Saturday, February 17, 2007

जाल में फँसे नाम, ......धँसे नाम,...... हँसे नाम

ब्‍लॉग जगत में काफी कुछ हो रहा है लोग पोस्टिया रहे हैं और टिप्पिया रहे हैं। कुछ पोस्‍टों पर टिप्पिया रहे हैं तो कुछ टिप्‍पणियों पर पोस्टिया रहे हैं कई तो टिप्‍पणियों पर ही टिप्पिया रहे हैं ऐसे में मुझे तो रिसर्चियाना है और जाहिर है यह अलग किस्‍म का काम है। इसलिए सोचा कि आज रिसर्च पर पोस्टियाआ जाए।
....तो मैने ब्‍लॉग शोध के पहले चरण में ब्‍लॉगों की सूची बनाई और सूची देखते हुए लगा कि पहला परचा तो ब्‍लागों के नाम की प्रकृति पर विचार करते हुए ही लिखा जाए। लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्‍व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्‍द या संबोधन नहीं उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्‍व है। हिंदी चिट्ठों के नामकरण संस्‍कार के वक्‍त वक्‍त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन चिट्ठाकारों के लिए।

कुछ चिट्ठाकारों के चिट्ठे अपने लेखक के फुरसत के हल्‍के क्षणों, खामखां के वक्‍त बिताऊ चिंतन के महत्‍व क‍ो बताते हैं। यहॉं 'ये न थी हमारी किस्‍मत के दीदारे यार होता' वाले अंदाज में कुछ हल्‍की कुछ थोड़ी भारी बातों को पेश करने की बेतकल्‍लुफी नजर आती है। कहीं किसी ब्‍लॉग में मोहल्‍लेबाजी के बहाने दर्शनबाजी करता चिट्ठाकार विश्‍वग्राम की तरह विश्‍व को एक मोहल्‍ले के रूप में देखना चाहता है। 'कहना चाहने और कह न पाने' के द्वंद्व में फँसे लेखकीय व्‍यक्तित्‍व के दर्शन कराने वाले ब्‍लॉगों की अपनी अलग पहचान है। यहॉं लेखक की पीड़ा, द्वंद्व और सटीक अभिव्‍यक्ति न कर पाने की छटपटाहट दिखई पड़ती है।
रचना में भावों और कल्‍पना की उड़ान का महत्‍व कुछ चिट्ठाकारों के लिए सबसे ज्‍यादा है। अपनी कल्‍पना रूपी उड़नतश्‍तरियों पर बैठकर अनंत ब्रह्मांडों पर पहुँचने और नए जीवनों से मिल आने की चाह है शायद वहॉं। भावना और यथार्थ की टकराहट में भाव की जीत कभी-कभी भाव-सिंधु की उठती गिरती लहरों में प्रकट होती है। दूसरी ओर यथार्थ से टकराने की अदम्‍य इच्‍छा और साहस का संगम कुछ चिट्ठों के नामों में है। मानों कह रहे हों 'आइए हाथ उठाएं हम भी' और सामाजिक विषमताओं का एकजुट होकर सामना करें। रोजमर्रा की जिंदगी के अन्‍याय, शोषण व साम्राज्‍यवादी ताकतों के खिलाफ हमारी दैवीय भारतीय आत्‍माएं एक ही लोकमंच से युद्धरत हों। ऐसा मारक, प्रहारशील और तरकशवादी नामकरण अपने पाठक पर बहुत ही आह्वानकारी प्रभाव छोड़ता है।
कुछ चिट्ठाकार अपने लेखन में छिपे अदनेपन, भदेसपन, जमीनीपन को उभारने के फेर में पड़े हैं। यहॉं वे सिद्ध करना चाहते हैं कि रचना महत्‍वपूर्ण है रचनाकार नहीं। आवारा बंजारा, बिहारी बाबू कहिन जैसे नाम जमीनी सच की मुखलफत करते दिखाई देते हैं। इससे ठीक उलट कई चिट्ठाकार देववाणी या प्रवचनात्‍मक शैली लिए हुए अपनी बात कहना पसंद करते हैं। पंडिताई (ई पंडित) मनसा वाचा कर्मणा (मानसी) वाली शैली या भविष्‍यवाणी (जोगिलिखी) में एक अलग ही अभिजातपना झलकता है।
हिंदी-तकनीक-सृजन के त्रिकोण को संभाले साहित्‍य साधना पर अपना सबकुछ कुर्बान कर चुके रवि रतलामी का हिंदी ब्‍लॉग, मसिजीवी, शब्‍दशिल्‍प राजसमंद की हिंदी बेवसाईट के नाम निराले हैं। स्‍वनामधन्‍य ये चिट्ठे मानों कह रहे हों कि ' हम हिंदी, तकनीक और सृजन की शपथ लेकर ये संकल्‍प लेते हैं कि ......' (आप स्‍वंय जोड़ लें) कबीर ने सत्‍य को साक्षी मानकर साखियों की रचना की इससे प्रेरणा लेकर प्रत्‍यक्ष को साक्षी मानकर लगता है प्रत्‍यक्षा ने नामकरण किया है। वेसे कई रचनाकारों के नाम और उनके ब्‍लॉगों के नाम एक ही हैं मसलन मानसी, प्रत्‍यक्षा, शुएब प्रतीत होता है कि इन्‍हें अपनी पहचान पर कोई पट गवारा नहीं यहॉं व्‍यक्ति और रचना में सम भाव है।
गालिबन यह सारी नामगाथा इस विचार से प्रेरित थी कि -'नाम में कुछ रखा है....' यदि इन चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों के नाम यूँ ही आनन फानन में, खाम ख्‍याली में दे मारे थे तो मेरी इन अटकलों को बेतकल्‍लुफी की उपज मानकर क्षमा करें।

