वाला मान बैठेंगे...यही हुआ भी। पूरे चिट्ठाकार समुदाय का प्रतिनिधित्‍व एक गुरूतर काम था और हम कतई नहीं समझते कि हम इस योग्‍य हैं। खैर...हमने जैसा ब्‍लॉगजगत को समझा है लोंगों के सामने रखा। बाद में लोगों ने दाद भी दी (पर पता नहीं ये शिष्‍टाचार था कि व्‍यंग्‍य :)) </p> <p>परचा लंबा है इसलिए यहॉं नहीं दिया जा रहा, उम्‍मीद है जल्‍द प्रकाशित किया जाएगा।  फिलहाल हम उस पावर-प्‍वाईंट प्रस्‍तुतिकरण की स्‍लाइड्स को दिखा रहे हैं जो हमने इस <a href="http://www.sarai.net/about-us/events/workshops/independent-fellowship-workshop-2007/independent-fellowship-workshop-2007">कार्यशाला</a> में दिखाईं। कार्यशाला अभी LTG सभागार मंडी हाऊस में जारी है तथा दो दिन और चलेगी।</p> <p> </p> <p><strong>स्‍लाइड्स <div class="wlWriterSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:84a6cb5a-81d8-4760-865a-905bc0461063" style="padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%a0%e0%a4%be%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80" rel="tag">चिट्ठाकारी</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%be" rel="tag">कार्यशाला</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b6%e0%a5%8b%e0%a4%a7%e0%a4%aa%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0" rel="tag">शोधपत्र</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%97%e0%a4%b6%e0%a5%8b%e0%a4%a7" rel="tag">ब्लॉगशोध</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%be" rel="tag">नीलिमा</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%a4%20%e0%a4%ae%e0%a4%a8" rel="tag">लिंकित मन</a>,<a href="http://technorati.com/tags/Blog%20research" rel="tag">Blog research</a>,<a href="http://technorati.com/tags/sarai%20workshop" rel="tag">sarai workshop</a>,<a href="http://technorati.com/tags/independent%20research%20fellowship" rel="tag">independent research fellowship</a>,<a href="http://technorati.com/tags/neelima" rel="tag">neelima</a>,<a href="http://technorati.com/tags/linkit%20mann" rel="tag">linkit mann</a></div> </strong></p> <p></p> <p><embed pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer" src="http://picasaweb.google.co.uk/s/c/bin/slideshow.swf" width="400" height="267" type="application/x-shockwave-flash" flashvars="host=picasaweb.google.co.uk&RGB=0x000000&feed=http%3A%2F%2Fpicasaweb.google.co.uk%2Fdata%2Ffeed%2Fapi%2Fuser%2Fneelimasayshi%2Falbumid%2F5140538478499916689%3Fkind%3Dphoto%26alt%3Drss" /></p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-91910746293567464192007-11-28T12:57:00.001+05:302007-11-28T13:10:50.390+05:30टू ब्लॉग ऑर नॉट टू ब्लॉग ?<p> </p> <p><strong><u>शोध निष्‍कर्षमाला-2</u></strong></p> <p>आपका ब्लॉग आपके लिए क्या अहमियत रखता है ? क्या वह इंटरनेट की कल्पनातीत गति वाली सडक पर आपके द्वारा खोली गई एक दुकान है ? या फिर आपका एक ऎसा पवित्र कोना है जहां बैठकर आप अपने उदासी भरे गीत गा- सुना सकते हैं ? या फिर यह आपके लिए अंदर के आवेश और <a href="httphttp://bhadas.blogspot.com/2007/11/blog-post_265.html://">भडास</a> को जगजाहिर कर  दुनिया को क्रांति के मुहाने पर ला खडा करने का एक चमत्कारी रास्ता है ? आप प्रिंट माध्यमों से पछाड खाकर यहां औचक ही पहुंच गए एक संभावनापूर्ण लेखक हैं जिसको भविष्य की रोजीरोटी यहीं से पैदा होने की उम्मीद है ? <br />ब्लॉग क्रांति के घट जाने के बाद अब ब्लॉगिंग क्यूं की जाए ? और ब्लॉगिंग व्यवहार किन कारकों से प्रभावित होता है ?