tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post7284388401015701578..comments2023-10-30T13:42:40.259+05:30Comments on लिंकित मन: जाल में फँसे नाम, ......धँसे नाम,...... हँसे नामNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-49882945884536784872007-03-05T11:50:00.000+05:302007-03-05T11:50:00.000+05:30आलोक जी धन्यवाद, आप स्वयं व्यंग्य के उस्ताद हैं ।आ...आलोक जी धन्यवाद, आप स्वयं व्यंग्य के उस्ताद हैं ।आपकी हौसलाअफ्जाही बहुत महतव्पूर्ण है।Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-79359814156706547122007-02-25T15:20:00.000+05:302007-02-25T15:20:00.000+05:30बढ़िया शोध है। मेरी शुभकामनाएं शोध के साथ हैं। लेख...बढ़िया शोध है। मेरी शुभकामनाएं शोध के साथ हैं। लेखिका बढ़िया व्यंग्यात्मक स्टाइल में लिखती हैं, यह और भी बढ़िया बात है। बात सीधी पहुंचती है। आलोक पुराणिकALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-12129939959541053382007-02-24T05:06:00.000+05:302007-02-24T05:06:00.000+05:30आप नामों की फ़ेरहिस्त को ब्लाग्स के अलावा सामुहिक प...आप नामों की फ़ेरहिस्त को ब्लाग्स के अलावा सामुहिक प्रोजेक्ट्स तक बढा सकती हैं - <BR/>नारद- एक एग्रीगेटर का नाम है जो पौराणिक चरित्र पर आधारित है. <BR/>परिचर्चा - फ़ोरम का नाम <BR/>तरकश - ब्लाग नेटवर्क का <BR/>हिंदिनी - सामूहिक हिंदी ब्लागों/ नेटवर्क का<BR/>अक्षरग्राम - साझा समूह स्थल है <BR/>सर्वज्ञ - हमारी सामूहिक विकी है. <BR/><BR/>इसका तकनीकी पक्ष भी है और भाषाई भी. अच्छा नाम ढूंढने से अधिक मुश्किल है उसका डामेन नेम भी पा लेना. सबसे बडी जद्दोजहद तो वो है. नाम हिंदी में तो अच्छा लगे ही साथ ही अंग्रेजी यूआरएल में स्पैलिंग भी लिखनी आसान हो - मसलन हिंदिनी की स्पैलिंग होनी चाहिए - hindinee लेकिन हमने चुनी hindini.eSwamihttps://www.blogger.com/profile/04980783743177314217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-45160749944382728072007-02-23T12:53:00.000+05:302007-02-23T12:53:00.000+05:30श्रीश, मसिजीवी, तरुण्ा....भाई लोग कृपया मान जाएं ...श्रीश, मसिजीवी, तरुण्ा....<BR/>भाई लोग कृपया मान जाएं कि मैं यह काम कर रही हूँ और कर रही हूँ।<BR/><BR/>सूचनाओं केलिए शुक्रिया<BR/><BR/>हॉं प्रत्यक्षा इस लायक मानने के लिए शुक्रिया। टैग की संरचना पर शोध होना चाहिए पर रवि रतलामी जी ने जितना इस विषय में प्रस्तुत कर दिया है मैं भी बस वहीं तक हूँ। वैसे परंपरा निर्वाह किया जाएगा।Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-60300326968400552982007-02-23T12:50:00.000+05:302007-02-23T12:50:00.000+05:30आप ब्लोग पर शोध करती है तो सोचा आप मेरे ब्लोग के ब...आप ब्लोग पर शोध करती है तो सोचा आप मेरे ब्लोग के बरे में भी जानें <BR/>http://ysamdarshi.blogspot.com/index.htmlयोगेश समदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-90519182800368677722007-02-23T10:04:00.000+05:302007-02-23T10:04:00.000+05:30नीलिमा आपको मैंने टैग किया है , यहाँ देखेंनीलिमा आपको मैंने टैग किया है , यहाँ <A HREF="http://pratyaksha.blogspot.com/" REL="nofollow"> देखें </A>Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-57291774203008809492007-02-22T16:09:00.000+05:302007-02-22T16:09:00.000+05:30नीलिमा जी, आपके शोध की सफलता के लिए हार्दिक शुभकाम...