नारद की आवाजाही पर हमें नजर रखनी पड़ती है, क्या करें काम ही ऐसा है बिना ये जाने कि कितने लोग आ जा रहे हैं, चिट्ठाकारी की दिशा का अनुमान करना कठिन है। इसलि जब एकाएक यह आवाजाही बढ़ी तब भी हमें बताने लायक बात लगी उसी तरह हमने ये भी दर्शाया कि विवाद काल में नारद आवाजाही बढ़ती है। अब जब एक से ज्यादा एग्रीगेटर मैदान में हैं- देबाशीष याद दिला चुके हैं कि पहले भी नारद का कोई एकाधिकार नहीं था- हालांकि पुख्ता आंकड़ों के अभाव में भी हमें लगता है कि नारद की लोकप्रियता इतनी अधिक हुआ करती थी कि अन्य की स्थिति बहुत मायने नहीं रखती थी। इतने अधिक 'थी' इसलिए इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि चिट्ठों की संख्या में आए इस उफान (चिट्ठाजगत इस समय लगभग 800 चिट्ठों को शमिल कर रहा है जबकि हमारे साथ ही शोध प्रारंभ करने वाली सह शोधार्थी गौरी ने एक यथार्थपरक अनुमान लगाते हुए फरवरी मार्च में 60-'70 सक्रिय चिट्ठों का अनुमान प्रस्तुत किया था) के वावजूद नारद के ट्रेफिक में खासी कमी आई है। अगर आलोकजी की शब्दावली में कहें तो नई दुकानों से पुरानी दुकान की ग्राहकी पर असर हुआ है। अभी केवल शुरुआत है तथा नारद के विपरीत चिट्ठाजगत व ब्लॉगवाणी के आवाजाही आंकड़े सार्वजनिक नहीं है इसलिए भी अभी यह कहना कठिन है कि इन एग्रीगेटरों के ट्रेफिक की आपसी सहसंबद्धता क्या है। पर इतना तय है कि चिट्ठाजगत के सामने आने के आस पास ही ट्रेफिक का यह चार्ट दक्षिणोन्मुख हुआ है। नारद तक पहुँचने वाले यूनीक विजीटरों की संख्या का मई से अब तक का लेखा जोखा इस प्रकार है-
यूनीक विजीटरों के आंकड़ों को इसलिए लिया गया है क्योंकि संभवत् सर्फर प्रतिबद्धता का सबसे सटीक अनुमान इनसे ही मिलता है वैसे पेजलोड के आंकड़े भी इसी अनुपात में ही हैं। क्या नारद के बढ़ते कदमों में लगी ये लगाम के हिंदी चिट्ठाकारी के लिए कोई गंभीर संकेत हैं- हमारा अनुमान है कि नहीं और हॉं दोनों ही ठीक है। जैसा रविजी व देबाशीष दोनों ही बताया कि नए एग्रीगेटरों का आना कुल मिलाकर बेहतर ही है पर दिककत यह है कि यदि उनकी पेशकदमी का मतलब नारद के ट्रेफिक में कमी आना है तो ये संकेत भले नहीं कहे जा सकते क्योंकि इसका मतलब है कि कुल मिलाकार चिट्ठाकार आधार (ब्लॉगर बेस) कम है तथा वह सभी एग्रीगेटरों को ट्रेफिक देने में असमर्थ है, दूसरे शब्दों में पाई का आकार इतना नहीं बढ़ा है कि सबका पेट भर सके- हालांकि तब भी सब साथ साथ रह सकते हैं खासकर इसलिए कि अभी तक तीनों में से किसी के भी व्यवसायिक घोषित लक्ष्य नहीं हैं, इसलिए ट्रेफिक कम भी रहा तो भी शायद ये दुकान न समेटें। लेकिन नारद के रूतबे में कमी किसी भी हिंदी बेवसाइट या चिट्ठों के लिए एक बुरी खबर है। एक बात यह भी कि चिट्ठाजगत व बलॉगवाणी को अपना लायल्टी बेस बनाना नहीं पड़ा नारद के ही लायल ग्राहक उन्हें स्वमेव मिल गए हैं इससे वे कई कसालों से बच गए हैं।
आलोकजी ने अपने निवेश सलाह के पोर्टल पर बताया कि आईटी व इंटरनेटी कंपनियों की खासियत यह होती है कि उनके पास लंबी चौड़ी भौतिक संपदा यानि जमीन जायदाद नहीं होती कि वे अपने औसत निष्पादन के बाद भी सश्ाक्त मानी जाएं, उनकी प्रोपर्टी तो आभासी ही होती है यानि ....
