Monday, February 26, 2007

ब्‍लॉग-शोध पर कुछ बेतरतीब नोट्स.......

कुछ चिट्ठाकार साथियों ने हिंदी ब्‍लॉगिंग पर जारी मेरे काम को लेकर दिलचस्‍पी जाहिर की है और उसके परिणामों को लेकर उत्‍सुकता दिखाई है। कहना न होगा कि ये शोधकार्य बेहद आरंभिक चरण में है और परिणामों को लेकर कुछ भी कहने की स्थिति अभी मेरी नहीं है। वैसे इस कार्य को विद्वतजनों के समक्ष पेश करने का काम नवंबर में होगा जब सराय की शोधार्थी कार्यशाला में हम अपने काम को पेश करेंगे। मुझे पूरा विश्‍वास है कि तब कम से कम कुछ हिंदी चिट्ठाकार जरूर वहां उपस्थित होंगे। वैसे इसी प्रकार का काम मेरी एक सह शोधार्थी इंदिरापुरम निवासी गौरी पालीवाल भी कर रही हैं जिनके काम का शीषर्क है 'क्‍योंकि हर ब्‍लॉग कुछ कहता है.....' मेरी अभी उनसे भेंट नहीं हुई है पर मुझे आशा है कि उनके कार्य से इस दुनिया पर एक नए कोण से देखने का अवसर मिलेगा।
अब तक अपनी रिसर्च नोटबुक में मैनें जो आड़ी तिरछी लकीरें खींचीं हैं उनसे कुछ इस प्रकार के बिंदु उभरते हैं-------

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हिंदी ब्‍लॉग पहचान के मायने आखिर हैं क्‍या ? क्‍या ये हिंदी ब्‍लॉगरों की पहचानों का कुल योग है या उनके संश्‍लेषण से तैयार एक ऐसी पहचान है जो ब्‍लॉगरों की पहचानों से भिन्‍न सत्‍ता रखती है। इस सवाल का जमीनी रूप इस सवाल से जाहिर होगा कि आखिर ब्‍लॉगर ब्‍लॉग क्‍यों लिखतें हैं। और हिंदी ब्‍लॉगर, ब्‍लॉग क्‍यों लिखते हैं ?

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ऐसा क्‍यों है कि हिंदी ब्लॉग समुदाय एक बंद समुदाय की तरह व्‍यवहार करता सा दिखाई देता है। मसलन लिंकिंग पैटर्न में वे क्‍यों केवल आपस में एक दूसरे से लिंकित होते अधिक दिखाई देते हैं और हिंदी के बाहर के ब्‍लॉगों से लिंक रखने की प्रवृत्ति कम दिखाई देती है। क्‍या इसे कथित 'अल्‍पसंख्‍यक घेटोआइजेशन' की प्रवृत्ति से समकक्ष देखा जा सकता है।
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हिंदी ब्‍लॉग जगत इतना 'साफ सुथरा' क्‍यों है(यह आपत्ति नहीं है हैरानी है) अर्थात पोर्न, कीचड़बाजी आदि इसमें अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग की तुलना में नहीं के बराबर है। क्‍या यह ब्‍लागिंग परिदृश्‍य में बेहद असामान्‍य व्‍यवहार तो नहीं है ?
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ब्‍लॉगर-ब्‍लॉग संबंध
ब्‍लॉगर का अपने ब्‍लॉग से क्‍या संबंध है ? वह अपने ब्‍लॉग का 'मालिक' है (जैसे ये अमुक की कार है...) या ये संबंध अधिक जटिल है (जैसे रामायण राम की कथा है)

