काफी इंतजार के बाद शॉंति की आहट चिट्ठाजगत में सुनाई दे रही है। गनीमत है। हमें जो काम करना है वह बिध्नआशंका देता है पर करना तो है ही। शोध एक निर्मम कार्य है। हम पिछले कुछ दिनों से चिट्ठाजगत में इधर उधर की खाक छानते रहे हैं- इधर उधर यानि इस प्रोफाइल उस प्रोफाइल, इस पोस्ट उस पोस्ट। पर आप मानेंगे कि हमारी भी सीमाएं हैं- समय की भी और सामर्थ्य की भी। हमें साथी चिट्ठाकारों पर टिप्पणी करनी है। इधर दो लोगों ने यह काम किया है। एक तो अविनाश ने अपने माफीनामे में जीतू, फुरसतिया, मसिजीवी और जगदीश के चिट्ठाई व्यक्तित्व पर टिप्पणी की है। दूसरी और दूसरी ओर चौपटस्वामी ने विवाद की अविनाशप्रियता में इंस्क्राइब से लेकर फुरसतिया, जीतू, रवि समेत सब की यहॉं तक कि सृजन के चिट्ठाई व्यक्तित्व पर अपनी राय दी है। मुझे फिलहाल विवाद पर तो कुछ नहीं कहना है पर इतना तय है कि अलग अलग चिट्ठाकार जिन अलग अलग चिट्ठाई व्यक्तित्व के स्वामी हैं वह अनिवार्यत: वही नहीं है जिसकी घोषणा वे अपनी प्रोफाइल में करते हैं। आज चंद चिट्ठाकारों पर विचार किया जा रहा है। किंतु पहले एक डिस्क्लेमर-
यह चिट्ठाकारों की चिट्ठाई शख्सियत का आख्यान है, यानि वे अपने बारे में क्या राय रखते हैं (प्रोफाइल व खुद की पोस्टें), अन्य उनके विषय में क्या राय रखते हैं (टिप्पणियॉं व अन्य लोगों की पोस्टें), व्यक्तित्व के अन्य अभिव्यक्त पक्ष जिनमें उनके द्वारा चुने विषय, शैली अआदि पक्षों पर विचार किया गया है। शोध की शैली पुन: नैरेटिव विश्लेषण की ही है। अत: इसमें एक सीमा के बाद व्यक्तिनिष्ठता आने का जोखिम होता है, भले ही हमने बाकायदा इस व्यक्तिनिष्ठता को सीमित रखने का प्रशिक्षण लिया हुंआ है। इस शख्सियत आख्यान को समूचे व्यक्तित्व पर लागू न किया जाए- कोई चिट्ठाकार अपनी जाति जिंदगी में कैसा इंसान है इसका विश्लेषण करने में मेरी रूचि नहीं है। दूसरी बात यह कि ये काम शुद्धत: शोध के लिए किया जा रहा है- शोध की अंतिम रपट में यह कैसे जुड़ेगा यह समय रहते बताया जाएगा। सभी लोगों का विश्लेषण यहॉं संभव नहीं यह कार्य क्रमश: है।
आज सुनीलजी की बात करें (निर्विवाद से शुरू करना ही बेहतर है, यूँ भी सुनील हमारे प्रिय ब्लॉगर हैं)
