Monday, June 18, 2007

क्‍या कहती है नारद की रायशुमारी

हिंदी चिट्ठा जगत में नारद की भूमिका अत्यंत सक्रिय एवं क्रांतिकारी रही है ! यह संस्था अपनी भूमिका एवं उसके निर्वहन की शैली को लगातार खोजते - बनाते चलती है ! इसका कार्य हिंदी चिट्ठों का सतत दस्तावेजीकरण करना , हिंदी चिट्ठों को ‘एक’ मंच प्रदान करना , तथा हिंदी चिट्ठों के पाठकों को आवाजाही का एक सुगम माध्यम उपलब्ध कराना है ! नारद की हिंदी चिट्ठा जगत में भूमिका एवं योगदान के विषलेषण पर एक अलग पोस्ट लिखी जाएगी ! फिलहाल चिट्ठाकारिता के विभिन्न आयामों पर नारद द्वारा कराए गए मत -संग्रह के परिणाम हमारे सामने हैं , इन परिणामों पर विचार करने पर ब्लॉगिंग से जुडे कुछ बुनियादी सवालों के जवाब हमारे सामने एक साफ तस्वीर उभारते हैं !

नारद द्वारा चिट्ठाकारों/पाठकों से पूछे गए प्रश्न निम्नवत हैं –

आप महिला चिट्ठाकार/पाठक है या पुरुष चिट्ठाकार/पाठक ?

आपकी उम्र कितनी है ?

ब्लॉगिंग करने से आपकी सोच में क्या सकारात्मक परिवर्तन आया ?

आपका चिट्ठा मुख्यत: किस प्रकृति का है?

आप दिन भर में कितनी टिप्पणियां करते हैं ?

आप ब्ळॉग कहां से अधिक देखते / पढते हैं ?

आपका ब्लॉग कहां पर है ?

आप नारद पर कितनी बार आते हैं ?

क्या आप नारद पर हिटकांउटर चाहते हैं ?




इस मत संकलन के परिणाम नारद पर उपलब्‍ध हैं। इससे पहले इस बात पर राय व्‍यक्‍त करें कि इन परिणामों के निहितार्थ क्‍या हैं, यह स्‍पष्‍ट कर दिया जाए कि शोध प्रविधि की दृष्टि से इस तरह के मत संग्रहों की सीमाएं होती हैं तथा ये अनिवार्यत: वस्‍तुस्थिति को प्रकट नहीं भी करते हैं।

अस्‍तु, पाठकों व चिट्ठाकारों में स्त्री-पुरुष अनुपात चौकाने वाला है ! यह आंकडा 20% स्त्री चिट्ठाकार/ पाठक और 80% पुरुष चिट्ठाकार/पाठक दिखाता है ! यह परिणाम पुरुषों के मुकाबले अत्यंत कम स्त्री संवाद को रेखंकित करता है ! यहां यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि स्त्री-पुरुष चिट्ठाकारों द्वारा पोस्ट लिखने का औसत अनुपात क्या है ? और इस अनुपात के समाजशास्त्रीय कारणों की खोजबीन भी एक अलग मुद्दा है !

हिंदी ब्लॉग जगत में 47% चिट्ठाकार 25 से 34 साल के हैं ! 22% 18 से 24 साल के और 19% 35 से 49 साल के ! यदि इन परिणामों को चिट्ठों की प्रकृति वाले सवाल पर मिले मतों से मिलान कर देखें तो तस्वीर साफ होती है ! समसामयिक मुद्दों पर 36% तथा कविता आदि पर 26% , हास्य व्यंग्य पर 13% , तकनीक पर 6% चिट्ठे केन्द्रित हैं ! हम साफ देख सकते हैं कि युवा जन द्वारा समसामयिक मसलों पर सबसे ज्यादा चिट्ठे लिखे जा रहे हैं ! यूं भी यदि हास्य व्यंग्य के चिट्ठों को देखा जाए तो उनमें भी समसामयिक मसलों को केन्द्र बनाया गया है ! कविता, शेरो शायरी , कहानी कडीबद्ध उपन्यास के रचना -बिन्दु भी देशकाल के ज्वलंत मुद्दे हैं !

ब्लॉगिंग करने से सोच में आए सकारात्मक बदलावों पर 56% मत दिखते हैं जबकि 26% मतों के अनुसार अभी मंथन चल रहा है—यह आंकडा साफ तौर पर बताता है कि चिट्ठाकारिता चिट्ठाकारों तथा उनके पाठकों के लिए परिवर्तनकारी भूमिका निभा ने वाला माध्यम है ! यह परिवर्तन सकारात्मक है जिसका संबंध लगातार के लेखन एवं पठन से है ! आंकडे जाहिर करते हैं कि अधिकतर चिट्ठाकारिता चिट्ठाकार अपने घरों से करते हैं (68%) एवं 28% ऑफिस से ! नियमित लेखन-पठन से न जुडे होने और अपनी व्यावसायिक भूमिकाओं के बावजूद चिट्ठाकारी के लिए अपने सीमित समय में से अधिकतम वक्त निकालने का प्रयास पोस्टों पर दी गई पाठकीय टिप्पणी के आंकडे जाहिर करते हैं ! टिप्पणी करने का वक्त नहीं निकाल पाने वाले केवल 16% चिट्ठाकार/पाठक हैं! नारद की हिंदी चिट्ठाकारिता को मजबूत मंच प्रदान करने वाली भूमिका लगातार जटिल होती जा रही है अत: इस तरह के मत- संग्रहों की जरूरत भी लगातार बढ रही है !

10 comments:

Anonymous said...

खूब, नारद द्वारा उपलब्ध करवाए गए डाटा को आपने बहुत अच्छे से आपस में जोड़ प्रस्तुत किया है। यह वाकई हर किसी के बस का कार्य नहीं। नवंबर में आपकी रिसर्च के परिणाम देखने की वाकई उत्सुक्ता है। :)

Yunus Khan said...

अनुरोध है कि इस तरह के आकलन आप समय समय पर करें । अच्‍छी पहल है ।

Sagar Chand Nahar said...

आम चुनावों की भाँति यहाँ भी वोट के प्रति उदासीनता दिखाई पड़ती है, चार पाँच सौ चिट्ठाकारों में से अधिकतम वोट मात्र 101 है। इसलिये अभी सही आकंलन करना मुश्किल है।
हाँ महिला चिठ्ठाकारों वाला परिणाम सही हो सकता है क्यों कि महिला चिठ्ठाकार वाकई बहुत कम है, और जो हैं उनमें से भी ज्यादातर कविता लिखती हैं।

Udan Tashtari said...

अच्छा आंकलन किया है. जारी रखें. वोटिंग में २५% भी ठीक ठाक सेंपल साईज है दिशा दर्शाने के लिये.

ePandit said...

अच्छा विश्लेषण किया आपने आंकड़ों का, आपकी समाजशास्त्रीय कारणों वाली पोस्ट का इंतजार है।

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया विश्ल्षण!!

ललित said...

महिला ब्लॉगरों की संख्या कम होना भारत में स्वाभाविक है, नहीं तो परिवार में बाल-बच्चे भूखे मरने लगेंगे, यदि सभी महिलाओं को भी ब्लागरी की लत लग जाए....

Anonymous said...
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Atul Chauhan said...

लिंकित मन में हिंदी के कुछ अधिक किलिष्ट शब्दों का प्रयोग किया गया है। आम भाषा का यदि प्रयोग करें तो पाठ्कों के लिये समझना ज्यादा आसान होगा….''''