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हिंदी ब्‍लॉगिंग गैर-अंग्रेजी कितु भारतीय अन्‍य ब्‍लॉगों की ओर कैसे देखती है ?(मसलन तमिल या मराठी ब्‍लॉगिंग) इसी प्रकार यह भी कि हिंदी चिट्ठाकारी का भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग को लेकर क्‍या रवैया रहा है ?
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चिट्ठाकारी का ऐतिहासिक अध्‍ययन
पितामह बिरादरी :)
नारद की भूमिका (मजे की बात हे कि एक सहयोगी मित्र हिंदी पत्रकारिता में सरस्‍वती के योगदान पर शोध कर रहे हैं......मुझे दोनों के बीच मजेदार साम्‍य दिखाई देतो है)
फांट प्रपंच
यूनीकोड पुराण
कमबख्‍त पॉडकास्‍ट
विषयगत विविधता (या उसका अभाव)
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चिट्ठाकार बिरादरी की उपजातियॉं
प्रत्‍यक्षा और स्त्रियॉं कहॉं हैं (और पहली 'लड़की' है कहीं )
दलित ?????
किशोर व बच्‍चे ????
इरफान और शुएब....
विकलांग (एक नेत्रहीन मित्र ने सरेआम कहा मुझे तो नेट पर हिंदी खोजने पर केवल पोर्न मिलता है.....मेरे लिए वहॉं कुछ है क्‍या)
दुनिया के अलग अलग कोनों में बैठे ये चिट्ठाकार क्‍या एक 'जाति' (संदर्भ रामविलास शर्मा ) का निर्माण करते हैं ? इस जाति के पहचान चिह्न क्‍या हैं ?
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कुछ और नोट्स भी हैं पर वे बाद में ओर हॉं ये सवाल नहीं हैं केवल मुद्दे हैं उत्‍तर नहीं खोज रही केवल नैरेटिव्‍स खोज रही हूँ। और हॉं एक बात और बलॉग शोध का मामला भी गरमा रहा है। इन दो शोधों के अलावा आगामी 7-8 मार्च को नई दिल्‍ली में हो रही एक नेशनल सेमीनार में पढ़े जाने के लिए एक परचा स्‍वीकृत हुआ है विषय है 'Vernacularly Yours.......A Look at the question of complex linguistic identity on Hindi Blogosphere' बाकी की खबर केवल इच्‍छुक लोगों के लिए है मसलन कौन है यह शोधार्थी (हॉं मैं नहीं हूँ) ;)

Friday, February 23, 2007

अपना हीरो हारा है ...... लोकतंत्र जिंदाबाद

हम तो ठहरे शोधार्थी और सच से शुरू करें कि इस चुनाव की आपाधापी में शामिल नहीं थे पर हॉं नजर जरूर रखे हुए थी। (अब इतना भी नहीं करेंगे क्‍या, पैसे किस बात के लेते हैं, सरकार से ब्‍लॉग-रिसर्च के नाम पर) हॉं तो अपन ने किसी को भी वोट नहीं डाला पर इसका मतलब ये नहीं कि अपनी कोई राय ही न थी, थी और सच है कि हमारा प्रिय ब्‍लॉगर हार गया है। और इतने वोट से हारा है कि हम चाहते और वोट डालते भी तो जीत नहीं सकता था। इसका मतलब ये न माना जाए कि हमें समीरजी का ब्‍लॉग पसंद नहीं या उसके विषय में हमारी राय कोई बुरी है बल्कि उलटा हम तो समीर के ब्‍लॉग को हिंदी ब्‍लॉगिंग के ऐतिहासिक विकास में महत्‍वपूर्ण आयाम मानते हैं। कैसे इस पर चर्चा फिर की जाएगी।
पहले देखें इस बार के आंकड़े