नीलिमा जी, आपके शोध की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। हिन्दी चिट्ठाकारी के शैशव काल में ही आप इसपर शोध कर रही हैं तो निश्चय ही चिट्ठाकारी की दुनिया में इसका ऐतिहासिक महत्व होगा। हालाँकि, हिन्दी चिट्ठाकारी के अब तक के सफर को समेटने की कोशिशें यत्र-तत्र पहले भी होती रही हैं, लेकिन यदि आप व्यवस्थित रूप से अकादमिक महत्व का शोध शुरू कर रही हों तो आपको हम सभी का हर संभव सहयोग मिलेगा।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-58093702235952914292007-02-19T20:40:00.000+05:302007-02-19T20:40:00.000+05:30वाह, पहले तो माफी मांग लें कि थोड़ा देर से आये. आये...वाह, पहले तो माफी मांग लें कि थोड़ा देर से आये. आये तो सबसे पहले भी एक बार थे मगर सोचा था कि बाद में टिपिया देंगे फिर अब लौटना हो पा रहा है. खैर, उडन तश्तरी तो आती जाती रहेगी मगर यह लिंकित मन का क्या चक्कर है, यह नाम कैसे सुझा. शोध का विषय अच्छा है. हम खुद भी इसी विषय के हाशिये में बैठे डुगडुगी बजाते हैं मगर इतना गहरा नहीं उतर पाये हैं. जारी रखें शोध तो और भी कई मसले मिलते चलेंगे राहों में. इस दौरान मैं भी प्रयास करता हूँ जानने का कि मैने इसे उडन तश्तरी कैसे नाम दिया. :)<BR/><BR/>बढ़िया लिख रहीं हैं, बधाई. जारी रखें. शुभकामना.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-40548870614705338902007-02-19T18:16:00.000+05:302007-02-19T18:16:00.000+05:30अच्छा शोध है, जारी रखेंअच्छा शोध है, जारी रखेंPramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-28151249487257558342007-02-18T23:12:00.000+05:302007-02-18T23:12:00.000+05:30नीलिमा जी आपके शोध के लिये आपको बधाई! वैसे हम अपने...नीलिमा जी आपके शोध के लिये आपको बधाई! वैसे हम अपने ब्लाग के नाम करण से संबंधित जानकारी सबसे पहले वाली पोस्टों में दे दिये थे। आप भी बांच लीजिये यहां है लिंक<BR/>http://fursatiya.blogspot.com/2004/08/blog-post_27.html#commentsAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-37669559262044443142007-02-18T16:33:00.000+05:302007-02-18T16:33:00.000+05:30नीलिमा जी यह लीजिए सभी चिट्ठों के नाम जानिए इस लिं...नीलिमा जी यह लीजिए सभी चिट्ठों के नाम जानिए इस लिंक पर, एक से बढ़कर एक नाम। :)<BR/><A HREF="http://hindi-blog-podcast.blogspot.com/2006/10/blog-post_3534.html" REL="nofollow"><BR/>हिन्दी में सक्रिय चिट्ठे</A>ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-75001630297778518372007-02-18T13:00:00.000+05:302007-02-18T13:00:00.000+05:30श्रीशजी नीलिमा तो फुलटाईम शोध कर रही हैं इस चिट्ठो...श्रीशजी नीलिमा तो फुलटाईम शोध कर रही हैं इस चिट्ठों की दुनिया पर।। पक्की खबर है।<BR/>;)मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-61498496918167812112007-02-18T09:31:00.000+05:302007-02-18T09:31:00.000+05:30क्षण भर रुकजायें पर क्या नींद स्वप्न का ही आधार ले...क्षण भर रुकजायें पर क्या नींद स्वप्न का ही आधार लेगी ?<BR/>या कि मेरी जीवन नैया कहो क्या समय से प्रतिकार लेगी ?<BR/>यथार्थ की छटपटाती मीन ना भाव सिन्धु में जी सकेगी !