Thursday, April 26, 2007

साथी चिट्ठाकार पर एक नजर – प्रत्यक्षा --या कहूं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या

साथी चिट्ठाकारों पर लिखना कोई आसान काम नहीं !सुनील दीपक जी पर लिखते हुए मैंने जाना ! फुरसतिया जी को आकर सुझाव देना पडा कि कम लिखा गया है शोध कार्य जरा मेहनत से किया जाए ! थोडी विवादी बयार भी चलने को हुई यूनुस भाई के रहमों करम से पर रवि जी ने संभाल लिया यह कहकर कि यह तो धर्म का काम काम है गीता या कुरान पढने के समान ! सो संतोष और सब तरफ सुकून पाकर लिखने बैठे ! इधर विवादों के घेरे में से समकाल की मसीहाई आवाज भी सुनाई दी कि बेकार के मामालों पर वक्त बेकार करने कि बजाए ---




लिखना चाहिए था घुघुती बासुती,प्रत्यक्षा,रत्ना,अन्तर्मन,रचना और नीलिमा जैसे
स्वरों पर जो दो मोर्चों पर लडते हुए भी इस हिंदी चिट्ठा संसार को नई भंगिमा दे रहे हैं.

तो हम भी सोचे कि एक एक करके इन साथियों पर लिखा जाए ! आज प्रत्यक्षा जी को चुना !
वैसे जब हम नए नए आए थे तो प्रत्यक्षा जी ने हमें अपने 5 शिकारों में लिस्टित किया था और हमने कहा कि मुजरिम हाजिर है प्रत्यक्षा जी ! खुद शिकार बनी प्रत्यक्षा जी ने अपने बारे में बताते हुए जो कहा हमने उसमें भी उनके चिट्ठाकार व्यक्तिव को देखने की कोशिश की-



“चौथी बात ..... कभी नहीं सोचा था कि चिट्ठा लिखूँगी । मैं अपने को एक बहुत प्रायवेट पर्सन समझती थी । आसानी से नहीं खुलने वाली । चिट्ठाकारी ने ये मुगालता अपने बारे में खत्म कर दिया । चिट्ठाकारी के माध्यम से अंतर्मुखी व्यक्तित्व के खुलने की बात को स्वीकार करते हुए वे बताती हैं कि यह संक्रामक रोग उन्हें किस कदर अजीज है और इससे मिलने वाला आनंद कैसा है - ” छूत की बीमारी एक बार जो लगी सो ऐसे ही छूटती नहीं..... तो बस हाजिर हैं हम भी
यहाँ.....इस हिन्दी चिट्ठों की दुनिया में लडखडाते से पहले कदम.......चिट्ठाकरों को पढ कर वही आनंद मिल रहा है जो एक ज़माने में अच्छी पत्रिकओं को पढ कर मिलता था......सो चिट्ठाकार बँधुओं...लिखते रहें, पढते रहें और ये दुआ कि ये
संख्या दिन दो गुनी रात चौगुनी बढती रहे.......”


प्रत्यक्षा के लिए..बाहर की बेडौल दुनिया का सही इलाज है रचनाकार के शब्द कटार सी तेज धार वाले विद्रोह के खून से रंगे वे शब्द जब बीन बजाने पर सांप की तरह फुंफकारते हुए पिटारी से बाहर आते हैं तब इन पर अंकुश लगा पाना किसी की मजाल नहीं- गौर फरमाएं-


आपके ख्याल में दुनिया बडी बेडौल है ? सही फरमाया आपने जनाब!
पर इसका
भी इलाज है मेरे पास..
और भी शब्द हैं न मेरे पास...
इन्हें भी देखते जाईये.......
इन्हे देखिये..ये खून से रंगे शब्द हैं..विद्रोह के......ये तेज़ धार कटार हैं….
संभलिये..वरना चीर कर रख देंगे....बडी घात लगाकर पकडा है इन्हे...कई दिन और कई रात लगे, साँस थामकर, जंगलों में, पहाडों पर , घाटियों में, शहरों में पीछा
करके ,पकड में आये हैं..पर अब देखें मेरे काबू में हैं.....
बीन बजाऊँगा और ये साँप की तरह झूमकर बाहर आ जायेंगे..ये हैं बहुत
खतरनाक, एक बार बाहर आ गये तो वापस अंदर डालना बहुत मुश्किल है”