ओर यह हुए पिछले साल के आंकड़े

अब सबसे पहले तो ये देखें कि पिछले साल का कुल आंकड़ा 90 है और इस बार विजयी ब्‍लॉग ही 128 पर है। कुल मिलाकर 334 ने अपने वोट का इस्‍तेमाल किया है। इसमें कुछ फर्जी वोटिंग भी शामिल होगी ही पर यह भी सच है कि हम जैसे भी हैं जो यहॉं हैं पर वोट डाला नहीं.... यानि हिसाब बराबर। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदी ब्‍लॉग जगत (ब्‍लॉगोस्‍फेयर) के आकार में सालभर में खासी बढ़ोतरी हुई है। अंग्रेजी के लिए यह आंकड़ा विजेता 381 तथा कुल मत 1260 का है। पिछले साल यह क्रमश: 225 और 892 (प्रत्‍यक्षा गणित तो मेरा भी कमजोर है पर Program>accessories>calculator के इस्‍तेमाल से किया है और फिर भी कोई गलती हो तो भूलचूक लेनी देनी) अंग्रेजी ओर हिंदी के ब्‍लागजगत के आकार में अभी भी अंतर है जो शायद रहेगा पर ये अंतर बढ़ नहीं रहा प्रतिशत में कम हो रहा है (पिछले साल 90/892=0.1008 इस साल 334/1260= 0.2650) यानि कुल मत को आधार मानें तो हम भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग के एक चौथाई हो गए हैं। लेकिन मेरी राय यह भी है कि शायद अंग्रेजी ब्‍लॉंगजगत ऐसे चुनावों को लेकर पठारी थकान पर पहुँच चुका है।
खैर शेष विश्‍लेषण अन्‍य विश्‍लेषणों के आने के बाद। और हॉं मेरी पसंद सुनील दीपक का ब्‍लॉग था। जिन्‍होंने अपने नामांकन का नोटिस तक नहीं लिया था। उनके ब्‍लॉग पर चुनाव चर्चा
बड़े आकार के लिए छवियों पर क्लिक करें
की विजेता के ब्‍लॉग पर हुई चुनावचर्चा


से तुलना करें। जाहिर है कि समीर व्‍यंग्‍यकार हैं पर भी व्‍यंग्‍य भी सच ही होता है।

Saturday, February 17, 2007

जाल में फँसे नाम, ......धँसे नाम,...... हँसे नाम

ब्‍लॉग जगत में काफी कुछ हो रहा है लोग पोस्टिया रहे हैं और टिप्पिया रहे हैं। कुछ पोस्‍टों पर टिप्पिया रहे हैं तो कुछ टिप्‍पणियों पर पोस्टिया रहे हैं कई तो टिप्‍पणियों पर ही टिप्पिया रहे हैं ऐसे में मुझे तो रिसर्चियाना है और जाहिर है यह अलग किस्‍म का काम है। इसलिए सोचा कि आज रिसर्च पर पोस्टियाआ जाए।
....तो मैने ब्‍लॉग शोध के पहले चरण में ब्‍लॉगों की सूची बनाई और सूची देखते हुए लगा कि पहला परचा तो ब्‍लागों के नाम की प्रकृति पर विचार करते हुए ही लिखा जाए। लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्‍व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्‍द या संबोधन नहीं उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्‍व है। हिंदी चिट्ठों के नामकरण संस्‍कार के वक्‍त वक्‍त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन चिट्ठाकारों के लिए।

