जनसत्ता में इस सप्ताह के स्तंभ में उस बहस को प्रस्तुत किया गया था जिसे विनीत ने हाल में अपने चिट्ठे पर आयोजित किया था, यानि क्या ब्लॉगर पत्रकार कहे जा सकते हैं। पेश है इस सप्ताह का स्तंभ। नीचे पूरे लेख का पाठ भी दिया गया है।
छपी आथेंटिसिटी बनाम हाइपर लॉंजेविटी
चिट्ठाजगत (चिट्ठाजगत डॉट इन) पर दर्ज ब्लॉगों की कुल संख्या अब बढ़कर 5000 से अधिक हो गई है। इनमें बहुत से सक्रिय कहे जा सकने वाले चिट्ठे हैं इसलिए हैरान नही होना चाहिए कि कुछ ब्लॉगरों में पत्रकार के रूप में पहचाने जाने की महत्वाकांक्षा पलने लगी है। दरअसल पिछले सालभर में हुआ ये है कि पत्रकारों की एक पूरी रेवड़ खुद को हिन्दी ब्लॉगिंग की ओर हांक लाई है यानि अब ढेर से पत्रकार ब्लॉगर हैं इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि क्या इसका विपरीत न्याय भी लागू माना जाए। क्या ब्लॉगर खुद को पत्रकार मान सकते हैं, और ये भी कि क्या ब्लॉगिंग पत्रकारिता है? गाहे बगाहे के विनीत ने ये बहस शुरू की और इसमें कई ब्लॉगरों ने शिरकत की लेकिन मजे की बात है कि 'पत्रकार' इस बहस से दूर ही रहे। बंटी हुई निष्ठा का मन पलायन में ही मुदित रहा। टिप्पणी करते हुए ब्लॉगवाणी के संचालक मैथिलीगुप्त ने इस सवाल को बरकाते हुए इशारा किया कि ब्लॉगिंग पत्रकारिता नहीं इससे आगे की चीज है-
'ब्लागिंग तो कैसी भी पत्रकारिता है ही नहीं. हिन्दी ब्लागिंग में पत्रकार अवश्य हैं लेकिन उनके लेखन का चरित्र ब्लागर के तौर पर न होकर के पत्रकार के तौर पर ही है.....
..ब्लागर ब्लागर होते हैं और पत्रकार पत्रकार. दोनों अलग अलग हैं. आजकल सारी दुनियां में ब्लागर अधिक विश्वसनीय माने जा रहे हैं. ब्लाग के विश्वसनीय होने के कारण ही गूगल को किसी सर्च को केवल ब्लाग तक लिमिटेड करने का आप्शन देना पड़ा है।"
ऐसे में चिट्ठाकारी की जवाबदेही का सवाल भी उठना ही था। सवाल उठाया गया कि ''जो लोग नेट पर लिख रहे हैं, चाहे वो ब्लॉग के जरिए हो या फिर वेब पर , उनकी ऑथेंटिसिटी कितनी है। वेब से जुड़े लोग, जिनका कि अपना डोमेन है, उन्हें तो फिर भी आसानी से पकड़ा जा सकता है। लेकिन जो ब्लॉगिंग कर रहे हैं उनको लेकर दिक्कत है।'' ये अलग बात है कि ब्लॉगिंग की सुविचारित राय इस आथेंटिसिटी के प्रतिमान पर ही सवाल उठाती है तथा लाँजिविटी तथा खोज को ज्यादा अहम मानती है ! मसलन शीर्ष चिट्ठाकार देबाशीष का मानना है ''.....इंटरनेट पर लेखन, मसौदे, चित्रों, यानि कुछ भी रखा जाय असल मुद्दा है उन्हें खोज पाने का। किसी शोध करते छात्र या किसी डॉक्टर से पूछें कि इंटरनेट ने उसे क्या दिया। मेरा मानना है कि लेखन नहीं, खोज (गूगल) इंटरनेट युग की सबसे बड़ी क्रांति है। यह न हो तो, जैसा वायर्ड पत्रिका ने हाल में लिखा, आपका लिखा वैसे ही कहीं खो जायेगा जैसा किसी स्थानीय अखबार में छपने के दूसरे दिन खो जाता रहा है। और कुछ न लिखने जैसा ही है।''
