जनसत्ता के स्तंभ चिट्ठाचर्चा में हाल का लेख हिन्दी ब्लॉगों की शब्द संपदा पर केंद्रित था। अविकल पाठ अखबारी लेख के नीचे दिया गया है-
ब्लॉगों की शब्द-संपदा
-विजेंद्र सिंह चौहान
हर साल बदलता है मौसम ! फिर इस साल ही क्योंकर अनबदला रहता ! सर्दी आ धमकी है, वैचारिक गर्माहट के लिए चंद गोष्ठियॉं होना बनता है। एक गोष्ठी हुई.....इस बार रवीन्द्र भवन में, किसी 'ईभाषा' को लेकर। खबर पहुँची हमने अनसुनी- सी कर दी...बहुत सिनीसिज्म न अब खुद में बचा है न दूसरों का ही सहा जाता है सो हमने कल्पना कर ली कि क्या हुआ होगा। लूज शंटिंग की दीप्ति (लूजशंटिंग डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) ने लौटकर पूरे ब्लॉगजगत को बताया कि कैसे जाने माने वक्ता-श्रोता ईभाषा के बहाने ब्लॉग भाषा पर हँसे हँसाए, सुनकर हमने राहत की सॉंस ली कि चलो जो हुआ हमारी कल्पना के अनुरूप ही हुआ। दुनिया भर की ब्लॉगिंग में वे ब्लॉगर जो गैर ब्लॉगिंग माध्यमों से आते हैं तथा उनके बारे में ब्लॉगिंग करते हैं तथा वे जो ब्लॉगर हैं तथा गैर ब्लॉग माध्यमों में ब्लॉगिंग के विषय में लिखते हैं, दोनों ही सेतु चिट्ठाकार या ब्रिज ब्लॉगर कहलाते हैं। हम ब्रिज ब्लॉगर अक्सर ही ब्लॉगिंग पर भाषा में असावधानी, सतही समझ, अघाई मुटमरदी आदि आरोपों से दोचार होते हैं। बहुधा ये आरोप चंद 'टेक्नोफोबिक' लोगों का स्यापा भर होता है जिन्हें ब्लॉगिंग अच्छी -खासी चलती साहित्य की शिष्ट दुनिया में असभ्य हस्तक्षेप लगती है। इन्हें कितना भी नजरअंदाज करें किंतु ब्लॉगिंग का भाषिक योगदान एक ऐसा सवाल है जो आज नहीं तो कल पूछा ही जाएगा।
गनीमत ये है कि जबाव बहुत दूर नहीं है.. अजीत वडनेरकर का शब्दों का सफर (शब्दावली डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) की तुलना केवल 'शब्दों का जीवन' (भोलानाथ तिवारी) से ही की जा सकती है , किंतु शब्दों का जीवन एक अति लघु पुस्तक है जबकि शब्दों का सफर एक लंबा सफर है जो अभी जारी है। अजीत अपने इस ब्लॉग में शब्दों की व्युत्पत्ति, यात्रा, शब्दों का चलना, मुड़ना, टूटना, खिसकना सब दर्ज करते हैं। हिन्दी का यह एक सबसे सम्मानित ब्लॉग है। उदाहरण के लिए जेब, पॉकेट, थैली, थाली, बटुआ, बंटवारा, बटनिया, आवंटन, खरीता, पाटिल, खीसा, स्थालिका आदि शब्द यानि मालमत्ता रखने के ठिकानों पर "जेब" शृंखला की सात पोस्टों में अजीत इन शब्दों के स्रोत व संबंधों के विषय में शोधपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करते हैं। अगर टिप्पणियों को शामिल कर लिया जाए तो ये चिट्ठा कई गोष्ठियों को पानी पिला सकता है।
ब्लॉगों की शब्द संपदा पर कोई भी बात तब तक अधूरी है जब तक लपूझन्ना (लपूझन्ना डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम), अनामदास (अनामदासब्लॉग डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम), प्रत्यक्षा (प्रत्यक्षा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) तथा प्रमोद (अज़दक डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) की चर्चा न की जाए। लपूझन्ना तथा अनामदास मौलिक रचनात्मक शब्द प्रयुक्तियों के लिए जाने जाते हैं। वहीं प्रत्यक्षा व प्रमोद के ब्लॉगों में गद्य अक्सर कविता की खिड़कियॉं मजे में झांक - झांक आता है। प्रमोद के एक मुक्त गल्प- 'एक बेवकूफ लड़की का अंत' से बानगी देखें -
दरवाज़े के ओट खड़े होकर रीझाना, मुंह बिराना, और उचित मात्रा में जब ज़रूरत पड़े लजाने का गुर जानती थी वह. जानती थी देवरजी की खाने में पसन्द, भसुरजी का गुस्सा और जेठानीजी को दोपहर सब निपटाने के बाद गोड़ दबवाना कितना पसन्द है. ओसारे में पराये-ठिलियाये मेहमानों की बतकुट्टन में जब भौजी का दिमाग नहीं चलता, सिर पर साड़ी डाले, सिल पर मसाला पिस चुप्पे बैंगन-लौकी का बजका और चाय चलाकर सबको खुश करने का सलीका जानती थी वह. मलपुआ में कितना केला जाएगा, परवल का अचार कब सूखेगा, रात में बच्ची उठ जाती है दीदी से नहीं सपरता तो बिना किसी के खबर हुए दीदी की बच्ची संभालती थी वह....