15 comments:

ePandit said...

नीलिमा जी आपकी पिछली पोस्टें पढ़ी तो गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन आज की पोस्ट पढ़कर लगा कि आप अपने रिसर्च के प्रति वाकई गंभीर हैं। इतना ही नहीं इससे यह झलक भी मिली कि आप अच्छी लेखिका भी हैं। अतः आज जरा विस्तार से टिप्पणी करनी पढ़ेगी।

"लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्‍व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्‍द या संबोधन नहीं उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्‍व है। हिंदी चिट्ठों के नामकरण संस्‍कार के वक्‍त वक्‍त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन चिट्ठाकारों के लिए।"

आप ज्योतिषी या मनोवैज्ञानिक तो नहीं। :)

कुछेक चिट्ठाकार हैं जिन्होंने जब चिट्ठे लिखने शुरु किए थे तो तब गिनकर ५-१० चिट्ठे थे तब नाम का इतना चक्कर नहीं था लेकिन संख्या बढ़ने के साथ ही इसका महत्व बढ़ गया। एक अलग नाम आपको एक अलग पहचान देता है। मुझे यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं कि मैंने अपने चिट्ठे का नाम अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए ही रखा था। नाम के महत्व पर लिखने की मैंने सोचा भी था और एक पोस्ट इस पर शायद कभी लिखूँगा भी। फिलहाल यह सच है कि "नाम में कुछ रखा है...."

हिन्दी चिट्ठाकारी में आने के समय से ही मेरी इसके इतिहास में अत्यंत रुचि रही है। इसके लिए मैंने पुराने चिट्ठों पर कई पोस्टों को पढ़ा, मुझे इस तरह की पोस्टें पढ़ने में अत्यंत आनंद आता है। मैने इस तरह की कुछ पोस्टें टैग की हुई हैं जिनके लिंक मैं आपको ढूंढ कर भेज दूँगा। फिलहाल आपकी रिसर्च को देखते हुए मेरा सुझाव है कि आप निम्नलिखित पुराने चिट्ठे पढ़ें।

सबसे पहले अक्षरग्राम चौपाल फिर
9-2-11/नौ दौ ग्यारह (आलोक भाई), नुक्ताचीनी (देवाशीष), मिर्ची सेठ (पंकज नरुला), रोजनामचा (अतुल), रविरतलामी का हिन्दी ब्लॉग (रविजी), फुरसतिया (अनूप शुक्ला), इधर-उधर की (रमण कौल), मेरा पन्ना (जीतेन्द्र चौधरी) आदि बाकी लिंक इन चिट्ठों से ही मिलते जाएंगे।

और हाँ आजकल मैं लोगों को पकड़ पकड़ कर परिचर्चा पर ले जा रहा हूँ, आप कब आ रही हैं वहाँ ?

Anonymous said...

तो आपने वाकई में अपनी रिसर्च शुरू कर दी है, नाम में कुछ नही रखा है लेकिन फिर भी नाम रखना तो पडता ही है संबोधन के लिये अब चाहे वो ब्लोग हो या इंसान

Anonymous said...

क्षण भर रुकजायें पर क्या नींद स्वप्न का ही आधार लेगी ?
या कि मेरी जीवन नैया कहो क्या समय से प्रतिकार लेगी ?
यथार्थ की छटपटाती मीन ना भाव सिन्धु में जी सकेगी !
और मन की अनुगूँज भी देखें कब कौन सा वेश धार लेगी !

जो लिख गया हूँ, चवालिस की, यह बेतुकी सी, सूत्र इसमें !
जान सकें तो जान ही लें जो कह गया मैं बात इसमें !!!
और इंगित करने को बचा है एक शब्द, 'संग्या' ही बस
नेपथ्य में रहना चाहता हूँ वरना बात ना कहता छंद ही में!

अरिसूदन

मसिजीवी said...

