Friday, February 23, 2007

अपना हीरो हारा है ...... लोकतंत्र जिंदाबाद

हम तो ठहरे शोधार्थी और सच से शुरू करें कि इस चुनाव की आपाधापी में शामिल नहीं थे पर हॉं नजर जरूर रखे हुए थी। (अब इतना भी नहीं करेंगे क्‍या, पैसे किस बात के लेते हैं, सरकार से ब्‍लॉग-रिसर्च के नाम पर) हॉं तो अपन ने किसी को भी वोट नहीं डाला पर इसका मतलब ये नहीं कि अपनी कोई राय ही न थी, थी और सच है कि हमारा प्रिय ब्‍लॉगर हार गया है। और इतने वोट से हारा है कि हम चाहते और वोट डालते भी तो जीत नहीं सकता था। इसका मतलब ये न माना जाए कि हमें समीरजी का ब्‍लॉग पसंद नहीं या उसके विषय में हमारी राय कोई बुरी है बल्कि उलटा हम तो समीर के ब्‍लॉग को हिंदी ब्‍लॉगिंग के ऐतिहासिक विकास में महत्‍वपूर्ण आयाम मानते हैं। कैसे इस पर चर्चा फिर की जाएगी।
पहले देखें इस बार के आंकड़े








ओर यह हुए पिछले साल के आंकड़े

अब सबसे पहले तो ये देखें कि पिछले साल का कुल आंकड़ा 90 है और इस बार विजयी ब्‍लॉग ही 128 पर है। कुल मिलाकर 334 ने अपने वोट का इस्‍तेमाल किया है। इसमें कुछ फर्जी वोटिंग भी शामिल होगी ही पर यह भी सच है कि हम जैसे भी हैं जो यहॉं हैं पर वोट डाला नहीं.... यानि हिसाब बराबर। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदी ब्‍लॉग जगत (ब्‍लॉगोस्‍फेयर) के आकार में सालभर में खासी बढ़ोतरी हुई है। अंग्रेजी के लिए यह आंकड़ा विजेता 381 तथा कुल मत 1260 का है। पिछले साल यह क्रमश: 225 और 892 (प्रत्‍यक्षा गणित तो मेरा भी कमजोर है पर Program>accessories>calculator के इस्‍तेमाल से किया है और फिर भी कोई गलती हो तो भूलचूक लेनी देनी) अंग्रेजी ओर हिंदी के ब्‍लागजगत के आकार में अभी भी अंतर है जो शायद रहेगा पर ये अंतर बढ़ नहीं रहा प्रतिशत में कम हो रहा है (पिछले साल 90/892=0.1008 इस साल 334/1260= 0.2650) यानि कुल मत को आधार मानें तो हम भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग के एक चौथाई हो गए हैं। लेकिन मेरी राय यह भी है कि शायद अंग्रेजी ब्‍लॉंगजगत ऐसे चुनावों को लेकर पठारी थकान पर पहुँच चुका है।
खैर शेष विश्‍लेषण अन्‍य विश्‍लेषणों के आने के बाद। और हॉं मेरी पसंद सुनील दीपक का ब्‍लॉग था। जिन्‍होंने अपने नामांकन का नोटिस तक नहीं लिया था। उनके ब्‍लॉग पर चुनाव चर्चा
बड़े आकार के लिए छवियों पर क्लिक करें
की विजेता के ब्‍लॉग पर हुई चुनावचर्चा


से तुलना करें। जाहिर है कि समीर व्‍यंग्‍यकार हैं पर भी व्‍यंग्‍य भी सच ही होता है।

10 comments:

Anonymous said...

चुनाव कठीन था. किसे वोट दे किसे छोड़ दे. सभी मन पसन्द थे.

ePandit said...

आप किस टूल से हिन्दी टाइप करती हैं। आधा अक्षर टाइप नहीं होता उदाहरण के लिए: 'ब्लॉग' को 'ब्‍लॉग' लिखती हैं।

Anonymous said...

तुम्हारी भी जै जै, हमारी भी जै जै
न तुम जीते, न हम हारे

Rajeev (राजीव) said...