यानि वाकी सब अवदान छोड़ भी दें इन सवा लाख पोस्टों में जो शब्द संपदा जुड़ गई सिर्फ उसे गिन लें तो तय है कि हिन्दी ब्लॉगिंग हिन्दी से विपन्नता को बरकाने जीजान से लगी है।
शब्द जब इस्तेमाल होंगें तो गलत भी होंगे ! इसलिए यदि आप ऐसे किसी तकनीकी जुगाड़ की ताक में हैं जो आपकी हिन्दी से वर्तनी की गलतियॉं दूर कर सके तो आपका इंतजार बस खत्म हुआ समझिए। रवि रतलामी (रवि रतलामी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) ने अपनी हालिया पोस्ट में हिन्दी के उपलब्ध वर्तनी जॉंचकों (स्पेलचेकर) की तुलनात्मक समीक्षा पेश की। आप हिन्दी में वर्तनी जॉंचक बहु-प्लेटफ़ॉर्मों और बहु-उत्पादों में प्राप्त कर सकते हैं. हिन्दी राइटर, एमएस वर्ड हिन्दी तथा गूगल क्रोम में अंतर्निर्मित हिन्दी स्पेल-चेकर है. ओपन-ऑफ़िस तथा मॉजिल्ला फायरफ़ॉक्स में आप इसे एडऑन के रूप में डाल सकते हैं। ये औजार अपने डाटाबेस से तुलना कर उन शब्दों को रेखांकित कर देते हैं जो इन्हें अशुद्ध प्रतीत होते हैं तथा इनकी सही वर्तनी सुझाते भी हैं। इस तरह एक क्लिक भर से आप वर्तनी की गलतियों से छुटकारा पा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि एमएसवर्ड हिन्दी का वर्तनी जॉंचक विकसित शब्दभंडार तथा थिसारस से युक्त पेशेवर औजार है इसलिए निश्चित तौर पर ज्यादा प्रभावशाली है।
4 comments:
हूं, अच्छा? एक फ़ोन करके बताना तक न हुआ? बिजेन्दर का लजाना हुआ? हमें जादा संपदासन्न समझ लिया? कि बंबे का दिल्ली से दूरे किये रहने का जतन किया?
ऐसे लेख समाचार पत्र[प्रिंट मीडिया] और ब्लाग जगत के लिए सेतु का काम करेंगे। अभी हाल ही में राज्स्थान टाइम्स ने भी छः नारी ब्लागर्स के बारे में लिखा था। प्रया स्तुतीय है।
ओह, लगता है फिर से हिंदी ब्लौगिंग का वह दौर लौट रहा है जब कुछ चंद लोगों का ब्लौग चर्चा किसी अखबार में होगा और उस पर सभी ब्लौगिये इतराते फिरेंगे.. कुछ महिने पहले ही यह दौर आकर गया था, फिर से.. मगर कभी क्या किसी ने सोचा है कि जिस अखबार में जिस किसी ब्लौग के बारे में लिखा जाता है वो उस पत्रकार कि पसंद भर ही होता है.. मेरे यह कहने का मतलब यह नहीं निकाला जाये कि इस चर्चा में जिस ब्लौग कि चर्चा की गई है उस पर मैं यह कह रहा हूं.. मुझे भी यह सभी ब्लौग बहुत पसंद है.. खास करके लपूझन्ना और अनामदास जी का.. खैर अच्छा है.. बधाई सभी को..
आगे आगे देखिये, होता है क्या ?
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