चिट्ठाकारी की अदा से भीतर का ताप- आक्रोश बाहर चिट्ठों के रूप में क्या सकारात्मक
रूप ले लेता है यह तो उनके चिट्ठों को पढकर बखूबी जाना जा सकता है ! यहां की दुनिया में इन शब्दों को सच्चे सहृदय भी तो मिलते हैं—


जब कद्रदान मिलें, तब इन्हे बाहर निकालूँगा



प्रत्यक्षा का सच्चा सीधा चिट्ठाकार व्यक्तित्व उनके उन चिट्ठों से सामने आता है जिनमें वे रसोई में बने छुट्टी के दिन के नाश्ते से लेकर गुड के बनने की मिठास तक पर लिखती हैं ! यही कारणे है कि उन्हें चिट्ठा जगत के विवादों में भी पडना नहीं भाता वे तो तब परेशान होती हैं जब


पर मुझे
इनसे परेशानी नही
परेशानी तो तब होती है
जब सही, गलत हो जाता है
सफेद काला हो जाता है

परेशानी में उन्हें इरफान की कहानी लिखनी पडती है !




“ अब आप बतायें ये और हम , हिन्दू हैं या मुसलमान , या सिर्फ इंसान ।
दोस्ती , भाईचारा ,देशप्रेम . किसमें एक दूसरे से ज्यादा और कम । और क्यों साबित करना पडे । जैसे एक नदी बहती”

प्रत्यक्षा का साहित्य प्रेमी मन उनकी हर पोस्ट में झलकता है गुलजार, खैयाम कमलेश्वर आदि के जिक्र से लेकर कविताओं की बानगी वे देती चलती हैं ! खुद भी कवि हृदया हैं पर इस जगह कविता की ज्यादा दरकार न पाकर वे कहती हैं



“ अब देखिये इलजाम लगता है हम पर कि ऐसी कवितायें लिखते हैं जिसे कोई समझता नहीं . अरे भाई, कविताई का यही तो जन्मसिद्ध अधिकार है. जब सब समझ जायें तो फिर कविता क्या हुई. पर यहाँ तो भाई लोगों के लेख में भी ऐसी बातें घुसपैठियों की तरह सेंध मार रही है”


जहां कविता है वहां गणित कहां , समीकरण कहां , आंकडे कहां वहां तो होगी विशुद्ध भावना और आस्था--


मुझे बचपन से गणित समझ नहीं आता
जब छोटी थी तब भी नहीं
और आज जब
बड़ी हो गई हूँ तब भी नहीं

उनके चिट्ठाकार का यह आस्थावादी मन ही है जो स्त्री-विमर्श के मुठभेडी मुद्दों पर भी उनका सौम्य रूप ही सामने लाता है ! उनके रसोई विवाद में दिए तर्कों की साफगोई की तारीफ करते हुए मसिजीवी कहते हैं -


..... इतना कहने के बाद भी व्‍यक्तिगत तौर पर मुझे प्रत्‍यक्षा के इस तर्क की सराहना करनी पड़ेगी कि एक पुरुष किसी स्‍त्री पसंद को शोषण की किस्‍म बताए यह (मेल शोवेनिज्‍म़) अनुचित है”


देखिए प्रत्यक्षा अपने प्रोफाइल में अपने बारे में क्या लिखती हैं--



कई बार कल्पनायें पँख पसारती हैं.....शब्द जो टँगे हैं हवाओं में, आ जाते
हैं गिरफ्त में....कोई आकार, कोई रंग ले लेते हैं खुद बखुद.... और ..कोई रेशमी सपना फिसल जाता है आँखों के भीतर....अचानक , ऐसे ही शब्दों और सुरों की दुनिया खींचती है...रंगों का आकर्षण बेचैन करता है....