यह चिट्ठाकारों की चिट्ठाई शख्सियत का आख्यान है, यानि वे अपने बारे में क्या राय रखते हैं (प्रोफाइल व खुद की पोस्टें), अन्य उनके विषय में क्या राय रखते हैं (टिप्पणियॉं व अन्य लोगों की पोस्टें), व्यक्तित्व के अन्य अभिव्यक्त पक्ष जिनमें उनके द्वारा चुने विषय, शैली अआदि पक्षों पर विचार किया गया है। शोध की शैली पुन: नैरेटिव विश्लेषण की ही है। अत: इसमें एक सीमा के बाद व्यक्तिनिष्ठता आने का जोखिम होता है, भले ही हमने बाकायदा इस व्यक्तिनिष्ठता को सीमित रखने का प्रशिक्षण लिया हुंआ है। इस शख्सियत आख्यान को समूचे व्यक्तित्व पर लागू न किया जाए- कोई चिट्ठाकार अपनी जाति जिंदगी में कैसा इंसान है इसका विश्लेषण करने में मेरी रूचि नहीं है। दूसरी बात यह कि ये काम शुद्धत: शोध के लिए किया जा रहा है- शोध की अंतिम रपट में यह कैसे जुड़ेगा यह समय रहते बताया जाएगा। सभी लोगों का विश्लेषण यहॉं संभव नहीं यह कार्य क्रमश: है।
आज सुनीलजी की बात करें (निर्विवाद से शुरू करना ही बेहतर है, यूँ भी सुनील हमारे प्रिय ब्लॉगर हैं)
सुनील जाहिर है सबसे लोकप्रिय चिट्ठाकार हैं। उनकी प्रोफाइल बेहद संक्षिप्त है उसमें यदि आज के तरकश के साक्षात्कार को जोड़ लिया जाए तो उनके व्यक्तित्व की जो छाप बनती है वह है- सुनील एक संवेदनशील व संतुलित व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उनकी लेखनी में यह संवेदनशीलता सहज ही जाहिर होती है। उनकी अवलोकन क्षमता गजब की है। बहुभाषिक व बहुसांस्कृतिक अनुभवों के कारण वे सहज ही सबसे परिपक्व हिंदी चिट्ठाकार हैं। इस परिपक्वता को वे बोझ नहीं बनने देते इसलिए वे किसी किस्म का अग्निशमन दस्ता नहीं परिचालित करते, और ये कार्य कहीं कम परिपक्वता के साथ जीतू और अनूप आदि को करना पड़ता है। सुनील की चिट्ठाकारी को सबसे अधिक व्याख्यायित करते उनके शब्द हैं-
मेरे विचार से चिट्ठे लिखने वाले और पढ़ने वालों में मुझ जैसे मिले जुले लोगों
की, जिन्हें अपनी पहचान बदलने से उसे खो देने का डर लगता है, बहुतायत है. हिंदी में
चिट्ठा लिख कर जैसे अपने देश की, अपनी भाषा की खूँट से रस्सी बँध जाती है अपने पाँव में. कभी खो जाने का डर लगे कि अपनी पहचान से बहुत दूर आ गये हम, तो उस रस्सी को छू कर दिल को दिलासा दे देते हैं कि हाँ खोये नहीं, मालूम है हमें कि हम कौन हैं.
अपनी चिट्ठाकारी के भविष्य पर सुनीलजी ने मेरे टैग-प्रश्नों के उत्तर में कहा था-
मेरी चिट्ठाकारी का भविष्य शायद कुछ विशेष नहीं है, जब तक लिखने के लिए मन में कोई बात रहेगी, लिखता रहूँगा, पर मेरे विचार में जैसा है वैसा ही चलता रहेगा. मेरे लिए
चिट्ठाकारी मन में आयी बातों को व्यक्त करने का माध्यम है, जिन्हें आम जीवन में व्यक्त नहीं कर पाता, और साथ ही विदेश में रह कर हिंदी से जुड़े रहने का माध्यम है.