कुछ चिट्ठाकारों के चिट्ठे अपने लेखक के फुरसत के हल्‍के क्षणों, खामखां के वक्‍त बिताऊ चिंतन के महत्‍व क‍ो बताते हैं। यहॉं 'ये न थी हमारी किस्‍मत के दीदारे यार होता' वाले अंदाज में कुछ हल्‍की कुछ थोड़ी भारी बातों को पेश करने की बेतकल्‍लुफी नजर आती है। कहीं किसी ब्‍लॉग में मोहल्‍लेबाजी के बहाने दर्शनबाजी करता चिट्ठाकार विश्‍वग्राम की तरह विश्‍व को एक मोहल्‍ले के रूप में देखना चाहता है। 'कहना चाहने और कह न पाने' के द्वंद्व में फँसे लेखकीय व्‍यक्तित्‍व के दर्शन कराने वाले ब्‍लॉगों की अपनी अलग पहचान है। यहॉं लेखक की पीड़ा, द्वंद्व और सटीक अभिव्‍यक्ति न कर पाने की छटपटाहट दिखई पड़ती है।
रचना में भावों और कल्‍पना की उड़ान का महत्‍व कुछ चिट्ठाकारों के लिए सबसे ज्‍यादा है। अपनी कल्‍पना रूपी उड़नतश्‍तरियों पर बैठकर अनंत ब्रह्मांडों पर पहुँचने और नए जीवनों से मिल आने की चाह है शायद वहॉं। भावना और यथार्थ की टकराहट में भाव की जीत कभी-कभी भाव-सिंधु की उठती गिरती लहरों में प्रकट होती है। दूसरी ओर यथार्थ से टकराने की अदम्‍य इच्‍छा और साहस का संगम कुछ चिट्ठों के नामों में है। मानों कह रहे हों 'आइए हाथ उठाएं हम भी' और सामाजिक विषमताओं का एकजुट होकर सामना करें। रोजमर्रा की जिंदगी के अन्‍याय, शोषण व साम्राज्‍यवादी ताकतों के खिलाफ हमारी दैवीय भारतीय आत्‍माएं एक ही लोकमंच से युद्धरत हों। ऐसा मारक, प्रहारशील और तरकशवादी नामकरण अपने पाठक पर बहुत ही आह्वानकारी प्रभाव छोड़ता है।
कुछ चिट्ठाकार अपने लेखन में छिपे अदनेपन, भदेसपन, जमीनीपन को उभारने के फेर में पड़े हैं। यहॉं वे सिद्ध करना चाहते हैं कि रचना महत्‍वपूर्ण है रचनाकार नहीं। आवारा बंजारा, बिहारी बाबू कहिन जैसे नाम जमीनी सच की मुखलफत करते दिखाई देते हैं। इससे ठीक उलट कई चिट्ठाकार देववाणी या प्रवचनात्‍मक शैली लिए हुए अपनी बात कहना पसंद करते हैं। पंडिताई (ई पंडित) मनसा वाचा कर्मणा (मानसी) वाली शैली या भविष्‍यवाणी (जोगिलिखी) में एक अलग ही अभिजातपना झलकता है।
हिंदी-तकनीक-सृजन के त्रिकोण को संभाले साहित्‍य साधना पर अपना सबकुछ कुर्बान कर चुके रवि रतलामी का हिंदी ब्‍लॉग, मसिजीवी, शब्‍दशिल्‍प राजसमंद की हिंदी बेवसाईट के नाम निराले हैं। स्‍वनामधन्‍य ये चिट्ठे मानों कह रहे हों कि ' हम हिंदी, तकनीक और सृजन की शपथ लेकर ये संकल्‍प लेते हैं कि ......' (आप स्‍वंय जोड़ लें) कबीर ने सत्‍य को साक्षी मानकर साखियों की रचना की इससे प्रेरणा लेकर प्रत्‍यक्ष को साक्षी मानकर लगता है प्रत्‍यक्षा ने नामकरण किया है। वेसे कई रचनाकारों के नाम और उनके ब्‍लॉगों के नाम एक ही हैं मसलन मानसी, प्रत्‍यक्षा, शुएब प्रतीत होता है कि इन्‍हें अपनी पहचान पर कोई पट गवारा नहीं यहॉं व्‍यक्ति और रचना में सम भाव है।
गालिबन यह सारी नामगाथा इस विचार से प्रेरित थी कि -'नाम में कुछ रखा है....' यदि इन चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों के नाम यूँ ही आनन फानन में, खाम ख्‍याली में दे मारे थे तो मेरी इन अटकलों को बेतकल्‍लुफी की उपज मानकर क्षमा करें।

Friday, February 9, 2007

ब्‍लॉग होता क्‍या है ?

यूँ अधिकतर ब्‍लागर इस प्रक्रिया से परिचित हैं। पर चूँकि यह ब्‍लाग शोध रिपोर्टिंग के उद्देश्‍य से तैयार किया गया है अत: जानकारी के लिए सूचना है कि लोकमंच पर ब्‍लॉग दूनिया का एक संक्षिप्‍त परिचय अपूर्व कुलश्रेष्‍ठ ने प्रस्‍तुत किया है। उनका आभार,यदि इसे चर्चित हल्‍ले की 'चोरी' न माना जाए तो जानकारी अविकल इस प्रकार है