प्रत्यक्षा की चिट्ठाकार दुनिया में रंग है, समर्पण है , ललक है , सुकून है , भाव हैं बाहर का कुरूप जगत जहां उनकी आस्थावादी चिट्ठाकार लेखनी का संस्पर्श पाकर ताजा और रंगमय दिखने लगता है ! यहां जटिलता नहीं सादगी है , शोर नहीं मंथरता है, चौंध नहीं सौम्यता है! ओर हॉं ढेर सारा अतीतमोह यानि नास्‍तॉल्जिया है।
तो यह हैं प्रत्यक्षा जी हमारी नजर से ! जब हिंदी साहित्य का आधा इतिहास लिखा जा रहा है तो क्यों न हम भी हिंदी चिट्ठा जगत का आधा इतिहास दर्ज कर दें! ऎसे ही और रूपों में !



15 comments:

Anonymous said...

प्रत्यक्षा, नीलिमा, सुजाता, बेजी...नारद पर मौजूद देवियाँ...एक जैसी विदुषी हैं. उनका अपना अंदाज़ है, उनमें नए ज़माने की योग्य और दक्ष महिला वाला आत्मविश्वास और तेवर है. वे विवादों से बचती हुई दिखती हैं लेकिन उनकी विचारों की गहराई, समझ और चिंतनशीलता पर आप शक नहीं कर सकते. ज़ोरे कलम हो और ज़ियादा...आपको अलग से महिला से ख़ाने में नहीं डालना चाहता, नाराज़ न होइएगा...कुछ बात है आप सब में, आप सब को मेरा सादर नमन.
अनामदास

Divine India said...

अनामदास का पोथा उपर है अब नाम बाले भी आ गये… तुमने तो गहन रिसर्च कर डाला साथी चिट्ठाकार पर्…शायद इतना वह स्वय भी न जानती हों अपने बारे में…बैसे भी ब्लागर जगत में देवियों ने ऊँचा मकाम बनाया हुआ है…बस बने रहें…धन्यवाद!!

Unknown said...

क्या कभी हम जैसे छोटे चिट्ठाकारो का नम्बर भी आएगा । आपने अभी दो चिट्ठाकारो का सर्वेक्षन किया है जिन के बारे मे सब कुछ पोजिटिव ही लिखा है । कोई एसे चिट्ठाकार को भी ले जिसके बारे मे आप कुछ नेगिटिव भी जानती हो । :)

Pramendra Pratap Singh said...

एक एक साथी चिठ्ठाकारों के बारे में पढ़ कर अच्‍छा लग रहा है। कभी कुछ बात मन को कचोटती है। कुछ लोगों को शन्ति पंसद नही होती है।

प्रत्‍यक्षा जी, समीर जी,रवि जी, रामचन्‍द्र जी जैसे व्‍यक्तित्‍व को देख कर लगता है कि व्‍यक्ति बिना विवादों के भी जी सकता है। ऐसे लोग प्रेरणा देते है।

Udan Tashtari said...

बढ़िया शोध जारी है. अच्छा लिखा प्रत्यक्षा जी के विषय में. बधाई!!!

Anonymous said...

"थोडी विवादी बयार भी चलने को हुई यूनुस भाई के रहमों करम से ..."
Yunus bhai nahi..Riyaj bhai

Anonymous said...

खूब भालो, सही राह पर हो, एक-२ कर लपेट लो इन सभी हस्तियों को। :)

Tarun said...

प्रत्यक्षा तो तीन तीन फ्रंट में डटी हुईं हैं

अनूप शुक्ल said...

