Tuesday, July 15, 2008

कौन सी थी हिन्‍दी की 100000वीं पोस्‍ट?

 

चिट्ठाजगत अपने मुखपृष्‍ठ पर हिन्‍दी चिट्ठासंसार की कुल पोस्‍टों की संख्‍या भी बताता है। आज ध्‍यान दिया कि एक बड़ा मील का पत्थर चुपचाप पीछे छूट गया है-

100000posts  

जी हॉं हिन्‍दी की पोस्‍टों की संख्‍या ने 100000 की संख्‍या को छू लिया है। एक लाख किसी में मायने में एक बड़ी संख्‍या है। उल्‍लेखनीय है कि चूंकि हर ब्‍लॉग पोस्‍ट एक स्‍वतंत्र यूआरए‍ल होती हे तो तकनीकी तौर पर हर पोस्‍ट एक बेवपेज है। इस तरह एकलाख वेबपेज तो ब्‍लॉगजगत के ही हो गए। यदि हमारी एक पुरानी पोस्‍ट जो 11 सितम्‍बर 2007 को लिखी गई थी पर ध्‍यान दें तो पता चलता हे कि पिछले 10 महीने में चिट्ठों की संख्‍या साढ़े तीन गुना और पोस्‍टों संख्‍या पॉंच गुना बढ़ गई है। तब का स्‍क्रीनशॉट ये है-

1000

यहॉं यह स्‍पष्‍ट करना आवश्‍यक है कि ये ऑंकड़े केवल उन 3564 चिट्ठों के हैं जो चिट्ठाजगत में एग्रीगेट हो रहे हैं इनमें वे पोस्‍टें शामिल नहीं है जो किसी कारण चिट्ठाजगत में नहीं है। अत: वास्‍तविक हिन्‍दी पोस्‍ट संख्‍या निश्‍चय ही कहीं अधिक है।

एक मजेदार सवाल मेरे मन में ये था कि कौन सी थी 100000वीं पोस्‍ट?

Friday, May 9, 2008

दैनिक भास्‍कर में चोखेरबाली

रविजी ने दैनिक भास्‍कर की ये कटिंग भेजी है। रविकांत का यह लेख महिला ब्‍लॉगरों के संयुक्‍त प्रयासों पर आधारित है। स्‍थान, शब्‍दसीमा आदि के बंधन को ध्‍यान में रखें तो लेख हमें ठीक लगा। इस मायने में भी कि यह इससे पहले शायद किसी एक ही ब्‍लॉग पर आधारित लेख नहीं छपे थे। रविजी व रविकांत  ओझा का पुन: शुक्रिया।

 

chokher_bali

Tuesday, April 8, 2008

हिंदी जनपद का ब्लॉगफेमेनिज़्म

  { यह पोस्ट  "वूमेन स्ट्डीज़" -पर हाल ही में संपन्न हुई एक संगोष्ठी में मेरे द्वारा पढे गए पर्चे का अंश रूप है !}

अंतर्जाल पर हिंदी की आहटें अब सशक्त स्वर का रूप ले रही हैं ! आज हिंदी में लिखे जा रहे ब्लॉगों की मौजूदगी को लेकर न केवल हिंदी के वरन अंग्रेजी के मुख्यधारा मीडिया ने हलचल दिखानी शुरु कर दी है! जनसत्ता , राषट्रीय सहारा , दैनिक भास्कर , दैनिक जागरण ,एन डी टीवी, सी एन एन आई बी एन आदि जगहों पर हिंदी ब्लॉगिंग के उभरते तेवरों की खूब चर्चा हो रही है ! उभरते हुए नेट या साइबर फेमेनिज़्म के नए विमर्श वृत्त में हिंदी ब्लॉगिंग अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हो रही है! यहां स्त्री आंदोलन ,स्त्री विमर्श और स्त्री लेखन की त्रयी बन रही है जिससे हर दिन नए सदस्यों का जुडना हो रहा है ! ब्लॉग का यह जरिया स्त्री संघर्षों को रियल टाइम में घटित कराता है ! संवाद प्रतिसंवाद ,सूचना विचार और अभिव्यक्ति का यह ग्लोबल मंच अब तक का सबसे सनसनीखेज माध्यम है ! यहाँ पर्चा हिंदी ब्लॉगिंग में घटित होने वाले नए फिनामिना ब्लॉगफेमेनिज़्म की पडताल करता है