ब्लागर्स या चिट्ठाकारों की दुनिया पर प्रकाश डाल रहे हैं लेखक अपूर्व कुलश्रेष्ठ
ब्लाग एक निजी डायरी, ताजे समाचार प्राप्त करने का जरिया एवं आपके निजी विचार हैं. सामान्य भाषा में ब्लाग एक बेवसाइट है जहां आप अपने विचारों को प्रेषित करते हैं. इस हेतु कोई नियम व कायदे नहीं हैं. कोई भी अपने विचारों को मनचाही भाषा में व्यक्त कर सकता है.
आज से पांच वर्ष पूर्व ब्लागर लांच होने के बाद ब्लाग्स ने वेब को नया आकार दिया है, राजनीति को प्रभावित किया है, पत्रकारिता से हाथ मिलाया है और लाखों लोगों को इस योग्य बनाया है कि वे अपनी आवाज बुलंद कर सकें और दूसरों से सम्पर्क बना सकें. ब्लाग के माध्यम से आपकी स्वयं की आवाज वेब पर आती है. यह वह स्थान है जहां आप अपने दिलचस्प विचारों को इकट्ठा कर किसी के साथ बांटते हों. फिर चाहे राजनीतिक विचार हो, निजी डायरी हो या वेबसाइट की लिंक हों, जिसे आप याद रखना चाहते हों. कई व्यक्ति ब्लाग का उपयोग अपने स्वयं के विचारों को संगठित करने के लिये करते हैं जबकि अन्य विश्व के हजारों लोगों को प्रभावित करने के लिये. व्यावसायिक एवं युवा पत्रकार ब्लाग का उपयोग ताजे समाचारों के प्रकाशन के लिये करते हैं जबकि निजी जर्नल लिखने वाले के विचारों को इसमें व्यक्त करते हैं. ब्लागर मोबाइल, चित्र एवं प्रकाशन सामग्री सीधे आपके ब्लाग पर भेजते हैं जब आप कहीं सफर पर हों. इसके लिये आपको अपने फोन से निश्चित वेबसाइट पर मात्र मैसेज भेजना होता है. इसके लिये ब्लागर अकाउंट की आवश्यकता भी नहीं होती.
ब्लागर साइट्स पर यह भी देखा जाता है कि विचार भेजने वाले व्यक्ति ने अपने विचारों को संयत भाषा में लिखा है कि नहीं. परंतु हाल ही के कुछ वर्षों में यह देखने में आया है कि धार्मिक कट्टरता वाले ब्लाग्स की संख्या में काफी बढोत्तरी हुई है. ये साइट्स कट्टरता को काफी बढावा दे रही थी. यही कारण है कि सरकार द्वारा कुछ ब्लाग साइट्स को ब्लाक भी कर दिया गया.
फायर वाल तकनीक साफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों के लिये उपयोगी है या एक मायने से दोनों का मिला-जुला स्वरूप है. यह अनधिकृत यूजर को आपके प्रायवेट नेटवर्क का उपयोग करने से रोकता है. कोई भी मैसेज और ब्लाग इन्टरनेट तकल पहुंचने और निकलने से पहले इससे होकर गुजरते हैं और अगर वे तय मापदण्डों को पूरा नहीं करते हैं तो यह उन्हें कम्प्यूटर तक पहुंचने ही नहीं देता है. इस तकनीक के कुछ प्रकारों में प्राक्सी सर्वर, पैकेट फिल्टर, एप्लीकेशन गेट-वे और सर्किट गेट-वे गिने जाते हैं.

Sunday, February 4, 2007

ब्‍लागित हिंदी जाति का लिंकित मन

जैसा कि वायदा था, शोध प्रस्‍ताव निम्‍नवत है। आपकी राय की प्रतीक्षा है।

शोध विषय : ब्‍लागित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्‍लागों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ट का अध्‍ययन

