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Thursday, July 12, 2007

चोर दरवाजे: चोटी के हिंदी-ब्‍लॉग और उनके ब्‍लॉगरोल

ये अपने मूल शोध-प्रस्‍ताव में ही था कि हिंदी चिट्ठाकारों के लिंकन व्‍यवहार का विश्‍लेषण किया जाएगा। इरादा ये देखने का है कि कौन किसे लिंक करने में रुचि लेता है। लिंक केवल सामग्री की उपयोगिता पर ही निर्भर नहीं करता वरन चिट्ठाकार की रुचि-अरुचि का परिचायक भी होता है। आमतौर पर ब्‍लॉगरोल में पसंदीदा चिट्ठों को जगह देने की प्रवृत्ति होती है। पर एक समस्‍या है ब्‍लॉगर का ब्लॉग रोल अंतहीन नहीं हो सकता इसलिए सबको प्रसन्‍न नहीं किया जा सकता, कुछ को चुनना शेष को रिजेक्‍ट करने जैसा ही होता है जो नेता टाईप या सर्वप्रिय ब्‍लागरों को पसंद नहीं वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते अत: वे लगभग सभीको या तो अपने रोल में जगह देते हैं (जैसे शास्‍त्रीजी) या फिर वे किसी को भी जगह नहीं देते (जैसे फुरसतिया, ईस्‍वामी)। हमने शुरुआती अध्‍ययन के लिए चिट्ठाजगत के सक्रियता क्रमांक से ऊपर के चंद ब्‍लॉगरों के बलॉग रोल को देखकर ये जानने की कोशिश की कि क्‍या वे एक-दूसरे को पसंद करते हैं ? परिणाम चौंकाने वाले हैं- इस तालिका को देखें ( बहुत मेहनत से बनाई है...क्लिक कर बड़ा करें)


x-मायने लिंक नहीं दिया, Y- मायने लिंक दिया गया

चिट्ठाकार हैं-


१फुरसतिया 2. ई-स्वामी 3. मेरा पन्ना 4. Raviratlami Ka Hindi Blog 5. उडन तश्तरी ....... 6. मोहल्ला 7. azdak 8. मसिजीवी 9.हिंदयुग्‍म 10. प्रत्यक्षा 11. जोगलिखी 12. कस्‍बा 13. रचनाकार 14. काकेश 15. ई-पंडित


तो स्थिति ये है कि हिंदी ब्लॉगिंग में फिल‍हाल रुचि का वैविध्‍य (एक दूसरे को कम पसंद करने के लिए इससे सम्‍मानजनक शब्‍द मिल नहीं पाया) इतना हो गया है कि शीर्ष पर टिके ब्‍लॉगर अक्‍सर अपने ही दूसरे ब्‍लॉग को तो रोल में रख रहे हैं किंतु साथी ब्‍लॉगरों को नहीं।


वैसे यहाँ यह भी विचारणीय है कि ब्‍लॉगरोल को लेकर जैसा आकर्षण व सतर्कता पहले दिखाई देता था अब नहीं है और बहुत से ब्‍लॉगर अपने ब्‍लॉगरोल हटाकर उनकी जगह विज्ञापनों को देने लगे हैं। हिंदी चिट्ठाकारी में विशिष्‍ट दो प्रवृत्तियॉं जरूर मुझे महत्वपूर्ण लगती हैं पहली है पत्रकार ब्‍लॉगरों द्वारा एक दूसरे का पुरजोर समर्थन लगभग प्रत्‍येक पत्रकार चिट्ठाकार ने एक-दूसरे को लिंकित कर रखा है, इससे सबको ट्रैफिक भी मिलता है और दरजा भी।


ऐसी ही बिरादरी युवा कवियों की भी है वे भी एक दूसरे को परस्‍पर लिंकित करने में विश्‍वास रखते हैं। ये अलग बात है कि जहॉं पत्रकारों को गैर पत्रकार भी अपने ब्‍लॉगरोल में रख रहे हैं वहीं कवियों को बस एक-दूसरे का ही सहारा है।


तो भाई लोग ये जो भाईचारा बहनापा है ये अक्‍सर पत्रकार का पत्रकार से है और कवि का कवि से- ऐसे में हम शोधार्थी बिरादरी को तव्‍वज्‍हो मिलने की कोई उम्‍मीद नहीं दिखती :(