हिंदी की पहली स्त्री ब्लॉगर पद्मजा का ब्लॉग "कही अनकही" 2003 में प्रारंभ हुआ ! तब से अब तक की यह ब्लॉग यात्रा हिंदी पट्टी का अपने तरीके का नेटफेमेनिज्म है ! यह यात्रा कोमलता से तीखे तेवर अख्तियार करने की , भावनाओं के शिखरों से उतरकर कंटीले रपटीले रास्तों पर चलने की यानि पद्मजा से चोखेर बाली बन जाने की कहानी है!ये ब्लॉगराइने हिंदी की परंपरागत पट्टी की न होकर अलग अलग स्थानों पृष्ठभूमियों से हैं ! दिल्ली लखनऊ हरियाणा अमेरिका बम्बई अहमदाबाद लंदन से लिखने वाली ये स्त्री ब्लॉगर डॉ.,इंजीनियर ,वैग्यानिक , सरकारी अफसर ,प्राध्यापक ,शिक्षक ,मीडियाकर्मी हैं कुछ धरेलू भी है!

 हिंदी ब्लॉगिंग में स्त्री विमर्श के बनते उखडते पैराडाइम में चोखेरबाली का एक कम्युनिटी ब्लॉग के रूप में सामने आना बहुत सकारात्क धटना है ! इसके सथ जुडॆ 20 सदस्यों में कुछ पुरुष भी हैं ! इस ब्लॉग के जरिये पहली बार साइबर स्पेस में बिखरे फेमेनिज़्म को आयाम मिला है ! पुरुषों द्वारा एप्रोप्रिऎट किए जा रहे स्त्री विमर्श को अब स्त्री ने अपने हाथ में ले लिया है ! न केवल ब्लॉग जगत पर वरन प्रिंट मिइडिया में भी चोखेरबाली की चर्चा निरंतर हो रही है ! तकनीक पर नियंत्रण से शुरुआत के साथ साथ अब स्त्री ब्लॉगर कंटेंट /सामग्री के नियंत्रण की ओर आ रही हैं ।और इसकी प्रखर अभिव्यक्ति “चोखेर बाली “के उदय से सामने आने लगी है । महिलाएँ ब्लॉग के माध्यम से क्या बात करें और किसी विमर्श को कैसे आगे बढाएँ यह वे खुद तय करने लगी है ।

1--स्व और अस्मिता की अपनी निजी परिभाषा की तलाश करना !

2--अपने अतीत के निजी अनुभवों की स्त्रीवादी आलोचना करना !

3--सामाजिक राजनीतिक जीवन में स्त्री असमानता और हिंसा पर कडी आलोचनात्मक

निंदा का सामाजिक मंच तैयार करना !

4--मर्दवादी तेवरों को डिकोड करना !

5--नेटफेमेनिज्म की सार्थक भूमिका तैयार करना !

6--सूचना प्रौद्योगिकी के सबसे सशक्त माध्यमों में पुरुष एकाधिकार को चुनौती देना !

7--अपने क्रोध ,असहमति ,मत को रचनात्मक ,सामाजिक मंच प्रदान करना !

पद्मजा से आंख की किरकिरी बन जाने वाली संघर्षशील स्त्री की आजादी की मुहिम हिंदी ब्लॉग जगत में छिड चुकी है ! हिंदी के इस नए अंदाज ब्लॉगफेमेनिज़्म की संभावनाओं को तलाशा जाना अब जरूरी है !