-  सरीखे सवालों की पडताल करते हुए <strong><em>ब्लॉगिंग की उत्प्रेरणा</em></strong> , <strong><em>ब्लॉगिंग की मंशा</em></strong> और <strong><em>ब्लॉगिंग व्यवहार</em></strong> पर विचार करने वाली कुछ सामग्री मिली !जब ब्लॉगिंग की प्रक्रिया पर विचार करते हैं तो यह बात खुल कर सामने आती है कि विश्व की दूसरी भाषाओं में हो रही चिट्ठाकारिता से फिलहाल <a href="http://diaryofanindian.blogspot.com/2007/09/blog-post_17.html">हिंदी चिट्ठाकारी का तेवर</a> अलग है ! एक मायने में यह <a href="http://anubhaw.blogspot.com/2007/10/blog-post.html">एक पास आता हुआ समाज</a> है जहां इस विधा के उदय व विकास पर तीखी बहसें हैं , भाषा व तकनीक का  तालमेल साधने वाले <a href="http://raviratlami.blogspot.com/2007/11/blog-post_26.html">आचार्य</a> हैं , तीखे सामाजिक विमर्श करने वाले <a href="http://mohalla.blogspot.com/2007/11/blog-post_7912.html">चिट्ठाकार</a> हैं , संवेदना के धरातल पर कविता और <a href="http://azdak.blogspot.com/2007/11/blog-post_28.html">गद्यगीत</a> करने वाले रचनाकार हैं , चिट्ठाकारी के लिए आचार संहिता तथा उसके <a href="http://aaina2.wordpress.com/2007/11/15/lets-go-mobile/">स्वरूप</a> पर <a href="http://mohalla.blogspot.com/2007/11/blog-post_7912.html">वैचारिकियां</a> देने वाले नीतिकार हैं ,इंटरंनेट पर हिंदी साहित्य के दस्तावेजीकण का प्रयास करने वाले <a href="http://rachanakar.blogspot.com/2007/11/blog-post_28.html">रचनाकार</a> हैं ! वे भी हैं जिनका उद्देश्य चिट्ठाकारिता के जरिए हिंदी <a href="httphttp://hindini.com/fursatiya/?p=346://">भाषा का सजग विकास</a> करना है ---! यहां हल्का -भारी एक साथ है ! लेखक आलोचक एक साथ है !   ...कह सकते हैं कि हिंदी चिट्ठाकारिता पाठक बना रही है और इसका उल्टा कि पाठक ब्लॉग बना रहे हैं -Blogs creat the audience and the audience creat the blogs ! जाहिर है कि एक चिट्ठाकार का ब्लॉग व्यवहार दूसरे चिट्ठाकार के ब्लॉग व्यवहार  की तुलना में अलग है ! </p> <p>यहां हम फिर उठाए गए सवाल पर पहुंचते हैं कि हिंदी ब्लॉगित जाति का ब्लॉग बिहेवियर कैसा है तथा वह किन कारकों से प्रभावित होता है ! ब्लॉगिंग की उत्प्रेरणा चिट्ठाकार के लिए कम या ज्यादा हो सकती है ! कोई भी चिट्ठाकार अपने द्वारा की गई चिट्ठाकारिता के परिणाम या प्रतिफल के लिए कितना आकर्षित है -इसी से तय होता है कि अमुक चिट्ठाकार में ब्लॉगिंग के लिए कितना उत्प्रेरण है ! हिंदी ब्लॉगित समाज में <a href="hthttp://dekhasuna.blogspot.com/2007/09/blog-post_17.htmltp://">ब्लॉगिंग के प्रतिफल</a> का आकर्षण बहुत है ! चिट्ठाकार को अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों का इंतजार रहता है , <a href="hthttp://ashishmaharishi.blogspot.com/2007/09/blog-post_7395.htmltp://">व्यावसायिक भविष्य</a> को लेकर सजगता  है ,सामाजिक संबंध बनाने की कामना भी है !  यहां स्वांत; सुखाय रधुनाथ गाथा गाने की कामना कम ही है !  