क्यों ? इसलिए कि कल जनसत्ता के रविवारीय में हिंदी चिट्ठों पर आवरण कथा (कवर स्टोरी) छप रही है। हिंदी ब्लॉगिंग पर अब तक छुटपुट खबर छपी थीं लेकिन कवर स्टोरी, वो तो अभी तक शायद भारतीय अंग्रेजी ब्लॉगिंग पर भी नही आई। और हॉं हमारी अपनी चिट्ठाकार बहन नोटपैड वाली सुजाता ने लिखी है। ड्राफ्ट देखने का अवसर मिला था- कल देखिएगा हमें तो सब समेटती अच्छी सी स्टोरी लगी।<
लिखी इबारत है-
जनसत्ता रविवारी 15 अप्रैल 2007
अंतर्जाल पर देसी चिट्ठे- इंटरनेट पर हिंदी चिट्ठाकारिता की निराली और बेबाक दुनिया में झांक रही हैं सुजाता तेवतिया
आवरण कथा जनसत्ता में छप रही है जो हिंदी क्षेत्र में गंभीर अखबार माना जाता है। यानि ठहरकर नोटिस लेना होगा चिट्ठाकारी से बाहर के लोगों को भी। आप भी कोशिश करें कि सिर्फ आप ही न पढें औरों को भी पढवाएं।
अंतर्जाल पर देसी चिट्ठे- इंटरनेट पर हिंदी चिट्ठाकारिता की निराली और बेबाक दुनिया में झांक रही हैं सुजाता तेवतिया
आवरण कथा जनसत्ता में छप रही है जो हिंदी क्षेत्र में गंभीर अखबार माना जाता है। यानि ठहरकर नोटिस लेना होगा चिट्ठाकारी से बाहर के लोगों को भी। आप भी कोशिश करें कि सिर्फ आप ही न पढें औरों को भी पढवाएं।
12 comments:
जनसत्ता भले ही प्रसार में पीछे है, परंतु हिन्दी के स्तरीय समाचार पत्रों में उसका स्थान पहला है. यह स्टोरी लोगों में जागरूकता पैदा करेगी. सुजाता से कहिए कि वे किसी चिट्ठे में यह सामग्री डालें.
वाह बहुत अच्छी बात है, पहली अप्रैल के जोक को सुजाता जी ने सच बना ही दिया। खैर अब सुजाता जी से अनुरोध है कि उस खबर की अच्छी सी स्कैन की हुई इमेज अपने चिट्ठे पर भी डाल दें। साथ ही और सथी जिनके यहाँ जनसता आता है इसके लिए प्रयत्न करें।
होशियार करने के लिए धन्यवाद । किन्तु मैं तो कल जब आप या कोई और यह खबर यहाँ दिखाएगा तभी पढ़ सकूँगी ।
घुघूती बासूती
नहीं श्रीश इस बार खबर पक्की है। कल के जनसत्ता में देख लीजीएगा। मजेदार बात यह है कि सुजाता (और खुद नीलिमा भी) आपके एक पहाड़ी बाजार लैंसडाउन में सप्ताहान्त के लिए गई हैं वे खुद भी इसे वापस आकर ही देख पाएंगी। मेरे पास मुख्यलेख की प्रति है। कल यदि रूपांतर हो पाया तो ये सामग्री चिट्ठे पर डालने की कोशिश करूंगा।
वैसे एक अप्रैल वाले मजाक की निरंतरता में मैं तो लेख पर "टिप्पणी उसी एक अप्रैल वाली पोस्ट" की टिप्पणी में करने की योजना बना रहा हूँ।
बहुत बढिया खबर है यह. उम्मीद है इस बार नारद जी के साथ न्याय होगा. :)
कल का इंतजार है!
कल का इंतजार है!
इंतजार लगवा दिया-एक दिन मानो एक बरस सा लग रहा है-कैसे कटेगा यह समय!! :)
वाह अच्छी खबर है, हम तो इंतजार करेंगे कोई इसे अपने चिट्ठे में डाले तभी पढ पायेंगे।
देवी, जनसत्ता मुंबई से निकलता था तब पढ़ते थे ।
अब तो यहां से भाई लोग दुकान समेटकर दिल्ली निकल लिये । मुंबई में हम हिंदी अखबारों के लिये तरसते हैं देवी । एक दो चिंदी जैसे अखबार हैं । कोई सुन रहा हो तो कृपया इस लेख को चिट्ठे में उतारे
मुंबई के हिंदी अखबारों की जय हो ।
युनुसजी लेख मसिजीवी के चिट्ठे पर और नोट पैड के चिट्ठे पर उपलब्ध है। यानि यहॉं तथा यहॉं
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