जनसत्ता के कॉलम चिट्ठाचर्चा में इस सप्ताह का लेख प्रस्तुत है। पूरा पाठ नीचे दिया गया है।
किताब पढ़ने वाली औरतें
-विजेंद्र सिंह चौहान
'भारतीय संस्कृति‘ और ‘करवा चौथ परंपरा‘ के कई पेरौकार चिट्ठाकार (और इनकी कोई कमी नहीं ब्लॉगजगत में) गाहे बगाहे संतोष जाहिर करते रहे हैं कि शुक्र है हमारी पत्नियॉ ब्लॉग नहीं पढ़तीं (ये सुसंस्कृत, घरबारी औरतों की जगह नहीं)। इसलिए जब सुनील दीपक ने अपने ब्लॉग ‘जो कह न सके‘ (कल्पना डॉट आईटी/हिन्दीब्लॉग) पर ‘किताब पढ़ने वाली औरतों‘ को मिले ऐतिहासिक अस्वीकार का चित्रण प्रस्तुत किया तो ये कथा कुछ जानी पहचानी लगी। माइकेल एंजेलो की भगवान की ओर बढ़ती मानव अँगुली वाले चित्र के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध रोम के सिस्टीन चेपल में सिबिल्ला की पेंटिंग भी है। इटली में रहने वाले ब्लॉगर सुनील स्पष्ट करते हैं-
‘‘सिस्टीन चेपल के बारे में सोचिये तो भगवान की ओर बढ़ती मानव उँगली के दृश्य को अधिकतर लोग जानते हैं पर इसी कृति का एक अन्य भाग है जिसमें बनी है सिबिल्ला की कहानी. भविष्य देखने वाली सिबिल्ला को भगवान से एक हजार वर्ष तक जीने का वरदान मिला था पर यह वरदान माँगते समय वह चिरयौवन की बात कहना भूल गयी इसलिए उसकी कहानी वृद्धावस्था के दुखों की कहानी है.‘‘
इसी पोस्ट में सुनील अलग अलग चार प्रसिद्ध पेंटिंग्स का विश्लेषण करते हैं जिनमें किताब पढ़ती औरतों के चित्र हैं, अलग अलग देशकाल से...साथ ही उन्हें आशापूर्णा देवी की सुबर्णलता भी इसी कोटि की नायिका के रूप में याद आती है जिसे किताब पढ़ने का ‘ऐब‘ है।
ऐंजेलो की पेंटिंग सिबिल्ला 1510 की बनी है जिसमें सिबिल्ला के हाथ में भविष्य की किताब है जो कोरी है। दूसरी पेंटिंग जिसकी चर्चा सुनील करते हैं वह हॉलैंड के चित्रकार जेकब ओख्टरवेल्ट की है जो उन्होंने 1670 में बनायी थी. उस समय हालैंड दुनिया के सबसे साक्षर देशों में से था, स्त्री और पुरुष दोनो ने ही पढ़ना लिखना सीखा था. किताबे पढ़ने के अतिरिक्त चिट्ठी लिखने का चलन हो रहा है. इस चित्र में उस समय के संचार के तीन माध्यमों को दिखाया गया - बात चीत, पुस्तक और पत्र. नवयुवक युवती को अपने प्रेम का निवेदन कर रहा है और नवयुवती किताब पढ़ने का नाटक कर रही है. यही प्रेम संदेश मेज पर रखे पत्र में भी है। ब्लॉगर सुनील दीपक जो हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी व इतालवी में भी ब्लॉगिंग करते हैं अपने सचित्र विश्लेषण में हॉलैंड के पीटर जानसेन एलिंगा के चित्र तथा विन्सेंट वान गॉग के एक चित्र का परिचय भी देते हैं जो 1888 का है। इन चित्रों के माध्यम से सुनील राय व्यक्त करते हैं कि -
‘‘समझ में आने लगता है कि क्यों पितृसत्तायी समाज को स्त्रियों का किताबें पढ़ना ठीक नहीं लगा था. किताबों की दुनिया स्त्रियों को बाहर निकलने का रास्ता दिखाती थीं, उन्हें अपना कल्पना का संसार बनाने का मौका मिल जाता था जो समाज के बँधनों से मुक्त था, उनमें अपना सोचने समझने की बात आने लगती थी.‘‘
पाठक के लिए यह विश्लेषण और भी ऑंखें खोलने वाला इसलिए है कि शताब्दियों से जारी ये वर्जनाएं ब्लॉगजगत पर भी अपनी छाया छोड़ती हैं अत: संचार के नए साधनों में स्त्री भागीदारी के गंभीर निहितार्थ हैं।
अगर आप ऐसे शख्स हैं जो ब्लॉगिंग की दुनिया में कूदना चाहते हैं लेकिन तकनीकी अड़चनों के चलते ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो आपके लिए मदद केवल एक क्लिक भर की दूरी पर है। कुछ हिन्दी ब्लॉगरों ने अब तकनीकी सहायता के लिए ही ब्लॉग बना लिए हैं। इनमें से एक है युवा तकनीकज्ञ अंकित का ब्लॉग प्रथम (एचआई डॉट प्रथम डॉट नेट) अंकित नित नई जुगाड़ी तकनीकों से हिन्दी ब्लॉगिंग को आसान बनाने में जुटे हैं! अपनी हाल की एक पोस्ट में अंकित ने बताया कि किस प्रकार हिन्दी चिट्ठों पर वे लोग भी अब आसानी से हिन्दी में टिप्पणी कर सकते हैं जो हिन्दी की टाईपिंग नहीं जानते। ये औजार बेहद सरल व कामयाब है।
इसी प्रकार एक अन्य तकनीकी ब्लाWगर हैं ई-गुरू राजीव जिनका ब्लॉग है (ब्लॉग्सपंडित /ब्लॉग्सपंडित डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) इस ब्लॉग की दो पोस्टें नौसिखियों के लिए खासतौर पर मददगार हैं एक जो वर्डप्रेस पर ब्लॉग बनाना सिखाती है तथा दूसरी वह जो ब्लॉगर पर नए ब्लॉग बनाने का तरीका बताती है! गौरतलब है कि हिन्दी के लगभग सभी ब्लाWग इन दो प्लेटफार्मों पर ही बने हैं। तो फिर देर किस बात की पधारिए हिन्दी ब्लॉगजगत में खुद के नवेले ब्लॉग के साथ।
13 comments:
सुनील जी का आलेख नहीँ देखा था अच्छा किया जो यहाँ से पता लगा -
नीलिमा जी ,
दीपावली पर स - परिवार शुभकामनाएँ !
स स्नेह,
-लावण्या
आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।
यह दीपावली आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए।
मैं सोच ही रहा था कि अखबार का कॉलम आप ब्लॉग पर दे देते तो पढ़ना आसान हो जाता। अच्छी जानकारी रही।
('ब्लाWगर' शब्द लिखने का स्टाइल पसंद आया।)
print ke lekh ko blog par dene se lekh ka vistaar hota hai,tippani jo milti hai.
आपका और मसिजीवी का आभार क्योंकि जनसत्ता की बनारस मे एक भी कॉपी नहीं आती ।
सुन्दर! दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
jansatta mein nahi padh payi thi, blog par dene se hum log bhi padh paaye. thanks
(ब्लॉग्सपंडित /ब्लॉग्सपंडित डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम) kee reading kewal invitation ke dwara hai .
agar ye link kholte hain to kahta hai ki pahle permission le aaiye .
batayen seekhne ke ichhuk kya karen
बेहद प्रभाव कारी आलेख
शुक्रिया
nicve
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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