अन्य चिट्ठाकारों की राय प्रथम दृष्ट्या प्रभावित होने वाली है, हालांकि कुछ गहरे पैठने पर एक किस्म का ‘पहुँची चीज़ हैं भई..’ वाला भाव भी दिखाई देता है। प्रमोद के बीस साल बाद उपन्यास में उनका चित्रण कुछ ऐसा ही संकेत करता है-
‘अबकी सुनील दीपक दिखे. पुलिसवाले उनके पीछे नहीं साथ थे. बहस हो रही थी. दीपक बाबू इटैलियन में झींक रहे थे, पुलिसवाले उन्हें मराठी में समझा पाने में असफल होने के
बाद अब चायनीज़ की गंदगी पर उतर आये थे.पता चला हरामख़ोरों ने भले आदमी का कैमरा जब्त कर लिया है. सुनील दीपक ने चीखकर कहा रवीश कुमार ऐसे नहीं छूटेगा, वे मामला एमनेस्टी इंटरनेशनल तक लेकर जायें’
कुल मिलाकर सुनील की चिट्ठाई शख्सियत अपनी हिंदी (सिर्फ भाषा नहीं सम्यक हिंदी) जड़ों से ऊर्जा लेती है। वे विवादों से दूर रहना पसंद करते हैं- चिट्ठाई अहम के संघर्षों से भी। बाकी कुछ आप जोड़ना चाहें तो बताएं।
(अन्य चिट्ठाकारों पर बाद में)
19 comments:
इ तो आप बढ़िया सीरीज शुरु कर दी . अब इ बताया जाय कि इस सीरीज में आने के लिये का करा जाय. कोनो फोटो लगाना जरूरी है का . जदि है तो बोल दीजिये एकठो फुटवा खिंचाय का जुगाड़ करा जाय. और उ चौपट स्वामी को बात मत मानियो. उ तो हमरा को अनाम बतावत है.. हम मजाक मजाक में अपना नाम को संधि विच्छेद का कर दिये उ हमका अनाम समझन लगे.
वैसे सुनील दीपक को जान-सुनकर अच्छा लगा. हम वैसे तरकश वालों का भी इंतजार कर रहे हैं :-)
बढ़िया है! लेकिन सुनील जी के बारे में आपने कुछ कम लिखा। जरा मेहनत से किया जाये शोध भाई!
अच्छा है मगर इससे होगा क्या? इसकी जगह ब्लागों में चल रही बहसों पर रोज कुछ लिखतीं. यह समय जाया करना ही हुआ.
"...बहुभाषिक व बहुसांस्कृतिक अनुभवों के कारण वे सहज ही सबसे परिपक्व हिंदी चिट्ठाकार हैं।..."
मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ :)
और, बहस प्रिय रियाज भाई, मैं आपसे सहमत नहीं. ये तो धरम का काम हुआ. नमाज पढ़ने में और सुन्दरकाण्ड का पाठ पढ़ने में यदि वक्त जाया होता है तो हो...
अरे फिर से बहस शुरू हो गई... भई, माफ़ करें :)
यह अच्छा काम है । पर विवाद की आशंका भी है।
अगला कौन है ?
मैं तो रवी जी का कायल हूं और उन्हीं से सहमत हूं, रियाज़ जी से नहीं।
आपके द्वारा लिखा गया यह लेख, हिन्दी चिट्ठा जगत में जो आजकल जो लिखा जा रहा है, उससे कहीं उत्तम है। इसे जारी रखें।
हां जैसा सुजाता जी या फिर काकेश जी कह रहें है कि अगला कौन पर तो बहुत से दावेदार हैं :-)
अगली बार उन्मुक्तजी को धर लो. सबसे कम उन्ही के बारे में जानते है. :)
हाँ, अनुपजी की बात पर गौर करें तथा हक साहब की बात को नजर अंदाज करें. इस बात पर भी विवाद न हो तो अच्छा.
ये रियाज साहब को हर जगह विवाद ही विवाद और बहस ही बहस चाहिए. :)
किसी को शुकून से जीने नहीं देंगे. हा हा हा.. निलीमाजी अच्छा प्रयास. धन्यवाद.
अंनूप जी आप सही कह रहे हैं सुनील जी पर अभी और लिखा जाना चाहिए था
रवि जी , रियाज भाई को आपकी कही गई बात अच्छी लगी . चिट्ठाकार ही तो अंतत; चिट्ठे का रचयिता होता है .यह उसका व्यक्तित्व ही है जो उसकी अभिव्यक्ति को आयाम देता है . बहसों को भी .
