tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post4241348123079826606..comments2023-10-30T13:42:40.259+05:30Comments on लिंकित मन: ......क्योंकि असली खुजली दिमाग में ही होती हैNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-7465067114706397742007-04-06T22:34:00.000+05:302007-04-06T22:34:00.000+05:30धन्यवाद नीलिमा।मै इस विषय पर कई बार लिख चुका हूँ, ...धन्यवाद नीलिमा।<BR/><BR/>मै इस विषय पर कई बार लिख चुका हूँ, इसलिए ज्यादा बोर नही करूंगा। मै पहले अंग्रेजी मे ब्लॉग लिखता था, लेकिन शायद कभी वो अपनापन, गम्भीरता,चंचलता और संवेदना पहले हिन्दी मे महसूस करता था, फिर उसके लिए अंग्रेजी के सही शब्द ढूंढता था, फिर लिखता था। लेकिन मैने कई बार सोचा कि इस अनुवाद मे कभी कभी मूल भावना और भाव कंही खो जाता था। जब अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम (मातृ-भाषा) उपलब्ध हो तो कोई क्यों दूसरी भाषा मे ब्लॉग लिखे।<BR/><BR/>बाकी आप इस सम्बंध मे मेरे ब्लॉग विभिन्न लेख देखें।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2315489144517089742.post-30929425951293293232007-04-06T18:46:00.000+05:302007-04-06T18:46:00.000+05:30नीलिमा जी, यहां दो सवालों की घालमेल हो रही है:आप च...नीलिमा जी, यहां दो सवालों की घालमेल हो रही है:<BR/>आप चिट्ठा क्यों लिखते हैं और आप हिंदी में चिट्ठा क्यों लिखते हैं। <BR/>हम कितनी भी भाषायें सीख लें शायद भावनाओं की असल अभिव्यक्ति अपनी ही भाषा में हो सकती है। इंगलिश हमारे ऑफिस की भाषा हो सकती है हमारी खुशियों की, हमारे गमों की और हमारे गीतों की भाषा नहीं हो सकती।<BR/>इंगलिश में तकनीक सीखाने वाले चिट्ठे आसानी से लिखे जा सकते हैं, मगर जब कोई दिल की बात कहना चाहेगा तो उसे अपनी मातृभाषा की कलम ही उठानी पड़ेगी।Anonymousnoreply@blogger.com