Tuesday, February 19, 2008

चोखेर बाली आगंतुक कथा वाया स्टेट काउंटर

सराय से मिले पैसे से हम बौद्धि‍क रूप से गुलाम तो खैर हो ही रहे थे :) पर साथ ही साथ एक काम और कर रहे थे (आप चाहें तो मान लें कि ये काम गौण था) यह था शोध करना। इस दौरान आंकड़ों में मतलब आवाजाही वगैरह के, झांकने के काम में कुछ कुछ समझ बनी थी। शायद इसलिए ही सुजाता ने जो चोखेरबाली देखती हैं मुझे आदेश  (छोटों के आग्रह भी आदेश होते हैं और बड़ों के आदेश भी सलाह भर:))  दिया कि चोखेरबाली के स्‍टेटकाउंटर आंकड़े देखूं, ये क्‍या कहते हैं...मैंने उस एक्‍सेल फाइल को देखा और कुछ कुछ हैरानी हुई। इससे पहले एग्रीगेटरों के आंकड़ों को देखा था और उन पर पोस्‍ट लिखीं थीं। अपने खुद के ब्‍लॉगों के आंकड़ें देखते हैं और उनपर कोई पोस्‍ट नहीं लिखते :)। पर चोखेरबाली के आंकड़ों में कुछ अलग बात है-

chokherbalistat

आप कह सकते हैं कि इसमें अलग क्‍या है, आखिर चोखेरबाली एक नया ब्‍लॉग है सिर्फ दस दिन पुराना उस लिहाज से 220 की औसत से पेजलोड कम नहीं है। पर हमारा इशारा उस ओर नहीं है हम कहना चाहते हैं कि पेजलोड और यूनीक विजीटर के बीच का अंतराल देखें।औसत पेजलोड हैं 219 और यूनीक विजीटर औसत 76. इतना अधिक अंतराल सामान्‍यत: एग्रीगेटरों में तो देखा जाता है- मसलन नारद की विवादकालीन आवाजाही में यूनीक विजीटर व पेजलोड के बीच इतना अधिक अंतर था किंतु किसी ब्‍लॉग के लिए ये कुछ सामान्‍य नहीं है।

आसान भाषा में इसका क्या मतलब है ? हमारी अनंतिम सी व्‍याख्‍या इस प्रकार है-

  1. सबसे पहली बात तो यह कि सामुदायिक ब्लॉगों और निजी ब्‍लॉगों के ट्रेफिक पैटर्न में अंतर है- अगर मोहल्‍ला और भड़ास या हिन्‍दयुग्‍म के आंकड़ों से तुलना करें तो और बेहतर तस्‍वीर मिले पर प्रथम दृष्‍टया तो लगता है कि सामुदायिक ब्‍लॉग लोग अलग अपेक्षाओं से पढ़ते हैं। पोस्‍ट संख्‍या का अधिक होना भी एक भूमिका अदा करता है।
  2. लेकिन मूल बात जो चोखेरबाली में दिखाई दे रही है वह यह है कि ये वाकई चोखेरबाली है, खटकने वाला ब्‍लॉग...कुछ लोग बार बार वापस आकर देख रहे हैं...हम्‍म क्‍या हुआ...क्‍या हुआ। बाकी जबरदस्‍त इग्नोर मार रहे हैं।
  3. क्‍यों झांक रहे हैं बार बार...? मुझे लगता है टिप्‍पणियॉं।। जी संभवत पहली बार ब्‍लॉग में पोस्‍ट से ज्‍यादा आकर्षण टिप्‍पणियों का है, इतना कि टिप्‍पणियॉं ट्रेफिक ला रही हैं।इस ब्‍लॉग पर 'अच्‍छा है' लिखने वाले आमतौर पर नदारद है ( चिट्ठे 'अच्‍छा है' के खिलाफ तो बाकायदा झंडा लिए है, कुछ अच्‍छा नहीं है, हम पतनशीला हैं, बोलो क्‍या कल्‍लोगे) और टिप्‍पणियॉं लंबी हैं विमर्शात्‍मक हैं तल्ख भी हैं।
  4. एक अन्‍य अपुष्‍ट बात ये है कि एग्रीगेटरों के स्थान पर चिट्ठासंसार में अब ध्रुवीकरण सामुदायिक ब्‍लॉगों के इर्द गिर्द होने वाला है- इस विषय पर अगली किसी पोस्‍ट में लिखूंगी।

