Thursday, February 7, 2008

चंद औरतों (जो हसीन नहीं थीं ) के खुतूत

मोहल्ला और भडास सफल हुए ! इन सामुदायिक ब्लॉगों ने ब्लॉग जगत में जिस सामाहिक अवचेतन को लिंकित करने की परंपरा शुरू की थी शायद उसी का नतीजा है स्त्री विमर्शों पर स्त्रियों शुरू किया गया ब्लॉग " चोखेर बाली " !मैंने अपने शोध निष्कर्ष में अस्तित्व की छटपटाहट को हिंदी ब्लॉगित जाति का बेसिक फिनामिना घोषित किया था ! शायद इसी विचार को पुष्ट करता है यह नया ब्लॉग !  स्त्री का अपनी अस्मिता की प्राप्ति का संघर्ष और स्त्रीत्व के विचार को आंदोलनगामिता की शरण से लौटा लाने का प्रयास है यह ब्लॉग ! इस ब्लॉग की टैग लाइन कहती है -"इससे पहले कि वे आ के कहें हमसे हमारी ही बात हमारे ही शब्दों में और बन जाएँ मसीहा हमारे , हम आवाज़ अपनी बुलन्द कर लें ,खुद कह दें खुद की बात ये जुर्रत कर लें ...."! इस ब्लॉग में शामिल हैं हिंदी ब्लॉग जगत की स्त्री लेखिकाएं-

'चोखेर बाली' को बने सिर्फ कुछ ही घंटे हुए हैं पर हिंदी चिट्ठाजगत में इसकी चर्चा पर सुगबुगाहटें होने लगीं हैं ! इस ब्लॉग को लेकर आशा उम्मीदों कामनाओं का माहौल नहीं बना वरन खते हैं आप लोंगों में कितना दम है -सरीखी तमाशबीनी पिकनिकी दृष्टि से इसका स्वागत किया जा रहा है ! आज हमें बहुत दिन पहले उठाए गए सवाल -"ब्लॉग जगत में महिलाऎ इतनी कम क्यों हैं "-का जवाब मिलने लगा है ! दरअसल ब्लॉग जहत का ढांचा भी हमारी संरचना का एक हिस्सा भर ही है ! इसलिए यहां स्त्री विमर्श और संघर्ष के मुद्दों का उठना-गिरना -गिरा दिया जाना -हाइजैक कर दिया जाना -कुतर्की, वेल्‍ली और छुट्टी महिलाओं का जमावडा करार दे दिया जाना ---जैसी अनेक बातों का होना बहुत सहज सी प्रतिक्रिया माना जाना चाहिए ! जब प्रत्यक्षा कहती हैं कि अब ब्लॉग लिख रही औरतों से यह सवाल मत पूछिएगा कि आप ब्लॉग लिखती हैं तो खाना कौन बनाता है ? -तो हमारे सामने ब्लॉग जगत का  स्त्री के प्रति असंवेदनशील नजरिया डीकोड हुए बिना नहीं नहीं रहता ! जब नोटपैड  " चोखेर बाली " का मायना बताती हैं तो हमारे सामने अपनी जगह के लिए बराबरी से संघर्ष करती और मर्दवादी दृष्टिकोणों के सामने दो टूक जवाबतलब करती औरत का वजूद आ खडा होता है !नोटपैड लिखती हैं-

" आज भी समाज जहाँ ,जिस रूप में उपस्थित है - स्त्री किसी न किसी रूप में उसकी आँखों को निरंतर खटकती है जब वह अपनी ख्वाहिशों को अभिव्यक्त करती है ; जब जब वह अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाह्ती है , जब जब वह लीक से हटती है । जब तक धूल पाँवों के नीचे है स्तुत्य है , जब उडने लगे , आँधी बन जाए ,आँख में गिर जाए तो बेचैन करती है । उसे आँख से निकाल बाहर् करना चाहता है आदमी ।
दूसरी बात शास्त्री जी के बहाने बाकि पुरुष ब्लॉगरों से । वे कल रचना की पोस्ट देखते हुए यहाँ आये । अच्छा लगा । आते रहें ।उनकी टिप्पणी है -
Shastri said...
यह चिट्ठा आज ही मेरी नजर में आया. यहां हमारे चिट्ठालोक के स्त्रीरत्न कई बातें कहने की कोशिश कर रही हैं. नियमित रूप से पढूंगा. देखते हैं कि कुल मिला कर आप लोग क्या कहना चाहते हैं."