इंटरनेट पर हिंदी की चर्चा अब उतनी नई नहीं है, और हिंदी हाइपरटेक्स्ट अब एक यथार्थ है जिसके इरादे वेब जगत पर एक लंबी पारी खेलने के हैं। विशेषकर यूनेकोड के अवतरण के पश्चात हिंदी हाइपरटेक्स्ट ने नए प्रतिमान को प्राप्त कर लिया है। हिंदी ब्लॉग इसी प्रक्रिया का सहज विकास हैं। नारद, अक्षरग्राम, चिट्ठाचर्चा, हिंदी वेबरिंग जैसे नेटवर्कों के बाद तो हिंदी ब्लॉग जगत एक परिघटना बन गया है। रामविलास शर्मा की हिंदी जाति की अवधारणा हिंदी ब्लॉग जगत के संदर्भ में बेहद युक्तियुक्त बन जाती है क्योंकि देशकाल से परे ब्लॉगिया समुदाय जिस अस्मिता से आपस में जुडता है वह भाषीय अस्मिता (राष्ट्रीय ) ही है
प्रस्तावित शोध हिन्‍दी ब्लॉगों में व्यक्त हिंदी हाइपरटेक्स्ट गद्य का एक ऑनलाइन अध्ययन है जो इस हाइपरटेक्स्ट की भाषा ,शैली ,रचनाकार ,टेक्स्ट ,रीडर टेक्नॉलजी के वृत्त विमर्श में परखना चाहता है। यह हिंदी में इक पूर्णतः ऑनलाइन अध्ययन होगा हो विद्यमान ब्लॉगों ,हिंदी नेटवर्कों ,ब्लॉग आर्काइवों और विद्यमान टिप्पणियों का अध्ययन करेगा ऑर्कुट व माइस्पेस जैसे नेटवर्कों में जारी संवादों की परख करेगा और अपनी पहलकदमी से हिंदी ऑनलाइन समुदाय से नेरेटिव्स इकट्ठे करेगा।
हाइपरटेक्स्ट हिंदी गद्य की विषय वस्तु उसकी भाषा शैली पोस्टिंग टिप्प्णी संरचना का विशेष रुप से अध्ययन किया जाएगा ताकि यह समझा जा सके कि हिंदी ऑनलाइन समुदाय का विस्तृत आख्यान क्या है देश-परदेश हिंदी-अहिंदी रोमन-देवनागरी जैसी द्वंदात्मकता से यह कैसे दो-चार हो रहा है। पाठक समायोजित गद्य किस प्रकार अपनी विशिष्ट्ता बरकरार रख पाता है, इस आयाम को भी टटोला जाएगा। मल्टीमीडिया के सानिध्य में पलने वाला गद्य छवि ,संगीत ,और रंग की मातहती से कैसे दो-चार होता है, यह भी हिंदी गद्य का एकदम नया अनुभव है जिसका अध्ययंन प्रस्तावित शोध करेगा। हिंदी की पहचान जो अपने भौगोलिक केंद्रों से निकट से संबंधित रही है वह आभासी स्पेस में कैसे अस्तित्‍ववान रह पाती है इस पर भी एक संक्षिप्त राय व्यक्त की जाएगी
शोध की मूल पद्धति विद्यमान हाईपरटेक्‍स्‍ट को खंगालने, आर्काइवल नरैटिव्‍स को चुनने और उनसे वृत्‍तांत तय करने की होगी। आनलाइन विमर्श-समुदाय में इस विषय पर बहस की शुरूआत की जाएगी जिसमें निरंतर हस्‍तक्षेप कर इस वृत्‍तांत को पुष्‍ट किया जाएगा।

Saturday, February 3, 2007

एक और ब्लॉग क्यूँ

विवेक की मेल मिली सराय की साइट पर जाकर दोबारा जांचा और लीजिए हम स्वतंत्र शोधकर्ता की कतार में शामिल हो गए । मेरे शोध का विषय है ' ब्‍लॉगित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्‍लॉगों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ट का अध्‍ययन' यह नया ब्‍लॉग इसी शोध की प्रक्रिया में शुरू किया गया है। इसलिए मित्रों आप भी इस शोध में शामिल हों अपने ब्‍लॉगिंग अनुभव हमसे साझा करें। पूर्ण शोध प्रस्‍ताव जल्‍द ही पोस्‍ट किया जाएगा। दरअसल अभी पूरा प्रस्‍ताव यूनिकोड में उपलब्‍ध नहीं है।