छोटे पर सक्रिय संवाद समूहों की विनिर्मिति इसका खास पहलू है ! दरअसल चिट्ठाकारों की ब्लॉगिंग मंशा (इंटेंशन) का सीधा संबंध ब्लॉगिंग उत्प्रेरण से है ! जितना अधिक उत्प्रेरण होगा उतनी ही मजबूत ब्लॉगिंग इंटेशन होगी ! हिंदी के कई चिट्ठाकार अभी स्थापित होने की प्रक्रिया में हैं अत: ये चिट्ठाकार अपने ब्लॉग की भविष्यगत संभावनाओं पर विचार का काम उतनी सजगता से नहीं करते !. चिट्ठों और उनपर आने वाली टिप्पणियों के कॉपीराइट के निर्धारण को लेकर कई चिट्ठाकारों ने विमर्श किया है! चिट्ठों के रोमन प्रतिरूप पर किसका कॉपीराइट है यह सवाल भी हाल ही में उठा और उसपर काफी बहस का माहौल बना ! इससे जाहिर होता है कि हिंदी चिट्ठाकारी ने आकार लेना शुरू कर दिया है तथा चिट्ठाकार अपने लिखे चिट्ठों की सामग्री की उपादेयता व उसके भविष्य की संभावनाऎं तलाश रहा है ! </p> <p>ब्लॉगिंग़ इंटेंशन का ब्लॉगिंग बिहेवियर से सीधा सहसंबंध है ! ब्लॉग करने के आकर्षणों तथा अपने ब्लॉग की उपादेयता को लेकर तेजी से सक्रिय होता ब्लॉगर अपने ब्लॉग के प्रबंधन में ज्यादा समय व उर्जा खर्च करता है !हिंदी चिट्ठाकारों में अभी पूर्णकालिक रूप से ब्लॉगिंग करने का माहौल नहीं बना है पर ज्यादातर ब्लॉगर समय की कमी के व पारिवारिक व्यावसायिक जिम्मेदारियों के बावजूद अपने ब्लॉग के लिए समय निकालने का भरसक प्रयास करते दिखाई देते हैं ! चिट्ठाजगत (  एक फीड एग्रीगेटर ) पर धडाधड महाराज की लिस्ट में सबसे ऊपर बने रहने की कामना हर चिट्ठाकार की है ! अपने ब्लॉग की साज सज्जा नाम अपने प्रोफाइल , ब्लॉगरोल   पाठकों की संख्या , <a href="http://hgdp.blogspot.com/2007/11/blog-post_23.html">टिप्पणी करने वालों को बढावा</a> देने के लिए चिट्ठे की साइड बार में उनका सचित्र नामोल्लेख -- इन सबको लेकर चिट्ठाकार सक्रिय होते जा रहे हैं ! ब्लॉगिंग बिहेवियर में ब्लॉगर द्वारा अन्य ब्लॉगरों के चिट्ठों को पढना व उनपर टिप्पणी देना भी शामिल है ! इस कोण से देखने पर हिंदी का ब्लॉगर समुदाय नजदीक आता दिखाई देता है !यहां लिंकन प्रतिलिंकन की प्रवृति अधिकातर चिट्ठाकारों में दिखाई देती है ! विवादित मुद्दों पर लिखी गई पोस्टों के आसपास अनेक पोस्टों का जन्म होता है जिससे विवाद का मुद्दा भी विकसित होता चलता है तथा लिंकन के जरिए  उससे जुडी पोस्टों को भी पाठक या कहें कि ट्रेफिक  मिलता चलता है !  कम समय में ज्यादा चिट्ठे पढना व उनपर टिप्पणी देना  , टिप्पणी द्वारा दूसरे चिट्ठाकारों को अपने चिट्ठे तक लाना ,  इमेलिंग के जरिए मित्रों व परिचित ब्लॉगरों को नई पोस्ट की जानकारी देना , समय समय पर होने वाले <a href="http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/07/1.html">चिट्ठाकार सम्मेलन</a> , फोन के जरिए अपनी पोस्ट पर परिचित ब्लॉगरों की राय लेना  जैसी कई प्रवृतियां हैं जिनसे  एक पास आते , व्यवस्थित होते , उलझते , संवरते और आकार पाते हिंदी चिट्ठाकार समुदाय का स्वरूप उभरता है ! </p> <div class="wlWriterSmartContent" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:a6a0a30c-5f90-4a99-9b66-69305c7eb505" style="padding-right: 0px; display: inline; padding-left: 0px; padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-top: 0px">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80%20%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%97%20%e0%a4%b6%e0%a5%8b%e0%a4%a7" rel="tag">हिन्दी ब्लॉग शोध</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%a0%e0%a5%87" rel="tag">चिट्ठे</a>,<a href="http://technorati.com/tags/%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%af" rel="tag">सराय</a>,<a 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