प्रत्यक्षाजी के बारे में क्या कहेंवे कवियत्री है, कथाकार है, चित्रकार हैं, मूर्तिकार हैं, धुरंधर पाठिका हैं, संगीतप्रेमी हैं और चिट्ठाकार तो खैर हैं हीं। उनकी रुचियों और क्षमताऒं की सूची बड़ी लंबी है। वो तो कहो उनके ऊपर आलस्य का ठिठौना लगा है वर्ना मानव सभ्यता के सबसे काबिल लोगों में उनका नाम शामिल करने की मुहिम शुरू हो गयी होती।
वे खुद अपने बारे में कहती हैं-
मेरे अन्दर छिपी है
एक खामोश चुप लड़की
जो सिर्फ आंखों से बोलती है.

उसके गालों के गड्डे बतियाते हैं,
उसके होंठों का तिल मुस्काता है
उसकी उंगलिया खींचतीं हैं
हवा में तस्वीर ,बातों की

प्रत्यक्षा जी के बारे में दो लेख हमने लेख लिखे थे। एकपरिचयात्मक और एक उनसे बातचीत। अगर ठीक समझें तो इनको अपने लेख में संबंधित सामग्री के रूप में डाल दें।
आपने परिचय लिखा वह अच्छा है, बहुत अच्छा है। लेकिन थोड़ा सा और मेहनत की कीजिये भाई ताकि और थोड़ा अच्छा हो जाये। :)

अनूप भार्गव said...

प्रत्यक्षा को शब्दों में कैद करना सरल काम नहीं है , फ़िर भी अच्छा प्रयास है

पंकज बेंगाणी said...

बहुत अच्छा प्रयास है. जारी रखें.

प्रत्यक्षाजी के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई. :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

प्रत्यक्षा,से मुलाकात हुए अब तो कई वर्ष हो गए -
कविता इतनी तेजी से, करती है कि सुननेवाला बस सुनता रह जाये !
विचारोँ की गहनता, आज के युग की सशक्त नारी की आवाज है उनकी लेखनी मेँ !
जिसे चीखना नही पडता :-))
- हल्के से कही उनकी हर बात,देर तक गूँजती रहती है
सुननेवाले, पढनेवालोँ के जहन मेँ --
नीलिमा जी, आपने बहोत अच्छा लिखा है -- मेरी ओर से भी आप दोनोँ के लिये स्नेह व शुभकामना प्रेषित है
स -स्नेह,
लावण्या

Anonymous said...

अच्छा शब्दचित्र खींचा है प्रत्यक्षाजी का।

Srijan Shilpi said...

सुन्दर शब्दचित्र खींचा है आपने,प्रत्यक्षा जी का। यह श्रृंखला दिलचस्प लग रही है। शोध कुछ और हो तो बेहतर।

निरापद और लोकप्रिय चिट्ठाकारों पर जब तक यह लेखनी चल रही है, सब अच्छा-अच्छा ही है। असली चुनौती तब आएगी, जब विवादास्पद माने जाने वाले चिट्ठाकारों पर आपकी लेखनी चलेगी। तब संतुलन साधने की जरूरत होगी, खलनायकों के सकारात्मक पक्षों को उभार पाना इतना सहज नहीं होता। वैसे, शोध की जरूरत तो नायकों के कमजोर पहलुओं को उभारने के लिए भी होती है।

प्रशस्तिगाण चाहे जितनी प्रतिभा से और जितने कलात्मक अंदाज में हो, साहित्य में उसे दोयम दर्जे का ही माना जाता है। आशा है कि आप चिट्ठाकारों को समग्रता में देखने और दिखाने की कोशिश करेंगी।

Pratyaksha said...

अपने बारे में इतनी अच्छी बातें पढकर मन प्रसन्न हो गया । यकीन मानिये सारे दिन मुस्कुराते रहे ।

शुक्रिया नीलिमा , सिर्फ पॉसिटिव बातों को हाईलाईट करने के लिये :-)

सभी टिप्पणियों के लिये भी तहे दिल से शुक्रिया ।