जो बात आंकड़ों से नहीं दिख रही वह यह कि इस चिट्ठे को लेकर ही ऐसी विचित्र प्रतिक्रिया क्‍यों है? पर इस बात को समझने के लिए आंकड़ों को नहीं समाज को देखने की जरूरत है। चिट्ठों में स्त्रियों से 'भाभीजी', 'माताजी' खानपान, हे हे हे टाईप लेखन की उम्‍मीद रही है। चोखेरबाली चुभने के लिए आया है और चुभ रहा है।

डिस्‍क्‍लेमर : कमलजी व आलोकजी शेयरटिप्‍स देते हुए लिख देते हैं कि इस कंपनी में लेखक का निवेश हो सकता है...हम भी कहे देते हैं कि यूँ हमने आंकड़ों का ही विश्‍लेषण किया है पर चोखेरबाली के हम भी सदस्‍य हैं।

Thursday, February 7, 2008

चंद औरतों (जो हसीन नहीं थीं ) के खुतूत

मोहल्ला और भडास सफल हुए ! इन सामुदायिक ब्लॉगों ने ब्लॉग जगत में जिस सामाहिक अवचेतन को लिंकित करने की परंपरा शुरू की थी शायद उसी का नतीजा है स्त्री विमर्शों पर स्त्रियों शुरू किया गया ब्लॉग " चोखेर बाली " !मैंने अपने शोध निष्कर्ष में अस्तित्व की छटपटाहट को हिंदी ब्लॉगित जाति का बेसिक फिनामिना घोषित किया था ! शायद इसी विचार को पुष्ट करता है यह नया ब्लॉग !  स्त्री का अपनी अस्मिता की प्राप्ति का संघर्ष और स्त्रीत्व के विचार को आंदोलनगामिता की शरण से लौटा लाने का प्रयास है यह ब्लॉग ! इस ब्लॉग की टैग लाइन कहती है -"इससे पहले कि वे आ के कहें हमसे हमारी ही बात हमारे ही शब्दों में और बन जाएँ मसीहा हमारे , हम आवाज़ अपनी बुलन्द कर लें ,खुद कह दें खुद की बात ये जुर्रत कर लें ...."! इस ब्लॉग में शामिल हैं हिंदी ब्लॉग जगत की स्त्री लेखिकाएं-

'चोखेर बाली' को बने सिर्फ कुछ ही घंटे हुए हैं पर हिंदी चिट्ठाजगत में इसकी चर्चा पर सुगबुगाहटें होने लगीं हैं ! इस ब्लॉग को लेकर आशा उम्मीदों कामनाओं का माहौल नहीं बना वरन खते हैं आप लोंगों में कितना दम है -सरीखी तमाशबीनी पिकनिकी दृष्टि से इसका स्वागत किया जा रहा है ! आज हमें बहुत दिन पहले उठाए गए सवाल -"ब्लॉग जगत में महिलाऎ इतनी कम क्यों हैं "-का जवाब मिलने लगा है ! दरअसल ब्लॉग जहत का ढांचा भी हमारी संरचना का एक हिस्सा भर ही है ! इसलिए यहां स्त्री विमर्श और संघर्ष के मुद्दों का उठना-गिरना -गिरा दिया जाना -हाइजैक कर दिया जाना -कुतर्की, वेल्‍ली और छुट्टी महिलाओं का जमावडा करार दे दिया जाना ---जैसी अनेक बातों का होना बहुत सहज सी प्रतिक्रिया माना जाना चाहिए ! जब प्रत्यक्षा कहती हैं कि अब ब्लॉग लिख रही औरतों से यह सवाल मत पूछिएगा कि आप ब्लॉग लिखती हैं तो खाना कौन बनाता है ? -तो हमारे सामने ब्लॉग जगत का  स्त्री के प्रति असंवेदनशील नजरिया डीकोड हुए बिना नहीं नहीं रहता ! जब नोटपैड  " चोखेर बाली " का मायना बताती हैं तो हमारे सामने अपनी जगह के लिए बराबरी से संघर्ष करती और मर्दवादी दृष्टिकोणों के सामने दो टूक जवाबतलब करती औरत का वजूद आ खडा होता है !नोटपैड लिखती हैं-