<BR/>और मन की अनुगूँज भी देखें कब कौन सा वेश धार लेगी !<BR/><BR/>जो लिख गया हूँ, चवालिस की, यह बेतुकी सी, सूत्र इसमें !<BR/>जान सकें तो जान ही लें जो कह गया मैं बात इसमें !!!<BR/>और इंगित करने को बचा है एक शब्द, 'संग्या' ही बस<BR/>नेपथ्य में रहना चाहता हूँ वरना बात ना कहता छंद ही में!<BR/><BR/>अरिसूदनAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-24053261731592301612007-02-18T08:59:00.000+05:302007-02-18T08:59:00.000+05:30तो आपने वाकई में अपनी रिसर्च शुरू कर दी है, नाम मे...तो आपने वाकई में अपनी रिसर्च शुरू कर दी है, नाम में कुछ नही रखा है लेकिन फिर भी नाम रखना तो पडता ही है संबोधन के लिये अब चाहे वो ब्लोग हो या इंसानAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-63284461295485815862007-02-18T00:24:00.000+05:302007-02-18T00:24:00.000+05:30नीलिमा जी आपकी पिछली पोस्टें पढ़ी तो गंभीरता से नही...नीलिमा जी आपकी पिछली पोस्टें पढ़ी तो गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन आज की पोस्ट पढ़कर लगा कि आप अपने रिसर्च के प्रति वाकई गंभीर हैं। इतना ही नहीं इससे यह झलक भी मिली कि आप अच्छी लेखिका भी हैं। अतः आज जरा विस्तार से टिप्पणी करनी पढ़ेगी।<BR/><BR/><B>"लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्द या संबोधन नहीं उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्व है। हिंदी चिट्ठों के नामकरण संस्कार के वक्त वक्त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन चिट्ठाकारों के लिए।"</B><BR/><BR/>आप ज्योतिषी या मनोवैज्ञानिक तो नहीं। :)<BR/><BR/>कुछेक चिट्ठाकार हैं जिन्होंने जब चिट्ठे लिखने शुरु किए थे तो तब गिनकर ५-१० चिट्ठे थे तब नाम का इतना चक्कर नहीं था लेकिन संख्या बढ़ने के साथ ही इसका महत्व बढ़ गया। एक अलग नाम आपको एक अलग पहचान देता है। मुझे यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं कि मैंने अपने चिट्ठे का नाम <B>अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार</B> करते हुए ही रखा था। नाम के महत्व पर लिखने की मैंने सोचा भी था और एक पोस्ट इस पर शायद कभी लिखूँगा भी। फिलहाल यह सच है कि "नाम में कुछ रखा है...."<BR/><BR/>हिन्दी चिट्ठाकारी में आने के समय से ही मेरी इसके इतिहास में अत्यंत रुचि रही है। इसके लिए मैंने पुराने चिट्ठों पर कई पोस्टों को पढ़ा, मुझे इस तरह की पोस्टें पढ़ने में अत्यंत आनंद आता है। मैने इस तरह की कुछ पोस्टें टैग की हुई हैं जिनके लिंक मैं आपको ढूंढ कर भेज दूँगा। फिलहाल आपकी रिसर्च को देखते हुए मेरा सुझाव है कि आप निम्नलिखित पुराने चिट्ठे पढ़ें।<BR/><BR/>सबसे पहले अक्षरग्राम चौपाल फिर<BR/>9-2-11/नौ दौ ग्यारह (आलोक भाई), नुक्ताचीनी (देवाशीष), मिर्ची सेठ (पंकज नरुला), रोजनामचा (अतुल), रविरतलामी का हिन्दी ब्लॉग (रविजी), फुरसतिया (अनूप शुक्ला), इधर-उधर की (रमण कौल), मेरा पन्ना (जीतेन्द्र चौधरी) आदि बाकी लिंक इन चिट्ठों से ही मिलते जाएंगे। <BR/><BR/>और हाँ आजकल मैं लोगों को पकड़ पकड़ कर <A HREF="http://www.akshargram.com/paricharcha/" REL="nofollow">परिचर्चा</A> पर ले जा रहा हूँ, आप कब <A HREF="http://www.akshargram.com/paricharcha/register.php" REL="nofollow">आ रही हैं वहाँ</A> ?ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.com