चोखेर बाली आंख की किरकिरी बन गई आफतों का ब्लॉग है ? या फिर यह हमारे समाज के सबसे अ संवेदनशील तबके की स्त्री के लिए असंवेदनशीलता को इंगित करने की मजाल रखने वाला जरिया है ! यह ब्लॉग औरत की बेमतलब की कुंठाओं और दर्द से फटी बेसुरी आवाज है ? या कि कुछ नादान ,सिरफिरी मर्दाना बेशर्म औरतों की फालतू टाइम को काटने की मंशा से आ जुटी हैं और फालतू का शोरशराबा करती फिर रही हैं ? ..........सवाल कई उठ रहे हैं , उठेंगें भी ! आप साफ साफ नहीं कह रहे होंगे सराहना भी कर रहे होंगें ,तब भी सदियों का सीखा हुआ मर्दवाद सिर उठाएगा ही ! आप कुछ ऎसा कह जाऎंगे कि उसकी सूक्ष्म अंडरटोन आपके मन को नग्न कर जाएगी ! आप बिफर उठेंगे ! आप कहेंगे आपका मन साफ था , वहां औरत के लिए इज्जत थी ! और फिर आप निष्कर्ष देंगे सूत्र वाक्य कहेंगे -औरतों के बारे में अंतिम फतवा आप ही देंगे ......! 

तो क्या चोखेर बाली का अंजाम यही होगा ! पागलपन और असंतोष की शिकार आधी आबादी, बेदखली की डायरी लिखने वाली, आंख की किरकिरी ,प्रत्यक्ष को प्रमाण न मानने की जिद ठाने , अंतहीन आकाश में अस्तित्वहीन चिडिया की चहचहाहट को दर्ज करती औरत --क्या चोखेर बाली की आजादी मुमकिन हो पाएगी ?

15 comments:

azdak said...

बिना किसी नाटकीयता के मेरी अंतरंग शुभकामनाएं.. आपका ब्‍लॉग विवेक और समझदारी की ऊंचाइयों का ब्‍लॉग बने..

अफ़लातून said...

'चोखेर बाली' (गुरुदेव का उपन्यास) का सन्दर्भ भी बतायें हिन्दी भाषियों को।धड़ाधड़ पोस्ट से बहुत जल्दी पोस्ट नीचे चली जाती हैं,भड़ास जैसी भूल यहाँ न हो।एग्रीगेटर पोस्ट का पर्मालिंक देते हैं।खुद को जुड़ा पाता हूँ 'चोखेर बाली ' से।

अफ़लातून said...

चौथी पंक्ति में 'चोखेर बाली ' की कड़ी दुरुस्त कर लें।

Priyankar said...

बहुत-बहुत शुभकामनाएं .... वही जो प्रमोद दे चुके हैं .

'स्त्री लेखिकाओं' के इस ब्लॉग को पुरुष लेखकों का भी ब्लॉग बनाइए . आखिर संवाद उनसे ही नहीं, तो उनसे भी करना है . सूत्रपात भले ही आप करें, बदलाव में उनकी भी भूमिका होगी .

चोखेर बाली की सच्चाई और उसका विवेक अन्ततः समाज की किरकिराती आंखों को आईटोन और लोकूला और गुलाबजल सा महसूस हो यही कामना है .

पारुल "पुखराज" said...

humey bhi joden....sargam_gaa@yahoo.co.in

note pad said...

अफतालून जी ,हार्दिक धन्यवाद ! निश्चित रूप से सम्वाद होना चाहिये ।पर यह तो तभी सम्भव है जब पुरुष ब्लॉगर यहाँ देखेंगे । अभी तो लगता है तय नही कर पाए कि उनका स्टैंड क्या हो ? क्या चोखेर बाली से डर है कोई ?
पारुल आपका ईमेल आई डी ले लिया है । जल्द जवाब देती हूँ ।

विनीत कुमार said...

ab hui hai baat,sachmuch accha lag raha, betiyo ke blog me jab tak betiya badi hogi uskeliyae taiyaar manch milega,asahmati ko rakhne ke liyae. subhkaamnayae

आनंद said...

एक बहुत अच्‍छी शुरूआत है। चोखेर बाली का इंतज़ार रहेगा। Sand of eye जब आँखों में लगेगी तो पीड़ा ज़रूर होगी। लेकिन आपकी बात आपकी लेखनी से ही निकलेगी इसकी खुशी भी है।

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।

Tarun said...

चोखेर बाली चिट्ठाजगत की फूलन देवी है और हमने चोखेर बाली के आने से बहुत पहले ही कह दिया था कि आज माधुरी नही फूलन चाहिये। ये अलग बात है हमारी बात पर ध्यान नही दिया गया लेकिन देर से ही सही और चोखेर बाली के रूप में ही सही वो वापस आयी तो।

चोखेर बाली को हमारी शुभकामनायें :)

स्वप्नदर्शी said...

please check the links in your article, there is https/https in all and these blog do not open, apart from your own

Neelima said...

धन्यवाद स्वप्नदर्शी जी ! लिंक ठीक कर दिए हैं !

Arun Arora said...

सुस्वागतम जी ,बधाईया ढेरॊ (डर के मारे दे रहे है ,यहा पंगे लेने लायक नही है हम)ब्लोगरो सावधान,हमे तो अभी से आख मे किरकिरी लगने लगी है..पहले पांच उंगलियो से क्या कम डर था,(जरा सा कोई लाईन से हिला,और आख मे उंगली होने का डर) अब तो मुक्का दिखाइ दे रहा है..:)

Arun Arora said...

हमे भी शामिल कर लीजीये जी..

अजित वडनेरकर said...

बधाई । अच्छी शुरुआत।

kavi kulwant said...

बधाई..