श्रीशजी नीलिमा तो फुलटाईम शोध कर रही हैं इस चिट्ठों की दुनिया पर।। पक्‍की खबर है।
;)

ePandit said...

नीलिमा जी यह लीजिए सभी चिट्ठों के नाम जानिए इस लिंक पर, एक से बढ़कर एक नाम। :)

हिन्दी में सक्रिय चिट्ठे

Anonymous said...

नीलिमा जी आपके शोध के लिये आपको बधाई! वैसे हम अपने ब्लाग के नाम करण से संबंधित जानकारी सबसे पहले वाली पोस्टों में दे दिये थे। आप भी बांच लीजिये यहां है लिंक
http://fursatiya.blogspot.com/2004/08/blog-post_27.html#comments

Pramendra Pratap Singh said...

अच्‍छा शोध है, जारी रखें

Udan Tashtari said...

वाह, पहले तो माफी मांग लें कि थोड़ा देर से आये. आये तो सबसे पहले भी एक बार थे मगर सोचा था कि बाद में टिपिया देंगे फिर अब लौटना हो पा रहा है. खैर, उडन तश्तरी तो आती जाती रहेगी मगर यह लिंकित मन का क्या चक्कर है, यह नाम कैसे सुझा. शोध का विषय अच्छा है. हम खुद भी इसी विषय के हाशिये में बैठे डुगडुगी बजाते हैं मगर इतना गहरा नहीं उतर पाये हैं. जारी रखें शोध तो और भी कई मसले मिलते चलेंगे राहों में. इस दौरान मैं भी प्रयास करता हूँ जानने का कि मैने इसे उडन तश्तरी कैसे नाम दिया. :)

बढ़िया लिख रहीं हैं, बधाई. जारी रखें. शुभकामना.

Srijan Shilpi said...

नीलिमा जी, आपके शोध की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। हिन्दी चिट्ठाकारी के शैशव काल में ही आप इसपर शोध कर रही हैं तो निश्चय ही चिट्ठाकारी की दुनिया में इसका ऐतिहासिक महत्व होगा। हालाँकि, हिन्दी चिट्ठाकारी के अब तक के सफर को समेटने की कोशिशें यत्र-तत्र पहले भी होती रही हैं, लेकिन यदि आप व्यवस्थित रूप से अकादमिक महत्व का शोध शुरू कर रही हों तो आपको हम सभी का हर संभव सहयोग मिलेगा।

Pratyaksha said...

नीलिमा आपको मैंने टैग किया है , यहाँ देखें

योगेश समदर्शी said...

आप ब्लोग पर शोध करती है तो सोचा आप मेरे ब्लोग के बरे में भी जानें
http://ysamdarshi.blogspot.com/index.html

Neelima said...

श्रीश, मसिजीवी, तरुण्‍ा....
भाई लोग कृपया मान जाएं कि मैं यह काम कर रही हूँ और कर रही हूँ।

सूचनाओं केलिए शुक्रिया

हॉं प्रत्‍यक्षा इस लायक मानने के लिए शुक्रिया। टैग की संरचना पर शोध होना चाहिए पर रवि रतलामी जी ने जितना इस विषय में प्रस्‍तुत कर दिया है मैं भी बस वहीं तक हूँ। वैसे परंपरा निर्वाह किया जाएगा।

eSwami said...

आप नामों की फ़ेरहिस्त को ब्लाग्स के अलावा सामुहिक प्रोजेक्ट्स तक बढा सकती हैं -
नारद- एक एग्रीगेटर का नाम है जो पौराणिक चरित्र पर आधारित है.
परिचर्चा - फ़ोरम का नाम
तरकश - ब्लाग नेटवर्क का
हिंदिनी - सामूहिक हिंदी ब्लागों/ नेटवर्क का
अक्षरग्राम - साझा समूह स्थल है
सर्वज्ञ - हमारी सामूहिक विकी है.

इसका तकनीकी पक्ष भी है और भाषाई भी. अच्छा नाम ढूंढने से अधिक मुश्किल है उसका डामेन नेम भी पा लेना. सबसे बडी जद्दोजहद तो वो है. नाम हिंदी में तो अच्छा लगे ही साथ ही अंग्रेजी यूआरएल में स्पैलिंग भी लिखनी आसान हो - मसलन हिंदिनी की स्पैलिंग होनी चाहिए - hindinee लेकिन हमने चुनी hindini.

ALOK PURANIK said...

बढ़िया शोध है। मेरी शुभकामनाएं शोध के साथ हैं। लेखिका बढ़िया व्यंग्यात्मक स्टाइल में लिखती हैं, यह और भी बढ़िया बात है। बात सीधी पहुंचती है। आलोक पुराणिक

Neelima said...

आलोक जी धन्यवाद, आप स्वयं व्यंग्य के उस्ताद हैं ।आपकी हौसलाअफ्जाही बहुत महतव्पूर्ण है।