" आज भी समाज जहाँ ,जिस रूप में उपस्थित है - स्त्री किसी न किसी रूप में उसकी आँखों को निरंतर खटकती है जब वह अपनी ख्वाहिशों को अभिव्यक्त करती है ; जब जब वह अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाह्ती है , जब जब वह लीक से हटती है । जब तक धूल पाँवों के नीचे है स्तुत्य है , जब उडने लगे , आँधी बन जाए ,आँख में गिर जाए तो बेचैन करती है । उसे आँख से निकाल बाहर् करना चाहता है आदमी ।
दूसरी बात शास्त्री जी के बहाने बाकि पुरुष ब्लॉगरों से । वे कल रचना की पोस्ट देखते हुए यहाँ आये । अच्छा लगा । आते रहें ।उनकी टिप्पणी है -
Shastri said...
यह चिट्ठा आज ही मेरी नजर में आया. यहां हमारे चिट्ठालोक के स्त्रीरत्न कई बातें कहने की कोशिश कर रही हैं. नियमित रूप से पढूंगा. देखते हैं कि कुल मिला कर आप लोग क्या कहना चाहते हैं."

चोखेर बाली आंख की किरकिरी बन गई आफतों का ब्लॉग है ? या फिर यह हमारे समाज के सबसे अ संवेदनशील तबके की स्त्री के लिए असंवेदनशीलता को इंगित करने की मजाल रखने वाला जरिया है ! यह ब्लॉग औरत की बेमतलब की कुंठाओं और दर्द से फटी बेसुरी आवाज है ? या कि कुछ नादान ,सिरफिरी मर्दाना बेशर्म औरतों की फालतू टाइम को काटने की मंशा से आ जुटी हैं और फालतू का शोरशराबा करती फिर रही हैं ? ..........सवाल कई उठ रहे हैं , उठेंगें भी ! आप साफ साफ नहीं कह रहे होंगे सराहना भी कर रहे होंगें ,तब भी सदियों का सीखा हुआ मर्दवाद सिर उठाएगा ही ! आप कुछ ऎसा कह जाऎंगे कि उसकी सूक्ष्म अंडरटोन आपके मन को नग्न कर जाएगी ! आप बिफर उठेंगे ! आप कहेंगे आपका मन साफ था , वहां औरत के लिए इज्जत थी ! और फिर आप निष्कर्ष देंगे सूत्र वाक्य कहेंगे -औरतों के बारे में अंतिम फतवा आप ही देंगे ......! 

तो क्या चोखेर बाली का अंजाम यही होगा ! पागलपन और असंतोष की शिकार आधी आबादी, बेदखली की डायरी लिखने वाली, आंख की किरकिरी ,प्रत्यक्ष को प्रमाण न मानने की जिद ठाने , अंतहीन आकाश में अस्तित्वहीन चिडिया की चहचहाहट को दर्ज करती औरत --क्या चोखेर बाली की आजादी मुमकिन हो पाएगी ?