पंकज जी , संजय जी , हौसला अफ्जाही के लिए शुक्रिया .
नोटपैड जी , उन्मुक्त जी , आगे का काम आपकी सलाह से . कैसा रहेगा ?
काकेश जी फोटू ( बेशक मनचाहा ही हो )जरूर चेपें आप न तो कभी भी विवाद हो सकता है ;)आवाज तो आपकी सुन ली ही है .
बढिया काम शुरु किये हो । जब लिखना शुरु किये हो तो फिर विवाद से क्या डरना । कलम चलेगी तो विवाद तो होगा ही ।
आपने अच्छा लिखा है सुनील जी के बारे में.. पर जैसा अनूप भाई ने कहा कि उन्हे और जानने जैसी बात कुछ रह गई.. एक पोस्ट से उन्हे पूरा तो नहीं ही जाना जा सकता.. पर शायद अगर उनकी पुरानी प्रविष्टियों से उद्धरण उठाकर कुछ शकल दी जा सकती तो हम जैसे हाल में ही दाखिल हुए लोगों के लिये कुछ लाभ हो जाता..पर ये आपके शोध का मामला है.. आप अपनी मेथोडोलॉजी फ़ॉलो करें..
मैने कल एक टिप्पणी किया था जो आज गायब है उसमे कुछ ऐसा तो नही लिखा था जिसे गायब होना चाहिये था।
ये तो गजब हो गया. सबसे पहले हमहि टिपियाये थे और हमारी ही टिप्पणी गायब. हम तो कोई विवाद भी नहीं किये थे, बस बधाई दे रहे थे.
:)
सही श्रृंख्ला शुरु की है. बधाई.
अरे ये क्या कह रहे हैं, महाशक्ति, समीरजी ???
अरे सुनो कोई हमारी टिप्पणियॉं चुरा रहा है...
खुदा कसम हमने नहीं देखी, कहॉं गई, हम कोई मॉडरेशन नहीं कर रहे हैं।
नीलिमा जी,
बहुत उत्तम कार्य प्रारम्भ किया है आपने और श्रीगणेश भी उम्दा चिट्ठाकार से। मुझे लगता है कि एक और बात जो उनके चिट्ठों मे झलकती है, वह है उनकी ज़िन्दादिली, जीवन के प्रति धनात्मक दृष्टिकोण और सहजता। इसका उल्लेख भी सम्यक होता। मैं तो कदाचित ऐसा ही सोचता हूँ। उनके चिट्ठों में रवि का ओज हो न हो, पर चंद्र-रश्मि जैसी शीतलता अवश्य ही मिलती है।
मेरी उपरोक्त टिप्पणी में एक संशोधन करना चाहता हूँ
उनके चिट्ठों में रवि का ओज हो न हो, पर चंद्र-रश्मि जैसी शीतलता अवश्य ही मिलती है
के स्थान पर
उनके चिट्ठों में रवि का ओज (ताप ) हो न हो, पर चंद्र-रश्मि जैसी शीतलता अवश्य ही मिलती है
नीलिमा जी, मेरे बारे में इतनी सारी अच्छी बातें लिखने के लिए धन्यवाद. आज नारद पर कुछ और खोजते खोजते आप की पोस्ट का शीर्षक पढ़ा तो हैरानी हुई. यह देखने की कि क्या लिखा होगा उत्सुक्ता तो थी ही, कुछ डर सा भी था, कि जाने क्या लिखा हो, पर आप ने केवल अच्छा ही देखा!
सुनील दीपक जी , धन्यवाद इसे पढने और सराहने के लिए . अनूप जी ने कहा कि आपके बारे में कुछ कम लिखा गया है , मुझे भी यही लगता है कि अभी आपके बारे में कई और बातें कही जानी चाहिए थी . यह तो एक प्रयास मात्र था आपके व्यक्तित्व से रू बरू होने का .
आगे पढ़ने की उत्सुकता रहेगी :)
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