हिन्दी चिट्ठाकारी पर आज हमने अपना परचा प्रस्तुत किया। हमारे लिए मुश्किल काम था एक तो इसलिए कि ब्लॉगरों के बीच अपनी बात रखने में सुविधा रहती है कि आपकी बात जिसे ठीक नहीं लगेगी वह कह देगा कि ये आपकी राय है पर हम इससे कुछ अलग सोचते हैं। पर एक ऐसे विद्वत समुदाय के समक्ष जो अपने अपने क्षेत्र में तो पारंगत हैं पर चिट्ठाकार अनिवार्यत नहीं है, वे तो हमें हिंदी चिट्ठाकारों की नुमांइदगी करने वाला मान बैठेंगे...यही हुआ भी। पूरे चिट्ठाकार समुदाय का प्रतिनिधित्व एक गुरूतर काम था और हम कतई नहीं समझते कि हम इस योग्य हैं। खैर...हमने जैसा ब्लॉगजगत को समझा है लोंगों के सामने रखा। बाद में लोगों ने दाद भी दी (पर पता नहीं ये शिष्टाचार था कि व्यंग्य :))
परचा लंबा है इसलिए यहॉं नहीं दिया जा रहा, उम्मीद है जल्द प्रकाशित किया जाएगा। फिलहाल हम उस पावर-प्वाईंट प्रस्तुतिकरण की स्लाइड्स को दिखा रहे हैं जो हमने इस कार्यशाला में दिखाईं। कार्यशाला अभी LTG सभागार मंडी हाऊस में जारी है तथा दो दिन और चलेगी।
स्लाइड्स
11 comments:
achchaa prayaas hai. mehnat bhii bahut kii hai
आशा है कि आपका शोश नि:संदेहमील का पत्त्थर माना जाएगा क्योंकि अपनी तरह का यह पहला शोध है (शायद)।
शुभकामनाएं स्वीकार करें!!
बधाइयाँ आपको. बेहतरीन शोध है.
वाह ........बहुत बढिया
बधाई हो।
कुछ सवाल -
१. खिचड़ी भाषा में बनी स्लाइड - सराय को स्वीकार्य है? शोध कौन सी भाषा में प्रकाशित है? खिचड़ी भाषा से आपत्ति नहीं है, बस जानना चाहता हूँ कि सराय वालों को क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं।
२. हिन्दी ब्लॉगिंग बिहेवियर, ब्लॉगिंग बिहेवियर, ब्लॉगिंग उत्प्रेरण, ब्लॉगिंग मंशा - कतई समझ नहीं आई। यदि समय हो तो खुलासा करें।
३. Reluctance to adventurism - वाकई (या वाक़ई?) यह निष्कर्ष कैसे निकाला आपने? ऍड्वेंचरिज़्म नापने के मापदंड क्या थे?
४. शोध खत्म हुआ, लिंकित मन का अब क्या होगा?
पुनः बधाई स्वीकार हो। आशा है लिंकित मन फिर भी जारी रहेगा।
आप सभी सुधीजनों का आभार, शोध तो जारी प्रक्रिया है, प्रस्तुतिकरण तो केवल शोधवृत्ति के समाप्त होने का सूचक था।
@आलोकजी वाह क्या 'बधाई' है, शुक्रिया :)। जी भाषा सायास ही खिचड़ी रखी गई थी क्योंकि संबोधन सामान्यत: गैर हिन्दी-गैर ब्लॉगर समुदाय को था। चूंकि ये स्लाइडस परवे के बिंदुओं का संकेत भर करने के लिए थीं इसलिए संदभ्र स्पष्ट नहीं ही कर पा रहीं हैं। तथापि पूरी बातें व शोधपत्र जिसने इन अवधारणाओं को लिया गया अथवा विकसित किया गया है वे परचे के endnotes में हैं। शोधपत्र का अपना ढॉंचा होता ही है, उस अकादमिक उपक्रम को ब्लॉग पर ठेलने से कभी कभी भ्रम हो जाता है।
पुन: आभार
"जी भाषा सायास ही खिचड़ी रखी गई थी क्योंकि संबोधन सामान्यत: गैर हिन्दी-गैर ब्लॉगर समुदाय को था। चूंकि ये स्लाइडस परवे के बिंदुओं का संकेत भर करने के लिए थीं इसलिए संदभ्र स्पष्ट नहीं ही कर पा रहीं हैं।"
परदे में अंग्रेज़ी प्रेम? जिसको आधी हिंदी समझ में आ रही थी उसको बाकी नहीं आती यह समझना समझ से परे है। कमाल के दिल्ली के अहिंदी भाषी हैं जो 4 स्लाइडों में हिंदी समझ लेते हैं बाकी की नहीं समझ पाते। इससे बेहतर हिंदी प्रस्तुतियाँ तो हम विदेश में कर लेते हैं।
बधाई है नीलिमा जी ।
घुघूती बासूती
उत्कृष्ट प्रस्तुति। इस उपस्थापन को सँजो कर रखें और समय समय पर अद्यतन करती रहें। सूचनाक्रान्ति में हिन्दी का महत्व, हिन्दी(देवनागरी) की तकनीकी समस्याएँ (यथा- ईमेल पाठ के बिगड़ने, हिन्दी में ब्लॉग के नाम के फीड तथा इण्डेक्सिंग में प्रकट न हो पाने आदि) और उनके समाधान हेतु सुझावों के बारे में कुछ स्लाइड और जोड़ें तो विश्वस्तरीय उपस्थापन (presentation) बन जाएगा।
Picassa पर जाकर आपकी हर स्लिदे को ध्यान से देखा पडा। शोध सच में शोध है घास-कटाई नहीं।
बधाई।
हिन्दी चिट्ठाकारी पर शोध की सफल शुरुआत करने के लिए हार्दिक बधाई!
शोध पत्र का सारांश यदि धीरे-धीरे प्रस्तुत कर सकें तो अच्छा रहेगा।
आने वाले समय में जब अलग-अलग दृष्टिकोणों से हिन्दी चिट्ठाकारी पर शोध होगा तो इसके अलग-अलग आयाम सामने आएंगे।
लिंकित मन पर अब तक जो भी विश्लेषण चिट्ठाकारी के बारे में आपने प्रस्तुत किया है, उससे दूसरे शोधार्थियों को आगे काम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूत्र मिलेंगे। हालांकि जहां तक मैं समझ पाया हूं, आपके शोध पर आपके कुछ पूर्वग्रह हावी रहे हैं और यह तटस्थ एवं संतुलित नहीं रह पाया है, फिर भी इतना तो स्वाभाविक है। एक बार फिर से बधाई और शुभकामनाएं।
Post a Comment