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की किसी भी कंपनी के पास न्यूनतम भौतिक संपत्ति होती है। जैसे किसी टैक्सटाइल कंपनी के पास जमीन होती है, प्लांट होता है। मशीनरी होती है। डूबती कंपनी को यह सब बेच-बाचकर भी मोटी रकम खऱीद सकती है।
दरअसल इंटरनेट बेहद आवारा नींव पर खड़ी इमारत होती है तथा इसके मनचले स्वभाव के कारण हर बेवसाइट को अपने ग्राहक लगातार बनाए रखने जद्दोजहद से गुजरना पड़ता है। कोई भी संस्था अपना कद भी यही मानकर चल रही होती है कि वह आपने वफादार ग्राहकों को तो कम से कम बनाकर रख ही पाएगी। अत: हमें इसे हिंदी चिट्ठाकारी के लिए अहम संकेत के रूप में देखना चाहिए।
13 comments:
बहुत सही शोध कर रही हो. देखो, नारद की आवाजाही को हम सबको खुले मन से स्विकारना होगा. जब अन्य पूरक उपलब्ध हो जायेंगे तो लोग नारद के साथ साथ उन्हे भी देखेंगे.
कई सारे ऐसे चिट्ठे हैं जो नये आये है और नारद पर पिछले काफी समय से पंजीयन बंद चल रहा है. तब लोगों को ब्लॉगवानी और चिट्ठाजगत बेहतर लगने लगा या यूँ कहें, पूरा लगने लगा.
तो सब आजकल न सिर्फ एक एग्रिगेटर बल्कि सारे एग्रीगेटर देखने लगे हैं और जो अपने आप को साबित कर लेगा, वो अंत में स्थापित हो जायेगा.
यही बाजार है और यही बाजार का खेल है. अब चमडे की करेंसी कहाँ दिखती है, जबकि करेंसी की पहल वहीं से है. :)
आपने बहुत अच्छा विषलेशण किया है ,और आज इसकी आवश्यकता भी बहुत है.ताकी हर एक को बाजार और अपनी उपस्थिति देखने को मिल सके तुलनातमक अध्ययन कर वह अपनी गलतियो को सुधार गर करना चाहे कर सके,ब्लोग वाणी विचार १९ जून को आया था गुजरे कल इसको महीना हो चला.२४ से कार्य शुरु हुआ था,और ११ से यह आप सब को समर्पित है,इसके सभी डाटा आमद के आपको यथा शीघ्र भेज दिये जायेगे,
नारद की ऐतिहासिक भूमिका हमेशा थी और मानी जायेगी। पर बाजार इतिहास की तरह उदार नहीं है।
आपने जो
www.smartnivesh.com की लिंक दी है, वह आपकी साइट से खुल नहीं रही है। पता नहीं क्यों।
पर मान गये आपकी पाऱखी नजर और निरमा सुपर को,अभी तो इसमें काम ही चल रहा है और आपने स्मार्टनिवेश डाट काम को पकड़ लिया। अगले पंद्रह दिनों में इसमें और भी चीजें दिखेंगी।
शुभकामनाएं
भले ही नारद की आवाजाही कम हो गई हो, परंतु ये बात भी तय है कि हिन्दी ब्लॉग पाठकों की संख्या में तेजी से इजाफ़ा हुआ है और हिन्दी के नए-नए चिट्ठे और चिट्ठाकारों के पदार्पण का तो क्या कहना.
अगर तीनों एग्रीगेटरों के आंकड़े जोड़े जाएँ तो एक सुखद, आश्चर्यकारी संख्या दिखेगी!