वैसे ब्लॉगिंग को पत्रकारिता माना जाए या नहीं इसकी परवाह उन्हें कम ही है जो केवल ब्लॉगर हैं, ये उन पत्रकारों की चिंता ज्यादा है जो आजकल ब्लॉगिंग भी कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे ब्लॉग भी हैं जहॉ खुद मेनस्ट्रीम मीडिया पर जवाबदेही का सवाल उठाया जाता है। बालेन्दु शर्मा दधीच का ब्लॉग वाह मीडिया (वाह मीडिया डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) का तो मुख कथन ही है- ''दूसरों पर उंगली उठाने में सबसे आगे है मीडिया। सबकी नुक्ताचीनी में लगा मीडिया क्या स्वयं त्रुटिहीन है? आइए, इस हिंदी ब्लॉग के जरिए थोड़ी सी चुटकी लें, थोड़ी सी आत्मालोचना करें।'' इस ब्लॉग में वेब तथा अन्य मीडिया रूपों में हुई भूलों की ओर इशारा किया जाता है। वर्तिका नन्दा अपने ब्लॉग मीडिया स्कूल (वर्तिकानन्दा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) में मीडिया पर एक विश्लेषात्मक नजर डालती हैं। इसी प्रकार विनीत तो गाहे-बगाहे ऐसा करते हैं लेकिन खबरी अड्डा (खबरीअड्डा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) मुसलसल यही और सिर्फ यही करता है। मसलन हाल की एक रपट में मंदी से मीडिया उद्योग पर खासकर पत्रकारों की तनख्वाह पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया गया। मंदी में पत्रकारों के लिए लखटकिया नौकरी मिलना आसान नहीं होगा ऐसी राय थी, ये अलग बात है कि जब टिप्पणीकारों ने खटिया खड़ी की भैए जो ये भूत-चुड़ैलन को खबर कह कह परोसते हैं वे कल के जाते आज चले जाएं...तो अंतत: खबरी अड्डा ने तमाम ब्लॉगिंग विवेक को ताक पर रखकर इस पोस्ट से टिप्पणी की सुविधा ही हटा ली।
हिन्दी के तकनीकी ब्लॉगों का मतलब यदि आप यही मानते हैं कि यहॉं हिन्दी साफ्टवेयर की समस्याओं पर ही लिखा जाता हैं तो अमित के हिन्दी डिजिटब्लॉग (हिन्दी डॉट डिजिटब्लॉग डॉट कॉम) पर नजर डालें। हाल की एक पोस्ट में अमित ने हार्डवेयर से जुड़े उस सवाल का जवाब दिया है जिससे नए हर कंप्यूटर का खरीददार गुजरता है, यानि कौन सा कंप्यूटर लिया जाए...ब्रांडिड या फिर असेम्बल्ड। अमित साफ राय देते हें कि चुनाव की आजादी, बाजिव दाम तथा लोच के चलते असेम्बल्ड कंप्यूटर सदैव ब्रांडिड कंप्यूटर से बेहतर रहते हैं। भारत में तो बिक्री के बाद की सपोर्ट भी असेम्बल्ड कंप्यूटर की ही बेहतर होती है। तो फिर मन मारकर वही क्यों खरीदें जो कंपनी थोप रही है, अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से मनमाफिक कंप्यूटर व साफ्टवेयर खुद चुन कर अपना कंप्यूटर असेम्बल करवाएं।
7 comments:
आभार इसे पढ़वाने का..अब इसे पचाते हैं.
अच्छा और उपयोगी लेख !
@ उड़नजी, पचाने के बाद ?
ये चौहान साहब अच्छा लिखते हैं.
अच्छी चर्चा रही थी वह। आभार।
ब्लाग के बारे में अच्छी जानकारी मिली,,,,, उम्मीद है ऐसी जानकारी मिलती रहेगी
युवा जोश !
hmmmmmmmmm aaache kosis or nice bloge hai dear
Shyari Is Here Visit Jauru Karo Ji
http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/
Etc...........
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