यह तो रही परिणामों की बात। आपको तो मिल गये सांख्यिकीय आंकड़े, शोध का भरपूर मसाला ;) वोटर्स स्विंग, प्रतिशत बढ़ोत्तरी घटोतरी... आदि पर एक बात से अचम्भा है- आपकी लिखी पंक्तिया देखकर "आखिर पैसे किस बात के लेते हैं सरकार से ब्लॉग शोध के नाम पर?" सरकार द्वारा प्रायोजित यह शोध मतलब...? क्या स्माइली लगाना भूल गयीँ?

Anonymous said...

अच्छा एंगिल पकड़ा है. लगे रहिये यहां और भी बहुत सारे एंगिल है जो एक समाज का निर्माण करते हैं.

Udan Tashtari said...

हम चाहते और वोट डालते भी तो जीत नहीं सकता था।

---इसी सोच के तहत तो भारत की संसद का बंटाधार हुआ जा रहा है. ऐसा न करें. मताधिकार का प्रयोग न करना समाजिक अपराध है. एक एक वोट मायने रखता है. :)

-बढ़िया विश्लेषण चल रहा है, बधाई.

Neelima said...

श्रीश, यह शिकायत एक अन्‍य मित्र ने भी की पर दिक्‍कत यह है कि मुझे आपके दोनों 'ब्‍लॉग' शब्‍द एक जैसे और ठीक दिखाई दे रहे हैं। आपने लिखा

उदाहरण के लिए: 'ब्लॉग' को 'ब्‍लॉग' लिखती हैं।

रवि (रतलामी) जी से बात हुई तो उन्‍होंने कहा कि मॉजेला व फायरफॉक्‍स वालों को शायद ऐसे दिख रहा होगा पर मुझे कोई बदलाव न करने की सलाह दी। बाकी आप ईपंडित लोग बताएं।


एक एक वोट मायने रखता है. :)

सही है समीरजी, पर तब सिर्फ एक एक वोट ही डालना चाहिए था। हा हा हा (मजाक है, बुरा न मानें) बहुत बहुत बधाई

Anonymous said...

सब अच्छा है, सब भला है, देश चल रहा है, लोकतन्त्र कायम है, ब्लौगिंग जारी है, उस में भी पौलिटिक्स जारी है...लोग खड़े होंगे, चुनाव करेंगे, और अपने अपने पैंतरों के कारण जीतेंगे या गलत पैतरे से कारण हार भी निश्चित ही भाग्य में दर्ज करवा लेगें।

प्रजनन के बाद, सन्तान प्राप्ती पर क्षणिक उल्लास, अपने पिता या माता होने पर गर्व...ब्लौगिंग का प्रारभ, प्रवास के बाद एक मसखरे चिट्ठे का चिट्ठा जगत में आना, और पहली बार मुस्कुरा कर दिखाना ! और फ़िर पल भर का हर्ष, उन्माद... किन्तु इस भू पर जीवन का क्रम तो अभी शुरू हुआ है.....
जीवन हर पल एक परिक्षा है, हर पल एक चुनाव है और हर चुनाव के उपरांत .....

Anonymous said...

Agnimitram .. said

राजीव जी,

इस बात की पूरी संभावना है कि शोध स्वेछा से ( और निशुल्क ही) किया जा रहा हो मात्र जन कलयाण के लिये ( जिसमे मै और शायद आप भी शामिल हैं )।

अधिक रसमलाई से 'पेट' खराब होने की सम्भावना रहती है ! यह ना भूलें :)

नीलिमा जी, शोध का आपका कार्य प्रभावपूर्ण लगा, लिखती रहें।

एक बात और.. जहाँ तक शब्द विन्यास का प्रश्न है.. "और" शब्द "ओर" पढ़ा जा रहा है !

Neelima said...

राजीव जी ,मेरा शोध कार्य -ब्लॉगित हिंदी जाति का लिंकित मन-CSDS सराय- के अंतर्गत किया जा रहा है ।मेरे ब्लॉग -लिंकित मन की शुरूआती पोस्ट पर मैंने इसका उल्लेख किया था ।

समीर जी ,आगे से अपने वोटाधिकार का प्रयोग अवश्य करूंगी।