नज़र पारखी है और बात में दम।
इस विषय पर मेरा नजरिया यह है कि कुल मिला कर नयी पोस्ट पर एग्रीगेटर से आने वाले पाठकों की संख्या घटी है। पहले जहां चिट्ठाकार चिट्ठा लिखने के साथ साथ धैर्य के साथ दूसरों को भी पढ़्ते थे, अब चिट्ठाकार केवल लिखते ज्यादा हैं, दूसरों को कम पढ़्ते हैं तो जहां पहले एक अकेले नारद से नये पोस्ट पर अधिक पाठक आते थे अब चार एग्रीगेटरों से मिल कर भी नहीं आते।
इससे इस बात को भी बल मिलता है कि एग्रीगेटरों के महत्व में कमी आयी है तथा विवादों से खिन्न लोग इन्हें छोड़ कर केवल अपनी निजी पसंद के अनुसार फीड से पढ़ रहे हैं।
एग्रीगेटरों पर दो तरफ से मार पड़ रही है एक तो कुल पाई छोटी हुई है दूसरे हिस्सेदार बढ़ गये हैं।
यहां यह देखना भी जरूरी होगा कि चिट्ठाचर्चा न होने से भी क्या पाठकों में कमी आयी है? इससे मेरी इस भावना को बल मिलेगा कि आने वाले समय में एग्रीगेटरों से ज्यादा चिट्ठाचर्चा का महत्व होगा।
जगदीश भाटिया जी मुझे भी लगता है कि चिट्ठाचर्चा में अनियमितता में सुधार जरुरी है ,उसका महत्व देबाशीष जी ने भी अपनी पिछ्ली पोस्ट में बताया है !
समीर जी , अरुण जी आपके विचारों के लिए धन्यवाद ! वैसे अभी कुछ वक्त लगेगा तस्वीर साफ होने में !
रवि जी आपकी बात हमेशा उत्साह वर्धक होती है!पाठक संख्या बढे- ऎसे सुखद निष्कर्षों की मुझे भी चाह है !
आलोक जी बाजार की ब्लॉह जगत में गति को हम नहीं पकडेगे तो काम कैसे चलेगा ?
हर चिट्ठाकार साल में 12 नये चिट्ठाकार पैदा करे, यानी हर महीने एक हिन्दी चिट्ठाकार. यह हमारी जिम्मेदारी है. बाकी काम अपने आप हो जाएगा.
चार महीने से यहां हूं और चार तक पहुंचा हूं. इस महीने का कोटा पूरा हो गया, अगले महीने फिर किसी पर डोरे डालूंगा.
तत्विक चर्चा जारी रहे.
दिलचस्प शोध है नीलिमा जी। हिन्दी ब्लाग जगत पर आपकी पिछली प्रविष्टियों को भी पढ़ा। मेरे जैसे नवागत के लिए बिना डूबे थाह लेने का जरिया हैं वे।
ये चलता रहे। शुभकामनाएं।
वाह संजय जी आपका आइडिया बहुता कारगर है ! आप डॉरे डालते रहिए ताकि अजित जैसे नए चिट्ठाकार भी हमारे ब्लॉग पर आते रहें
आपकी शोधपरक जानकारी बहुतों को राह दिखाएगा…।
मगर डर लगता है कि कहीं हमारा नम्बर न आ जाए…।ब्लागर दुनियाँ की आप ही तो नामबर सिंह हैं!!!
अच्छी जानकारी है। वैसे अब् ब्लाग् देखने के लिये संकलक् पर् निर्भरता कम् हो रही है। लोग् अपने पसंदीदा ब्लाग् गूगल् से भी देखते होंगे। जैसे मैंने आपका यह् लेख टिप्पणी करने के लिये गूगल् से खोजा। अब् उधर 'खुल्लमखुल्ला ....' दुबारा पढकर् टिपियाने के लिये फिर् गूगलकी शरण् में जा रहे हैं। :)
देखिए यह तो स्वाभाविक है, जैसे-जैसे नई हिन्दी संबंधी साइटों आएँगीं उन में आरंभ में ट्रैफिक बँटेगा। लेकिन अंततः इसका परिणाम हिन्दी पाठकों की बढ़ती सँख्या के रुप में ही सामने आएगा।
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