यह सुखद है कि हिंदी के चिट्ठासंसार ने खुद बहु-एग्रीगेटर स्थिति में परिपक्वता के साथ ढालना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों इसका प्रमाण प्रस्तुत करती कुछ घटनाएं दिखीं एक तो अहम घटना यह रही कि नारद, ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत ने एक दूसरे का लिंक अपने मुखपृष्ठ पर दिया- अब उन लोगों के लिए जो एक से ज्यादा एग्रीगेटरों की सेवा लेते हैं ये काम आसान हो गया है। जैसा कि अरविंदजी का सर्वेक्षण बताता है कि 43 % चिट्ठापाठक दो या अधिक एग्रीगेटरों का इस्तेमाल करते हैं। यदि हम एग्रीगेटरों की तुलना सर्च इंजनों जैसे माध्यमों से करें तो स्पष्ट होता है कि इनकी आपसी प्रतियोगिता एक दूसरे के समर्थन की मांग करती है- अकसर सर्च इंजन ये सुविधा देते हैं कि आपके सर्च के लिए हमारी इंडेक्सिंग से यदि वांछनीय सामग्री न मिल रही हो तो आप अन्य सर्च इंजनों का इस्तेमाल कर सकते हैं- ये लीजिए लिंक। इसी क्रम में हिंदी के एग्रीगेटर भी एक दूसरे को समर्थन दे रहे हैं - यह परिपक्वता की निशानी है।
इसी संदर्भ में चंद और तथ्यात्मक बातें- जिन तीन एग्रीगेटरों की बात यहॉं की जा रही है उनके ट्रेफिक के आंकड़े भी हाल में हाथ लगे। नारद के तो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं ही- यहॉं पर और ये यह कहते हैं-
दूसरी ओर चिटृठाजगत के आवाजाही आंकड़े भी विपुल ने हाल में उपलब्ध कराए

- ब्लागवाणी को अभी और भी कम समय हुआ है तथा इस अवधि के आंकडें उपलब्ध तो न थे पर हमने शोध के उद्देश्य से मैथिलीजी से मांगे तो उन्होंने जो कुछ भी उनके पास थे सब विस्तारपूर्वक हमारे पास भेज दिए हैं। शोधधर्म के चलते उन्हें पूरी तरह सार्वजनिक तो नहीं किया जा रहा है पर शोध से जो हमारी राय बन रही है उसे इन आंकड़ों पर भी विचार कर ही तैयार किया गया है।
सबसे पहले तो ये समझें कि नए एग्रीगेटर आने से नारद का ट्रेफिक कुछ कम तो हुआ है पर इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि नारद के ट्रेफिक को चिट्ठाजगत या ब्लागवाणी खा गए हैं- हॉं यह जरूर है कि अब नारद बहुत ही कम लोगों का एकमात्र या प्रेफर्ड एग्रीगेटर है (यह अरविंदजी के सर्वेक्षण से भी पता चलता है) पर तब भी कुल मिलाकर लोगों के फेरे एग्रीगेटरों पर बढे हैं- यदि सभी एग्रीगेटरों के दिनभर के औसतन यूनीक विजीटरों को जोड़ लिया जाए तो ये पहले के नारदीय ट्रेफिक से कहीं ज्यादा है।
आपसी तुलना करे तो चिट्ठाजगत (अनुमान) व ब्लॉगवाणी को तो नारद से ट्रेफिक मिल रहा है किंतु नारद को इनसे ट्रेफिक नहीं मिल रहा या कम मिल रहा है। यह भी रोचक है कि ट्रेफिक की दृष्टि से जल्द ही तीनों एग्रीगेटर समतुल्य स्थिति में आने वाले हैं पर पुराने लिंकों के वजूद में होने का लाभ नारद के पक्ष में है- टैक्नॉराटी पर तीनों की स्थिति से बात स्पष्ट होती है। विपुल का चिट्ठाजगत तेजी से 112 जगहों से आ रहा है तथा 46000 के लगभग रेंक पर है जबकि ब्लागवाणी संभवत किसी तकनीकी वजह से टैक्नारॉटी पर नजर नहीं आता जबकि नारद 148 की अथॉरिटी के साथ 33662 पर है जो किसी भी हिंदी चिट्ठे से ज्यादा है (निकटतम शायद रविजी हैं 40984 के साथ) जहॉं चिट्ठाजगत के 112 अथॉरिटी, नारद के 148 की तुलना में ज्यादा दूर नहीं दिखते वहीं यदि लिंकों की कुल संख्या पर विचार करें तो असल तस्वीर दिखाई देती है- नारद के 4915 लिंक जबकि चिट्ठाजगत के हैं केवल 1012 लिंक। मतलब यह कि अभी तो दोनों में जमीन असमान का अंतर है।
आसान भाषा में इस आंकड़ेवाजी से जो बात निकलकर आती है वह यह कि हिंदी चिट्ठासंसार नारद की जगह पर दूसरे एग्रीगेटरों को न देखकर सबको एक साथ देखने पर जोर दे रहा है। दूसरी बात यह कि माने न माने आपस में एक स्पर्धा है (और होनी चाहिए) पर अब तक तो स्वस्थ ही है। और हॉं नारद आज की स्िथति में तो 'न डाउन है न आऊट' पर साथ ही यह भी है कि पहले की 'लिंकित प्रापर्टी' के चलते अभी कुछ समय तक उसके शीर्ष पर बने रहने की ही संभावना दिखाई देती है किंतु नए चिट्ठों को शामिल कर सकने की उसकी क्षमता पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा।
आंकड़े उपलब्ध कराने व विश्लेषण में सहयोग के लिए मित्रो का आभार



11 comments:
उत्तम सर्वेक्षण
बहुत अच्छा विश्लेषण।
"आसान भाषा में इस आंकड़ेवाजी से जो बात निकलकर आती है वह यह कि हिंदी चिट्ठासंसार नारद की जगह पर दूसरे एग्रीगेटरों को न देखकर सबको एक साथ देखने पर जोर दे रहा है।"
बस ही तो हम चाहते हैं। :)
काफी उपयोगी जानकारी है. उपयोगी अनुसंधान के लिये शुक्रिया.
मेहनत से किया है आंकलन, बढ़िया है, लगे रहिए और हमें भी ज्ञान देते रहिए। साधूवाद। :)
देवी शोधिके,
हिंदी में चार मुख्य एग्रीगेटर्स सक्रीय हैं आप हिंदी ब्लाग्स को भूल गई हैं! क्या इसलिये की उसका जन्म विवाद काल में नही हुआ उससे पहले हुआ और वो शांती से अपना काम करता है! :)
बढिया जानकारी, बधाई !
आरंभ संजीव तिवारी का चिट्ठा
अच्छा शोध और ईस्वामी का आख्यान ध्यान देने योग्य. सभी तो आनन्दित करते हैं.
-बधाई.
ई स्वामी जी की बात ध्यान देने योग्य है।
किन्तु कुछ हिन्दी चिट्ठे इन तीनों-चारों एग्रीगेटरों की 'पकड़' में भी नहीं आ पा रहे हैं...
हरिराम जी चिट्ठाजगत पर कोशिश है कोई न छूटे, अगर आपको लगता है कोई छूटा है तो लिखें
यह भी शोध मजेदार रही…।
डा0 की उपाधी आप पर ही जंचती है…।
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